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प्राचीन शास्त्रों में भक्ति के नौ प्रकार बताए गए हैं जिसे #नवधाभक्ति कहते हैं।
श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम्।अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥
श्रवण, कीर्तन, स्मरण,पादसेवन , अर्चन , वंदन, दास्य , साख्य और आत्मनिवेदन इन्हें नवधा भक्ति कहते हैं।🚩
#श्रवणः - ईश्वर की लीला, कथा, महत्व, शक्ति, स्रोत इत्यादि को परम श्रद्धा सहित निरंतर सुनना
#कीर्तनः - ईश्वर के गुण, चरित्र, नाम, पराक्रम आदि का आनंद एवं उत्साह के साथ कीर्तन करना
#स्मरणः -अनन्य भाव से ईश्वर का स्मरण करना, उनके महात्म्य और शक्ति का स्मरण कर उस पर मुग्ध होना
#पादसेवनाः ईश्वर के चरणों का आश्रय लेना और उन्हीं को अपना सर्वस्व समझना।
#अर्चनः मन, वचन और कर्म द्वारा पवित्र सामग्री से ईश्वर के चरणों का पूजन करना।
#वंदनः भगवान की मूर्ति को अथवा भगवान के अंश रूप में व्याप्त भक्तजन, आचार्य, ब्राह्मण, गुरूजन, माता-पिता आदि को परम आदर सत्कार
के साथ पवित्र भाव से नमस्कार करना या उनकी सेवा करना।
#दास्यः ईश्वर को स्वामी एवं अपने को दास समझ कर परम् श्रद्धा के साथ सेवा करना।
#सख्यः ईश्वर को ही अपना परम मित्र समझ कर अपना सर्वस्व उसे समर्पण कर देना एवं सच्चे भाव से अपने पाप और पुण्य का निवेदन करना।
#आत्मनिवेदनः अपने आपको सदा के लिए भगवान के चरणों में समर्पित कर देना एवं अपनी कुछ भी स्वतंत्र सत्ता न रखना। यह भक्ति की सबसे उत्तम अवस्था मानी गई है।🙏🚩
Credit via Facebook 🙏
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