#राजस्थानी लोगों को छोड़कर शेष दुनिया को लगता है कि #राजस्थान में पानी नहीं है और यहाँ खून सस्ता व पानी महँगा हैं...
जबकि यहाँ सबसे शुद्धता वाला पानी जमीन में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है।
राजस्थान के लोगों को पूरे विश्व में सबसे बड़े कंजूस कृपण समझा जाता है..
जबकि पूरे भारत के 95% बड़े उद्योगपति राजस्थान के हैं, राममंदिर के लिए सबसे ज्यादा धन राजस्थान से मिला है... राममंदिर निर्माण में उपयोग होने वाला पत्थर भी राजस्थान का ही है!राजस्थान के लोगों के बारे में दुनिया समझती है ये प्याज और मिर्च के साथ रोटी खाने वाले लोग हैं..
शुद्ध भोजन परम्पजबकि पूरे विश्व मे सर्वोत्तम और सबसेरा राजस्थान की हैं...
पूरे विश्व मे सबसे ज्यादा देशी घी की खपत राजस्थान में होती हैं,
यहाँ का बाजरा विश्व के सबसे पौष्टिक अनाज का खिताब लिये हुए है..!
राजस्थानी लोगों को छोड़कर शेष दुनिया को लगता है कि ..
राजस्थान के लोग छप्पर और झौपड़ियों में रहते हैं इन्हें पक्के मकानों की जानकारी कम हैं...
जबकि यहाँ के किले,इमारतें और उन पर अद्भुत नक्काशी विश्व में दूसरी जगह कहीं नही हैं...
यहाँ अजेय किले और हवेलियाँ हजारों वर्ष पुरानी हैं...
मकराना का मार्बल,जोधपुर व जैसलमेर का पत्थर अपनी अनूठी खूबसूरती के कारण विश्व प्रसिद्ध हैं !
राजस्थान में चीन की दीवार जैसी ही दूसरी उससे मजबूत दीवार भी है जिसे दुनिया में पहचान नहीं मिली..!
राजस्थानी लोगों को छोड़कर शेष दुनिया को लगता है कि राजस्थान में कुछ भी नहीं...
जबकि यहाँ पेट्रोलियम का अथाह भंडार मिला है... गैसों का अथाह भंडार मिला है...
यहाँ कोयले का अथाह भंडार मिला है!अकेले राजस्थान में यहाँ की औरतों के पास का सोना इक्ठ्ठा किया जाए तो शेष भारत की औरतों से ज्यादा सोना होगा। सबसे ज्यादा सोने की बिक्री भी राजस्थान के जोधपुर में होती है।
राजस्थान के जलवायु के बारे में दुनिया समझती है यहाँ बंजर भूमि और रेतीले टीले हैं जहाँ आँधियाँ चलती रहती है...
जबकि राजस्थान में कई झीलें ,झरने और अरावली पर्वतमाला के साथ रणथम्भौर पर्वतीय शिखर हैं जो विश्व के टॉप टूरिज्म पैलेस हैं,
"राणा के घोड़े हर चौराहे पर आज भी नज़र आते हैं।
___" जय जय राजस्थान "______
श्रेय - आपणों राजस्थान
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क्या भगवान हमारे द्वारा चढ़ाया गया भोग खाते हैं ?
यदि खाते हैं, तो वह वस्तु समाप्त क्यों नहीं हो जाती ?
और यदि नहीं खाते हैं, तो भोग लगाने का क्या लाभ ?
एक लड़के ने पाठ के बीच में अपने गुरु से यह प्रश्न किया।
गुरु ने तत्काल कोई उत्तर नहीं दिया।
वे पूर्ववत् पाठ पढ़ाते रहे।
पाठ पूरा होने के बाद गुरु ने शिष्यों से कहा कि वे पुस्तक देखकर श्लोक कंठस्थ कर लें।
एक घंटे बाद गुरु ने प्रश्न करने वाले शिष्य से पूछा कि उसे श्लोक कंठस्थ हुआ कि नहीं ? उस शिष्य ने पूरा श्लोक शुद्ध-शुद्ध गुरु को सुना दिया।
फिर भी गुरु ने सिर 'नहीं' में हिलाया, तो शिष्य ने कहा कि" वे चाहें, तो पुस्तक देख लें; श्लोक बिल्कुल शुद्ध है।”
ये रहा शिमला का सबसे फालतु इंसान।
सरबजीत सिंह ( बॉबी )
न तो इसको घर पे कोई काम है और न दूकान पर। कभी एंबुलेंस लेकर मरीजों को आई जी एम सी छोड़ने जा रहा होता है तो कभी मृत लावारिस लाशो को शमशान ले जाता है। शाम को लोग /पर्यटक जब माल रोड पर घूमते हुए मौसम का आनंद ले रहे होते है ..
