"नेशनल हेराल्ड" केस क्या है आसान शब्दों में जानिए ?
★ नेहरू जी ने @NH_India नामक अखबार 1930 में शुरू किया।धीरे-धीरे इस अखबार ने 5000 करोड़ की संपत्ति अर्जित कर ली।आश्चर्य की बात ये है कि इतनी संपत्ति अर्जित करने के बावजूद भी सन् 2000 में
यह अखबार घाटे में चला गया और इस पर 90 करोड़ का कर्जा हो गया।
★ "नेशनल हेराल्ड" की तत्कालीन डायरेक्टर्स, सोनिया गाँधी, @RahulGandhi और मोतीलाल वोरा ने, इस अखबार को यंग इंडिया लिमिटेड नामक कंपनी को बेचने का निर्णय लिया।
यंग इंडिया के डायरेक्टर्स थे, सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी, ऑस्कर फेर्नाडीज़ और मोतीलाल वोरा।
★ डील यह थी कि यंग इंडिया, #नेशनल हेराल्ड के 90 करोड़ के कर्ज़ को चुकाएगी और बदले में 5000 करोड़ रुपए की अचल संपत्ति यंग इंडिया को मिलेगी।
★ इस डील को फाइनल करने के लिए नेशनल हेराल्ड के डायरेक्टर मोती लाल वोरा ने "तत्काल" यंग इंडिया के डायरेक्टर मोतीलाल वोरा से बात की, क्योंकि वह अकेले ही, दोनों ही कंपनियों के डायरेक्टर्स थे।
★कांग्रेस पार्टी ने लोन देना स्वीकार कर लिया और इसको कांग्रेस पार्टी के कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा ने पास भी कर दिया और #यंग इंडिया के डायरेक्टर मोतीलाल वोरा ने ले लिया और आगे #नेशनल हेराल्ड के डायरेक्टर मोतीलाल वोरा को दे दिया। @nsui @IYC
अभी कुछ और मज़ा बाकी था.
★अब कांग्रेस पार्टी ने एक मीटिंग और बुलाई जिसमें सोनिया,राहुल,ऑस्कर और वोरा साहब सम्मलित हुए।
★उन्होंने मिलकर यह तय किया कि #नेशनल हेराल्ड ने आज़ादी की लड़ाई में बहुत सेवा की है इसलिए उसके ऊपर 90 करोड़ के कर्ज़ को माफ़ कर दिया जाए @_HumHindustani
और इस तरह 90 करोड़ का छोटा सा कर्ज माफ़ कर दिया गया।
★और इस तरह से #यंग इंडिया जिसमें 36 प्रतिशत शेयर सोनिया और राहुल के हैं और शेष शेयर ऑस्कर और वोरा साहब के हैं, को, 5000 करोड़ की संपत्ति मिल गई.
★ जिसमें, एक 11 मंज़िल बिल्डिंग जो बहादुर शाह जफ़र मार्ग दिल्ली में और
उस बिल्डिंग के कई हिस्सों को अब पासपोर्ट ऑफिस सहित कई ऑफिसेस को किराये पर दे दिया गया है।
इसको कहते हैं राख के ढेर से महल खड़ा कर लेना।
★राहुल गाँधी और सोनिया गाँधी इसी नेशनल हेराल्ड केस में 5000 करोड़ के घोटाले में जमानत पर हैं।
यंग इंडिया सेक्शन 25 कम्पनी के रूप में रजिस्टर्ड कराई गई है।
याने-एक तरह का ट्रस्ट।इसके ट्रस्टीज को कोई लाभ नही मिलेगा।ट्रस्ट के काम धंधों और सम्पत्ति से आय,ट्रस्ट के काम मे लगते हैं।सम्पत्ति ट्रस्ट की होती है,ट्रस्टी (डायरेक्टर) की नही और ये (सेक्शन 25 कम्पनी) टैक्स फ्री होता है
-पहले नेशनल हेराल्ड कमर्शियल था। बड़ा अखबार था,कमाता था।टैक्स देता था।लम्बे समय बन्द रहने के बाद,राहुल ने इसे दूसरे ढंग से चलाने का इरादा किया - "नॉट फ़ॉर प्रॉफिट" तो नई कम्पनी,नये डायरेक्टर
- नेशनल हेराल्ड के ऑफिस वगेरह 80 साल पहले जिन जमीनों पर थे, आज वो प्राइम लोकेशन है,
