गांधी के खिलाफ सबसे बार-बार लगाए गए आरोपों में से एक और सबसे बड़ा मिथक यह है कि उन्होंने भगत सिंह को फांसी से बचाने की कोशिश नहीं की। आइए भगत सिंह की शहादत के अवसर पर सच्चाई जानें
गांधी ने भगत सिंह को बचाने की पूरी कोशिश की। तब लॉर्ड इरविन वाइसराय थे. गांधी ने गांधी-इरविन पैक्ट के दौरान सवाल उठाया था। गांधी ने 18 फरवरी 1931 को भगत सिंह की मौत की सजा का सवाल उठाया।
उन्होंने होशियारी के साथ वायसराय के समक्ष रखा, और इस मुद्दे पर वायसराय के साथ चर्चा की और उन पर दबाव डाला।
गांधी ने वायसराय से कहा, "यदि आप वर्तमान माहौल को और अधिक अनुकूल बनाना चाहते हैं, तो आपको भगत सिंह की फांसी को रोक देना चाहिए।"
वायसराय ने जवाब में कहा,
"मैं तुम्हारा बहुत बड़ा आभारी हूं कि तुमने इस बात को मेरे सामने इस तरह रखा है। सजा का रूपान्तरण एक कठिन बात है, लेकिन निलंबन निश्चित रूप से विचारणीय है।"
स्रोत - महात्मा गांधी के कलेक्टेड वर्क्स वॉल्यूम 51 पृष्ठ 154
गांधी ने फिर से वायसराय को पत्र लिखकर भगत सिंह की सजा को कम करने का अनुरोध किया।
जब कोई सिद्धांत दांव पर नहीं होता है लोकप्रिय राय सही या गलत रूप से विनिमय की मांग करती है, तो अक्सर उसका सम्मान करना कर्तव्य होता है। वर्तमान मामले यदि विनिमय कर दिया जाता है तो आंतरिक शांति को +
बढ़ावा देने की सबसे अधिक संभावना है। मृत्युदंड की स्थिति में, शांति निस्संदेह खतरे में है। अगर आपको लगता है कि निर्णय की त्रुटि की थोड़ी सी भी संभावना है तो मैं इसकी समीक्षा के लिए आपसे सज़ा को निलंबित करने का आग्रह करूंगा यदि मेरी उपस्थिति आवश्यक है, तो मैं आ सकता हूं।
स्रोत - Cwmg वॉल्यूम 51 पृष्ठ 290
लेकिन दुर्भाग्य से उन्होंने पहले ही भगत सिंह एंड कंपनी को फांसी दे दी थी जिस बात से गांधीजी अनभिज्ञ थे।
यहां तक कि इरविन ने भी यह कहा कि गांधी ने भगत सिंह को बचाने के लिए ठोस प्रयास किए।
27 मार्च 1931 को इरविन ने कहा
"जैसा कि मैंने उस दिन श्री गांधी को मेरे सामने पूरी ताक़त के साथ विनिमय केस करते हुए सुना और सोचा क्या कारण हैं की अहिंसा से प्रेरित आदमी इतनी गंभीरता से अपने विपरीत पंथ के व्यक्ति की वकालत कर रहा है, पर मुझे इस मामले को पूरी तरह से राजनैतिक कारणों से प्रभावित कहना गलत होगा।"
स्रोत - ट्रिब्यून अख़बार - 28 मार्च 1931 में उद्धृत इरविन का भाषण
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जैसा कि अनिल नौरिया कहते हैं, "गांधी ने वायसराय पर भगत सिंह को फांसी न देने के लिए अधिकतम दबाव बनाने के लिए जो कुछ भी किया जा सकता था किया।" यहां तक की गांधी ने सर तेज बहादुर सप्रू, एम.आर. जयकर और श्रीनिवास शास्त्री को भगत सिंह की मौत की सजा को कम करने के लिए वायसराय के पास भेजा।
स्रोत - वीएन दत्ता द्वारा गांधी और भगत सिंह पेज नं 8, रूपा प्रकाशन।
एक और बिंदु है जिस पर ध्यान देने की आवश्यकता है। भगत सिंह की सजा को कम करने की शक्ति लॉर्ड इरविन के हाथों में थी, गांधी के पास नहीं।
आम धारणा है कि गांधी के पास किसी की भी फांसी रोक देने की शक्ति थी, पर वास्तविकता में गांधी के पास वे शक्तियां नहीं थीं।लेकिन लॉर्ड इरविन ने भगत सिंह की सजा को कम क्यों नहीं किया? आइए जानते हैं.
