Vishnuvardhana (1108–1152 CE) was a king of the Hoysala Empire. He ascended the Hoysala throne after the death of his elder brother Veera Ballala I in c.1108. Originally a follower of Jainism and known as Bitti Deva,..
..he came under the influence of the Hindu philosopher Ramanujacharya,converted to Hindu Vaishnavism and took the name"Vishnuvardhana".
Vishnuvardhana took the first steps in creating an independent Hoysala Empire in South India through a series of battles against his overlord..
..the Western Chalukya King Vikramaditya VI, and the Chola Empire to the south. He recovered parts of Gangavadi province (modern southern Karnataka) from the hegemony of the Cholas in the battle of Talakad,and parts of Nolambavdi.
..Vishnuvardhana, described as‘Maker of Hoysala kingdom’ was one of the most illustrious rulers of this dynasty.He laid the foundation of the Hoysala kingdom both politically and culturally. He ascended the throne in 1106 CE after the death of his brother Ballala I.
Even before his accession to the throne Vishnuvardhana had taken a prominent part in wars with neighbouring princes and these wars had filled him with great ambition to extend his kingdom. The first step in this direction was to have a secure and fortified capital.
Vishnuvardhana transferred his capital from Belur to Dwarasamudra (Halebidu) where a strong fort was built.Vishnuvardhana also established and patronized many agraharas (center of learning where eighteen vidyas or science were taught).
In 1141 CE he granted the village of Kellangere to the agrahara of Hariharapura. The Vishnusamudra agrahara situated near the Vishnusamudra tank was founded by Vishnuvardhana and consisted of 400 Brahmanas.
In 1117 he encouraged the Sri Vaishnava Brahmanas of Chennakeshava and Lakshminarayana temples to compose prayers and songs and gave liberal grants for their support. In 1125 Vishnuvardhana granted the Salya village on the banks of river Kaveri for the maintenance of the...
..Jaina guru Sripala traividya deva who was a teacher in the six school of logic.
Vishnuvardhana was a great builder. To celebrate his success against the Cholas, he built the Keerthi Narayana temple at Talakad, and the spectacular Vijayanarayana temple at...
..Belur(also called the Chennakesava Temple, dedicated to the Hindu god Vishnu).Around the same time,Hoysaleswara Temple, more ornate than the one at Belur and dedicated to the Hindu God Shiva was consecrated.Temples of Belur &Halebidu are a proposed UNESCO world heritage sites.
Hoysala literature in the Kannada language began to proliferate under the patronage of Vishnuvardhana. The mathematician Rajaditya wrote Vyavaharaganita and Lilavati on mathematics.
According to the historian E.P. Rice, the epic poet Nagachandra was under Vishnuvardhana's patronage when he wrote the Ramayana in the Kannada language called Ramachandra charita purana, and an epic on the nineteenth Jain Tirthankar titled Mallinathapurana.
