बड़ी पुरानी बात है।

एक थे पिग्गु जी। तलैया के एक तरफ लोटिया रहे थे कीचड़ में.. छप छप छई, छपा के छई । बढिया मस्ती में थे, उस तरफ शेर आया। प्यास लगी थी, पानी पीने लगा। इधर पिग्गु जी की मस्ती हाइपर हो गयी। जोर से चिल्लाए..

"ओए शेरss , आजा दम है तो, कर ले दो- दो हाथ"
1
शेर ने,पिग्गु को नजर भर देखा।कीचड़ में लपटाए,कई किस्म की दुर्गन्धोंसे युक्त,एकदम घिनघिनाये हुए.!!!शेर को गुस्सा तो आया,मगर जप्त किया।फिर ये जंगल पिग्गुओ का भी तो है,जी ले अपनी जिंदगी।तो शेर जी ने पानी पिया,चुपचाप चले गए।

पिग्गु जी ने घर आकर अपना बहादुरी कारनामा डैडी को सुनाया।
2
डैडी ने हालात समझे और बेटे को बताया- बेटा वो तेरा डर नही, तेरी दुर्गंध थी। अब तू बच के रह। कभी साफ सुथरा दिखा तो पिग्गु से पोर्क बनते देर न लगेगी।

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पिग्गु ने बात गांठ बांध ली। सदैव कीचड़ से सना रहता। आगे वह भी बड़ा हुआ, उसका परिवार बढ़ा। कीच और बदबू पारिवारिक गुण बन गया।
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गुण से आगे बढ़कर,हथियार बन गया।बदबू से सने पिग्गु दल,जिस तिस को गरियाते।लोग बचकर भागते।पिग्गुदल विजयी घोषित होगा।

सत्तर साल में पिग्गु जी की संतानें इतनी बढ़ गयी कि जंगल पर कब्जा कर लिया।फिर पूरे जंगल मे कीचड़ बिखरा बिखरा कर, अपना साम्राज्य मजबूत कर लिया।

उधर शेर की संतानें,
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नाक भौ सिकोड़ते हुए अपने दादाजी को गरियाती है। कहती हैं- सब दादाजी की गलती है। काश उसी दिन पिग्गुओं को निपटा दिया होता।

इधर जंगल को कीचड़ में बदलकर,गन्ध का नाम सुगन्ध रखा गया। सुगन्ध फैशन बन गयी। अब वहां एक नया जंगल है,जहां सब सुगन्धित है।हर जानवर कीचड़ लपेट, पिग्गु बन रहा है।
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पिग्गुइज्म उफान पर है।
--

मोरल- शेर की एक लापरवाही पूरे जंगल को पिग्गु बना सकती है।

शिक्षा यह भी, की पिग्गुओ को पोर्क बनाना है, तो कीचड़ और दुर्गंध से इम्यून होना पड़ेगा।
6

#रिबोर्न_की_बोधकथाऐं
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May 18
ये लन्दन में रखा कोहेनूर है..

हांजी,वो एक दूसरा कोहेनूर भी इस पत्थर से दस किलोमीटर दूर, टॉवर ऑफ लन्दन में रखा है।भारत से गया वो वह पत्थर जरा चमकीला है,मूँगफली के आकार का, और ब्रिटीश ताज में जड़ा है।

और ये पत्थर नेशनल म्यूजियम में है। रोजेटा स्टोन कहते है। ये इजिप्ट से आया है।
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कोई1797की बात है।इजिप्ट में नेपोलियन का अभियान चल रहा था।तब टीपू जिंदा था,और उसने मददके लिए नेपोलियन को अपने राजदूत भेजेथे।यही,इजिप्ट में

नेपोलियन ने डेढ़ सौ सैनिक भेजे और इजिप्ट जीतनेके बाद बड़ी फ़ौज भेजनेका वादा किया।और इसी इजिप्ट अभियानके दौरान उसकी सेनाके हाथ ये पत्थर लगा।
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एक मकान में बिल्डिंग मटेरियल की तरह इस्तेमाल हुआ था।

