#श्रीमदभगवद्गीता के अनुरूप -
जो मनुष्य ब्रह्माके एक हज़ार चतुर्युगीवाले एक दिनको और सहस्त्र चतुर्युगीपर्यन्त एक रातको जानते हैं, वे मनुष्य ब्रह्माके दिन और रातको जाननेवाले हैं।
अब गणना बताते है-
सत्य, त्रेता, द्वापर और कलि-मृत्युलोक के इन चार युगको एक चतुर्युगी कहते हैं। ऐसी एक हजार चतुर्युगी बीतने पर ब्रह्माजी का एक दिन होता है और एक हजार चतुर्युगी बीतने पर ब्रह्माजी की एक रात होती है। दिन-रात की इसी गणनाके अनुसार सौ वर्षों की ब्रह्माजी की आयु होती है।
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ब्रह्माजी की आयु के सौ वर्ष बीतने पर ब्रह्माजी परमात्मा में लीन हो जाते हैं और उनका ब्रह्मलोक भी प्रकृति में लीन हो जाता है तथा प्रकृति परमात्मा में लीन हो जाती है।
अब आईए आपको समान्य दिन रात गणना से क्रमबद्ध चतुयुर्गी बताते हूए ब्रह्मा जी के दिन रात तक ले जाते हैं ......👇👇
अत्यन्त सूक्ष्म काल है- परमाणु। दो परमाणुओं का एक अणु और तीन अणुओं का एक त्रसरेणु होता है। झरोखे से आयी सूर्य-किरणों में त्रसरेणु उड़ते हुए दीखते हैं। ऐसे तीन त्रसरेणुओंको पार करनेमें सूर्य जितना समय लेता है, उसे त्रुटि कहते हैं।
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सौ त्रुटियों का एक वेध, तीन वेधों का एक लव, तीन लवका एक निमेष और तीन निमेषोंका एक क्षण होता है। पाँच क्षणों की एक काष्ठा, पंद्रह काष्ठाओं का एक लघु, पंद्रह लघुओं की एक नाड़िका, छ: नाड़िकाओं का एक प्रहर और आठ प्रहरों का एक दिन-रात होता है।
पंद्रह दिन-रातोंका एक पक्ष, दो पक्षोंका एक मास, छ: मासोंका एक अयन और दो अयनोंका एक वर्ष होता है।
इस प्रकार मनुष्यों के एक एक वर्ष के समान देवताओं की एक दिन-रात है अर्थात् मनुष्यों का छः महीनों का उत्तरायण देवताओं का दिन है और छ: महीनों का दक्षिणायन देवताओं की रात है।
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इस तरह देवताओं के समयका परिमाण मनुष्यों के समय के परिमाण से तीन सौ साठ गुणा अधिक माना जाता है। इस हिसाब से मनुष्यों का एक वर्ष देवताओं के एक दिन-रात, मनुष्यों के तीस वर्ष देवताओं का एक महीना और मनुष्यों के तीन सौ साठ वर्ष देवताओं का एक दिव्य वर्ष है।
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ऐसे ही मनुष्य के सत्य, त्रेता, द्वापर और कलि-ये चार युग बीतने पर देवताओं का एक दिव्ययुग होता है अर्थात् मनुष्यों के सत्ययुग के सत्रह लाख अट्ठाईस हजार, त्रेता के बारह लाख छियान बे हजार, द्वापर के आठ लाख चौंसठ हजार और कलि के चार लाख बत्तीस हजार—
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ऐसे कुल तैंतालीस लाख बीस हजार वर्षों के बीतने पर देवताओं का एक दिव्ययुग होता है। इसको 'महायुग' और ‘चतुर्युगी' भी कहते हैं।
मनुष्यों और देवताओं के समयका परिमाण तो सूर्यसे होता है, पर ब्रह्माजी के दिन-रात का परिमाण देवताओं के दिव्य युगों से होता है।
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अर्थात् देवताओं के एक हजार दिव्ययुगों का (मनुष्यों के चार अरब बत्तीस करोड़ वर्षों का) ब्रह्माजी का एक दिन होता है और उतने ही दिव्ययुगों की एक रात होती है। ब्रह्माजी के इसी दिनको 'कल्प' या 'सर्ग' कहते हैं और रातको 'प्रलय' कहते हैं।
इति!🙏
(-स्रोत श्रीमदभगवद्गीता से) 🚩
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गायत्री मंत्र में 24 अक्षर होते हैं और वाल्मीकि रामायण में 24,000 श्लोक हैंl रामायण के हर 1000 श्लोक के बाद आने वाले पहले अक्षर से गायत्री मंत्र बनता हैl यह मंत्र इस पवित्र महाकाव्य का सार हैl गायत्री मंत्र को सर्वप्रथम ऋग्वेद में उल्लिखित किया गया हैl #गायत्री_मंत्र 🚩🙏
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राम और उनके भाइयों के अलावा राजा दशरथ एक पुत्री के भी पिता थेl
श्रीराम के माता-पिता एवं भाइयों के बारे में तो प्रायः सभी जानते हैं, लेकिन बहुत कम लोगों को यह मालूम है कि राम की एक बहन भी थीं, जिनका नाम “शांता” थाl वे आयु में चारों भाईयों से काफी बड़ी थींl
अर्थ –व्यक्ति का सबसे बड़ा दुश्मन आलस्य होता है, व्यक्ति का परिश्रम ही उसका सच्चा मित्र होता है। क्योंकि जब भी मनुष्य परिश्रम करता है तो वह दुखी नहीं होता है और हमेशा खुश ही रहता है। #संस्कृत
उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा:।।
अर्थ–व्यक्ति के मेहनत करने से ही उसके काम पूरे होते हैं, सिर्फ इच्छा करने से उसके काम पूरे नहीं होते। जैसे सोये हुए शेर के मुंह में हिरण स्वयं नहीं आता, उसके लिए शेर को परिश्रम करना पड़ता है।
जब इंद्र देवता गोवर्धन वासियों पर क्रोधित हो गए थे और अपना गुस्सा दिखाने के लिए झमझम बरसने लगे थे। इतना बरसे कि कहर बरपा दिया, ना किसी को और, ना किसी को ठौर। पूरा गाँव जैसे डूब ही गया था कि सबने कन्हैया से बिनती की।
अब कन्हैया का तो था ही ऐसा कि किसी ने भी पुकारा और बस चल दिए। उस दिन भी कन्हैया को आना ही पड़ा। सीधे गए और गोवर्धन पर्वत को ही उठा लिया अपनी कनिष्ठा पर और सारे गाँव वालों को खड़ा कर लिया उसके नीचे।
बस सात दिनतक बिना कुछ खाये-पिए कान्हा सबको संभाले रहे जबतक कि इंद्र थक कर हार नहीं मान लिए।अब कान्हा तो बढ़िया जमकर आठों पहर खाना खाया करते थे पर गाँव वालों को बचाने के लिए कुछ ना खाया ना पीया।बाद में गाँव वालों ने मिलकर सात दिन और आठ पहर छप्पन भोग बनाकर कान्हा को अर्पण करते दिए।
अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य और भगवान परशुराम ये सात महामानव चिरंजीवी हैं। यदि इन सात महामानवों और आठवे ऋषि मार्कण्डेय का नित्य स्मरण किया जाए तो शरीर के सारे रोग समाप्त हो जाते है और 100 वर्ष की आयु प्राप्त होती है।