कौन है मोहन भागवत, और इसके इसके पास खुफिया विभाग की सूचनाएं क्यो हैं??
खुफिया विभाग राष्ट्रीय सुरक्षा, अपराध, जाली नोट, चोरी चकारी औऱ गैंगस्टर को रोकने के लिए होता है, न कि चुनावी सर्वे करके, इस प्राइवेट आदमी तक पहुचाने के लिए??
खुफिया विभाग के अलावे भारत की औऱ कौन कौन सी 8/1
संवैधानिक संस्थाये है,जो इन्हें रिपोर्ट करती है, क्यो करती है?
इस प्राइवेट आदमी को,बीजेपी की हालत पतली होने की चिंता क्यूं है?बीजेपी के हारनेसे इसे क्या नुकसान है,और बीजेपी के जीतने से इसे क्या फायदा है।
इसके कार्यकर्ता कौन है,जिन्हें ये लामबंद कर रहा है।उनकी सूची कहाँ है,
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उनका पुलिस रिकार्ड भी है क्या?उनका खर्च कौन उठाताहै।कौन पालता और यूज करताहै।
इसके कार्यकर्ता ऐसा क्या करतेहै कि जहाँ ये सक्रिय होते हैं,वहां हिंसा,दंगों और कानून व्यवस्थाकी स्थिति निर्मित होती है,खास तौर से चुनाव के वक्त।क्यो केरल या बंगाल में इसके कार्यकर्ता तथाकथित रूप से
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क्या वर्तमान में लोकतंत्र में यह निहायत बेशर्मी का प्रदर्शन नहीं है कि लगभग 80प्रतिशत भारतीयों की आमदनी घटी और23करोड़ लोग को गरीबी की दलदल में ढकेल दिया गया, जनता को लूटकर कारपोरेटको अमीर बनाते रहे और रामराज्यका सपना दिखाकर80करोड़ लोगोंको सरकारी राशन पर जीने को मजबूर कर दिया,
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अब राशन देनेकी क्रेडिट ले रहे हैं?पूरी एक पीढ़ीका भविष्य बर्बाद होचुका और बेशर्मीसे क्योटो,हवाई चप्पलसे हवाई जहाजसे अब पांच किलो राशन पर आ गया जो मार्चमें मुफ्त बंद हो जाएगा।आपको निर्णय लेना और जनप्रतिनिधियोंसे सवाल करने चाहिए कि आप बेरोजगार,गरीब,बिना दवा,अस्पताल,बिना आक्सीजन
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एम्बुलेंस मरने को विवश क्यों हैं?बिना किसी साधनके हजारों किलोमीटर भुखेपेट पैदल चलनेको विवश क्यों हुए?दूसरे शहर रोजगारके लिए जानाही क्यों पड़ता है?इस धरती पर पैदा होना अपराध नहीं है,सवाल न करना, धर्म जाति की आड़ में सत्ता सौंपना अपराध है,जिसका दंड हम भुगत रहे हैं और यदि आज भी
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ईमानदारी का ढोल पीटने वाली आम आदमी पार्टी की महिला निगम पाषर्द रिश्वत लेते हुए CBIद्वारा पकडी गयी !
यह खबर अहम इस लिये है क्योंकि जिस विधानसभा में यह निगम वार्ड आता है वहां के विधायक दिल्ली के डिप्टीCMमनीष सिसोदिया स्वंम हैं !
और मजे की बात ये कि महिला निगम पार्षद गीता रावत जी
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एक मूंगफली विक्रेता के मार्फ़त पैसे लेती रही.. डिप्टी CM साब की नाक के नीचे ये सब होता रहा, उनके पार्षद धड़ल्ले से घूसखोरी करते रहे !
सवाल ये भी बनता है कि..
**डिप्टी CM साब आंखे बंद करके क्यो बैठे रहे.?
**क्या ये सब डिप्टी CM साब की जानकारी में होता रहा है.?
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**जब डिप्टी CM के विधानसभा क्षेत्र में ये सब हो रहा है तो और ना जाने कितने निगम वार्ड होंगे जो भ्र्ष्टाचार व रिश्वतखोरी में लिप्त होंगे.?
3 महीने पहले भाजपा ने भी अपने 3 -3 निगम पार्षदों को भ्रटाचार व रिश्वतखोरी में लिप्त माना था !
