एकनाथ शिंदे & कंपनी की मंशा है कि उनकी तरफ़ के बाग़ी विधायकों की संख्या देखकर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ख़ुद ही इस्तीफ़ा दे दें तो मंत्रिमंडल बरख़ास्त हो जाए और राज्यपाल BJP को सरकार बनाने का न्योता दे।नयाCM शपथ ले और राज्य की व्यवस्था भाजपा के नियंत्रण में आ जाए।फिर बहुमत साबित
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करने के दिन ही सारे MLAs गुवाहाटी से सीधे मुंबई-विधानसभा मे लाएं जाएं और काम बन जाए; लेकिन Sharad Pawar की रगों मे ख़ून से ज़्यादा राजनीति बहती है और बात गृहराज्य महाराष्ट्र की हो तो फिर तो वह रिंग मास्टर हैं! शिवसेना के 40 से ज़्यादा MLAs भले ही असम में हो; लेकिन सरकार अभी भी
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क़ायम है और राज्य का पूरा सिस्टम 'महाविकास' के हाथ में हैं। अगर CM इस्तीफ़ा नहीं देते तो मजबूरन अविश्वास प्रस्ताव दाखिल करने के लिए बाग़ी विधायकों को मुंबई में आना ही पड़ेगा और यहां आने के बाद उन विधायकों में सेंध लगाना, कुछ विधायकों का ब्रेनवॉश कर देना पवार साहब के लिए
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बड़ी बात नहीं है। शिवसेना के बाग़ी MLAs का आंकड़ा 37 से नीचे आ गया कि एकनाथ शिंदे का खेल खल्लास समझो..!
देखते हैं किसका दांव भारी पड़ता है...!
आपको समझना होगा कि आजाद भारत दरअसल आधा ही अंग्रेजो से हस्तगत हुआ था। बाकी आधा भारत जो प्रिंसली स्टेट थे,उसे कांग्रेस या कहें सरदार पटेल ने तमाम चतुर चक्रम से भारत मे मिलाया था।
कुछ को धमका कर मिलाया गया था।कुछ को तमाम वादे और ऑटोनॉमी की बात कर
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मिलाया गया।निजी शानो शौकत और ताकत के ऐसे वादे,जिसे एक सम्प्रभु लोकतांत्रिक देश मे पूरे किए जाने का सवाल ही नही उठता।
तो दुनिया को उम्मीद नही थी। लेकिन नेहरू ने अपने करिश्माई व्यक्तित्व, और एकोमोडेटिव नेचर से पहले 18 साल निकाल लिए। लोकतंत्र स्थिर हुआ। इस दौर में बहुत से रजवाड़े
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टिकट पाकर सांसद मंत्री गवर्नर हुए।
बाकी भी प्रिवीपर्स खाकर चुप रहे।
नेहरू के बाद आये शास्त्री और इंदिरा का वह कद नही था।कांग्रेस कमजोर हो रही थी। इस मौके पर,रजवाड़े इसे कैपिटुलेट करना चाहते थे।
एक कठपुतली विकल्प चाहते थे।कम्युनिस्ट पार्टी उनको प्रिफर नही थी। तो संसद में बैठे
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आपके व्हाट्सएप पर,मैसेंजर में,इंस्टाग्राम में आपके कोई जान पहचान के व्यक्ति पोस्ट डालते हैं।
बैंक स्टेटमेंट के साथ।किसी क्रिप्टो माइनिंग वाले ग्रुप में मैंने 10000 रुपये डाले और4घन्टे में 1 लाख आ गए।
आप इस व्यक्ति को अच्छी तरह से जानते होंगे। आप भी तुरन्त इससे सम्पर्क करेंगे।
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आप थोड़े ज्यादा चतुर हैं।इसलिए कहेंगे कॉल करो यार।
आपको इसके नम्बरसे कॉल आएगा(नम्बर बिल्कुल सही होगा)लेकिन बात नहीं हो पाएगी,बहुत शोर होरहा होगा या नेटवर्क का इश्यू होगा।
आपको मैसेज आएगा कि फ़ोन में कुछ प्रॉब्लम है।बताओ क्या कहना है?
