इंद्र की हजारों सुंदर अप्सराओं में से एक थीं अंजनि यानी अप्सरा पुंजिकस्थला। इंद्र ने जब उन्हें मनचाहा वरदान मांगने को कहा, तब उन्होंने हिचकिचाते हुए उनसे कहा कि उन पर एक तपस्वी साधु का श्राप है, अगर हो सके तो उन्हें उससे मुक्ति दिलवा दें।
इंद्र ने कहा कि वह उस श्राप के बारे में बताएं, क्या पता वह उस श्राप से उन्हें मुक्ति दिलवा दें।
तब पुंजिकस्थला ने बताया, किशोरावस्था में जब मैं खेल रही थी तो मैंने एक वानर को तपस्या करते देखा, मेरे लिए यह एक बड़ी आश्चर्य वाली घटना थी,..
...इसलिए मैंने उस तपस्वी वानर पर फल फेंकने शुरू कर दिए, बस यही मेरी गलती थी क्योंकि वह कोई वानर नहीं बल्कि एक तपस्वी साधु थे।
मैंने उनकी तपस्या भंग कर दी और क्रोधित होकर उन्होंने मुझे श्राप दे दिया कि जब भी मुझे किसी से प्रेम होगा तो मैं वानर बन जाऊंगी।
मेरे बहुत गिड़गिड़ाने और माफी मांगने पर उस साधु ने कहा कि मेरा चेहरा वानर होने के बावजूद उस व्यक्ति का प्रेम मेरी तरफ कम नहीं होगा। अपनी कहानी सुनाने के बाद पुंजिकस्थला ने कहा कि अगर इंद्र देव उन्हें इस श्राप से मुक्ति दिलवा सकें तो वह उनकी बहुत आभारी होंगी।
इंद्र देव ने उन्हें कहा कि इस श्राप से मुक्ति पाने के लिए धरती पर जाकर वास करना होगा, जहां वह अपने पति से मिलेंगी। शिव के अवतार को जन्म देने के बाद अंजनि को इस श्राप से मुक्ति मिल जाएगी।
इंद्र की बात मानकर पुंजिकस्थला अंजनि के रूप में धरती पर चली आईं, उस शाप का...
...प्रभाव शिव के अंश को जन्म देने के बाद ही समाप्त होना था। वह एक शिकारन के तौर पर जीवन यापन करने लगीं। जंगल में उन्होंने एक बड़े बलशाली युवक को शेर से लड़ते देखा और उसके प्रति आकर्षित होने लगीं, जैसे ही उस व्यक्ति की नजरें अंजनि पर पड़ीं, अंजनि का चेहरा वानर जैसा हो गया।
अंजनि जोर-जोर से रोने लगीं, जब वह युवक उनके पास आया और उनकी पीड़ा का कारण पूछा तो अंजनि ने अपना चेहरा छिपाते हुए उसे बताया कि वह बदसूरत हो गई हैं। अंजनि ने उस बलशाली युवक को दूर से देखा था लेकिन जब उसने उस व्यक्ति को अपने समीप देखा तो पाया कि उसका चेहरा भी वानर जैसा था।
अपना परिचय बताते हुए उस व्यक्ति ने कहा कि वह कोई और नहीं वानर राज केसरी हैं जो जब चाहें इंसानी रूप में आ सकते हैं। अंजनि का वानर जैसा चेहरा उन दोनों को प्रेम करने से नहीं रोक सका और जंगल में केसरी और अंजना(अंजनि) ने विवाह कर लिया।
केसरी और अंजना ने विवाह कर लिया पर संतान सुख से वंचित थे। अंजना अपनी इस पीड़ा को लेकर मतंग ऋषि के पास गईं, तब मंतग ऋषि ने उनसे कहा-पंपा सरोवर के पूर्व में नरसिंह आश्रम है, उसकी दक्षिण दिशा में नारायण पर्वत पर स्वामी तीर्थ है वहां जाकर उसमें स्नान करके, बारह वर्ष तक तप एवं...
...उपवास करने पर तुम्हें पुत्र सुख की प्राप्ति होगी।
अंजना(अंजनि) ने मतंग ऋषि एवं अपने पति केसरी से आज्ञा लेकर तप किया था बारह वर्ष तक केवल वायु पर ही जीवित रही, एक बार अंजना ने “शुचिस्नान” करके सुंदर वस्त्राभूषण धारण किए। तब वायु देवता ने अंजना की तपस्या से प्रसन्न होकर...
...उसके कान में प्रवेश कर उसे वरदान दिया, कि तुम्हारे यहां सूर्य, अग्नि एवं सुवर्ण के समान तेजस्वी, वेद-वेदांगों का मर्मज्ञ, विश्वन्द्य महाबली पुत्र होगा।
इस आशीष के बाद वे शिव की आराधना और तपस्या में लीन रही तब प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें वरदान मांगने को कहा,...
