आज कल नया ट्रेंड चला है
तरह तरह के लंपट लोग ताजमहल पर दावे कर रहे हैं।
एक तो कोई खूबसूरत महिला सांसद है जिसके पूर्वजों ने पहले मुगलोंके आगे समर्पण किया बादमें सरदार पटेल जी और इंदिराजी के आगे पर चूंकि रंग गौरा है महिला का इसलिए सोचती है कि कुछ भी बकवास करेगी और दुनिया मान लेगी।
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ताजमहल मोहब्बत की निशानी है वो किसी पैसे वाले की जागीर नही है।
पहले अपने बाप के नाम रजिस्ट्री दिखाओ फिर ताजमहल पर दावा करना।
मुझसे पूछा जाए तो मैं कहूँगा कि ताजमहल श्रध्देय का है।
श्रध्देय एक सच्चा आशिक था।
हर मोहब्बत की निशानी पर पहला हक़ श्रध्देय का है।
हर आदमी की किस्मत में
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शाहजहां बनना नही लिखा होता।
कुछ लोग गरीब भी होते हैं पर उनकी मोहब्बत शाहजहां की तुलना में कई कमतर नही होती।
श्रध्देय भी हीरामण्डी की तवायफों से सच्ची मोहब्बत करते थे।
हीरामण्डी से मोहब्बत करते थे।
हीरामंडी और दिल्ली के रिश्ते सुधारने को उन्होंने दिल्ली से लाहौर "सदा ए सरहद" बस
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चलवाई ताकि कोई हीरामण्डी प्रेमी परेशान न हो।
सच्चा प्रेम था मित्रों।
सदा ए सरहद बस भी ताजमहल की तरह मोहब्बत की निशानी है।
और ताजमहल से कतई कमतर नही है।
इसलिए मैं कहता हूँ ताजमहल पर पहला हक़ श्रध्देय का है।
सदा ए सरहद बस भी अब शायद अपना रुट पूरा नही करती।
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बाघा बॉर्डर पर ही सवारियों का एक्सचेंज कर लेती है।
दोनों सरकारों को श्रध्देय के प्रेम की निशानी इस बस पर ध्यान देना चाहिए ताकि कभी कोई हीरामण्डी का पथिक परेशान न हो।
मोहब्बत जिंदाबाद। #सदैव अटल #हीरामण्डी का पथिक
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पूरे देश में जिस योजना में जमकर भ्रष्टाचार हो रहा है उस योजना का नाम है 'अमृत योजना'
कही इसके अंतर्गत बिछाई गई अंडरग्राउंड पाइप लाइन फट रही है तो कहीं सुचारु रूप से जलापूर्ति करने के लिए दो पाइपों को आपस में जोड़ा ही नहीं जा सका है।ओवरहेड टैंक के निर्माण में भी कई समस्या
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देखने को मिल रही है भीषण गर्मी में नागरिकों को शुद्ध पेयजल के लिए मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। अमृत योजना से सीवर हो या फिर सामुदायिक शौचालय निर्माण, या नाला सफाई ही हो इन सबके नाम पर सरकारी धन की बंदरबांट हो रही है। कागजों पर सबकुछ ओके दिखाया जा रहा है क्योंकि देश के कई
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बीजेपी शासित राज्यो में सारे ठेके आरएसएस और बीजेपी से जुड़े लोगो को बांटे गए हैं
भ्रष्टाचार का आलम यह है कि खुद बीजेपी सांसद ही अपने प्रदेश के मुख्य्मंत्री से पूछ रहे है कि मेरे क्षेत्र में अमृत योजना।में अलॉट किया सैकड़ों करोड़ रुपए कहा है आपने किधर गायब कर दिया ? रोहतक सांसद
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देश के एक मुर्ख और अनपढ़ व्यक्ति ने ताजमहल के तहखाने के एक हिस्से को खोलने की याचिका दायर की ,और भांड मीडिया उस पर 24x7 डिबेट कराने लगा।
मगर उन तहखानों की हक़ीक़त क्या है ?
दरअसल ताजमहल के तहखाने और बाकी हिस्सा सन् 1900 ई तक जनता के लिए खुला था।
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कोई भी इन तहखाने तक जा सकता था।
कई पीढ़ियों ने इसे देख लिया, यहां ना कोई मुर्ति है ना ही यहां कोई चिह्न है। ताज के जो हिस्से बंद किए, वह धार्मिक कारणों से नहीं किये गए, बल्कि ताज में भीड़ और सुरक्षा कारणों से किए गए क्योंकि तहखाने में मौजूद गलियारों के ऊपर ही ताजमहल खड़ा है।
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यह एक सच है कि हेरीटेज स्मारक के संरक्षण और पर्यटकों की सुरक्षा के लिए एएसआई ने पूरे देश में स्मारकों के कुछ हिस्सों को बंद किया।
यही नहीं भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण(AASI)और देश के नामी गिरामी संस्थानोंके लिए वह तहखाना कई बार खुला है।और ताजमहल की मजबूती परखने के लिए समय-समय पर
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असलमे ये अंग्रेजोके दौरकी पुरानी श्रुति है।वह ठगों का युग था और दिल्ली के आसपास के इलाके में ठगों की बादशाहत चलती थी।ठग बेहद शातिर और चालाक होते,वेश बदलने में माहिर।गिरोह में काम करते।
व्यापारियों,तीर्थयात्रियों और दूसरे यात्रा करने वालो के
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कारवां चला करते और उसमें ये ठग खुद भी भलेमानुस का रूप धरकर शामिल हो जाते।पूरा गिरोह ही कारवां में शामिल होता, पर सारे लोग एक दूसरे से अजनबी बने रहते।
ठगों की अपनी भाषा होती, कोड वर्ड्स होते।यह सिर्फ ठग ही समझते। कई बार इनका दूसरा दल आगे कहीं घात लगाकर इंतजार करता। तो जब कारवां
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निर्दिष्ट स्थान पर पहुचने को होता, कोई ठग जोर से चिल्लाता - दाss मोssदर sss...। दामोदर का मतलब, की बड़े दाम (वैल्यू) के उदर (पजेशन) वाला क्लाइंट आ रहा है। लूट के लिए तैयार रहो।
कारवां और नजदीक आ जाता, तो फिर चिल्लाया जाता- ना ss रा ss यण!!! याने नर (शिकार) अब बेहद नजदीक आ गया।
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बात बहुत पुरानी है, लेकिन दिलचस्प है!
