आज आदित्यब्रह्मचारी, अमितबलधारी, महापराक्रमी, परमविद्वान्, योगी श्री हनुमानजी की जयन्ती है तो उनके जीवन के शास्त्रज्ञानपरिचयात्मक कुछ प्रसंग सर्वजनहिताय श्रीमद्वाल्मीकीयरामायण से उद्धृत करना आवश्यक प्रतीत हुआ। श्रीहनुमानजी वेदवेदाङ्गों के ज्ञाता थे 1/8
अनेक शास्त्रों का उन्होंने अभ्यास किया था व योगी थे।
यह प्रसंग किष्किन्धाकाण्ड से है, जब श्रीराम अपने अनुज श्रीलक्ष्मण के साथ सीता जी का अन्वेषण कर रहे थे तब घूमते हुए दोनों भाइयों का परिचय प्राप्त करने श्रीहनुमानजी उनके पास गए और देवभाषा संस्कृत में उनके साथ वार्त्तालाप किया।2/8
उस वार्त्तालाप/व्यवहार से प्रसन्न हो श्रीराम लक्ष्मण से कहते हैं -
नानृग्वेदविनीतस्य नायजुर्वेदधारिणः।
नासामवेदविदुषः
शक्यमेवं प्रभाषितुम्।।
नूनं व्याकरणं कृत्स्न-
मनेन बहुधा श्रुतम्।
बहु व्याहरतानेन
न किञ्चिदपशब्दितम्।।
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अर्थात् - जिसने ऋग्वेद नहीं पढ़ा, जिसने यजुर्वेद को धारण नहीं किया और जो सामवेद का विद्वान् नहीं है वह ऐसी वाणी बोल ही नहीं सकता। (अर्थात् ये वेदों के ज्ञाता हैं ) इन्होंने व्याकरणशास्त्र का भी बहुत अभ्यास किया है क्योंकि इतनी सारी बातें करने के बाद भी इन्होंने
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किसी अपशब्द (अशुद्ध शब्द) का उच्चारण नहीं किया।
इसी प्रकार एक प्रसंग सुन्दरकाण्ड से भी है जब सीताजी का अन्वेषण करते हुए हनुमानजी अशोकवाटिका पहुँचे तब उन्होंने सोचा कि राक्षसियों से घिरीं सीताजी से कैसे सम्पर्क किया जाये ? -
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यदि वाचं प्रदास्यामि
द्विजातिरिव संस्कृताम्।
रावणं मन्यमाना मां
सीता भीता भविष्यति।।
अर्थात् - यदि मैं विद्वानों की तरह संस्कृत में बात करूँगा तो कहीं सीताजी मुझे छद्मवेशी रावण समझ डर तो नहीं जाएँगी ??
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(इससे ये भी पता चलता है कि रावण की तरह सीताजी भी संस्कृत (संस्कृत/परिष्कृत/व्याकरणादि नियमों से युक्त व भाषागतदोषों से रहित) भाषा के प्रयोग में दक्ष थीं)।
आज हम सभी श्री हनुमानजी की जयन्ती पर उनके जीवन से प्रेरणा ले स्वशास्त्रों का अध्ययन करने का संकल्प लें व उनकी तरह
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अपने अन्तःकरण में भी प्रभुभक्ति धारण करने की कामना करें, तभी यह हनुमज्जयन्ती पर्व हम सभी के लिए सार्थक सिद्ध होगा।
आप सभी को श्रीहनुमज्जयन्ती पर्व की ढेर सारी मंगलमय शुभकामनाएँ
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