फालतू सरदार कैंसर हस्पताल में मरीजों को खिचड़ी का लंगर लगा के खिला रहा होता है।सवेरे सवेरे उठकर लोग सैर पे निकलते है और ये सरदार मरीजों को बिस्कुट खिला रहा होता है। रविवार को भी इसको चैन नही होता माल रोड पर ब्लड कैंप लगा कर लोगो का खून निकाल रहा होता है। ऐसा है ये फालतू इंसान |
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वाहगुरु ऐसे फालतू हर शहर में भी पैदा करो जी। इंसानियत को खत्म होने से बचाते है ऐसे फालतू लोग। गरीबो के आंसू नही टपकने देते ऐसे फालतू लोग। वैसे भी आजकल कोई फालतू नही जो दुसरो के लिए थोड़ा वक़्त निकाल सके। और दुसरो के बारे में सोच सके उनकी तकलीफों को अपना सके।
विश्व का सबसे बड़ा युद्ध था महाभारत का कुरुक्षेत्र युद्ध। इतिहास में इतना भयंकर युद्ध केवल एक बार ही घटित हुआ था। अनुमान है कि महाभारत के कुरुक्षेत्र युद्ध में परमाणू हथियारों का उपयॊग भी किया गया था। ‘चक्र’ यानी ‘पहिया’ और ‘व्यूह’ यानी ‘गठन’।
पहिए के जैसे घूमता हुआ व्यूह है चक्रव्यूह। कुरुक्षेत्र युद्ध का सबसे खतरनाक रण तंत्र था चक्रव्यूह। यधपि आज का आधुनिक जगत भी चक्रव्यूह जैसे रण तंत्र से अनभिज्ञ हैं। चक्रव्यू या पद्मव्यूह को बेधना असंभव था। द्वापरयुग में केवल सात लोग ही इसे बेधना जानते थे।
भगवान कृष्ण के अलावा अर्जुन, भीष्म, द्रॊणाचार्य, कर्ण, अश्वत्थाम और प्रद्युम्न ही व्यूह को बेध सकते थे जानते हैं। अभिमन्यु केवल चक्रव्यूह के अंदर प्रवेश करना जानता था।
चक्रव्यूह में कुल सात परत होती थी। सबसे अंदरूनी परत में सबसे शौर्यवान सैनिक तैनात होते थे।
बहुत पुरानी बात नही है ये ...... 1960 तक भारत मे गेहूं का आटा जिससे पूड़ियाँ बनती थीं , साल में बमुश्किल एकाध बार जब कभी कोई शादी बियाह य्या काज प्रयोजन होता तो पूड़ियाँ बनती थीं ....... अंग्रेजों के मानसिक गुलाम ही गेहूं की रोटी खाते थे .......
शेष भारत , आम जन सब जौ , चना , मक्का , मटर , बाजरा ज्वार खाते थे ........
1960 से पहले हमारे पूर्वज सब यही मोटे अनाज खाते थे । वो तो 1965 में जो हरित क्रांति के नाम पर देश पर गेंहू थोपा गया ।
पुरातन काल मे हमारे पूर्वज टामुन , मड़ुआ , सांवा , कोदो , कंगनी , ..
तिन्ना , करहनी , जैसे सात्विक अन्न खाया करते थे जो अब लगभग लुप्तप्राय हैं ।
बहुत सा ऐसा भोजन था जिसे अन्न माना ही नही जाता था । जैसे कुट्टू और सिंघाड़ा ...... इनकी गिनती अनाज में नही बल्कि फलों में होती थी और इनकी रोटी को फलाहार माना जाता था ......
प्रकृति ने अजीबोगरीब खजाना छिपा रखा है!
यह #पांडवारा_बत्ती (पांडवों की मशाल) है, एक ऐसा पौधा जिसे #महाभारत के #पांडवों ने अपने वनवास के दौरान चिमनी की मशाल के रूप में इस्तेमाल करने के लिए रखा था।
आप इसकी ताज़ी हरी पत्ती के साथ भी एक मशाल जला सकते हैं -
पत्ती की नोक पर लगाया जाने वाला तेल की एक बूंद प्रकाश को एक बाती की तरह काम करने लगती है।