शहर का नाम रशीद था।सो पत्थर राशीद स्टोन कहलाया जो फ्रेंच में रोजेटा हो गया।

लेकिन नेपोलियन मिस्र में हार गया। और वहाँ ब्रिटिश जनरल के हाथ ये पत्थर लगा।लन्दन भेज दिया गया, जहां यह 1802 से डिस्प्ले में रखा है। दुनिया का मोस्ट
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May 17
एक कहानी सुनी ही होगी। किसी गांव में एक बेवकूफ आदमी था। शाम को चौराहे पर पहुँच जाता। वहां गाँव के समझदार लोग बैठकर गप्पे लड़ाते थे।

उस बेवकूफ़ आदमी को बुलाते और एक हथेली पर एक रुपये के चार सिक्के और दूसरी हथेली पर दस का एक सिक्का रखते।

उसे कहते कौन सी हथेली का सिक्का लोगे।
1
वह चार सिक्के लेता और पूछने पर कहता कि ये चार है और वो सिर्फ एक।चार ज्यादा है,एक कम।

गांव वाले उसकी मूर्खता पर खूब हंसते और लोगोंका भरपूर मनोरंजन होता।

एक दिन यह तमाशा शहरसे आये एक लड़केने देखा।
उसने उस बेवकूफ को कहा कि"ये लोग तुम्हारा मज़ाक उड़ाते हैं।तुम्हें पागल बनाते हैं।
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मैं तुम्हें समझाता हूँ, दस का एक सिक्का एक रुपये के चार सिक्के से ज्यादा कीमती है।अब तुम 10 का एक सिक्का लेना।"

बेवकूफ जोर से हंसने लगा।
उसने कहा "ये मुझे क्या पागल बनाएंगे,मैं इनको पागल बनाता हूँ।
पिछले 8 सालों से रोज 4 रुपये बिना मेहनत के कमा लेता हूँ।
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Read 6 tweets
May 17
हमारे नीचे की फ्लोर पर एक रिटायर्ड जनरल साहब रहते हैं जिनकी उम्र 80साल से अधिक ही होगी, उनकी अहलिया साहिबा 74 साल की है और दोनो बेटे विदेश में अपने परिवारों के साथ रहते तो।

उम्र का तकाजा समझे कि मैडम बूस्टर डोज के बाद बीमार रहने लगी और एक दिन जब ज्यादा तबियत खराब हो गई तो हम
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अस्पताल ले गए।
फ़ौजी डॉक्टरोंने अपने हिसाबसे इलाज किया, दस दिन बाद घर आ गई लेकिन फिर तबियत बिगड़ गई।डॉक्टर ने इस बार न्यूरो स्पेशलिस्ट के पास रेफर कर दिया तो हम उन्हे दूसरे अस्पताल ले जानेके लिए मजबूर हुए।

डॉक्टर ने चार दिन कोई इलाज नहीं किया सिर्फ ऑब्जर्व और टेस्ट करता रहा।
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उसके बाद उन्होंने कोई दिमागी बिमारी मार्क करके इलाज शुरु किया और अब वो बेहतर है बेशक पुरी तरह ठीक होने मे वक्त लगेगा।

ऐसे ही मेरा मानना हैं कि हमारे समाज में फैलते कैंसर का इलाज दाँए बाँए के कुतर्को या फिज़ूल दलाईल से नहीं हो सकता।

