#विनायक_दामोदर_सावरकर
महाराणा प्रताप हों, छत्रपति शिवाजी महाराज हो या विनायक दामोदर सावरकर इन तीनों में एक बात आपको अवश्य मिलेगी कि जब जीवन ने इन्हें दासतायुक्त सुखमय जीवन दिया तो उन्होंने उसे ठोकर मार कर स्वतंत्रता का कांटो भरा मार्ग चुना भी और आजीवन उसका पालन भी किया।
28 मई को नासिक के पास एक गांव भगुर में एक अत्यंत सामान्य परिवार में जन्मे सावरकर पर माँ सरस्वती की असीम अनुकंपा रही और अपने प्रारंभिक विद्यार्थी जीवन में उन्हें कविता लेखन और वक्तव्यों हेतु अनेकोनेक पुरस्कार मिला करते थे।
जब सावरकर 12 साल के थे तो पूना में एक आशुभाषण प्रतियोगिता में उन्हें सिर्फ इसलिए सांत्वना पुरस्कार दिया गया क्योंकि निर्णायकों का मानना था कि इतनी सी उम्र में कोई भी किसी जटिल विषय पर इतनी गहरी समझ नहीं रखता है अपितु यह बालक किसी और का लिखा रट कर यहां बोल रहा है।...
सावरकर को यह बात बहुत बुरी लगी कि उनके विचारों को कोई चोरी का बता रहा है, उन्होंने उसी समय निर्णायकों को चुनौती दी कि वो अपनी मर्जी का कोई भी विषय उन्हें दें और अगर सावरकर पहले से अच्छा भाषण न दें तो उन्हें कोई पुरस्कार न दिया जाए। इस बात पर निर्णायक सहमत हो गए।
सावरकर ने उनके चुने हुए विषय पर पुनः भाषण दिया और पूरा सभा मंडप तालियों से गूंज गया। निर्णायकों ने अपनी गलती स्वीकार की और उन्हें प्रथम पुरस्कार दिया गया लेकिन सावरकर ने यह पुरस्कार लेने से साफ मना करते हुए कहा कि इस तरह के मूर्खों से सम्मानित होना भी मूर्खता है...
1905 में सावरकर जब पूना में रह रहे थे और अपनी कॉलेज की पढ़ाई पूरी कर रहे थे तब लार्ड कर्जन ने बंगाल विभाजन का हुक्म दे दिया। लाल-बाल-पाल के नेतृत्व में इसका पूरे देश में पुरजोर विरोध हुआ। सावरकर ने भी इसमें बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया...
सावरकर ने पूना में विदेशी कपड़ों की होली जलाने का कार्यक्रम सफलतापूर्वक किया जिसका पुरजोर विरोध दक्षिणी अफ्रीका में वकालत कर रहे गांधी ने किया और इसे मूर्खतापूर्ण कहा हालांकि इस घटना के 17 साल बाद गांधी ने भी खूब होलियां जलाई थी...
1907 में महाराष्ट्र के एक अंग्रेजी अखबार "कार्ल" में काम करते हुए सावरकर को लंदन में वकालत करने का अवसर मिला जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। लंदन में जिस भवन में वह रहते थे उसे 'इंडिया हाउस' कहते थे और बहुत से भारतीय छात्र वहां रहा करते थे।...
स्वतंत्रता के बाद अंग्रेज सरकार ने उस पर तख्ती लगाकर "Indian patriot and philosopher VD Savarkar lived here" छोड़ दी। आजादी के 75 साल भी किसी सरकार ने न उस भवन को खरीदा न ही स्मारक बनाने का सोचा हालांकि गांधी, नेहरू, अंबेडकर और अन्य कई नेताओं के भवन स्मारक बनाये गए...
1907 में ही लंदन में सावरकर ने हिंदुस्तानी मित्रों के साथ 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के 50 वें वर्ष को बड़ी धूम धाम से मनाया। यह वही दिन थे जब सेनापति बापट (पांडुरंग महादेव बापट) ने बम बनाने की विधि सीख कर आये थे और 'इंडिया हाउस' की छत पर अक्सर इन बमों का परीक्षण किया जाता था...
