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Feb 1, 2022 5 tweets 3 min read Read on X
🌺Bateshwar group of temples, near Morena, Madhya Pradesh🌺

The Bateshwar temples (or Batesara, Bateśvar) are a group of nearly 200 sandstone temples and their ruins in north Madhya Pradesh in post-Gupta, early Gurjara-Pratihara style of North Indian temple architecture. ImageImage
It is about 35 kilometres north of Gwalior and about 30 kilometres east of Morena town. The temples are mostly small and spread over about 25 acres site. They are dedicated to Shiva, Vishnu and Shakti - representing the three major traditions within Hinduism. ImageImage
The site is within the Chambal River valley ravines, on the north-western slope of a hill near Padavali known for its major medieval era Vishnu temple. The Bateshwar temples were built between the 8th and the 10th-century. ImageImage
The site is likely named after the Bhuteshvar Temple, the largest Shiva temple at the site. It is also referred to as Batesvar temples site or Batesara temples site. Image
The temples as they now appear are in many cases reconstructed from the fallen stones in a project begun by the Archaeological Survey of India in 2005. Image

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Dec 19
🌺।।महर्षि दधीचि का इन्द्र को दिया गया अपनी हड्डियों का महादान,महाशक्तिशाली देवास्त्र वज्रास्त्र का निर्माण और वृत्रासुर का वध।।🌺

श्रीमद्भागवत और शिव महापुराण में महान ऋषि दधीचि की कथा आती है,जिन्होंने मानवता के कल्याण के लिए अपना शरीर इंद्रदेव को दान कर दिया था।

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महर्षि दधीचि ने समस्त देवताओं को दुर्धर असुर वृत्रासुर के भय से मुक्त किया था ।

इस कथा का श्रीमदभागवत के छठे स्कंध के तीसरे अध्याय में वर्णन आता है ।  

आइए जानते हैं ये अद्भुत कथा;
🌺।।गुरु बृहस्पति का इंद्र को त्यागना।।🌺

एक बार देव गुरु बृहस्पति, इंद्र से मिलने के लिए उनकी राज्यसभा में गए । उस समय इंद्र और अन्य देवगण गंधर्वों के गान और अप्सराओं के नृत्य में इतना डूबे हुए थे कि उन्होंने गुरु बृहस्पति की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया । उस समय किसी भी देवता ने ना तो उन्हें प्रणाम किया और ना ही उन्हें उचित आसन दिया ।Image
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Dec 17
🌺।।श्रीमद्भागवत महापुराण से महाराजा अंबरीश की कथा, ऋषि दुर्वासा का उन्हें शाप और एकादशी व्रत का महत्व।।🌺

महाराजा अंबरीष जिनका नाम सुनते ही मन में पवित्रता का भाव जागृत हो जाता है। यह भगवान विष्णु के अनन्य भक्तों में से एक थे।

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शुकदेव जी परीक्षित राजा को ये कथा कह रहे हैं;

महाराजा अंबरीष की सहनशीलता और तपस्या के प्रभाव से दुर्वासा जैसे महाक्रोधी ऋषि भी उनके समक्ष नतमस्तक हो गए थे।महान ग्रंथ श्रीमद्भागवत के नवम स्कंध के चतुर्थ अध्याय में राजा अंबरीष की दिव्य कथा का वर्णन है ।
🌺।।राजा अंबरीष की वंशावली।।🌺

आर्यव्रत सदैव से ही महान राजाओं की भूमि रहा है। समय-समय पर अनेक राजाओं ने भगवान की भक्ति कर देवत्व को प्राप्त किया है। प्राचीन काल में इक्ष्वाकु वंश में नाभाग नाम के बहुत ही धर्मात्मा राजा हुए। वह हर समय अपनी प्रजा की सेवा के लिए तत्पर रहते थे। वह राजा नभग के पुत्र थे और वैवस्वत मनु के पौत्र थे। वह हर समय धर्म के कार्य में लगे रहते थे।
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Dec 16
🌺।।भगवान विष्णु के दिव्यास्त्र सुदर्शन चक्र की उत्पत्ति कथा और उससे जुड़ी कुछ जानकारी।।🌺