बीमारी की जड़ मीडिया से शुरु होती हैं और
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Read 5 tweets
May 17
धमाका , धमाका , धमाका
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ज्ञानवापी में शिवलिंग मिल गया है । अब किसी को कोई चिंता करने की ज़रूरत नही है ।
शिवलिंग मिलने की घटना अपने आप मे एक शुभ संकेत मानी जाती है ।
शिवलिंग के मिलने से देश अकाल , अनावृष्टि , प्रलय , युद्ध , व्यभिचार आदि प्रकोपों से बच जाता है ।
1
जापान ,अमेरिका , फ्रांस ,स्विट्ज़रलैंड आदि पहले अत्यधिक गरीब देश थे ।
फिर इनमें अचानक शिवलिंग मिल गया ,और ये अमीर देश बन गये।
अगर हम प्रयास जारी रखें ,तो देश मे अभी जगह जगह शिवलिंग मिल सकते हैं ।
जितने शिवलिंग मिलेंगे ,विकास दर उसी अनुपात में बढ़ती जाएगी ।
अन्य देशों को कोरोना,
2
एड्स आदि की दवा ढूंढने दो।
हमें अपना ध्यान शिवलिंग ढूंढने पर केंद्रित करना चाहिए । कोर्ट के लिए भी यह एक प्राथमिक विषय होना चाहिए । हत्या , बलात्कार , डकैती आदि के मामले चाहे वर्षों लटके रह जाएं , पर शिवलिंग पर तुरंत कार्रवाई हो ।
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Read 5 tweets
May 16
नीरो कला और संगीत का प्रेमी शासक था।

इतिहास में सबसे ज्यादा गलत समझे गए शासकों में अगर किसी का नाम सबसे पहले आता है, तो वह नीरो है। आज उसके बारे में थोड़ी खुदाई करके हम सारी गलतफहमी दूर करने का प्रयास करेंगे।
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तो पहली बात तो ये है कि उसने बोला ही नही था कि मुझे राजा बनाओ।
1
वो बचपन से ही कलाकार बनना चाहता था। लेकिन जब बेचारा दो साल का था,तब उसके पिता मार दिये गए।वो एक दौलतमंद नोबल थे, राजा को उनपर शक था।तो राजा कलीगुला ने उनको मरवाकर,सारी दौलत जपत कर ली।

अब नीरो की मम्मी नितांत अकेली और गरीब हो गयी। तो मजबूरी ने किसी दूसरे नोबल से ब्याह कर लिया।
2
ये नोबल था- क्लॉडियस, जो आगे कलीगुला को मारकर राजा बना।

तो नीरो की मम्मी रानी बन गयी, और नीरो राजकुमार।
सात आठ साल के बाद नीरो की मम्मी ने क्लॉडियस को जहरीले मशरूम पकाकर खिला दिये। वो मर गया, तो नीरो 17 बरस की उम्र में जबरन गद्दी पर बिठा दिया।

और मम्मी, राज चलाने लगी।
~~~
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Read 15 tweets
May 15
यक्ष -
लोग मार्क्स का नाम सुनते ही बिदक क्यो जाते है , उन्हें किस बात का डर है ?

युधिष्ठिर -
90 फीसदी तो इसलिए बिदकते है क्यो कि उन्हें यह समझाया गया है कि यह कोई भूत प्रेत है इसकी छाया से भी डरना चाहिए , पकड़ लेगा तो भगवान भी नही छुड़ा सकते , ये तो भगवान से भी नही डरता
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यक्ष -
और बाकी दस फीसदी

युधिष्ठिर -
बाकी दस फीसदी जानते है कि यह क्या है इसलिए वो डरते है , क्योंकि यह दुनिया का पहला दार्शनिक था जो कहता था कि क्या लेकर आये थे , क्या लेकर जाना है |

यक्ष -
ये तो निष्काम कर्म का दर्शन है ये तो हम सदियों से सुनते आए थे ..
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युधिष्ठिर -
exactly हम सुनते आए है पर अमल नही करते | यह मूर्ख अमल करवाने लगता है | दूसरा यह कारण भी है कि उसने इस निष्काम कर्म के दर्शन को उलट कर सीधा कर दिया |

1. " क्या लेकर आये थे " से उसकी मुराद यह है कि जब कुछ लेकर नही आये तो फिर सम्पत्ति बटोरने में क्यो लगते हो,खाली हाथ
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