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          "मैं अगर दुनियां छोड़कर जा रहा हूँ तो इसका सबसे बड़ा कारण डॉ. संजय कुमार निषाद और उनके बेटों प्रवीण कुमार निषाद और ई श्रवण कुमार निषाद और गद्दार दोस्त जय प्रकाश निषाद है।"
        
          उसे वॉट्सएप यूनिवर्सिटी के मूर्ख सुपरनॉर्मल बता रहे हैं। 
        
          और अमेरिका अपने कारोबारी के तलवा चाटने पर खुश है। 
        
        
          अब न हिंदू आयेंगे और न पठानों से बात होगी। 
        
          यह घटना अफ़ग़ानिस्तान या पाकिस्तान की होती तो इसे बर्बर इस्लामिक सोच का प्रतीक बताकर देश भर में मीडिया और सोशल मीडिया के माध्यम से मुसलमानों से जवाब मांगे जाते।
        
          आज दशहरा है। अन्याय, झूठ, अत्याचार पर सच्चाई, अच्छाई... वगैरह की जीत का प्रतीक। 
        
        
        


          गोदी मीडिया ने मान लिया कि तृप्ता त्यागी बेकसूर है।
        
          दाढ़ी–मूछ बढ़ाकर लड़कियों को घूरती आंखें पितृसत्ता और दमन के मौके खोजती हैं।कुछ दिन बाद1000 रुपए में हथियार भी उठा लेती हैं।
        
          जैसा मदीना में पहला बाजार कायम करने के साथ बनाई गई थी और जैसा हजरत उमर ने अपनी शासन व्यवस्था बनाई थी।
        
        
        
          या क्यों कराये गये?
        
          पंच परमेश्वर कहानी लिखने की हिम्मत भी ना करते क्योकि जो नैतिक मूल्य उनके समय में जीवंत रहे होंगे वो अब कहानियों तक सिमट चुके है और उन्हे हम अगली पीढ़ी को बताना भी नहीं चाहते।
        
        
          जाना पड़ता है।गीला,और गंदा होना पड़ता है।