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🌺।।केदारनाथ ज्योतिर्लिंग : पौराणिक कथा, केदारनाथ से जुड़ा पांडवों का इतिहास, क्यों इस ज्योतिर्लिंग का नाम केदारनाथ पड़ा और केदारनाथ मंदिर की स्थापत्य कला।।🌺
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हिंदू धर्म के पवित्र तीर्थ स्थलों में केदारनाथ ज्योतिर्लिंग का विशेष महत्व है। 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक केदारनाथ ज्योतिर्लिंग सबसे ऊंचाई पर स्थित ज्योतिर्लिंग है।
उत्तराखण्ड के सीमान्त जनपद रूद्रप्रयाग के उत्तरी भाग में हिमाच्छादित पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य केदारनाथ ज्योतिर्लिंग स्थित है। श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग को केदारेश्वर के नाम से भी जाना जाता है। केदारनाथ ज्योतिर्लिंग मंदाकिनी नदी के तट पर समुद्र तल से 3584 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह ज्योतिर्लिंग जिस क्षेत्र में स्थित है उसका ऐतिहासिक नाम केदार खंड है। केदारनाथ मन्दिर उत्तराखंड के चार धाम और पंच केदार का एक हिस्सा है।
केदारनाथ मंदिर तीन तरफ से पहाड़ों से घिरा है। केदारनाथ मंदिर को मंदाकिनी, सरस्वती, क्षीरगंगा, स्वर्णद्वारी और महोदधि पांच नदियों का संगम माना जाता है।
🌺।।केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा।।🌺
शिव पुराण में वर्णित कथा के अनुसार भगवान विष्णु के अवतार नर-नारायण ने लोक कल्याण के लिए भरतखंड के बद्रिकाश्रम में तप किया था। वे पार्थिव शिवलिंग की नित्य पूजा किया करते थे। भगवान शिव नित्य ही उस अर्चालिंग में आते थे। कालांतर में भगवान शिव उनकी आराधना से प्रसन्न होकर प्रकट हो गए। उन्होंने नर-नारायण से कहा – मैं आपकी आराधना से प्रसन्न हूं आप अपना वांछित वर मांगें। नर-नारायण ने कहा – देवेश, यदि आप प्रसन्न हैं और वर देना चाहते हैं तो आप अपने स्वरूप में यहीं प्रतिष्ठित हो जाएं, पूजा-अर्चना को प्राप्त करते रहें एवं भक्तों के दुखों को दूर करते रहें। उनके इस प्रकार कहने पर भगवान शंकर ज्योतिर्लिंग रूप में केदार में प्रतिष्ठित हो गए। तदनंतर नर-नारायण ने उनकी अर्चना की। उसी समय से वे वहां केदारेश्वर नाम से विख्यात हो गए।
वाराणसी (उत्तर प्रदेश) स्थित काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग में से सातवाँ ज्योतिर्लिंग है। इसे विशेश्वर या विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग भी कहा जाता है।
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गंगा तट स्थित काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग का दर्शन हिंदुओं के लिए सबसे पवित्र माना जाता है। काशी को भगवान शिव की नगरी और भोलेनाथ को काशी का महाराजा कहा जाता है। वाराणसी को अविमुक्त क्षेत्र भी कहा जाता है। इसके अलावा बौद्ध एवं जैन धर्म में भी इसे पवित्र माना गया है।
🥀काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग दो भागों में है🥀;
- दाहिने भाग में शक्ति के रूप में मां भगवती विराजमान हैं।
- दूसरी ओर भगवान शिव वाम रूप (सुंदर) में विराजमान हैं।
मां भगवती अन्नपूर्णा के रूप में काशी में रहने वालों का पेट भरती हैं। वहीं, महादेव मृत्यु के पश्चात तारक मंत्र देकर मुक्ति प्रदान करते हैं। महादेव को इसीलिए ताड़केश्वर भी कहते हैं।
🌺।।भगवान विष्णु के दशम् अवतार : श्री कल्कि अवतार की कथा एवं भगवान कल्कि से जुड़ी कुछ अन्य रहस्य।।🌺
भगवान विष्णु के 10 अवतारों में से
भगवान कल्कि 10वें और अंतिम अवतार हैं। 10 अवतारों में से 9 अवतारों का जन्म हो चुका है जबकि कल्कि का अवतार लेना अभी शेष है।
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कल्कि अवतार की कथा का वर्णन विभिन्न हिंदू धर्म ग्रंथों में मिलता है उसमें प्रमुख हैं – श्रीमद्भागवत गीता, विष्णु पुराण, हरिवंश पुराण, भागवत पुराण, कल्कि पुराण और गीत गोविंद इत्यादि।
कल्कि का सामान्य अर्थ है – सफेद घोड़ा, काला युग, अनंत काल। ऐसी मान्यता है कि कलियुग में जब अधर्म अपनी चरम सीमा पर पहुंच जाएगा तब भगवान विष्णु कल्कि का अवतार धारण करेंगे और धर्म युग की स्थापना करेंगे। शास्त्रों में ऐसी मान्यता है कि जब भगवान कल्कि देवदत्त नाम के घोड़े पर आरूढ़ होकर अपनी चमचमाती तलवार के द्वारा दुष्टों का संहार करेंगे तब कलयुग की समाप्ति होगी और सतयुग का आरंभ होगा। विदित हो कि भगवान श्री कृष्ण के बैकुंठ जाने के बाद कलयुग की शुरुआत हुई थी।
🌺।।पुराणों में वर्णित कल्कि अवतार की कथा।।🌺
कल्कि पुराण में वर्णित कथा के अनुसार जब कलियुग में धर्म की हानि अपने चरम पर पहुंच गई तो देवता गण परेशान हो गए। दुखी होकर सभी देवता ब्रह्मा जी के पास गए। ब्रह्मा जी उन सभी देवताओं को लेकर भगवान विष्णु के पास गए और उन्हें देवताओं के दुख की गाथा कही।
🌺The Sushruta Samhita describes over 120 surgical instruments. 5,13,300 surgical procedures & classifies human surgery in 8 categories.🌺
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Following is the only surviving premodern painting which depicts students of the Sushruta school of ancient India(6th centuryBCE)
These students were trained in Vedas at the age of 8,then were trained as surgeons for 6 yrs and taught the principles of Sushruta Samhita.