इटावा जिले के मूसाहार थाने में एक शाम मेले कुचैले फटेहाल कपड़ों में एक बुजुर्ग जेब कटने की रिपोर्ट लिखाने पहुंचा! वह अकेला ही था! काफी गिड़गड़ाने के बाद भी थानेदार ने रिपोर्ट न लिखी तो निराश होकर वहीं एक ओर बैठ गया! कुछ देर बाद एक सिपाही
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दया दिखाने का ढोंग करता हुआ आया और बोला कि मेहनत व भागदौड़ करके तुम्हारे पैसे ढूंढेंगे इसलिए थानेदार साहब की कुछ सेवा तो कर दो! मोलभाव के बाद 35 रुपए में बात बन गई! अब आनन-फानन में रिपोर्ट लिखी गई और अंत में बुजुर्ग से अंगूठा लगाने को कहा गया! बुजुर्ग ने हस्ताक्षर किए और
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अपनी जेब से एक मोहर निकालकर उस रिपोर्ट पर ठोक दी! मोहर पर लिखा था प्रधानमंत्री,भारत सरकार और हस्ताक्षर थे चौधरी चरण सिंह के !
सिपाही का सर ऐसे घूम रहा था जैसे तीन चार गोरखपुरिया चिलम खींच गया हो!गिरता पड़ता भीतर थानेदार साहब के पास पहुंचा! तब तक उधर चौधरी साहब सड़क पर आकर अपने
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उधर हिन्दू खतरे में है तो इधर हिन्दू की रसोई खतरे में है। आटे का भाव 50₹ प्रति किलो की तरफ़ खिसक रहा है।
भारत के 431 अमीर उद्योगपतियों और कारोबारियों के चंदे से चल रही मोदी सरकार ने गेहूं निर्यात की खुली छूट दे रखी है।
गेहूं का उत्पादन इस साल सरकार के तय 105 मिलियन टन से भी
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कम होने वाला है। मौसम की मार से 20% फसल में बालियां छोटी हो गई हैं।
कायदे से मोदी सरकार को 12 मिलियन टन से ज़्यादा गेहूं निर्यात नहीं करना चाहिए। लेकिन सरकार का इरादा 21 मिलियन टन से ज़्यादा गेहूं बेचने का है।
गोदी मीडिया भौकता है कि भारत दुनिया को रोटी खिला रहा है, लेकिन
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अपने ही घर में गेहूं का भाव 38₹ तक पहुंच चुका है।
निर्मला सीतारमण बेशक चावल खाती होंगी। उनके बॉस नरेंद्र मोदी मशरूम ही खाते होंगे। मोदी के चमचे मंत्री, विधायक ज़रूर किसी दलित, पिछड़े की रसोई में डाका डालते होंगे।
लेकिन हम आम लोग क्या खाएं? बीते 4 साल में गेहूं की
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वे बड़े दयालु लोग थे
उन्होंने मुझे देखा था
तीस किलोमीटर की दूरी
कुछ घंटों में तय करने के बाद
किसी सड़क के किनारे
धौंकनी करते कुत्ते की तरह
हाँफते हुए
और पूछा , रोटी चाहिए?
मैंने हाँ में सर हिलाया
जबकि मुझे प्यास लगी थी
लेकिन मैं अपने मेहरबाँ को
नाराज़ करने की
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हालत में बिल्कुल नहींथा
दयालु लोगों ने मुझे रोटीदी
पानी दिया
लेटने के लिए बिस्तर दिया
यूनिफ़ॉर्म दिया
और दिया
पहाड़की दो चोटियोंको जोड़ती
एक लोहे की रस्सी पर
उल्टे लटक कर
गहरी खाई को पार करने का मौक़ा
इसी तरह एक दिन
जब मैं एक तपा तपाया हुआ
रोटी का ग़ुलाम बन गया तो
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उन दयालु लोगों ने
मेरे हाथों में बंदूक़ थमा दी और कहा
कल से तुम्हें रोटी ख़रीदनी होगी
उस दिन से आज तक
मैं अपनी बंदूक़ का मुँह
अपने ही लोगों की तरफ़ किए हूँ