कीमत व्हाट्सप पर 5000 करोड़ कही जाती है। बन्द अखबार के, बन्द ऑफिस नए कम्पनी को हस्तगत किये गए। यही वो सम्पत्ति हस्तांतरण है जिस पर तमाम बकैती है।
- नेशनल हेराल्ड पर कर्ज भी था। पुरानी आईडी खत्म करने के लिए कर्ज को भी चुकाना था। किसने दिया - कांग्रेस पार्टी ने ।
ट्रस्ट को दिया,ट्रस्ट ने कर्ज छुड़ा दिया। पार्टी चाहती तो उसी पैसे से 2-2 करोड़ के 45 जिलों में ऑफिस बना लेती, आप घण्टा नही रोक पाते, बल्कि सामने जाकर सेल्फी लेते।
सालों साल चार्जशीट बनाने को माथा खपाते रहेंगे। होगा हवायेगा कुछ नही।
यही नेशनल हेरल्ड केस है।
आपको घपला लगता है, तो वकील के पास नही, जल्द साइकेट्रिस्ट के पास पहुचें।
इलाज की जरूरत है।
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ड्रोनाचार्य :- विश्वगुरू देश के राजा ड्रोनाचार्य बहुत तिव्र बुद्धी के थे , 800 साल बाद शूद्ध रूप से एक वर्गविशेष के सत्ताधीश होने के कारण उनमें चाणक्य जैसी बुद्धी थी तो महाराणा प्रताप जैसा साहस था तो राजा हरिश्चन्द्र जैसी इमानदारी और श्रीकृष्ण से थोड़ा सा ही कम जैसा तेज़ था।
बस राम जी जैसी सौम्यता , दया , त्याग और युधिष्ठिर जी जैसा सत्य भी होता तो निश्चित रूप से वह ब्रम्हा का अवतार होते।
वह महान विद्वान थे , नाले की गैस से चाय बना लेते थे , बादलों मे लड़ाकू विमानों को रडार से छुपा लेते थे , EXTRA 2AB फार्मुले की खोज उनके द्वारा ही की गयी थी ,
बह इतने चमत्कारी थे कि उनके देश मे आई वैश्विक महामारी को उन्होंने थाली कटोरा बजवाकर भगा दिया था,ऐसे ही तमाम चमत्कारों से उनकाजीवन भरा हुआ था।शासन चलाने की उनकी पद्धति अद्भुद थी।
ढेरसारे कबूतरटाईप के ड्रोन रखे थे, ड्रोनाचार्य इतनेचतुर थे कि कबूतरों को ड्रोन की तरह प्रयोग करते थे,
सावरकर के फेवर में एक और तर्क खूब चलता है कि उन्होंने अंडमान में जो torture झेला था वो क्या आप झेल सकते है साथ ही AC कमरे वगैरह का सदाबहार तड़का साथ मे .
इसका सिंपल सा जवाब ये है कि सावरकर क्या 99 . 9999 फीसदी आदमी नही झेल सकता , आप बिलकुल सही कह रहे है ,
हम भी नहीँ सह सकते शायद आप भी नही,ऐसा बिरले लोग ही कर सकते है. इसीलिये तो हम आप न महान है,न वीर, बिल्कुल साधारण लोग है जो थोड़ा भी कष्ट नही सह सकते,मुआफी का पहला मौका मिलेगा तो मांग लेंगे.
आपका तर्क भी यही सिद्ध कर रहा कि सावरकर को भी जब यातनाएं झेलनी पड़ी तो
बिल्कुल साधारण व्यक्ति की तरह उनका REACTION था न कि किसी क्रांतिकारी जैसा कि भइया मुआफी मांगो और इस यातना से मुक्ति पाओ मुझे उनकी इस प्रतिक्रिया से जरा भी आपत्ति नही नही है,हम भी अंडमान में उनके व्यवहार में एक सामान्य आदमी ही देखते है कोई असाधारण वीर नही और
क्या आपमें से कोई इस प्लेन में आकर बैठेंगे अगर आपको यह पता चले कि पायलट की योग्यता स्टेशन पर चाय बेंचने और 35 साल भीख मांगने की रही है।
शायद नहीं, मगर आपने इस पायलट को इतने बड़े देश की जिम्मेदारी दे दी, कैसे?
