आज #गंगा_दशहरा है। मां गंगा का अवतरण दिवस। एक दिन वसु को गंगावतरण की कथा सुना रहा था। राजा सगर के पुत्रों की कथा। अश्वमेध यज्ञ, कपिल मुनि का शाप और फिर भगीरथ प्रयास! हरि चरणों से #गंगा का निकलना और भगवान शिव की जटाओं में उलझना। वहां से पृथ्वी पर।
वह मंत्रमुग्ध हो सुनते रहे।
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अयोध्या का इक्ष्वाकु वंश बहुत प्रतापी राजाओं से सम्बन्धित है। भगवान श्रीराम इसी वंश के महान राजा हैं। इक्ष्वाकु वंश में राजा सगर महापराक्रमी राजा हुए। वह महाराजा असित के पुत्र थे। एक बार राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ किया। इस यज्ञ में एक घोड़ा यज्ञकर्ता की सेना के आगे चलता है।
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वह अश्व जहां जहां से निर्विघ्न गुजरता है वहां का क्षेत्र यज्ञकर्ता के अधीन होता जाता है। यदि कोई पकड़ ले तो उससे द्वंद्व होता है। विजय के बाद अश्व आगे बढ़ता है अन्यथा चक्रवर्ती होने की कामना अधूरी रह जाती है। #अश्वमेध यज्ञ किसी भी राजा के पराक्रम और शौर्य का प्रतीक है।
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राजा सगर का अश्व अभी कुछ ही दूर पहुंचा था कि सेना की दृष्टि से दूर हो गया। सेना तलाश करके हार गई तो राजा सगर के पास आई। #राजा_सगर की दो रानियां थीं। केशिनी और सुमति। महर्षि भृगु ने आशीर्वाद दिया था कि केशिनी से वंश बढ़ेगा और सुमति के असंख्य उत्साही पुत्र रहेंगे।
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केशिनी से जो पुत्र हुआ उनका नाम असमंजस था। असमंजस के पुत्र थे अंशुमान। अंशुमान के दिलीप और दिलीप के पुत्र थे भगीरथ।
जब यज्ञ का अश्व बहुत खोजने पर भी नहीं मिला तो सगर ने सुमति के असंख्य पुत्र, जिनकी गिनती साठ हजार बताई जाती है, को इस कार्य में लगाया। वह अश्व की खोज में निकले।
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राजा सगर के अश्व को ईर्ष्यावश देवराज इन्द्र ने चुरा लिया था। जब इन्द्र ने देखा कि सगर के साठ हजार पुत्र दसो दिशाओं को मथ डालेंगे तो वह घबरा गए और चुपके से अश्व को #कपिल_मुनि के आश्रम में बांध दिया। कपिल मुनि घोर तपस्या में रत थे। उनका आश्रम आज के बंगाल के गंगासागर में है।
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जब सगर के साठ हजार पुत्र #गंगासागर पहुंचे तो वहां आश्रम में घोड़े को बंधा देख क्रोध से भर गए। उन्होंने कपिल मुनि को अपशब्द कहे। तब बीच में ही तपस्या छोड़कर उठे कपिल मुनि ने अपने क्रोधाग्नि से उन समस्त योद्धाओं को भस्म कर दिया। थोड़ा सा विषयांतर करते हैं।
आज गंगासागर में सुंदरवन है और दुनिया का सबसे बड़ा डेल्टा। यहां से आगे बढ़कर गंगा सागर में समाहित हो जाती हैं। यदि आपने डेल्टा की आकृति देखी है तो आप सगर के साठ हजार पुत्र के भस्म होने और तदनंतर उनके छोटे-बड़े राख के ढेर में बदल जाने से साम्य और तादात्म्य बिठा सकते हैं।
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वापस लौटते हैं।
कपिल मुनि के शाप से भस्म होने के बाद सगर शोक और चिंता में निमग्न हो गए। तब असमंजस के पुत्र अंशुमान ने सेनापति का प्रभार लिया और कपिल मुनि से क्षमा याचना कर अश्व प्राप्त किया। यज्ञ तो पूर्ण हो गया, रह गए सगर के अकाल मृत्यु प्राप्त साठ हजार पुत्र।
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अंशुमान को गरूड़ ने बताया था कि इनका उद्धार तब होगा जब #गंगावतरण होगा। गंगाजल से यह तृप्त होंगे। अंशुमान ने विकट तपस्या की और अपना जीवन होम कर दिया। तब उनके पुत्र महाराजा दिलीप ने तपस्या प्रारम्भ की। दिलीप का जीवन तप करते पूर्ण हुआ तो इस दुष्कर कार्य को #भगीरथ ने उठाया।
