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Jul 5 6 tweets 9 min read
सो #शर्त ये है, जो जां की #अमान चाहते हो
तो अपने लौह क़लम #क़त्लगाह में रख दो
वगरना अब के #निशाना कमंददारों का
बस एक तुम हो तो #गै़रत को राह में रख दो

ये #शर्तनामा जो देखा तो एलची से कहा
उसे #ख़बर नहीं #तारीख़ क्या सिखाती है
कि रात जब किसी ख़ुर्शीद को #शहीद करें
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तो सुबह एक नया #सूरज तराश लातीहै

तो ये #जवाब है मेरा मेरे अदु के लिए
कि मुझ को हिरसे करम है ना ख़ौफे़ ख़मयाज़ा
उसे है सतवतें शमशीर पर #घमंड बहुत
उसे शिकोह #क़लम का नहीं है अंदाजा

मेरा क़लम नहीं #किरदार उस मुहाफ़िज़ का
जो अपने #शहर को महसूर करके नाज़ करें
मेरा #क़लम नहीं का
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मेरा #क़लम नहीं का़सा किसी गदागर का
जो ग़ासिबों को कसीदों से सरफ़राज़ करें

मेरा क़लम नहीं #औजा़र उस नक़बज़न का
जो अपने घर की ही छत में #शिगाफ़ डालता है
मेरा क़लम नहीं उस दुज़्द नीम शब का रफ़ीक़
जो बेचाराग़ #घरों पर कमंद उछलता है

मेरा क़लम नहीं #तस्बीह उस मुब्बालिग़ की
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जो #बंदगी का भी हरदम #हिसाब रखता है
मेरा क़लम नहीं मीज़ान ऐसा #आदिल की
जो अपने चेहरे पर दोहरा #नकाब रखता है

मेरा क़लम तो #अमानत है मेरे लोगों की
मेरा कलम तो #अदालत मेरे #ज़मीर की है
इसीलिए तो जो लिखा तपाके जां से लिखा
तभी तो लोच कमां का #ज़बान तीर की है
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मैं कट गिरूं के सलामत रहूं यकीं है मुझे
कि ये हिसारे सितम कोई तो गिरायेगा
तमाम उम्र की इज़ा नसीबयों की #क़सम
मेरे क़लम का #सफ़र राएगा ना जाएगा

~#अहमद_फ़राज़
5
@AchryConfucious
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Jul 5
ज़िंदा क़ौम पाँच साल इंतज़ार नहीं करती- यह इस देश में लोकतंत्र के ख़िलाफ़ पहला नारा था। लोकतांत्रिक चुनाव के ख़िलाफ़ पहला फ़ासीवादी अभियान था।

यह नारा देने वाला राम मनोहर लोहिया, आज़ादी मिलने के साल 35-37 के हो गए पर आज़ादी की लड़ाई में ढेला भर फेंकने के योगदान ना देने वाले
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दीन दयाल उपाध्याय का चुनाव प्रचारक था।

उसके बाद इसी गैंग ने सेनाओं तक से सशस्त्र विद्रोह की माँग की थी। आरएसएस को अपना बाहुबल बताया उस देश के ग़द्दार जेपी ने। कहा संघ अगर फ़ासिस्ट है तो मैं भी हूँ।

इंदिरा गांधी को आपातकाल लगाना पड़ा। इनसे निपट कर हटा लिया। चुनाव हारीं।
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बुरी तरह हारीं। तख्ता पलट की कोशिश नहीं की। विपक्ष में गयीं। लड़ीं।

तथ्य पर बोलिएगा। ये सब सही है या नहीं।

अफ़सोस- हमारी तरफ़ के तमाम लोग अब भी इन लोहिया जेपी के चरणों में पड़े हुए हैं। ये टुच्चे फ़ासिस्टों से देश बचायेंगे!
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@AchryConfucious
@NiranjanTripa16
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Jul 4
हम क़िस्से नही सुनाते,हक़ीक़त बताते है

अफ़ग़ानिस्तान की उथल पुथल के समय बहुत बड़ी संख्या में अफ़ग़ान सरहद पार करके लाहौर और पंजाब के शहरों में बस गए

शुरुआत में लोगों ने इमदाद फ़रहाम कराई और अफ़ग़ान भी छोटे मोटे मेहनत मजूरीके काम करने लगे अगली पीढ़ी जवान हुई और उसकी चाल ढाल भी
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बदल गई तथा पहनावा भी पंजाबियों वाला हो गया, ज़्यादातर होटल, ट्रक और कबाड़ी के व्यवसाय में आ गए.

हमारे एक दोस्त ने राह चलते किसी से रास्ता पूछा लेकिन राहगीर का जवाब सुनने से पहले ही गेयर लगा दिया और आधा किमी बाद किसी दूसरे से दरयाफ़्त करने लगा.

हमने इसकी वजह मालूम की तो उसके
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अनुसार पहले वाले की आवाज़ से उसे मालूम हो गया कि वो अफ़ग़ानी है और दहशत गर्द नही होगा तो क्रिमिनल तो जरुर होगा !

जैसे जनाब ए आला को कपड़ों से पहचान होती थी उसे बोलने के लहजे से हो गई.

