सोने से पहले आइये महात्मा मारीचि स्वर्ण मृग बन श्रीराम के बाण से मुक्त होने के कुछ निष्कर्षो का आकलन करलें जो आज के संदर्भ मे बहुत अनुकरणीय है!
1.मारीचि को मैने महात्मा कहा क्यों कि पूर्व मे जब विश्वामित्र यज्ञरक्षा करने रघुनाथ पधारे थे तो इसे बिना फर बाण मार श्रीराम ने सौ योजन
दूर समुद्र मे फेक दिया इसी मरीचि द्वीप को हम मारिशस नाम से जानते हैं।रामबाण का प्रभाव था कि यह दुष्ट आचरण छोड़ शिव के भजन पूजन मे व्यस्त रहने लगा।
जब रावण ने इसे सीता के अपहरण मे सहायता करने को कहा तो इसने बहुत समझाया!पर हठी रावण इसके बध को ही तैय्यार होगया।तब इसने श्रीराम के
हाथ मरना चुना।
इससे हमे सीख लेना चाहिये कि दुष्ट नीच व्यक्ति जब मीठा बोले विनम्र हो आपके सामने आये तो सावधान हो जाइये!नवनि नीच कर अति दुःख दाई।
मारीचि स्वर्ण मृग बन कर श्रीराम कुटी के सामने चरने लगा।छायासीता जी द्वारा प्रेरित अपने पीछे बाण लेकर दौड़ करआते श्रीराम कोदेख कर वह धन्य
होगया!सारे मुमुक्षु देव मानव ऋषि मुनि जिन चरणो की शरणागति के लिये जीवन भर दौड़ते है वे परब्रह्म परात्पर त्रैलोक्य मोहन प्रभु श्रीराम एक नकली स्वर्णमृग के पीछे दौड़ रहे हैं तो वह धन्य क्यों न हो!महात्मा मरीचि!
रावण ऋषिपुत्र सनातन धर्मी था पर वह राक्षस धर्म मे कनवर्ट हो गयाथा इसीसे
वह सामान्य राक्षसो से अधिक दुराचारी दुष्ट चरित्रहीन लम्पट होगया था।यह कनवर्टो की स्वभाविक परिणिति है जिसे हम सभी देख रहे हैं।अतः "निज धर्मे निधनोश्रेयः परधर्मो भयावह!"इन सबसे सदैव सुरक्षित दूरी बना के रखिये।कभी विश्वास मत कीजिये मित्रता तो कभी नही।कभी घर मे मत घुसाइये वरना मारीचि
की तरह आपके जीवन तक का अपने स्वार्थ मे उपयोग कर डालेंगे!
अब निश्चिंत हो विश्राम कीजिये और सदैव याद रखिये "जाके प्रिय न राम वैदेही!तजिये ताहि कोटि वैरी सम जद्यपि बहुत सनेही।"
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""कहानी कर्म की""
दुर्योधन ने एक अबला स्त्री को दिखा कर अपनी जंघा ठोकी थी, तो उसकी जंघा तोड़ी गयी ।
दु:शासन ने छाती ठोकी तो उसकी छाती फाड़ दी गयी ।महारथी कर्ण ने एक असहाय स्त्री के अपमान का समर्थन किया, तो श्रीकृष्ण ने असहाय दशा में ही उसका वध कराया!भीष्म ने यदि प्रतिज्ञा में
बंध कर एक स्त्री के अपमान को देखने और सहन करने का पाप किया, तो असँख्य तीरों में बिंध कर अपने पूरे कुल को एक-एक कर मरते हुए भी देखा!भारत का कोई बुजुर्ग अपने सामने अपने बच्चों को मरते देखना नहीं चाहता, पर भीष्म अपने सामने चार पीढ़ियों को मरते देखते रहे!जब-तक सब देख नहीं लिया, तब-तक
तब-तक मर भी न सके... यही उनका दण्डथा! धृतराष्ट्र का दोष था पुत्रमोह, तो सौ पुत्रों के शव को कंधा देने का दण्ड मिला उन्हें । सौ हाथियों के बराबर बल वाला धृतराष्ट्र सिवाय रोने के और कुछ नहीं कर सका!
दण्ड केवल कौरव दल कोही नहीं मिला था! दण्ड पांडवों कोभी मिला ।
द्रौपदी ने वरमाला
पुरी की जगन्नाथ यात्रा के तीनों रथों की विशेषता---🌹🌹
ओडिशा के पुरी में स्थित पवित्र चार धामों में से जगन्नाथ पुरी एक अलौकिक स्थान है। हर वर्ष आषाढ़ माह में शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को ढोल, नगाड़ों, तुरही और शंख ध्वनि के साथ भव्य जगन्नाथ यात्रा का आयोजन किया जाता है!
इस अद्भुत वअविस्मरणीय यात्राका दुनिया भरसे लोग हिस्सा बननेके लिए आतेहैं!भगवान जगन्नाथ कोउनके भाई बलभद्रऔर बहनसुभद्रा केसाथ रथयात्रा परलेजाया जाताहै,जिसे जगन्नाथ यात्राके नामसे जानाजाताहै।इस रथयात्रा मेंपूरी श्रद्धा विधि विधानके साथ बलभद्र,सुभद्राऔरभगवान जगन्नाथकी आराधनाकी जातीहै!