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सावरकर की प्रेरणा से आरएसएस और उसके राजनीतिक प्रकोष्ठ भारतीय जनता पार्टी ने धीरे धीरे ‘जय श्रीराम’ को एक राजनीतिक नारे में बदल दिया.
बाबरी मस्जिद गिराने के समय जो नारा लगा वह भी ‘जय श्रीराम’ था और कर्नाटक से लेकर मध्यप्रदेश तक देश के हर कोने में
हिजाब के ख़िलाफ़ लग रहा नारा भी ‘जय श्रीराम’ है.
उत्तर प्रदेश में एक राजनेता के विरोध का नारा भी ‘जय श्रीराम’ है और किसानों के ख़िलाफ़ प्रदर्शनों में लगने वाला नारा भी ‘जय श्रीराम’ है. यहां तक कि वैलेंटाइन डे पर प्रेमी जोड़ों को पीटने का नारा भी ‘जय श्रीराम’ ही है.
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‘जय श्रीराम’ आरएसएस और भाजपा के लिए नया ‘आल्हा-ऊदल’ है जो उनके लोगों को युद्ध में प्रेरणा प्रदान करता है. वे आक्रामक होने के लिए ‘जय श्रीराम’ का प्रयोग करते हैं.
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सिर्फ़ एक,एक ही पत्रकारकी सीधी रीढ़ पूरे प्रेस और भगवा प्रवक्ताओं में भगदड़ मचा सकतीहै।
इंडिया टुडे की इस रिपोर्टर ने रीढ़ सीधी रखी, क्योंकि उसने कोर्ट का आदेश पूरा पढ़ा था।
साफ़ कहा गया है कि आदेश उन्हीं कॉलेजों पर लागू होगा,जहां कॉलेज विकास समिति ने ड्रेस कोड लागू कियाहै।
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सभी में नहीं।
कर्नाटकमें अंग्रेज़ियत खूब है।हिंदी रवांडा मीडियाके ज़्यादातर रिपोर्टर सुबह कुल्ला-मंजन कर एक एजेंडेके साथ माइक आईडी धरके निकलतेहैं और बीजेपी आईटीसेल के एजेंडा को आगे बढ़ातेहैं।(टीवी9और बाकी पत्तलकारों को देखें)
इसीलिए हिज़ाबका मुद्दा गोबर पट्टीमें भी फ़ैल रहाहै,
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क्योंकि पढ़ने-लिखने से रवांडा मीडियाका कोई वास्ता नहीं।
पत्रकारसे पत्तलकार बनना बहुत आसानहै। दलालीमें उतरनेके बाद प्रेस कार्ड और माइक आईडी सिर्फ पहुंचका माध्यम बन जाताहै।
लेकिन उसी माध्यमकी लाज रखने के लिए खूब तैयारी भी करनी पड़ती है।
मैंने इंग्लिश मीडियम को-एड पब्लिक स्कूल में पढ़ाई की, ग्रेजुएशन आयुर्वेद कॉलेज से, जहाँ बैच में अकेली मुस्लिम लड़की थी, रूममेट्स ब्राह्मण, जैन, ठाकुर, महाराष्ट्रीयन रहीं, हॉस्टल और जब रूम लिया तब भी अकेली मुस्लिम थी, कभी किसी को मुझसे या मुझे किसी से प्रॉब्लम नहीं हुई।
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स्कूल में 10thतक ट्यूनिक स्कर्ट्स थे,11वीं से सलवार-कुर्ता।3rd के बाद घरवालों ने स्कूल प्रशासन से बात की,स्कूल बदलें या यूनिफॉर्म। स्कूल ने यही कहा लड़की पढ़ने में बहुत अच्छी है,कोई दिक़्क़त नहीं सलवार-कुर्ता यूनिफॉर्म वाला पहनकर आए।स्कूल बदलने की नौबत नहीं आई।
आज का माहौल देखो
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तो यक़ीन नहीं होता, वह समय भी था जब छोटे शहर के धार्मिक पेरेंट्स अकेली लड़की को 250 किमी दूर अनजान शहर में उस कॉलेज में पढ़ने भेजते,जहाँ ब्राह्मण वर्चस्व है और दिन की शुरुआत धन्वन्तरि पूजन से होती है और उससे बड़ी बात,मैंने यूनिवर्सिटी टॉप किया, धर्म की वजह से बहस-विवाद होते थे
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