किसी भी दो कौड़ी के मोटिवेशनल स्पीकर से ज्यादा मोटिवेट सुनील गावस्कर और कुछ अन्य महान लोगों ने मुझे किया है। बिना कोई भाषण दिए, सिर्फ़ अपने काम को करते हुए, कुछ ऐसा किया कि मैं उससे सीख गया।
जितने लोग मोटिवेशनल स्पीकर्स के पास जाते हैं, वे शायद नहीं जानते होंगे ये सब सॉफ्ट
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स्किल्स के छोटे छोटे मनोवैज्ञानिक प्रयोगों को यहां वहां की कहानियों में बांध कर आपका "वो" बनाते हैं।
अगर मोटिवेट होना है तो अपने आसपास देखो, कई बार पानी में फंसी झुंड से बिछड़ी चींटी बहुत कुछ सीखा देगी।
बाकी ये मेरी फेवरेट पोस्ट एक बार फिर से, इस सलाह के साथ कि ये मोटिवेशनल
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****एक बात और, फेसबुक पर ठरकियों से दूर रहिये जो सबको मनोवैज्ञानिक बनकर समस्याएं सुलझाने में लगे रहते हैं। घर में इनकी बीवी बच्चे इनकी सुनते नहीं, यहां ये लकड़बग्घा बनकर घूमते हैं।***
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दुनिया के सर्वकालिक महानतम बल्लेबाजों में से एक सुनील_गावस्कर का ये लेफ्ट हैंड बैटिंग करते हुए चित्र न तो फेक , न ही कोई मिरर ट्रिक से बनाया गया है।
सभी जानते हैं, गावसकर दाएं हाथ के सलामी बल्लेबाज थे।फिर ये क्या है?
1981-82 रणजी_ट्रॉफी सेमीफाइनल मुम्बई विरुद्ध कर्नाटक।
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मुम्बई में गावस्कर के अलावा रवि_शास्त्री,दिलीप_वेंगसरकर,सन्दीप_पाटिल, अशोक मांकड़,बलविंदर संधू जैसे मजबूत खिलाड़ी थे।
मुम्बई ने पहले बैटिंग करते हुए271रन बनाए,जिसमें बाएं हाथ के स्पिनर रघुराम_भट्ट ने 123पर 8 विकेट लिए।
फिर कर्नाटक ने 470 रन बनाकर पहली पारी के आधार पर बढ़त ले ली
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और फाइनल में जाना लगभग तय था।
मुम्बई की दूसरी पारी में रघुराम भट्ट का कहर जारी रहा और स्कोर हो गया 160पर6 !
पिच बुरी तरह से ख़राब हो चुकी थी। अब मुम्बई के सामने हार से बचना ही सबसे बड़ा लक्ष्य था,फाइनल तो वैसे ही चला गया था हाथ से।
गावस्कर इस पारी में सलामी बल्लेबाज के रूपमें
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नहीं उतरे।वे आये 8 वे नम्बर पर।और एक जबरदस्त निर्णय लिया।बाएं हाथ के रघुराम को बाएं हाथ से खेलने का।
60 मिनट तक गावस्कर टिके रहे और मैच खत्म होने पर मुम्बई का स्कोर था200 पर 9!
चिन्नास्वामी_स्टेडियम में 30000दर्शक भारतीय क्रिकेट के जायंट मुम्बई को हारते देखने के लिये जमा हुए थे
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लेकिन सुनील गावस्कर ने उन्हें यह सुख लेनेसे वंचित कर दिया।
वे अंत तक नॉट आउट रहे18 रन बनाकर।
बाएं हाथसे वे सिर्फ रघुराम भट्ट को खेलरहे थे,बाकी।दाएं हाथ के गेंदबाजों को वे दाएं हाथ से खेलते।
ज़िन्दगी जब रघुराम भट्ट बनकर उलटे हाथसे मुश्किल भरी पिच रूपी परिस्थितियों पर घटनाओं को
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असमान रूप से टर्न करने लगे, तब सुनील गावसकर बन कर आप भी उलटे हाथ से खेलो...
रघुराम भट्ट को कोई याद नहीं रखता, प्रेरणा बनते हैं सनी गावसकर...
