१) आज #TheKashmirFiles के जरिए कश्मीरी पंडितों का दर्द विश्वव्यापी हुआ है। हिंदुओं की नयी पीढ़ी जो इससे पहले कश्मीरी पंडितों के दर्द को अपना दर्द नहीं बना पाई थी, फिल्म देखने के बाद इसे शायद साझा दर्द समझे।
यही फिल्म की बड़ी सफलता है।
२) परंतु 'सरकारी मास्टरस्ट्रोकवादी हिंदू' इसमें भी फिल्मकारों के साहस को नमन करने की जगह सरकार को श्रेय देने में जुट गये हैं कि यदि वर्तमान सरकार नहीं होती तो कश्मीरी पंडितों का सच कभी सामने नहीं आ पाता।
३) ऐसे लोगों को बता दूं कि मैंने एक पत्रकार के तौर पर सोनिया गांधी की मनमोहन सरकार के समय इसे एक्सपोज करने का जोखिम लिया था। तब कांग्रेस की सरकार आतंकी यासीन मलिक और बिट्टा कराटे की फाईल को गायब कर चुकी थी और यासीन मलिक को अपना 'दामाद' बना चुकी थी।
४) सारे फाइल गायब होने के बावजूद मैंने खोजी खबर की और दैनिक जागरण जैसे बड़े अखबार में फ्रंट पेज पर यह (रिपोर्ट नीचे संलग्न है) छपा था। मैंने श्रृंखलाबद्ध रिपोर्टिंग की थी।
५) 'रूट्स-इन-कश्मीर' के एक्टिविस्ट रसनीक खेर का बयान है' "आप तब हमारे साथ खड़े रहे हैं, जब कोई हमारे साथ नहीं था। आप अकेले शायद इनसान थे उस समय जब हिंदुस्तान में कोई हमारी बात भी सुनने को राजी नहीं था।" इस बयान का आडियो आप सब सुन चुके हैं।
६) 2006-2007 (संभवत:) की मेरी इस रिपोर्ट से आतंकी यासिन मलिक ने परेशान होकर अपने लोगों को दैनिक जागरण के कार्यालय भी भेजा था मुझसे मिलने के लिए। जागरण ने स्थिति की गंभीरता को देखते हुए मुझे कुछ दिन के लिए छुट्टी पर भेज दिया था।
एक हिंदू लड़की अखिला अशोकन मुस्लिम शफीन से शादी के बाद धर्मांतरण कर हादिया बनी।
हादिया दोबारा हिंदू न बन जाए इसके लिए इस्लामी संगठन PFI सुप्रीम कोर्ट तक केस लड़ी और कपिल सिब्बल जैसे वकीलों पर एक करोड़ के आसपास खर्च कर दिया।
2) दूसरी तरफ शिया वक्फ बोर्ड के वसीम रिजवी घर वापसी कर जितेन्द्र त्यागी बने। उत्तराखंड की कथित हिंदूवादी सरकार ने ही उन्हें गिरफ्तार भी किया, और फिर हिंदू समाज ने ही उन्हें मरने के लिए अकेला छोड़ दिया।
आरंभ में भीख मांगकर यति नरसिंह्मानंदजी जी ने
3) उन्हें जमानत दिलाने और उनके परिवार का खर्च उठाने पर 35 लाख रुपये खर्च किए। एक कथित हिंदूवादी वकील ने ही करीब 8 लाख रुपये पैरवी के लिए ले लिए।
जितेन्द्र त्यागी जब जेल से निकले तब तक सिस्टम उन्हें इतना डरा चुकी थी कि यति और उनकी टीम जेल के जिस गेट पर
1) एकाएक बड़े पैमाने पर नकली एकाउंट वाले सोशल मीडिया पर एक्टिवेट किए गये हैं। आप सही मुद्दा उठाएंगे, सरकार से सवाल पूछेंगे, ये मुद्दों को भटकाने के लिए आपके वॉल पर चले आएंगे।
2) यह गिरोहबंदी कर हर किसी के वॉल पर पहुंचते हैं। 2024 तक यह और तेज होगा।
अतः जिनके प्रोफाइल में सही फोटो नहीं है, प्रोफाइल लॉक रखते हैं, नये एकाउंट बने हैं आदि तो ऐसों को जवाब देकर समय खराब करने की जगह लतियाते हुए उन्हें ब्लाक कर दें।
3) अभी अमेरिका की बाइडेन सरकार भी सोशल मीडिया को मैनेज करते हुए धरी गई है। सोशल मीडिया पर सेंसरशिप का एजेंडा WEF में ही ताकतवर सरकारों व डिजिटल प्लेयरों ने ले लिया था।
तब बहाना कोविड का लिया गया था, लेकिन असलियत में यह हर यूजर को अपने हिसाब से सोचने के लिए
१) किसी समाज या राष्ट्र में व्यक्ति का आचार-विचार उसके राजा (शासक) से प्रेरित होता है।