अभी मेरे कू लगता है कि हम सोचते थे कि ये फ़लानी पाल्टी का मेम्बर या हमदर्द है तो
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Jul 4
हिटलर ने1000साल का थर्ड राइक् बनाने का दम भरा था।जर्मन लोग भी यही चाहते थे।

मुसोलिनी रोमन साम्राज्य रिक्रिएट करना चाहता था।इटली के लोग भी यही चाहते थे।

लेकिन बहुत जल्द इन देशो की जनता को इन सपनो का मतलब समझ मे आ गया।जो अपने देशके मुट्ठी भर लोगो के पपेट होकर जीने को मजबूर हुए।
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हिम्मत जुटाने में वक्त लगा,लेकिन मुसोलिनी को उसके ही लोगो ने लटका दिया। हिटलर को दुनिया के तमाम देशों ने सुसाइड पर मजबूर कर दिया।
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दुनिया मे कही एग्जाम्पल नही मिलता कि फासिज्म को इलेक्टोरली हराकर बाहर किया गया हो।भारत मे भी इलेक्टोरली हराने के सारे रास्ते बंद हो चुके हैं।
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डेमोक्रेसी ऐसे ही भंवर से गुजरकर मजबूत बनती है।यह ठीक उसी तरह है जैसे कमउम्र युवा हर चीज ठोकपीट कर सही कर देने की सोचता है।फासिज्म को समर्थन एमेच्योर लोगो की ठोक पीट पसन्द नीति की वजह से होता है। जेसीबी खुद की तरफ मुड़ते ही ऐसों की अक्ल हिरन हो जाती है।

सबसे पुराने समय से जारी
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Read 6 tweets
Jul 4
पहले कही से,अचानक ज्ञानवापी शिवलिंग फव्वारा मुद्दा शुरू कर दिया जाता है ? क्यो ? अब तक वजह किसी को पता नही है ! सोशल मीडिया पर जमकर बहस कराई जाती है , मीम जारी किए जाते है..

पूरी स्क्रिप्ट को समझते जाइये,
उन्हें पता है शिव हमारे आराध्य है ,शिवलिंग का मजाक उड़ाने पे हिन्दू बहुत
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आहत महसूस करते हैं,सबके दिलों में आग लग रही है बवाल होने में जरा सी कहासुनी होने की देर है..इतना तीखापन है कि इस सब पे वाट्सप पे हमारा ग्रुप भी आपसमे लड़ रहा है!

इसी बीचमे कहीसे मोहन भागवतजी आगे आ कर मामला ठंडा कराते हैं!
"हर मस्जिद में शिवलिंग न तलाशे"कहते हैं!

और ज्ञानवापी
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मामला विलीन होने दिया जाताहै !

अब सीन क्रमांक दो

नूपर शर्मा का एक टीवी डिबेट "एक ऐसी बहस जो लाइव नही थी,उसमे एक आग लगाने वाला बयान देती है,नुपर की जिस डिबेट को प्रसारण के पूर्व ही रोका जा सकता था,बेरोकटोक सोशल मीडिया पे चलाया गया,मगर चार दिन तक कोई बवाल नही,फिर कहानीमें जुबेर
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Read 18 tweets
Jul 4
जब प्रशासन पर सरकार की पकड़ छूट जाए,जब निकम्मे नेता कुर्सी पर सिर्फ़ इसलिए चिपककर बैठे हों कि देश को राजधर्म से नहीं, धर्म के डंडे से हांकना है।

जब यही चिपकू नेता देश की हर अहम संस्था पर भ्रष्ट, नाकारा और चापलूस अफ़सर बिठा दें तो देश में अस्थिरता,अराजकता का दौर आना लाज़िमी है।
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इस अराजकता के दौर में बहुतों की हालत मैसूर के महाराजा के उस घोड़े की तरह है,जिसे महंगाई और ज़ुल्म के चाबुक से सिर्फ़ हांका जाना है।

अराजकता का असर देश की इकॉनमी पर भी पड़ा है।मोदी सरकार अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से 100लाख करोड़ का लोन लेकर बैठी है।

सरकार देश की हर संपत्ति बेच देना
चाहती है, लेकिन कोई खरीदने को तैयार नहीं है।अराजकता और मंदी में कोई पैसा क्यों लगाए?

भारत के विदेशी क़र्ज़ में करीब 2लाख करोड़ की उधारी उस अमेरिका से भी है, जिसने हमें अल्पसंख्यकों पर हो रहे ज़ुल्म पर आईना दिखाया है।

भारत का जवाब हास्यास्पद है,क्योंकि जर्मनी में जाकर लोकतंत्र
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Read 13 tweets
Jul 3
सस्तेपन का दौर है,सस्ते ही महंगे में बिक रहा है, तो महंगा भी सस्तेपन को आतुर है।कि और महंगे दाम मिल सकें।

कथन कन्फ्यूजिंग है,मगर समझ आ जायेगा जब राज्यवर्धन सिंह राठौर की शक्ल देख लेंगे।

फौजी का बेटा,खुद फौजी,अतिविशिष्ट सेवा मेडल,पद्मश्री, खेल रत्न, ओलम्पियन, सिल्वर मेडलिस्ट,
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वर्ल्ड चैंपियन,एक्स कर्नल,एमपी,मिनिस्टर।

रोल मॉडल..

और अब चवन्नी छाप ट्रोल,झूठा,दोमुंहा नेता।

यह सस्तेपन का दौर है। मूर्तिभंजन का दौर है। जिंदगी भर जिन लोगो को बड़े सम्मान और सेलेब्रिटी की निगाह से देखा, इस दौर में सबह्यूमन, रीढ़हीन केंचुए साबित हुए है।

प्रोफेशनल भांड का
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चारणपना तो लाजिम है। अनुपम खेर, अभिजीत, सोनू निगम, लता मन्गेशकर, अमिताभ बच्चन, अक्षय कुमार, सचिन तेंदुलकर जैसों की करतूतों से दिल, महज दुखता है।

लेकिन वीके सिंह और राज्यवर्धन सिंह राठौर जैसो के कारनामों से दिल टूटता है। क्या फ़ौज में इन्हें ऐसी शिक्षा मिली।
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