सावरकर के बहुत से सहयोगी इस बात पर एकमत थे कि लंदन के 'हाउस ऑफ कॉमन्स' में बम फेंकें जाए जिससे अंग्रेज सरकार दहल फए लेकिन सावरकर ने इसकी अनुमति नहीं दी क्योंकि वहां बम फेंकने से यूरोप में रहने वाले सभी भारतीय छात्रों पर संकट अनिवार्य था।...
इसी तकनीक को बापट फिर भारत लाये और खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी ने जो बम जज किंग्सफोर्ड की बग्घी पर फेंका था वह इसी विधि से बनाया गया था।...
1910 में जब जैक्सन गोलीकांड हुआ तो अंग्रेजों ने सावरकर के बड़े भाई बबरो सावरकर को संदेह में गिरफ्तार कर लिया। उन्हें हर तरह की यातनाएं दी गयी यहां तक की बिजली के झटके तक दिए गए। उनसे मिली जानकारी से अंग्रेजों को एक अन्य क्रांतिकारी चतुर्भुज के बारे में पता चल गया।
यह वही चतुर्भुज थे जिन्हें सावरकर ने किताबों में छुपा कर लंदन से 20 'ब्राउनिंग पिस्टल्स' भेजी थी। सावरकर मदन लाल ढींगरा की फांसी से क्षुब्ध थे और तबियत बिगड़ने के कारण फ्रांस चले गए थे लेकिन अंग्रेज सरकार ने उनके विरुद्ध वारंट जारी कर दिया औ उन्हें फरार घोषित कर दिया गया...!
जब यह सारी जानकारी सावरकर को मिली तो वो तुरन्त लंदन जाने को उतावले हो गए। भीकाजी कामा ने उन्हें बहुत समझाया कि जैसे ही आप लंदन में पांव रखोगे, पकड़ लिए जाओगे लेकिन सावरकर को यह कायरता मंजूर नहीं थी। वे लंदन गए और ट्रेन से उतरते ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।...
सावरकर चाहते तो किसी भी यूरोपीय देश से राजाश्रय मांग कर शांतिपूर्वक अपना जेवन वहीं व्यतीत कर सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। राजद्रोह और सरकार के विरुद्ध युद्ध के अपराधों में उन्हें 25 साल और जैक्सन हत्याकांड में पुनः 25 साल की सजा अर्थात दो आजीवन कारावास की सजा दी गयी...
निर्णय सुनते ही सावरकर हंसने लगे और बोले" पुनर्जन्म में विश्वास न करने वाले ईसाई भी मुझे दो जन्मों का कारावास दे रहे हैं, चलो अच्छा है अब आप भारतीय परम्पराओं में विश्वास करने लगे हो"...
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कल कुछ कश्मीरी पंडित और कुछ अनन्य कट्टर हिन्दू भाई बड़ी बड़ी हांक रहे थे कि कश्मीर से जब हमें निकाला गया था तो हमने कोई शाहीन बाग़ नहीं बनाया था। हमने कोई ऐसी अराजकता नहीं फैलाई थी। हमने अपना दर्द ज़ज्ब कर लिया था। क्यों?
क्यों नहीं किया भाई? क्या साबित कर लिया तुम लोगों ने? जब एक साथ खड़े होकर लड़ना था तब तो चूड़ियां पहन कर आ गए जम्मू में कि यहां नहीं तो जम्मू चलो वहां रह लेंगे। बाद में सरकार सब सही कर देगी।
क्यों नहीं कर पाए तुम सड़कें जाम? क्यों नहीं झुका सके तुम सरकारों को? क्यों नहीं कोई आया तुम्हारी मदद को? क्योंकि तुम खुद एक दूसरे से जलते थे। एक दूसरे की संपत्ति को देख कर ईर्ष्या करते थे। एक दूसरे की जाति(गोत्र) के आधार पर ऊंचा नीचा देखते थे