इरविन के भगत के विनिमय के लिए गांधी की अपील को अस्वीकार करने के बारे में रॉबर्ट बर्नेज़, लॉर्ड इरविन के एक करीबी सहयोगी, जो गांधी इरविन वार्ता के दौरान भी मौजूद थे, बताते हैं कि क्यूँ इरविन भगत सिंह की मौत की सजा को क्यों नहीं बदल सके।
बर्नेज़ ने लिखा: "वायसराय के लिए यह एक अत्यंत कठिन स्थिति थी। भगत सिंह के उल्लेख ने भारत को फिर से अव्यवस्था में डाल दिया होगा फिर वह उन्हें (भगत सिंह) कैसे जाने दे सकता था। उस समय इस घटना के परिणाम अगणनीय थे |
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हो सकता है कि उन्हें पुलिस बल के हर प्रमुख के इस्तीफे का सामना करना पड़ाता इसलिए एक झटके में वायसराय को समस्या का समाधान करना पड़ा।"
स्रोत - रॉबर्ट बर्नेज़ द्वारा नग्न फ़कीर पृष्ठ संख्या 222।
द पीपल अखबार ने 22 मार्च 1931 को अपने संपादकीय शीर्षक 'द शैडो ऑफ भगत सिंह' में रॉबर्ट बर्नेज़ के इस विचार का समर्थन किया कि पंजाब में ब्रिटिश सिविल सेवकों ने इरविन पर भगत सिंह की मौत की सजा को कम नहीं करने के लिए मजबूत दबाव डाला था.
द पीपल ने लिखा, "शायद यह अघोषित था कि पंजाब के कुछ अधिकारी लॉर्ड इरविन पर दबाव डाल रहे थे कि दोषियों को फांसी दी जाए। ऐसा कहा जाता है कि कुछ पुलिस अधिकारियों ने सजा को कम करने पर इस्तीफा देने की धमकी भी दी।"
हम सभी एक और महत्वपूर्ण बिंदु को देखने में असफल होते हैं। क्या भगत सिंह दया चाहते थे? नहीं, वह खुद मरना चाहते थे। उनके पिता ने एक बार उनकी सज़ा को फांसी से उम्र कैद में बदलने के लिए प्रिवी काउंसिल में याचिका भेजी । लेकिन भगत सिंह ने इस याचिका के लिए अपने पिता की कड़ी आलोचना की।
भीम सेन सच्चर, जो एक प्रसिद्ध कांग्रेसी कार्यकर्ता थे, 1930 में लाहौर सेंट्रल जेल की कोठरी में भगत सिंह से मिले। सच्चर ने भगत सिंह को उनकी मौत की सजा को कम करने का विकल्प चुनने का सुझाव दिया ताकि वह उस देश की सेवा कर सकें जिस पर भगत सिंह ने जवाब दिया,
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"नहीं, देश की सेवा मेरे बलिदान से बेहतर तरीक़े से होगी ।"
स्रोत - G.S. Bhargava, Bhim Sen Sachar: An Intimate Biography, New Delhi, 1997, p. 344
अगर भगत सिंह खुद मरना चाहते थे तो गांधी भगत सिंह को कैसे बचा सकते थे?
