"#हुंकार_की_कलंगी"
#मेवाड़ की एक प्रमुख जागीर #कोशीथल ठिकाने की #क्षत्राणीवीरांगना_मां की मातृभूमि के प्रति समर्पण की गौरव गाथा है।जो अपने पुत्र के स्थान पर #मर्दानापौशाक में सेना का नेतृत्व किया व शत्रु सेना के छक्के छुड़ा दिए।जिनकी वीरता को देखकर राणा भी अचरज में पड़ गये 1/19
राणा राजसिंह जी के पत्र में लिखा था कि सभी सरदारों को अपनी अपनी सेना लेकर मेवाड़ कूच करने का आदेश दिया जाता है।ऐसा नहीं करने वालों की जागीर जब्त कर ली जाएगी।(जागीर जब्त करने का आदेश इसलिए था क्योंकि यह युद्ध मराठों के विरुद्ध लड़ना था और कई राजपूत यह सोचकर युद्ध में नहीं आते 2/19
थे कि वे तो अपने ही है(राजपूत) उनसे भला कैसा युद्ध)जागीर के प्रधान की हवाइयां उड़ रही थी| राणा जी का बुलावा आया है और गद्दी पर एक 2 साल का बालक है भला वो कैसे युद्ध में जायेंगे?प्रधान सोचने लगा-“क्या इन मराठों को भी अभी हमला करना था,कहीं ईश्वर परीक्षा तो नहीं ले रहा?”3/19
प्रधान राणा का सन्देश लेकर जनाना महल के द्वार पर पहुंचा और दासी की मार्फ़त #ठुकराणीसा (जागीरदार कुंवर की विधवा माँ) को आपात मुलाकात करने की अर्ज की।
दासी के मुंह से प्रधान द्वारा आपात मुलाकात की बात सुनते ही ठुकराणी सा की धडकनें बढ़ गयी सोचा“अब क्या मुसीबत आ गयी?”
फिर भी 4/19
परदे के पीछे खड़े होकर प्रधान का अभिवादन स्वीकार करते हुए पत्र प्राप्त किया| पत्र पढ़ते ही ठुकराणी सा के मुंह से निकला-“हे ईश्वर !अब क्या होगा कुंवर जी तो ?”
और वे प्रधान से बोली-“अब क्या करें?आप ही कोई सलाह दे!जागीर के ठाकुर साहब तो सिर्फ 2 वर्ष के बच्चे है।5/19
उन्हें युद्ध भूमि में कैसे भेज दूं।पत्र के आखिरी वाक्यों ने ठुकराणीसा के मन में ढेरों विचारों का सैलाब उठा दिया-“जागीर जब्त हो जाएगी ! देशद्रोह व हरामखोर समझा जायेगा! मेरा बेटा अपने पूर्वजों के राज्य से बेदखल हो जायेगा फिर कहा,उसके पिता आज जीवित नहीं है तो क्या हुआ ?6/19
उसकी मां तो जीवित है। ऐसे सोचते सोचते ही
उनके ही पूर्वजों में #पत्ताजीचुंडावत की ठकुरानी याद आ गयी जिन्होंने #अकबर की सेना से युद्ध किया और अकबर की सेना पर गोलियों की बौछार कर दी थी| जब इसी खानदान की वह ठकुरानी युद्ध में जा सकती थी तो मैं क्यों नहीं ? क्या मैं वीर नहीं ?7/19
यही सोचकर सभी राजपूत सिरदारों को बुलाया और सारी योजना बता दी।और युद्ध में जाने का आदेश दे दिया।नम आंखों से कुंवर जी को अन्य राजपूतानी को सौंपा।और #जिरहबख्तर धारण किए और समस्त राजपूतों के साथ युद्ध हेतु कूच कर गए।अगले दिन मेवाड़ की फ़ौज ने मराठा फ़ौज पर हमला कर दिया।8/19
हरावल(अग्रिमपंक्ति)में चुंडावतों की फ़ौज थी जिसमें ठुकराणीसा की सैन्य टुकड़ी भी थी| चुंडावतों के पाटवी #सलूम्बर के राव जी थे उन्होंने फ़ौज को हमला करने का आदेश के पहले संबोधित किया
वीर राजपूतो!मर जाना पर पीठ मत दिखाना| चुंडावतो को हरावल में रहने का अधिकार बरकरार रहना चाहिए 9/19
ठुकराणी सा ने भी अन्य वीरों की तरह एक हाथ में तलवार उठाई और दुसरे हाथ से घोड़े की लगाम खेंच घोड़े को ऐड़ लगादी| युद्ध शुरू हुआ, तलवारें टकराने लगी, खच्च खच्च कर सैनिक कट कट कर गिरने लगे, तोपों, बंदूकों की आवाजें गूंजने लगी| हर हर महादेव के नारों से युद्ध भूमि गूंज उठी| 10/19
तभी किसी दुश्मन ने पीछे से उन पर भाले का एक वार किया जो उनकी पसलियाँ चीरता हुआ निकल गया और तभी माजी सा के हाथ से घोड़े की लगाम छुट गयी।साँझ हुई तो युद्ध बंद हुआ और साथी सैनिकों ने उन्हें अन्य घायल सैनिकों के साथ उठाकर वैध जी के शिविर में इलाज के लिए पहुँचाया।11/19
वैध जी घायल ठुकराणी सा की मरहम पट्टी करने ही लगे थे कि उनके सिर पर पहने लोहे के टोपे से निकल रहे लंबे केश दिखाई दिए|वैध जी देखते ही समझ गए कि यह तो कोई औरत है| बात राणा जी तक पहुंची-
“घायलों में एक औरत !पर कौन ? कोई नहीं जानता| पूछने पर अपना नाम व परिचय भी नहीं बता रही|”12/19
सुनकर राणा जी खुद चिकित्सा शिविर में पहुंचे उन्होंने देखा एक औरत जिरह वस्त्र पहने खून से लथपथ पड़ी|पुछा “कृपया बिना कुछ छिपाये सच सच बतायें ! आप यदि #दुश्मन_खेमें से भी होगी तब भी मैं आपका अपनी बहन के समान आदर करूँगा|अत: बिना किसी डर और संकोच के सच सच बतायें|”13/19
घायल ठुकराणी सा ने कहा-“#कोशीथल_ठाकुर की माँ हूँ होकम!”