वे बड़े दयालु लोग थे
उन्होंने मुझे देखा था
तीस किलोमीटर की दूरी
कुछ घंटों में तय करने के बाद
किसी सड़क के किनारे
धौंकनी करते कुत्ते की तरह
हाँफते हुए
और पूछा , रोटी चाहिए?
मैंने हाँ में सर हिलाया
जबकि मुझे प्यास लगी थी
लेकिन मैं अपने मेहरबाँ को
नाराज़ करने की
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हालत में बिल्कुल नहींथा
दयालु लोगों ने मुझे रोटीदी
पानी दिया
लेटने के लिए बिस्तर दिया
यूनिफ़ॉर्म दिया
और दिया
पहाड़की दो चोटियोंको जोड़ती
एक लोहे की रस्सी पर
उल्टे लटक कर
गहरी खाई को पार करने का मौक़ा
इसी तरह एक दिन
जब मैं एक तपा तपाया हुआ
रोटी का ग़ुलाम बन गया तो
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उन दयालु लोगों ने
मेरे हाथों में बंदूक़ थमा दी और कहा
कल से तुम्हें रोटी ख़रीदनी होगी
उस दिन से आज तक
मैं अपनी बंदूक़ का मुँह
अपने ही लोगों की तरफ़ किए हूँ
कल्लू खान सेलून !!
सुबह महल्ले के एकमात्र बाल काटने की दूकान पर पहुंचे , देखा कि बुलडोज़र ,खुदाई मशीन ,पुलिस ,अफसर , नेता खड़े हुए हैं , कल्लू नाई की दूकान की खुदाई होनी हैं . कल्लू दुबका एक तरफ खड़ा था . हुआ यूँ कि एक बाबाजी कल्लू की दूकान पर आये थे ,सफ़ेद बाल ,दाढी वाले ,
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कल्लू ने डाई लगा कर बाल काले कर दिए बाबा जी जवान हो गए .बाबा जी ने पूछा ये कला तूने कहाँ सीखी ? ,ये काया कल्प की प्राचीन कला है , ज़रूर तेरी दूकान के पहिले यहाँ किसी ऋषि का ठिकाना था ,शिकायत दर्ज की और खुदाई के आदेश हो गए .
मैं भी दर्शकों में शामिल हो गया ,दूकान का फर्श उखाड़ा,
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कुछ लकड़ी के टुकड़े निकले,छोटे बड़े , अधिकारी ने नेता विद्वान् को दिखाए ,सर इन लकड़ियों पर ये कुछ खुदा हुआ है ,बोले ये तो संस्कृत में मन्त्र लिखे हैं ,क्यों बे कल्लू तूने यहीं से सीखी ये विद्या ,लगाओ साले पर चोरी ,डकैती की धारा .कल्लू हाथ जोड़ कर बोला ,मालिक में संस्कृत पढ़ना
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पिंकू भैया ने भेज दीहै।इस फोटोके पीछे की कहानी ऐतिहासिक है।जिसे,वामपन्थी इतिहासकारों ने एज युजुअल छुपा दिया था।
असलमे हुआ ये की एक बार माउंटबेटन जिन्ना के साथ बाहर गए हुए थे।मौका देखकर चचा ने बढ़िया अचकन पहनी।और गांधी टोपी लगाकर गए,एडविना को प्रपोज किया।
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इस पर एडविना ने शर्त रख दी। एकदम कड़ी शर्त..