वह स्वयं अपने जीवन का बलिदान देना चाहते थे क्योंकि उन्हें विश्वास था कि उनका बलिदान और लोगों को प्रेरणा देगा और इससे कई हजारों भगत सिंह अवतरित होंगे ।
अँग्रेजी से मूल लेख के अनुवाद के लिए @Viyogi7 का आभार
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कुछ लोग बहुत कहते हैं कि गांधी मंदिर में क़ुरान तो पढ़ता था लेकिन कभी मस्जिद में गीता पढ़ने का साहस नहीं जुटा पाया. इस पर मैं क्या ही कहूँ, ज़्यादा अच्छा होगा कि ये बताऊँ की तब जब गांधी जिंदा थे तब उन्होंने इस पर क्या कहा था. ऐसे लोग तब भी थे.
एक उमादेवी थी. खुद को धर्मसेविका कहती थी. गांधी को एक चिट्ठी लिखी. वो मूलतः क़ुरान पढ़ने का विरोध निम्न कारणों से कर रही थी. 1. क़ुरान पढ़ने से मंदिर की मर्यादा नष्ट होती है.
2. क़ुरान पढ़ने वालों ने राक्षसों जैसा अत्याचार किया है जिसे देखते हुए इसे पढ़ना मैं हिन्दुओं के लिए महान पाप समझती हूँ.
तीसरा एवं सबसे महत्वपूर्ण - किसी मस्जिद में गीता या रामायण पढ़ने का साहस आपने किया हो ऐसा मालूम नहीं होता.
बहुत लोग कहते हैं कि गांधी ने हर जगह अनशन किया लेकिन विभाजन रोकने के लिए अनशन नहीं किया. 'क्यूँ गांधी नहीं बैठ गए जिन्ना के खिलाफ़ अनशन पर?'
जो लोग ऐसा कहते हैं उन्हें शायद गांधी जी की अनशन की नीति के बारे में नहीं पता. गांधी बता गए हैं इस पर भी.
पढ़िए - एक थ्रेड 🧵
जिस तरह एक ही कपड़ा हर व्यक्ति को फ़िट नहीं होगा उसी तरह एक ही उपाय ना हर जगह प्रयोग किया जा सकता है ना वो हर जगह सफल हो सकता है. अनशन के साथ भी यही खेल है. गांधी जी बता के गए हैं कि कहाँ अनशन करना है कहाँ नहीं, किसके सामने करना है किसके सामने नहीं.
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12 अप्रैल 1924 को जॉर्ज जोसफ को लिखे एक पत्र में गांधी कहते हैं,
"आप एक अत्याचारी के खिलाफ़ अनशन नहीं कर सकते. अनशन तो किसी प्रेमी के खिलाफ़ किया जाता है, सो भी अधिकार प्राप्त करने की दृष्टि से नहीं अपितु उसे सुधारने की दृष्टि से...
Gandhi was NOT silent on the Moplah rebellion. He spoke a lot. Let's debunk this highly exaggerated myth.
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A lot is being said on the Moplah rebellion that Gandhi was responsible for this and that. It has become a fashion to make Gandhi guilty of everything - for the problems of his age and also for the problems of the current age. Let's check the reality. ↓
(Note: I'll be directly quoting from Collected Works of Mahatma Gandhi which is published by Publication Division of Ministry of I&B ministry, Government of India. Thus its authenticity is unquestionable. It contains all the speeches, letters, telegrams of Mahatma Gandhi.)
Gandhi had no role in freedom movement? Really? His non-violent movement was inaffective? I'll just share few quotes which will destroy your whole argument.
" He (Gandhi) gave us a scare. His program filled our jails. You cannot go on and arrest people forever,you know, not when there are 320 million of them,and if they had taken the next step and refused to pay the taxes. God knows where we would have been." - Lord Lloyd.
Lord Lloyd was the then governor of bombay.
Source - Heart beats in India by CF Andrews page no. 198.
Also quoted in Narahari Parikh's 'Sardar Patel' volume 1 page no. 165