दुनिया के अन्य महाद्वीपों के लोग जब वर्षा , बादलों की गड़गड़ाहट के होने पर भयभीत होकर गुफाओं में छुप जाते थे ! जब उन्हें एग्रीकल्चर का ककहरा भी मालूम नहीं था !
उससे भी हजारों वर्ष पूर्व महर्षि पाराशर मौसम व कृषि विज्ञान पर आधारित भारतवर्ष के किसानों के मार्गदर्शन के लिए " कृषि पाराशर ” नामक ग्रंथ की रचना कर चुके थे ! पराशर एक मन्त्रद्रष्टा ऋषि , शास्त्रवेत्ता , ब्रह्मज्ञानी एवं स्मृतिकार है !
यह महर्षि वसिष्ठ के पौत्र , गोत्रप्रवर्तक , वैदिक सूक्तों के द्रष्टा और ग्रंथकार भी हैं ! पराशर शर - शय्या पर पड़े भीष्म से मिलने गये थे ! परीक्षित् के प्रायोपवेश के समय उपस्थित कई ऋषि मुनियों में वे भी थे ! वह छब्बीसवें द्वापर के व्यास थे।
वेदों मैं ब्रीहि ( धान ) , यव ( जौ ) , माण ( उड़द ) , मुदंग ( मूंग ) , गोधूम ( गेहूँ ) , और मसूर आदि अनाजों , जो यज्ञ क्रिया के प्रमुख घटक रहे हैं , का वर्णन आयुर्वेद में मिलता है
विश्व के प्राचीनतम ग्रंथ ऋग्वेद में कृषि का गौरवपूर्ण उल्लेख मिलता है- “ अक्षैर्मा दीव्यः कृषिमित् कृषस्व वित्ते रमस्व बहु मन्यमानः ”
अर्थात जुआ मत खेलो , कृषि करो और सम्मान के साथ धन पाओ ! हमारे समाज में प्रचलित जन - उक्ति कृषि कार्य की श्रेष्ठता को अभिव्यक्त करती है -'
उत्तम खेती मध्यम बान , नीच चाकरी कुक्कर निदान ! ' खेती उत्तम इसलिए है क्योंकि इस क्रिया के प्रारंभ होने से अन्न उत्पादित होने तक करोड़ों सूक्ष्म जीवियों से लेकर गाय - बैल आदि पशुओं एवं करोड़ों लोगों का पेट भरता है !
गुरुकुलों में राजा और प्रजा दोनों के पुत्र खेती करते हुए ज्ञानार्जन करते थे ! अर्थात् ज्ञान और श्रम के बीच कोई दूरी नहीं थी !
इस प्रकार ऋग्वेद एवं उत्तरवैदिक काल में आर्यों का मुख्य व्यवसाय कृषि ही था ! यजुर्वेद संहिता में मानसून का वर्णन सल्लिवात के रूप में आता है !
शतपथ ब्राह्मण में कृषि की क्रियाओं - जुताई , कटाई , में मड़ाई , का उल्लेख मिलता है ! ' कृषिपाराशर ' नामक ग्रन्थ में जल संसाधनों से सिंचाई के साधनों के सभी विवरण मिलते हैं !
तीन खंडों में लिखा गया यह लघु ग्रंथ वृष्टि ज्ञान , मेघ का प्रकार , कृषि भूमि का विभाजन ,
कृषि में काम आने वाले यंत्रों का वर्गीकरण आकार प्रकार , वर्षा जल के मापन की विधियां , हिंदी महीने पूस के महीने में वायु की गति व दिशा के आधार पर 12 महीनों की बारिश का अनुमान व मात्रा का प्रतिशत निकालने की विधि ! बीजों का रक्षण , जल रक्षण की विधियां कृषि में काम आने वाले वाहक
पशुओं की देखभाल पोषण व उनके प्रबंधन के संबंध में अमूल्य जानकारी निर्देश दिया गया है !
महर्षि पाराशर ने अपने ग्रंथ के द्वितीय खंड वृष्टि खंड में बादलों को 4 भागों में वर्गीकृत किया है ! बादलों का यह वर्गीकरण उनके आकार पैटर्न के आधार पर किया गया है
ज्ञात हो आधुनिक मौसम विज्ञानी भी कंप्यूटर मॉडल एल्गोरिदम के तहत इसी कार्य को आज कर रहे हैं ! ( 1 ) आवरत मेघ , ( 2 ) सम्रत मेघ , ( 3 ) पुष्कर मेघ , ( 4 ) द्रोण मेघ ! पहले वाला मेघ एक निश्चित स्थान में बारिश करता है दूसरा मेघ एक समान बारिश करता है तीसरे मेघ से बहुत कम वर्षा होती है
चौथे मेघ से उत्तम वर्षा होती है ! महर्षि पाराशर का मत है 2,3 दिवस पूर्व बारिश का पूर्वानुमान कोई लाभकारी नहीं होता किसान के लिए ! पूरे वर्ष के लिए बारिश की मात्रा के लिए ज्ञात करने के लिए एक विधि विकसित की ! इसके तहत उन्होंने वर्णन किया है कि पूस महीने के 30 दिन को 60 घंटे के
12 भागो में विभक्त कर प्रत्येक दिन के सुबह शाम के 1:00 1 घंटे में वायु की गति व दिशा के आधार पर पूरे वर्ष के लिए वर्षा की मात्रा वह किन किन तिथियों में वर्षा होगी उसका विश्लेषण किया जा सकता है ! मित्रों आपको जानकर अपार हर्ष होगा वर्ष 1966 में काशी के राजा स्वर्गीय
डॉक्टर विभूति नारायण सिंह के निर्देश पर एक प्रयोग किया गया था जिसमें महर्षि पाराशर कि इस विधि को एकदम सटीक पाया गया था !