They are shown performing mock surgery on water melons and cucumbers. As such, they are earliest recorded surgeons of World. This was found in an old manuscript of Sushruta Samhita which dates back to 600 years.
This illustration is from Odisha Museum.
This master literature remained preserved for many centuries exclusively in the Sanskrit language which prevented the dissemination. of the knowledge to the west and other parts of the world.
🌺।।भगवान विष्णु के सप्तम् अवतार : भगवान श्री राम की कथा।।🌺
💮।।अंतिम भाग - 4।।💮
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Check the links of first 3 parts at the end.
🌺।।राम-लक्ष्मण की मूर्छा।।🌺
श्री राम लक्ष्मण के नागपाश में बंधने के बाद युद्ध समाप्त हो जाता है और लंका की सेना अपने नगर में वापस लौट जाते हैं।
इधर सुग्रीव, हनुमान, अंगद, जामवंत और विभीषण सभी श्री राम और लक्ष्मण के इस हालत पर बहुत दुखी होते हैं। क्योंकि जिनके के लिए पूरी वानर सेना समुंद्र लांघ कर युद्ध करने के लिए आई थी। आज वही श्री राम और लक्ष्मण भूमि पर नागपाश में बंधे मूर्छित पड़े है और धीरे-धीरे नाग उनके शरीर से प्राण चूस रहे थे। श्री राम की सेना में पूरी तरह शोक सागर में डूब जाते हैं। किसी को भी श्री राम और लक्ष्मण को इस संकट से बाहर निकालने में का रास्ता नहीं सूझ रहा था।
🌺।।विभीषण द्वारा नागपाश अस्त्र की शक्ति का वर्णन।।🌺
सुग्रीव के पूछने पर विभीषण बताते हैं कि इंद्रजीत ने घात लगाकर नागपाश अस्त्र का प्रयोग श्रीराम और लक्ष्मण पर किया है। तब सुग्रीव विभीषण से नागपाश से मुक्त होने का कोई उपाय बताने के लिए कहते हैं। के दुनिया में ऐसा कौन सा अस्त्र है जिसका कोई उपाय नहीं है। लेकिन विभीषण जी कहते हैं कि एक बार यमपाश से कोई मुक्त हो सकता है लेकिन नागपाश अस्त्र से प्राणी मृत्यु होने तक छूट नहीं सकता। क्योंकि नागपाश अस्त्र स्वयं ब्रह्मदेव द्वारा प्रकट किया गया था। दुष्टों का संहार करने के लिए भगवान शिव ने ब्रह्मदेव से नागपाश अस्त्र मांग लिया था । और भगवान शिव की कड़ी तपस्या करके रावण पुत्र इंद्रजीत ने उनसे यह वरदान के रूप में प्राप्त किया। इंद्रजीत बहुत विकट परिस्थिति में ही इस अस्त्र का प्रयोग करता है। आज तक नागपाश से कोई भी बच नहीं पाया है। विभीषण जी मायूस होकर कहते हैं कि आज मेघनाथ बाजी जीत गया।