माना कि आप किसी व्यक्ति से बेइंतहां मुहब्बत करते हैं,
उसके किसी अच्छे बुरे काम, नफरती या साम्प्रदायिक एजेंडे को पसंद करते हैं। मगर जब वह व्यक्ति किसी पद या जिम्मेदारी पर होता है तब किसी खास काम के लिए आप उस व्यक्ति की पढ़ाई लिखाई एक्सपेरिएंस और योग्यता कम से कम दस बार चेक करते हैं, वेरिफाई करते हैं।
चाय बेंचना या भीख माँगना बुराई नहीं है, मगर चाय वाले भीख मंगे को
अगर आप आरबीआई का गवर्नर बना दें,
अगर आप सर्जरी के लिए डॉक्टर बना दें
अगर आप उसे यूनिवर्सिटी का प्रोफेसर बना दें
अगर आप उसे इसरो का साइंटिस्ट बना दें
अगर आप उसे किसी रिसर्च सेंटर का डायरेक्टर बना दें
@RahulGandhi से उनके पिता की मौत से जुड़ा सवाल पूछा गया और उन्होंने कुछ क्षण रुककर सोचा। यह देश के साथ बड़ा बुरा हुआ। आप मौत से जुड़े सवाल पर रुककर सोचने की जुर्रत करते हैं? वह भी मौतों पर अट्ठहास करने वाले समय में? @BhootSantosh @Pooja_Tripathii @LambaAlka @SupriyaShrinate
सबसे कम उम्र के प्रधानमंत्री को मात्र 46 साल की उम्र में मार दिया गया। उस वक़्त सिर्फ 21 साल का बेटा आज अपने पिता की मौत से जुड़े सवाल पर सोचने लगता है और दार्शनिक-सा जवाब देता है, फॉरगिवनेस की बात करता है। यह तो कुफ्र हुआ।
अभी आपने देखा नहीं?
नीमच में @BJP4India नेता ने दूसरी बीजेपी नेता के विक्षिप्त और बुजुर्ग बेटे को पीट-पीट कर मार डाला। जिस कुनबे ने निंदा तक न की, उसके सत्ता में रहते आप मौत के सवाल पर रुककर सोचते हैं? यह नाकाबिले बर्दाश्त है!
हिंदुओं को डराओ, हिंदुओं को मरवाओ, हिंदुओं को खतरे में बताकर, हिंदुओं का वोट पाओ, और उस पाए वोट से निरंकुश शासन चलाओ। इस सिद्ध फार्मुले के तहत चल रही सरकार के मंसूबे 2024 चुनाव को लेकर साफ जाहिर हो रहें हैं।
हर रोज ऐसी ही घटना में नागरिकों को मारा जा रहा है ।
सवाल यह उठता है कि जब नोटबंदी से आतंक की कमर टूट गई थी, कश्मीर में धारा 370 हटाने,उसका विभाजन कर दो केंद्र शासित राज्य बनाने से घुसपैठ समाप्त होने और अमन स्थापित हो गया था तब रोज ऐसी घटनाएं क्यों हो रही है सारा प्रबंध,सारी सेना ,सारा प्रशासन केंद्र का है फिर हमले हो रहे हैं
और चुन चुन कर हिंदु मारे जा रहे हैं। ताकि उनके खतरे में होने का राग पूरे देश में अलापा जा सके और मुसलमान को टाईट रखने के लिए वोट बटोरे जा सकें।
पहले इस सीमावर्ती राज्य में सिर्फ पाकिस्तान ही घुसपैठ करता था जब से लद्दाख अलग हुआ है तब से चीन सीनाजोरी कर घुसा बैठा है और
'अंधों के गांव आया हाथी'
गांधी जी की तरह गांधी का यह कार्टून भी शायद हमेशा प्रासंगिक रहेगा। स्व. अबु अब्राहम द्वारा बनाया गया यह कार्टून 'अंधों के गांव आया हाथी' नामक जैन अनुश्रुति पर आधारित है। आज के अंधे नेता (और लोग भी) जिन्होंने कभी हाथी नहीं देखा,
गांधी रूपी हाथी के पांव को छूकर खम्बा, पूंछ को छूकर रस्सी या कान को छूकर सूप इत्यादि समझते हैं।
गांधी को इसी तरह समझा गया है। कम्युनिस्टों के लिए गांधी पूंजीपतियों का दलाल थे और पूंजीपतियों की निगाह में सर्वहारा का नायक। मुस्लिम कट्टरपंथियों के लिए वह 'हिन्दू सम्प्रदायवादी' था
और हिन्दू कट्टरपंथियों के लिए 'मुस्लिमपरस्त।' दलित चिंतकों को वह वर्ण व्यवस्था और जातिप्रथा का पोषक नजर आता है और उनके अछूतोद्धार को वे ढकोसला बताते हैं। दलितों को महज वोटबैंक मानने वाले लोग उन्हें अम्बेडकर विरोधी बताते नहीं थकते।