आप कहेंगे(फिर हेराफेरीके राजपाल यादव स्टाइल)
मेरा भी जीवन बना दो।
वो बताएगा ठीक है लेकिन जरूरी नही 1 लाख ही मिले...हो सकता है 60000 आये या 2 लाख भी।
आप कहेंगे कोई बात नहीं।
आपने पैसे भेजे और...अब आराम कीजिये।
*** आपके जान पहचान वाले का नम्बर आएगा ( ऐसा एप्स से होगा)
दरअसल आपके इस जान पहचान वाले का अकाउंट हैक हो चुका है
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कम ही पढ़े लिखो को पता है कि इंदिरा ने जो इमरजेंसी लगाई थी,वह तीसरी बार लगी थी।
देश मे दो और बार लोकतंत्र की हत्या हो चुकी थी। करने वाले जवाहरलाल नेहरू और लालबहादुर शास्त्री थे।
जी नही!!
इमरजेंसी परफेक्टली लीगल प्रोविजन है।जिसे यूज करने का हक देश की सरकार को है।यह लोकतांत्रिक
सम्विधान का हिस्सा ही है,उसकी हत्या-वत्या कतई नही।
देश मे लगी तीसरी वाली इमरजेंसी को लोकतंत्र की हत्या इसलिए कहा जाता है कि धरने प्रदर्शन तोड़फोड़ आंदोलन की छूट बन्द करके संघियों को भितरिया दिया गया।
सिचुएशन कंट्रोल कर ली गयी।
यह पहले दो बार इमरजेंसी इम्पोज करनेसे अलग चीज हुई।
तो इसका मतलब 352 को इवोक करना लोकतंत्र की हत्या नही।
हत्या थी - राजनीतिक प्रदर्शनों पर रोक, और राजनैतिक कारणों से पॉलिटिशियन एक्टिविस्ट की किसी भी एप्रोप्रिएट कानून के तहत गिरफ्तारियां।
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आप जानते हैं कि सिद्दीकी कप्पन, उमर खालिद, तीस्ता सीतलवाड़, संजीव भट्ट...और हजारो लोग।
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एक पीढ़ी की उम्र 30 साल होती है।आजादी दौरान की पीढ़ी का समय आप 1960 तक मान सकते है।उस पीढ़ी ने आजादी की लड़ाई ,बंटवारा और हिंसा का नंगा नाच देखा। वो पीढ़ी इस उथल पुथल के दौर से दग्ध थी। अपने बच्चो को भाईचारे, एकता और धर्मनिरपेक्षता का संदेश दिया। विज्ञान, नए दौर और सहिष्णुता की
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घुट्टी दी।उसने गरीबी देखी थी,शिक्षा और परिश्रमसे गरीबी से उबरने की राहें खोजने की समझ अपने बच्चो को दी।
दूसरी पीढ़ी कोई1990-95तक समझिये।इस दौरान शिक्षित,सहिष्णु,परिश्रमी वर्ग में देश को मजबूत बनाने में समय लगाया।खाक से शुरू कर एक सामान्य मध्यम,कंफर्टेबल जीवन अपने बच्चोको दिया।
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उसे हर तकलीफ़ से बचाया।रिलेटव इज के साथ बढ़ी यह पीढ़ी,गढ़े हुए मन्दिर मस्जिद विवाद, मुम्बई, गोधरा, कश्मीर अहमदाबाद की गवाह हुई। नई सदी में इनका वक्त आया , तो दबे छिपे रूप में ही सही, कंम्यूनलिज्म दिमाग के एक हिस्से बैठा हुआ था। निजी बातचीत में "उनको" ठीक करने की बाते करता था I
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अब 20 करोड़ से नीचे का भाव नहीं है। फ़िर हांकने वाले की कीमत तो 200 करोड़ है।
यानी महाराष्ट्र का खेल 1000 करोड़ का पड़ा है। ऊपर से रैडिसन ब्लू का आज तक का बिल 1.2 करोड़ का हो चुका है।
फ्लाइट, टैक्सी, खाने और पीने, मनोरंजन का बिल अलग से।
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20 करोड़ और जोड़ लेता हूं।
बाढ़ में डूबे सिलचर में कल लाशें बह रही थीं तो सीएम बिस्वा मुंह दिखाई के लिए पहुंचे। विधायकों की शॉपिंग में खर्च 1100 करोड़ का 30% तो बाढ़ राहत से वसूल हो जाएगा।
पानी में डूबे 80% असम में लोग खाना-पानी और राशन को तरस रहे हैं। कोविड काल में
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घोटाला कर चुके सीएम से राहत की उम्मीद न करें।
बीजेपी नादान बलमा बन रही है। बिस्वा को मालूम ही नहीं कि शिवसेना विधायक असम में डेरा डाले हैं।
बीजेपी नेताओं की करीब 5000 करोड़ की घोषित संपत्ति है। भारत का भविष्य वाकई उज्ज्वल है।
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