ये सुनकर राणा जी हक्के बक्के रह गए|पुछा- “आप युद्ध में क्यों आ गई?”

“आपका हुक्म था कि सभी जागीरदारों को युद्ध में शामिल होना ही है और जो नहीं होगा उसकी जागीर जब्त करली जाएगी|कोशीथल जागीर का ठाकुर मेरा बेटा अभी मात्र 14/19
2 वर्ष का है अत: वह अपनी फ़ौज का नेतृत्व करने में सक्षम नहीं सो अपनी फ़ौज का नेतृत्व करने के लिए मैं युद्ध में शामिल हुई| यदि अपनी फ़ौज के साथ मैं हाजिर नहीं होती तो मेरे बेटे पर देशद्रोह व हरामखोरी का आरोप लगता और उसकी जागीर भी जब्त होती|”
ये वचन सुनकर राणा जी के मन में 15/19
उठे करुणा व अपने ऐसे सामंतों पर गर्व के लिए आँखों में आंसू छलक आये| खुशी से गद-गद हो राणा बोले-“धन्य है आप जैसी माता!
मेवाड़ की आज वर्षों से जो आन बान बची हुई है वह आप जैसी देवियों के प्रताप से ही बची हुई है| आप जैसी देवियों ने ही मेवाड़ का सिर ऊँचा रखा हुआ है| जब तक आप 16/19
जैसी माताएं इस मेवाड़ भूमि पर रहेगी तब तक कोई मेवाड़ का सिर नहीं झुका सकता| मैं आपकी वीरता, साहस और देशभक्ति को नमन करते हुए इसे इज्जत देने के लिए अपनी और से कुछ पारितोषिक देना चाहता हूँ यदि आपकी इजाजत हो तो, सो अपनी इच्छा बतायें कि आपको ऐसा क्या दिया जाय?जो आपकी17/19
इस वीरता के लायक हो|”
ठुकराणी सा सोच में पड़ गयी आखिर मांगे तो भी क्या मांगे|
आखिर वे बोली-“होकम ! यदि कुछ देना ही है तो कुछ ऐसा दें जिससे मेरे पुत्र कहीं बैठे तो सिर ऊँचा कर बैठे|”

राणा जी बोले- “आपको हुंकार की कलंगी बख्सी जाती है जिसे आपका पुत्र ही नहीं उसकी पीढियां 18/19
भी उस कलंगी को पहन अपना सिर ऊँचा कर आपकी वीरता को याद रखेंगे|”भीलवाड़ा में गंगापुर के पास कोशीथल चुंडावतों का ठिकाना है और उनके पास आज भी वो कलंगी मौजूद है।शादी में दूल्हा वो ही कलंगी धारण करते हैं।
क्षत्राणियां जौहर ही नहीं किये अपितु काल के अनुसार शस्त्र भी उठाये हैं।19/19

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