राजा का यह दायित्व है कि वह दंड नीति आदि के द्वारा समाज के समक्ष आदर्श प्रस्तुत करे ताकि एक आदर्शात्मक राज्य की स्थापना हो सके।
२) राजा यदि अराजकतावादियों पर कार्रवाई नहीं करता तो यह माना जाता है कि राजा स्वयं अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए अराजकता को प्रेरित कर रहा है।
राजा का यह दायित्व सनातन काल से भारतीय शासन स्तंभ का आधार रहा है। उपनिषद काल में इसे और प्रमुखता से स्थापित किया गया।
३) शुक्राचार्य ने तो काल का कारण भी राजा को माना है। शुक्र ने समाज का धर्माचरण, आचार-विचार आदि के प्रति संपूर्ण दायित्व राजा में अर्पित किया है। वह लिखते हैं:-
"आचारप्रेरको राजा होतत्कालस्य कारणम्।
यदि काल: प्रमाणं हि कस्माद्धर्मोऽस्ति कर्तृषु।।" (शु.नी.१/२२)
एक पत्रकार के रूप में फिर मुझे कल और आज संतुष्टि मिली।
कल सुप्रीम कोर्ट द्वारा @narendramodi जी को क्लीन चिट देने के बाद आज गुजरात ATS ने आर. तीस्ता सीतलवाड़ और आर.बी.श्रीकुमार, दोनों को गिरफ्तार किया।
२) इन दोनों सहित पूरे गिरोह को मैंने 2013 में 'साजिश की कहानी-तथ्यों की जुबानी' में जिन सबूतों के साथ एक्सपोज किया था, उन सबूतों पर सुप्रीम कोर्ट ने जबरदस्त टिप्पणी की है।
मैं हमेशा एक पत्रकार के नाते सच की राह पर चलने का प्रयास करता रहा। कभी उनको बुरा लगा, कभी इनको बुरा लगा
३) , लेकिन मेरी सच के साथ खड़े रहने की जिद कभी नहीं बदली'! इस पुस्तक को लिखने के लिए नौकरी छोड़नी पड़ी, पुस्तक छपवाने के लिए धर्मपत्नी के आभूषण बेचने पड़े और बाद में बड़े संपादकों ने मुझे नौकरी देने से मना कर दिया कि तुमने मोदी पर पुस्तक लिखी, अब तुम्हारा करियर खत्म!
1) व्यक्तिवाद में राष्ट्रद्रोह की सीमा लांघ चुके कुछ राष्ट्रद्रोहियों (मास्टरस्ट्रोक प्रजाति) को मैं कहना चाहता हूं कि जरा सर्च कर पढ़ो:-
१) वाजपेई जी को उनके सुरक्षा सलाहकार ब्रजेश मिश्रा ने कैसे डुबोया था? वो किस देश के खुफिया एजेंसी के लिए काम कर रहे थे?
2) IC-814 और कारगिल युद्ध, मुशर्रफ-वाजपेई डॉक्ट्रिन में उनकी क्या भूमिका थी? और सोनिया की सरकार ने 2011 में उनको पद्म विभूषण पुरस्कार क्यों दिया था?
२) लालकृष्ण आडवाणी के सलाहकार सुधींद्र कुलकर्णी कितने बड़े पाकिस्तान हितैषी थे, अब यह बात किसी से छुपी नहीं है।
3) सुधींद्र कुलकर्णी ने ही जिन्ना की मजार पर आडवाणी को बर्बाद किया था।
३) मनमोहन सिंह के सुरक्षा सलाहकार की अमेरिका परमाणु संधि में क्या भूमिका रही थी? 2008 में मुंबई पर जब हमला हुआ था तो भारत के गृहमंत्रालय के अधिकारियों को पाकिस्तान में बंधक बनवाने का मास्टरमाइंड कौन था?
१) नकली दलित रोहित वेमुला के लिए आंसू बहाने वाले आज मुझसे कह रहे हैं कि यूक्रेन में मारे गये नवीन की मौत को आरक्षण से मत जोड़िए। यही आज कोई भीम-मीम वहां मरा होता तो कोहराम मच जाता।
मैंने नहीं, नवीन के पापा ने यह सवाल उठाया है कि पीयूसी में 97% अंक लाकर भी
२) उसके बेटे को मेडिकल में एडमिशन नहीं मिला, क्योंकि यहां सरकारी कालेज में कास्ट बेस्ड आरक्षण और निजी में करोड़ों की फीस लगती है। उनका वीडियो थ्रेड-१ में है, सुनो सरकारी हिंदुओं!
३) सरकरी हिंदुओं का यह भी सवाल था कि बच्चे यूक्रेन आदि विदेश पढ़ने ही क्यों जाते हैं? तो उसकी वजह यहां सरकारी कालेज में आरक्षण व्यवस्था और निजी कालोज में महंगा डोनेशन है! यही इस देश की आरक्षण व्यवस्था का सच है तो स्वीकार क्यों नहीं करते?