मुझे नहीं पता आपमें से कितनों को मुजफ्फरनगर वाला जाट नरसंहार याद है या नहीं, किंतु मुझे भली प्रकार याद है।
तब देश में कांग्रेस की सरकार थी चौधरी अजीत सिंह कांग्रेस के सहयोगी थे और सरकार में सम्मिलित भी थे।तब शांतिदूतों द्वारा एक जाट लड़की से छेड़खानी का विरोध करने पर
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लड़की के दोनों भाइयों को शांतिदूतों की भीड़ द्वारा दौड़ाकर चक्की के पाटों से कुचलकर मारा गया था। दोनों लड़कों की स्थिति ऐसी थी कि चेहरा तक पहचानना संभव नहीं था।
तब प्रदेश में समाजवादी सरकार थी आजम खान की तूती बोला करती थी। मुलायम अखिलेश सपने में भी आजम के तलवे में दबे रहते थे2/n
मीडिया तब पूरी तरह से कांग्रेस के इशारों पर काम करता था, ये न्यूज़ उनके एजेंडे को सूट नहीं करती थी अतः कवरेज भी नहीं मिली,
तब जाटों द्वारा एक महापंचायत का आवाह्न किया गया और उस आह्वान पर महापंचायत में सम्मिलित होने के बाद वहां से लौटते समय शांतिदूतों की भीड़ द्वारा घात
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लगाकर जाटों पर आक्रमण कर दिया गया!
और उनका नरसंहार हुआ, शव नहर में फेंक दिए गए, कहते हैं कि अभी तक 18 लोग का कोई आता पता नहीं चला है और तब जब सभी हिन्दुओं ने इसका विरोध किया गया तब समाजवादी सरकार ने पुलिसिया कार्यवाही और झूठे मुकदमों द्वारा दमन पीड़ित जाट समुदाय का ही किया
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उस घटना का नेटेरिव कुछ ऐसा बनाया गया जैसे पीड़ित जाट ही आक्रमणकारी रहे हो और हत्यारा समुदाय ही पीड़ित हो, उस घटना के बाद सोनिया गांधी मनमोहन सिंह शिवपाल यादव मायावती सब मुजफ्फरनगर पहुंचे थे,
किंतु आपको जानकर आश्चर्य होगा कि वह सब जाटों से मिलने नहीं केवल शांतिदूत समुदाय से
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मिलने गए थे, और उन्हीं को राहत पैकेज व सहानुभूति देकर वापस लौट गए, मतलब अत्याचारी को इनाम दे कर हौसला अफजाई की गई! जाटों ने सोचा कि उनके नेता चौधरी अजीत सिंह तो कांग्रेस के साथ सत्ता में है और अजीत सिंह के सुपुत्र जयंत चौधरी तब सांसद हुआ करते थे, तब जाटों ने चौधरी अजीत सिंह
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जयंत चौधरी टिकैत परिवार सब का आह्वान किया, आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इनमें से कोई भी उस समय जाटों के संग खड़ा होने नहीं आया दंगे चलते रहे पीड़ित जाट अपने नेता चौधरी अजीत सिंह को फोन मिलाते रहे परंतु उन्होंने तो मुजफ्फरनगर का दौरा करना तक उचित नहीं समझा और तब केवल एक पार्टी
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और उसके स्थानीय नेता थे जो जाटों के संग उनका समर्थन कर रहे थे व उनकी आवाज मीडिया में उठाई और जमीन पर उतरे! उनके नाम थे संजीव बालियान, संगीत सोम, सुरेश राणा। हालांकि इसकी कीमत इन लोगों ने अपने ऊपर नेशनल सिक्योरिटी एक्ट झेलकर चुकाई! परंतु यह नहीं भूलना चाहिए कि वह भाजपा और
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जब जमानत जब्त हो जाती है तो नेता गांधी बन जाता है ! राकेश टिकैत ने मोदी विरोध और किसान के नाम पर खूब राजनीति चमकाई कभी ट्विटर पर उनके 10 हजार
फॉलोअर भी नहीं थे लेकिन मोदी विरोध की दुकान ऐसी चमकी कि लाखों फॉलोअर भी हो गए और ब्लू टिक भी मिल गया।
पिछले दो महीने से राकेश
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टिकैत साहब से ये सवाल पूछा जा रहा है कि अरे टिकैत साहब चुनाव क्यों नहीं लड़ते ? तो टिकैत साहब बोलते हैं, अरे ना जी हम तो किसानों की लड़ाई लड़ रहे हैं राजनीति करने थोड़े ही आए हैं।अब सामने जो एंकर बैठा है वो भी टिकैत साहब का काफी लिहाज करता है इसलिए वो कभी टिकैत साहब से
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ये नहीं पूछता है कि टिकैत साहब सुना है आप दो बार चुनाव लड़े थे और दोनों बार आपकी जमानत भी जब्त हो गई थी
खैर टिकैत साहब को टीआरपी मिल रही है, इसलिए चैनल वालों को भी डर लगता है कि कहीं टिकैत साहब नाराज ना हो जाएं। इसलिए उनसे मिट्ठे मिट्ठे सवाल पूछते हैं, एकदम गन्ने की
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चंबल वाले डाकू छविराम से मथुरा वाले रामबृक्ष यादव तक की समाजवादी यात्रा और नेता जी की टूटी उंगली :
बात शुरू होती है साल 1980-82 से। उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री स्व. वी. पी. सिंह ने दस्यु उन्मूलन का अभियान शुरू किया और खास कर चंबल के बीहड़ों के डाकूओं के इनकाउंटर
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शुरू हुए। इसी क्रम में मार्च 1982 में कुख्यात डाकू छविराम को उसके 13 गैंग सदस्यों के साथ इनकाउंटर में मार दिया गया। छविराम का गिरोह बड़ा था और इनकाउंटर के बाद भी उस गिरोह के कई सदस्य और सफेदपोश मददगार बचे रह गए थे। उसी लिस्ट में समाजवादी पुरुष श्री शिवपाल सिंह यादव जी भी 2/n
शामिल थे। अब चूंकि वी पी सिंह दस्यु उन्मूलन अभियान को लेकर बेहद सख्त थे और यहां तक कि उन्होंने उत्तर प्रदेश के भूतपूर्व मुख्यमंत्री, पूर्व रक्षा मंत्री और समाजवादी शिखर पुरुष श्री मुलायम सिंह जी का नाम भी इनकाउंटर की लिस्ट में डाल दिया था। सो आदरणीय शिवपाल जी कैसे बचते!