..अंजना ने शिव से कहा कि साधु के श्रापसे मुक्ति पाने केलिए उन्हें शिव के अवतार को जन्म देना है,इसलिए शिव बालक के रूप में उनकी कोखसे जन्म लें।
‘तथास्तु’कहकर शिव अंतर्ध्यान हो गए।
तब हनुमानजी का जन्म त्रेतायुग में अंजना के पुत्ररूप में,चैत्रशुक्ल की पूर्णिमा की महानिशा में हुआ।
अंजना( अंजनि) के पुत्र होने के कारण ही हनुमान जी को आंजनेय नाम से भी जाना जाता है जिसका अर्थ होता है 'अंजना द्वारा उत्पन्न'।
उनका एक नाम पवन पुत्र भी है। जिसका शास्त्रों में सबसे ज्यादा उल्लेख मिलता है।
शास्त्रों में हनुमान को वातात्मज भी कहा गया है, वातात्मज यानि जो वायु से उत्पन्न हुआ हो। इस तरह माता अंजनि ने सिर्फ हनुमान जी को जन्म देने के लिए पृथ्वि पर अवतरण लिया था।
जय सिया-राम 🙏🌺
जय वीर हनुमान 🙏🚩
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जब रावण ने देखा कि हमारी पराजय निश्चित है तो उसने 1000 अमर राक्षसों को बुलाकर रणभूमि में भेजने का आदेश दिया। ये ऐसे थे जिनको काल भी नहीं खा सका था।
विभीषण के गुप्तचरों से समाचार मिलने पर श्री राम को चिन्ता हुई कि हम लोग इनसे कब तक लड़ेंगे ?
सीता का उद्धार और विभीषण का राज तिलक कैसे होगा ? क्योंकि युद्ध की समाप्ति असंभव है।
श्रीराम कि इस स्थिति से वानरवाहिनी के साथ कपिराज सुग्रीव भी विचलित हो गए कि अब क्या होगा ? हम अनंत काल तक युद्ध तो कर सकते हैं पर विजयश्री का वरण नहीं ! पूर्वोक्त दोनों कार्य असंभव हैं।
अंजनानंदन हनुमान जी आकर वानर वाहिनी के साथ श्रीराम को चिंतित देखकर बोले–'प्रभु ! क्या बात है ?'
श्रीराम के संकेत से विभीषण जी ने सारी बात बतलाई और कहा अब विजय असंभव है।
पवन पुत्र ने कहा–'असम्भव को संभव और संभव को असम्भव कर देने का नाम ही तो हनुमान है।
The Eastern Ganga dynasty aka Rudhi Gangas or Prachya Gangas reigned from Kalinga for nearly a Millennium (that's a 1000 years) from as early as the 5th century to the early 15th century.
They are known as "Eastern Gangas" to distinguish them from the Western Gangas who ruled over Karnataka.
The territory ruled by the Eastern Ganga Kings consisted of the whole of Odisha as well as major parts of West Bengal, Andhra and Chattisgarh.
The early rulers of the dynasty ruled from Dantapuram; the capital was later moved to Kalinganagara (modern Mukhalingam), and ultimately to Kataka (modern Cuttack).
Today, they are most remembered as the builders of the world renowned Jaganath Puri Mandir...
शिमला से 100 किमी की दूरी पर करसोग घाटी में ममलेश्वर मंदिर है। लोगों की मान्यता है कि यहां 5 हजार साल पहले पांडवों ने समय बिताया था।
- ममलेश्वर मंदिर में एक अग्निकुंड है, जो हमेशा जलता रहता है।
मान्यता है कि 5 हजार साल पहले पांडवों ने इस अग्निकुंड को जलाया था और तब से यह जल रहा है।
- यहां के स्थानीय लोगों का मानना है कि अज्ञातवास के दौरान पूजा करने के लिए पांडवों ने इस अग्निकुंड को बनवाया था।
- कहा जाता है कि सावन के महीने में यहां पार्वती और शिव कमल पर बैठकर मंदिर में मौजूद रहते हैं।
- कहा जाता है कि ममलेश्वर मंदिर में 5 हजार साल पुराना गेहूं का दाना है, जिसका वजन 200 ग्राम है।
🌺विस्तारः(Vistaarah):He is spread out in everything.
Various meanings assigned to this name are:
He who spreads; He who is spread out in everything; and He who expands to contain everything (at the time of Pralay).
Shri Adi Shankaracharya interprets this name as - All the worlds keep on expanding within Him, hence He is called Vistaarah.
One of the fundamental properties of all living beings is to grow,which we see in our daily lives.Not only this,the modern day science has enough evidence to prove that the entire universe is also expanding-a fact which we r not able to see due to our limited cognitive abilities.
Amongst the most revered shrines in India, Ramanathaswamy Temple is located in the small town of Rameshwaram in the state of Tamil Nadu. It is frequented by devotees and tourists from all over the world.
Also known as Arulmigu Ramanathaswamy Temple,it houses one of the 12 Jyotirlingas of God Shiva. One of these can also be found at Shree Mahakaleshwar Temple in Ujjain,Kedarnath Temple in Uttarakhand,Sri Kashi Vishwanath Temple in Varanasi & Trimbakeshwar Temple in Maharashtra.
Moreover, Ramanathaswamy Temple in South India is also one of the Char Dhams. Hindus believe that visiting these sites helps achieve Moksha.
Ramanathaswamy Temple history is intriguing and captivating.