सुदर्शन चक्र भगवान विष्णु का अमोघ चक्र है, जिसे प्रभु अपनी तर्जनी उंगली पर धारण करते हैं।

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🌺।।सुदर्शन चक्र के बारे में कुछ जानकारी।।🌺

1. ये अस्त्र मन की गति से चलने वाला और अपने लक्ष्य का पीछा करके, उसे समाप्त करके, वापस प्रभु के पास आ जाता है। 

2. इस चक्र मैं 108 मुड़े हुए किनारे हैं।
3. इस चक्र मैं 12 आरे लगे हैं, जो साल के 12 महीनों को प्रतिष्ठित करते हैं। यह आरे इसके मध्य और किनारों को जोड़ने का कार्य करते हैं। 

4. यह चक्र 6 नाभि वाला है, और 2 युगों से युक्त है।
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Dec 15
🌺।।महाभारत काल में शान्तनु तथा गंगा विवाह और वसुओं का रहस्य।।🌺

राजा शांतनु चंद्र वंश के परम प्रतापी नरेश थेे। वह चक्रवर्ती  सम्राट भरत, जिनके नाम से हमारे देश का नाम भारत पड़ा, की 14वीं पीढ़ी मैं हुए थे।

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वह बहुत ही उत्तम कोटि के नरेश थे। प्रजा का बहुत ध्यान रखते थे। उनको एक ऋषि से वरदान मिला था कि वह जिस रोगी के सिर पर भी हाथ रख दे तो उसका रोग ठीक हो जाएगा इसलिए उनके यहां रोगियों का तांता लगा रहता था ।
पुराणों में राजा शांतनु को सागर का अवतार भी माना गया है। राजा शांतनु को शिकार खेलने का बहुत शौक था, एक बार वह गंगा के किनारे शिकार कर रहे थे और उनको बहुत प्यास लगी वह पानी पीने गंगा नदी के किनारे गए।
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Dec 13
🌺।।जब श्रीकृष्ण ने सत्यभामा को ये समझाया कि जो मनुष्य पुण्य कर्म करने वाले लोगों का दर्शन, स्पर्श और उनके साथ वार्तालाप करता है, वह उनके पुण्य का छठा अंश प्राप्त कर लेता है।।🌺

आइए जानें कार्तिक माह की ये महागाथा;

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श्रीकृष्ण ने सत्यभामा से कहा – ‘पूर्वकाल में अवन्तिपुरी(उज्जैन)में धनेश्वर नाम का एक व्यक्ती रहता था। वह रस, चमड़ा और कम्बल आदि का व्यापार करता था। वह वैश्यागामी और मद्यपान आदि बुरे कर्मों में लिप्त रहता था। चूंकि वह रात-दिन पाप में रत रहता था इसलिए वह व्यापार करने नगर-नगर घूमता था।
एक दिन वह क्रय-विक्रय के कार्य से घूमता हुआ महिष्मतीपुरी में जा पहुँचा जो राजा महिष ने बसाई थी। वहाँ पापनाशिनी नर्मदा सदैव शोभा पाती है। उस नदी के किनारे कार्तिक का व्रत करने वाले बहुत से मनुष्य अनेक गाँवों से स्नान करने के लिए आये हुए थे। धनेश्वर ने उन सबको देखा और अपना सामान बेचता हुआ वह भी एक मास तक वहीं रहा।
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Dec 11
🌺।।Bhagwan Dhanvantari : The God Physician of the Devas in Hinduism and regarded as an incarnation of Bhagwan Vishnu।।🌺

He is mentioned in the Puranas as the God of Ayurveda.

This is a Thread 🧵 about him; Image
1. Bhagwan Dhanvantari is known as a Physician of the Devas, and he is a celebrated God amongst the practitioners of Ayurveda. In Sanatana-dharma (Hinduism), praying to Dhanvantari is supposed to bring sound health for worshippers.
2. It is said that Bhagwan Dhanvantari was deputed by Indra Dev to take the science of Ayurveda to the mortals. Also to be noted, Dhanvantari is seen as an avatar of Sri Vishnu in Hinduism.
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