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एक सहस्र वर्ष तक कठोर तप करने पर ब्रह्मा प्रसन्न हुए। गंगा श्रीहरि के चरणों से निकल कर उनके कमंडल में विश्राम कर रही थीं। ब्रह्मा ने कहा कि मैं गंगा को मुक्त तो कर दूंगा किंतु आशंका है कि तीव्रगामी गंगा का वेग पृथ्वी सहन न कर पाएं और वह पाताल में चली जाएं। इसलिए आप देखें।
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ब्रह्मा ने ही भगवान शिव से सहायता मांगने की तरकीब सुझाई। अब भगीरथ हिमालय पर थे। कथा है कि भगीरथ ने एक पैर पर खड़ा होकर भगवान शिव की उपासना की। भगवान शिव ने प्रसन्न हो सहायता का वचन दिया। ब्रह्मा ने गंगा को मुक्त किया तो शिव ने अपनी जटाएं छितरा दीं। गंगा उसमें उलझ गईं।
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पुनः भगीरथ भगवान शिव के पास पहुंचे। भगवान शिव ने पूछा कि अब क्या हुआ। भगीरथ के बताने पर वह स्मित मुस्कान बिखेरकर देखते रहे। अपनी जटा जूट से एक कोर खोल दिया। गंगा अत्यन्त वेगवती हो आगे बढ़ीं।
हिमालय गंगा का उत्स है। हिमालय भगवान शिव का स्थान है। हिमालय कठोर भूमि का अंश है।
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हिमालय से आगे बढ़ी ही थीं कि मार्ग में जहनु ऋषि का आश्रम मिला। जहनु ने आश्रम बह जाने की आशंका में गंगा को पीकर आत्मसात कर लिया। अब धारा कहीं न थी। आगे चलते भगीरथ यह देख व्यग्र हो उठे। ज्ञात होने पर जहनु से प्रार्थना की। जहनु ने गंगा को अंश बनाकर निकाला। गंगा जाह्नवी हैं।
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गंगा जहनु की पुत्री कही जाती हैं। उनका एक नाम #जाह्नवी है। यहां से उनकी गति किंचित मंथर होती है। यह गंगा का मैदानी क्षेत्र है। उद्धारक, प्राणदायिनी, मोक्षकारिणी गंगा आगे बढ़ीं। कपिल मुनि के आश्रम के बाहर राख की ढेर में पड़े पुत्रों का उद्धार किया और समुद्र में लीन हुईं।
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गंगावतरण कराने वाले भगीरथ के नाम पर गंगा #भागीरथी कहलाई। आज गंगा दशहरा के दिन भगीरथ के प्रयास को याद करना महान प्रेरणा से जुड़ा हुआ है। गंगा, जिनके दर्शन मात्र से मुक्ति है, पतित पावनी हैं।
मेरा सौभाग्य है कि मैं गंगा के किनारे जन्मा, पला बढ़ा और शिक्षा दीक्षा प्राप्त की।
कानपुर के "आलम बेग" की खोपड़ी के साथ एक चिट्ठी भी दफ़्न थी। उस चिट्ठी में यह बात दर्ज है कि 32 वर्ष के न थकने वाले नौजवान को रानी विक्टोरिया के समक्ष सियालकोट में ब्रिटिश कमिश्नर हेनरी कूपर के आदेश पर तोप से उड़ा दिया गया था।
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आलम बेग 1857 की क्रांति में 46वीं रेजिमेंट बंगाल नार्थ इन्फैंट्री बटालियन का नेतृत्व कर रहे थे। रावी तट पर पकड़े गए और रानी के समक्ष तोप से उड़ा दिए गए। उनका सिर 1858 में इंग्लैण्ड ले जाया गया और दफ़ना दिया गया। एक ने यह सब ब्यौरा एक पत्र में करके खोपड़ी के भीतर रख दिया।
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वह खोपड़ी दो साल पहले मिली थी। (अमर उजाला की रिपोर्ट)
यह अंग्रेज इतने हरामी थे कि इन्होंने भारतीयों का दमन तो किया ही, इतिहास से भारी छेड़छाड़ भी की। इन्होंने इतिहास का निर्माण अपने मन मुताबिक किया। यह वह समय था जब उन्हें पुरातत्व और खुदाई का महत्त्व पता चल गया था।
निहंग सिखों का उदय दसवें गुरु गोविंद सिंह के समय में हुआ।
सिखों के नवें गुरु तेग बहादुर का औरंगजेब ने शिरोच्छेद करवा दिया था।उनका शव पहरे में रखा गया था। किन्तु सिखों का एक समुदाय उनका शीश लेकर भागा और करनाल होते हुए आनंदपुर साहिब पहुंच गया।