बोली-
"बाबू, मेको हिन्दू राष्ट्र चिये"
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छुपे हुए संघियों की बाछें खिल गयी।
दरअसल कम लोगो को पता है कि कुछ रॉयल सीक्रेट सर्विस याने आएएसएस के कुछ लोग हमेशा नेहरू के इर्द गिर्द छुपे रहते थे। खास तौर पर उनकी खटिया के नीचे दो
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स्वयंसेवको की ड्यूटी नियमित लगाई जाती थी।
वो ऊपर हो रही हरेक गतिविधि की रिपोर्ट, गुरुजी को भेजते थे। यही कारण है कि नेहरू जी की सारी गुप्त क्रियाओं के रोचक वर्णन से नागपुर के आर्काइव भरा पड़ा है।
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तो मूल किस्से पर आते हैं।
आधी रात को हाईकोर्ट खोली जाती है,बीजेपी के उस ट्रोल नेता को गिरफ़्तारी से बचानेके लिए,जिसे पेश करने का वारंट निचली अदालत ने दियाहै।
यानी अगर सता किसी को बचाना चाहे तो उसके पास दूसरी और तीसरी अदालत का विकल्प खुला है।
सत्ता को मालूम है
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कि कौन सा कानूनी घंटा उसकी मदद करेगा, आधी रात को भी।
यही बीजेपी राज की घोर अराजकता है। आप किसी संघीय प्रणाली की बात न करें। संघी शासन व्यवस्था को कोसें, जहां राज्यों के बीच लड़ाई है।
राज्यों की पुलिस के बीच लड़ाई है और अब अदालतें भी एक-दूसरे की नाफरमानी पर आमादा हैं।
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उधर,87 में से 86 मामलों में ज़मानत पाकर भी एक बूढ़ा इसलिए जेल में है,क्योंकि कोर्ट के पास अंतिम मामले में फैसला सुनाने का वक़्त नहीं है।सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बावजूद।
इधर,एमपी हाईकोर्ट से बरी हुए 4 दिन बीतने के बाद भी सिस्टम की नाइंसाफ़ी का मारा एक व्यक्ति इसलिए जेल में है,
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आज मार्क्स जी की जयंती है।मैं जब भी मार्क्स जी का नाम सुनताहूँ,अपने बचपनके दिन याद आ जाते हैं।
मैं जब1साल का हुआ तभी मेरे गांवमें अंडर15की100मीटर दौड़ हुई।
मेरी माताजी उस दौड़के मैदानमें पंडाल में(बु हु हु हु..सुब सुब) बर..बर... लोगों के झूठे...बर... बर... बर्तन मांजने आई थी।
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मैं दौड़ की जगह खड़ा हो गया। मुझे सबने देखा और सबको आश्चर्य हुआ कि , ओ माय गॉड... ये 1 साल का बच्चा दौड़ की स्टार्ट लाइन पे क्या कर रहा है?
लेकिन तभी रेफरी ने कहा, ऑन योर मार्क्स...
बस तभी से मैं मार्क्स के बारे में समझ गया कि मार्क्स के बाद सेट हो कर गो होता है।
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तो भाइयों भेनो,इस तरह मार्क्स से मेरा परिचय हुआ।
फिर जब मैं डेढ़ साल का हुआ तब मुझे चौथी कक्षामें एडमिशन मिला।क्योंकि मैं एक दो तीन में भरोसा नही रखता।देखिये तीनका अंक हमारे संगठनके अनुसार अशुभ माना जाताहै,इसलिए सीधा चार।
खैर,वहांभी जब देखो परिक्शा हों और उसमें मार्क्स की बातें
न्यायपालिका बनाई गई है नागरिक को न्याय और सम्वैधानिक अधिकारो की सुरक्षा के लिए। दरअसल जज ही नही, पॉलिटिशियन, आईएसएस, आईपीएस या कोई भी पद का चयन, किसी को रोजगार देने, अमीर बनाने, या सैलरी बांटने के किए नही होता।
वो देश की व्यवस्था के सन्तुलन को 3/1
बनाये रखने के लिए,नागरिकों के मध्य से सही व्यक्ति हासिल करने को होता है।
लेकिन अभ्यर्थी,परीक्षा की तैयारी इसलिए नही करते कि आपकी समवेधानिक मूल्यों में आस्था है।वे जनतंत्र में एक महत्वपूर्ण पद से अपेक्षित जिम्मेदारियों का निर्वहन करना चाहते हैं। मजलूम को न्याय देना चाहते हैं।
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वे तैयारी इसलिए करते हैं कि अपनी और अपने परिवार की गरीबी दूर करनी है।
सचाई यह है कि कि जनाब सरकारी तनख्वाह में गुजारा करने की कोशिश करें, तो तीन पीढ़ियों के बाद भी गरीबी दूर नही होगी।
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बहरहाल शुभकामनाएं। चयन की बधाई, आपकी गरीबी जल्द दूर हो, राज्यसभा भी मिले।
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