#MahaRanaPratapJayanti
एक तरफ अकबर की ज़िद कि मेवाड़ को मुगलों के आगे झुकना होगा,
दूसरी ओर महाराणा की सौगंध कि घांस की रोटी खा कर जी लेंगे पर एक जालिम को जिल्लेइलाही नहीं कहेंगे।
ये वो दौर था जब पानीपत का युद्ध जीत कर अकबर लगभग पूरे भारत वर्ष का बादशाह बन चुका था।
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पंजाब से बंगाल और कश्मीर से विंध्य तक अकबर का ही साम्राज्य था।
लेकिन मेवाड़ विजय का स्वप्न अब भी अधूरा था,
अकबर ने साम दाम दण्ड भेद सब प्रयास किए,
लेकिन राजपूती स्वाभिमान के आगे सब व्यर्थ।
अकबर भरता के कण कण में अपना कब्ज़ा चाहता था।
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परन्तु मेवाड़ को जीते बिना आगे की यात्रा असंभव थी।
राणा अकबर से संधि के लिए किसी भी कीमत पर तैयार नहीं थे।
तब अकबर ने एक गहरी चाल चली।
अपने सेना पति मानसिंह को मेवाड़ भेजा की वो राणा को समझाए।
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अगर राणा मान गए तो अकबर का सपना पूरा और ना माने तो दो राजपूत एक दूसरे से टकरा जाएंगे
और राजपूताना दो हिस्सो मे बट कर कमजोर हो जाएगा।
दोनो परिस्थितियों में फायदा अकबर का था।
पर राणा ने मानसिंह का अपमान करके उसे भगा दिया।
अकबर चोट खाए सांप की तरह भुंकार उठा,
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अब युद्ध निश्चित था
1576 में उदयपुर से 40 किलो मीटर दूर हल्दी घाटी के मैदान में महाराणा अकबरी सेना से जा टकराए
ऐसा युद्ध हुआ की हल्दी घाटी जिसकी मिट्टी पीली हुआ करती थी कई दिनों तक लहू से लाल रही।
राणा ने अपने भाले से इतिहास लिख दिया।
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उस दिन हल्दी घाटी में इतना रक्त बहा की मिट्टी में एक कण ढूंढना मुश्किल था। जहां तक नजरे जा रही थी वहा तक सिर्फ रक्त को धार ही नजर आ रही थी।
राजपूत अपनी आन के लिए बड़े बड़ो से लड़ पड़े
सिर अलग हो गया तो धड़ से लड़ पड़े।
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ये बलिदान किसी के लिए अदभुत घटना होगी
राजपूतो के लिए खेल तमाशा।
चेतक घोड़े से बाज़ बन गया था चलना और दौड़ना भूल कर उड़ने लगा था,
और राणा का भाला भी बोल उठा मुझको विश्राम ना दे, दुश्मनों को चीर दे तू मुझे तनिक आराम न दे,
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उस युद्ध में राणा ने बहुत कुछ खोया था,
चेतक सा भाई उसी युद्ध में सदा के लिए सोया था।
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End
.......... Will continue in next thread
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