इसमें भव्य एवं विशाल रथोंको पुरीकी सड़कों पर निकाला जाताहै।आपको बतादें,बलभद्र के रथको ‘तालध्वज’ कहा जाताहै,जिसका रंग लालऔरहरा होताहै,और यह यात्रामें सबसे आगे चलता है। सुभद्रा के रथको ‘दर्पदलन’ या ‘पद्म रथ’ कहा जाता है जो कि मध्य में चलता है और इसका रंग काला या नीला व लाल होता है।
सेवा मे,
@मुख्यन्यायधीश उच्चतम न्यायालय
नयी दिल्ली ,भारत
विषय:कृपया दिनां 1.7.22 को मा.सूर्यकान्त और मा.जे.बी.पारदीवाला की बेंच मे नूपुर शर्मा के भारत मे जगह जगह की गयी प्राथमिकियों को एक साथ कर सुनवाई दिल्ली मेकिये जानेकी प्रार्थना लेकर गयी थीं क्योंकि कट्टरवादियों से उन्हे जान
से मारने की और बलात्कार की धमकी मिल रही थी।
प्रार्थना और यक्ष प्रश्न:-आदरणीय जज साहब आप न्याय के सर्वोच्च पद पर संविधान के अन्तर्गत मानवीय सम्मान सुरक्षा एवं जीवनकी रक्षा गुहार की अंतिम आश्रय हैं।कल माननीय जजो ने याचिका पर विचार करने से मनाकर दिया जोउनका अधिकार था।पर जब उस याचिका
पर विचार करना ही नही था तो अनर्गल न्यायिकमापदण्डो के विपरीत टिप्पड़ियों का औचित्य क्या था?क्या ये टिप्पड़िया नूपुर शर्मा की याचिका से सम्बंधित थी?या माननीय जजों के पूर्वाग्रह और विशेष धार्मिक तुष्टीकरण के किसी राजनैतिक संगठन से प्रभावित थीं?
2.याचिकाकर्ता को माननीय जजों नेअहंकारी
कांग्रेसी और कम्यूनिस्ट दोनो चाहे विधायिका मे हो!चाहे न्यायपालिका मे हो!चाहे कार्यपालिका मे हो!ऐसी ही गंदगी और अन्याय फैलाते है जैसे आज सुप्रीम कोठे के विधायी नैतिकता के विपरीत अवांछनीय टिप्पड़ियों से नूपुर शर्मा के विषय मे फैली हैं!
यदि इन अवांछित टिप्पड़ियो से प्रोत्साहित हो
कोई आतंकवादी नूपुर शर्मा को जान से मार दे (जैसी कि पहले से ही ह़ै)तो क्या ये बेलगाम टिप्पड़ीकर्ता का उत्तरदायित्व नही होगा?
आतंकवाद को प्रोत्साहन देनेवाले हेट स्पीच केवल जनता और जनप्रतिनिधि नही करते इस extrajudicial observation भी उतना ही घृणा फैलानेवाला है
यदिआप नूपुर की सुनवाई
करके उसका भी पक्ष सुनके,उस टीवी चैनल के बाइट को देखते कि किस परिस्थिति मे नूपुर ने कहा और तब निर्णय लेते,पर आपने बिना सुने ही फांसी तो नही दी पर उसकी हत्या का अपरोक्ष लाइसेंस दे दिया।क्या इन भड़काऊ टिप्पड़ियों के लिये यह सुप्रीम कोठे पर एफआइआर नही होनी चाहिये? #शर्मनाक टिप्पड़ी
ओह माय गॉड और pk पर कोर्ट में केस चला कांजी भाई और pk कोर्ट में हाजिर हुए >>
•वकील : हाँ तो आप दोनों का कहना है कि इन्सान डर के कारण मंदिर जाता है और मूर्ति पूजा गलत है।
कांजी भाई : जी बिलकुल। ईश्वर तो सभी जगह है उसको मंदिर में ढूँढने की क्या आवश्यकता है।
वकील : आप का मतलब है कि मंदिर में नहीं है।कांजी भाई : वहां भी है।
वकील : तो फिर आप लोगो को मंदिर जाना क्यों पाखंड लगता है?
कांजी भाई : हमारा मतलब है मंदिर ही क्यों जाना मूर्ति में ही क्यों?? जब सभी जगह है तो जरूरत ही क्या है पूजा करने की बस मन में ही पूजा कर लो।
वकील-'हा हा हा
कांजी भाई- इसमें हंसने की क्या बात है??
वकील दोनो को घूरते हुए आगे बड़ा और पुछा- एक बात बताइए आप पानी केसे पीते है?
'पानी कैसे पीतेहै?
ये कैसा पागलो जैसा सवाल है जज साहब?कांजी बोला'
वकील लगभग चिल्लाते हुए-मैं पूछता हूँआप पानी कैसे पीते है?कांजी भाई हडबडाते हुए -ज ज ज जी ग्लास से।