1937 में कांग्रेस पार्टी के बड़े नेताओं ने AJL की एक बड़ी कम्पनी का गठन किया। इस कम्पनी ने उस समय अंग्रेजी में नेशनल हेरल्ड, हिंदी में नवजीवन और उर्दू में कौमी आवाज तीन अखबार निकाले।
इन तीनों अखबारों का मकसद था, आजादी के लिए लड़ रहे स्वतंत्रता सेनानियों की आवाज उठाना।
इस कम्पनी के शेयरहोल्डर अलग अलग जिलों के बड़े कांग्रेसी परिवार थे।
1947 में आजादी के बाद अखबार चलता रहा और उस समय से AJL के जो भी देनदारियां थी, उसे कांग्रेस चुकाती रही।
धीरे धीरे एसोसिएट जनरल लिमिटेड पर कांग्रेस का करीब 90 करोड़ का कर्ज हो गया। यह कम्पनी रकम चुकाने में सक्षम नहीं थी। 2010 में कांग्रेस ने यंग इंडियन लिमिटेड नाम से एक नई कम्पनी का गठन कम्पनी एक्ट के सेक्शन 25 के तहत किया।
यह कम्पनियां भारत सरकार के अधीन होती है और इनसे मुनाफा नहीं कमाया जा सकता है।
कम्पनी के निदेशक तनख्वाह या वित्तीय लाभ के हकदार नहीं होते है। यंग इंडियन कम्पनी ने कांग्रेस से कहा AJL का लोन जो बकाया है वो इस नई कम्पनी को ट्रांसफर कर दे।
यंग इंडिया ने कांग्रेस को 50 लाख रुपए देकर 90 करोड़ का क़र्ज़ अपने नाम से ट्रांसफर करवा लिया। इसके बाद AJL के 90 फीसदी शेयर भी यंग इंडिया के नाम ट्रांसफर हो गए लेकिन एसोसिएट जनरल से जुड़ी सारी प्रोपर्टी AJL के पास ही रही।
इस बीच सुब्रह्मण्यम स्वामी ने कांग्रेस पर वित्तीय अनियमितताओं का एक केस दायर कर दिया, जिसमें कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी, ऑस्कर फर्नांडिस, मोतीलाल बोरा ने जमानत ले ली। स्वामी का आरोप था कि कांग्रेस ने 90 करोड़ का लोन महज 50 लाख में माफ कर दिया।
यह पैसा कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का था इसलिए पार्टी ने कार्यकर्ताओं के साथ धोखा किया है। जबकि कर्ज माफ करने का फ़ैसला कांग्रेस की कार्यसमिति ने लिया था।
इस बीच में जीडी गोयन्का ने यंग इंडिया को चैक से कर्ज दिया। कांग्रेस ने कुछ समय बाद यह कर्ज को चैक से ही वापस कर दिया। इसी तरह के दो से तीन छोटे लोन यंग इंडिया ने चैक से लिए और चैक से ही वापस कर दिए।
अब सारे सवाल व आरोप इस बात को लेकर है कि यंग इंडिया कम्पनी AJL की प्रॉपर्टी को हड़पना चाहती है। सुब्रह्मण्यम स्वामी का केस हाईकोर्ट में लम्बित है लेकिन ईडी की पूछताछ यंग इंडिया में पैसे के लेनदेन को लेकर की जा रही है।
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