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जहां शिरोच्छेद किया गया, वह जामा मस्जिद, दिल्ली के पार्श्व में ही है, लाल किले के समीप। आजकल वहां शीशगंज गुरुद्वारा है। धड़ चुराकर एक प्यारा, लखी शाह वंजारा भागा और अपने घर में उनका संस्कार किया। उसने अपना घर जला डाला। जहां उनका धड़ जलाया गया, वहां रकाबगंज गुरुद्वारा है।
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गुरु तेग बहादुर को डराने के लिए पहले उनके सामने भाई मतिदास को जिंदा आरे से चीर दिया गया, उसके बाद भाई दयाला को उबलते पानी में फेंक कर मार डाला और आखिर में भाई सतीदास को ज़िंदा जला दिया गया।
नंदीग्राम प्रकरण में आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर तापसी मल्लिक पर बातें।
#नंदीग्राम से पहले 16 दिसम्बर, 2006 को कोलकाता के निकट सिंगूर में तापसी मल्लिक का पहले बलात्कार हुआ और उसके बाद उनकी हत्या हुई। उनका शव जली हुई अवस्था में खेत में मिला।
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तापसी मल्लिक हत्या और बलात्कार केस में कॉमरेड सुह्रद दत्त और देबू मलिक को दोषी पाया गया। यह दोनों कम्युनिस्ट पार्टी के नेता थे। सीपीएम ने सिंगुर में विपक्षी पार्टियों के विरोध को कुचलने की ज़िम्मेदारी सुह्रद दत्ता और उनके सहयोगी देबू मलिक को सौंपा था।
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तापसी मल्लिक नंदीग्राम आंदोलन में एक आइकन बन गई थीं। जब 14 मार्च, 2007 की रात को #नंदीग्राम में बड़े पैमाने पर नरसंहार हुआ तो अगले 36 घंटों तक शासन की शह पर उस पूरे परिक्षेत्र में नंगई चलती रही। कामरेड्स बलात्कार और लूट पाट में व्यस्त रहे।
आगामी बंगाल विधानसभा चुनाव में नंदीग्राम पुनः चर्चा के केंद्र में है। निवर्तमान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपनी परंपरागत सीट की बजाय #नंदीग्राम से चुनाव लड़ेंगी। उनके समक्ष भाजपा से सुवेंदु अधिकारी रहेंगे। सीपीआई+काग्रेस का प्रत्याशी कौन? कोई जानना भी नहीं चाहता।
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2006 में हल्दिया विकास प्राधिकरण ने #नंदीग्राम में एसईजेड की घोषणा की थी। 2007 से वहां जमीनी प्रतिरोध शुरू हुआ था। तब वहां के विधायक थे- मोहम्मद इलियास। तमलुक लोकसभा के सांसद थे- मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के लक्ष्मण सेठ। यह क्षेत्र वामपंथ का गढ़ था।
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स्वतंत्रता प्राप्ति के समय कृष्णचंद्र बेरा #नंदीग्राम के एक महत्त्वपूर्ण नेता थे। उन्होंने गांधी जी की सभा भी कराई थी। बाद में फॉरवर्ड ब्लॉक से जुड़कर नेताजी के साथ आ गए थे। महात्मा गांधी की हत्या के बाद उन्होंने नंदीग्राम में खादी ग्रामोद्योग में स्वयं को खपा दिया था।
जब विद्योत्तमा ने सभी पंडितों को हरा दिया तो अपमानित पंडितों ने निश्चित किया कि इस विदुषी का अहंकार टूटना चाहिए। विद्वान को पराजित करने के लिए सभी विद्वानों ने मंत्रणा की। परिणामस्वरूप उचित व्यक्ति की तलाश शुरू हुई।
विद्वान को मूर्ख ही हरा सकता है - यह निश्चित है।
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उचित व्यक्ति मिला। वह आलू से सोना बना सकने की तकनीक जानता था और जिस डाल पर बैठा था, उसे ही कुल्हाड़ी से काट रहा था। डाल कटती तो वह भी निश्चित ही धराशायी होता। इससे उपयुक्त व्यक्ति कौन होगा? पंडितों ने निश्चित किया। यह कालिदास थे।
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सबने कालिदास को विद्योत्तमा के सम्मुख शास्त्रार्थ हेतु प्रस्तुत किया। "मौन भी अभिव्यंजना है!" यह उक्ति तो परवर्ती है। विद्वानों ने मौन की, संकेत की अभिव्यक्ति अपने तरीके से करने का निश्चय किया।
विद्योत्तमा ने मौन के शास्त्रार्थ को स्वीकार कर लिया और पहली शास्त्रोक्ति की -