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2017 से पहले अयोध्या में कभी भव्य दीपोत्सव नहीं आयोजित हुआ था!
2017 से पहले प्रयागराज में कभी भव्य कुंभ आयोजित नहीं हुआ था!
2017 से पहले बनारस में कभी भव्य गंगा आरती का आयोजन नहीं हुआ था!
2017 से पहले भव्य काशी विश्वनाथ धाम की किसी ने कल्पना नहीं की थी!
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2017 से पहले भव्य विंध्यवासिनी धाम की किसी ने कल्पना नहीं की थी!
2017 से पहले अयोध्या, मथुरा, वृंदावन के भव्य विकास की किसी ने कल्पना नहीं की थी!
2017 से पहले कांवड़ियों पर हेलीकॉप्टर से पुष्प वर्षा होने की कल्पना नहीं की थी!
2017 से पहले भव्य कैलाश मानसरोवर भवन बनने की
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कल्पना नहीं की थी! 2017 से पहले मां गंगा को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिये इतना कार्य होगा इसकी कल्पना नहीं की थी!
मोदीजी और महाराज जी ने ये सारे अकल्पनीय कार्य को साकार करने का काम किया है! मैंने तो कभी सोचा ही नहीं था की हमारे धार्मिक स्थलों का इतना भव्य विकास भी होगा!
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सरदार वल्लभ भाई पटेल जी की जब मृत्यु हुई तो एक घंटे बाद तत्कालीन-प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने एक घोषणा की।
- घोषणा के तुरन्त बाद उसी दिन एक आदेश जारी किया गया, उस आदेश के दो बिन्दु थे। पहला यह था, की सरदार पटेल को दी गयी सरकारी-कार को उसी वक्त वापिस लिया जाय और 1/n
दूसरा बिन्दु था की गृह मंत्रालय के वे सचिव/अधिकारी जो सरदार-पटेल के अन्तिम संस्कार में बम्बई जाना चाहते हैं, वो अपने खर्चे पर जायें।
लेकिन तत्कालीन गृह सचिव वी. पी मेनन ने प्रधानमंत्री नेहरु के इस पत्र का जिक्र ही अपनी अकस्मात बुलाई बैठक में नहीं किया और सभी
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अधिकारियों को बिना बताये अपने खर्चे पर बम्बई भेज दिया।
उसके बाद नेहरु ने कैबिनेट की तरफ से तत्कालीन राष्ट्रपति श्री राजेन्द्र प्रसाद को सलाह भेजवाया की वे सरदार-पटेल के अंतिम-संस्कार में भाग न लें। लेकिन राजेंद्र-प्रसाद ने कैबिनेट की सलाह को दरकिनार करते हुए अंतिम-
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*योगी को सबक सिखाने की बात वही लोग कर रहे हैं, जो योगी को समझते नहीं हैं, एक-दो हत्याएं आज यूपी में हो गई तो लोग कहने लगे योगी को सबक सिखाएंगे, योगी है क्या योगी कौन है जिनको सबक सिखाने की बात हो रही है क्या योगी को 1/n
सबक सिखाना इतना आसान है? 1) यह वही योगी हैं जिन्होंने अपने कर्तव्य के लिए अपने पिता के अन्तिम संस्कार में नहीं गए। 2) यह वही योगी हैं जिन्होंने हिन्दुत्व के लिए जीते जी अपना पिण्डदान कर दिया। 3) यह वही योगी हैं जिसने शुक्रवार को होली पड़ने पर होली का समय नहीं तय किया बल्कि 2/n
नमाज रोकवा दी। 4) यह वही योगी हैं जिस यूपी में अपराधियों से सरकारें कांपती थी उनकी हेकड़ी निकाल दी। 5) यह वही योगी हैं जिसने ऐसी नकेल कसी अपराध की कि एक समय यूपी में पैसा न लगाने वाली बड़ी-बड़ी कम्पनियां investment कर रही हैं। 6) यह वही योगी हैं जिसने सत्ता में आकर
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