महर्षि पाराशर ने कृषि भूमि को तीन भागों में विभाजित किया अनूप कृषि भूमि , जांगल कृषि भूमि विकट भूमि ! पहली से दूसरी दूसरी से तीसरी भूमि को कृषि के लिए
सर्वश्रेष्ठ माना गया ! कृषि खंड में उन्होंने बताया किस महीने में बीजों का संग्रह करना चाहिए बीजों की रक्षा कैसे करनी चाहिए बीजों का रोपण किस विधि से होना चाहिए ! कृषि कार्य में खगोलीय घटनाओं नक्षत्र आदि के प्रभाव का भी उन्होंने विस्तृत वर्णन किया है !
सचमुच अतीत का भारत विश्व गुरु था ! जहां जान विज्ञान कला कौशल की भरमार थी ! कोई ऐसा क्षेत्र है जहां हमारे महर्षि - मुनियों ने अमूल्य ग्रंथों की रचना ना की हो !
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प्रश्न = १९५८ में चिड़िया (Sparrow) की वजह से चीन में किस तरह की भयानक तबाही हुई थी ?
चीन में शुरू हुआ था गौरैया मारने का अभियान
बात 1958 की है, जब माओ जेडोंग ने एक अभियान शुरू किया था, जिसे Four Pests Campaign का नाम दिया था. इस अभियान के तहत चार पेस्ट को मारने का फैसला किया
गया था. पहला था मच्छर, दूसरा मक्खी, तीसरा चूहा और चौथी थी मासूम गौरैया. सोच कर भी अजीब लगता है कि आखिर उस मासूम गौरैया से इंसानों को ऐसा क्या डर था, जिसके चलते उसे मारने का अभियान चलाने की नौबत आ गई. मानते हैं कि मच्छरों ने मलेरिया फैलाया, मक्खियों ने हैजा और चूहों ने प्लेग,
तो इन सबका सफाया तो समझ आता है लेकिन गौरैया का क्या दोष था? मासूम कही जाने वाली गौरैया को माओ जेडोंग ने ये कहकर मारने का फरमान सुना दिया था कि वह लोगों के अनाज खा जाती है. कहा गया कि गौरैया किसानों की मेहनत बेकार कर देती है और सारा अनाज खा जाती है. मच्छर, मक्खी और चूहे तो
वैकुण्ठ अथवा बैकुंठ का वास्तविक अर्थ है वो स्थान जहां कुंठा अर्थात निष्क्रियता, अकर्मण्यता, निराशा, हताशा, आलस्य और दरिद्रता ये कुछ ना हो। अर्थात वैकुण्ठ धाम ऐसा स्थान है जहां कर्महीनता एवं निष्क्रियता नहीं है।
पुराणों के अनुसार ब्रह्मलोक में ब्रह्मदेव, कैलाश पर महादेव एवं बैकुंठ में भगवान विष्णु बसते हैं। श्रीकृष्ण के अवतरण के बाद बैकुंठ को गोलोक भी कहा जाता है। इस लोक में लोग अजर एवं अमर होते हैं श्री रामानुजम कहते हैं कि वैकुण्ठ सर्वोत्तम धाम है जिससे ऊपर कुछ भी शेष नहीं रहता।
इसकी स्थिति सत्यलोक से २६२००००० (दो करोड़ बासठ लाख) योजन (२०९६००००० किलोमीटर) ऊपर बताई गयी है। बैकुंठ के मुख्यद्वार की रक्षा भगवान विष्णु के दो प्रमुख पार्षद जय-विजय करते हैं। इन्ही जय-विजय को सनत्कुमारों द्वारा श्राप मिला था।
प्रश्न = क्या यज्ञोपवीतम् और अन्य धार्मिक चिह्न केवल ब्राह्मणों तक सीमित थे ?
मैं कुछ कहूँगा नहीं, केवल दिखाउंगा। कुछ औपनिवेशिक-काल के चित्र जिसमें आम भारतीय (अधिकांश हिन्दू) अपने-अपने व्यवसाय में लिप्त हैं।
आप जानते ही होंगे कि कुम्हार, जीनसाज, स्वर्णकार, चर्मकार आदि व्यवसायों में लिप्त अधिकांश व्यक्ति नीचा कहलाने वाली जातियों से आते थे। केवल आधुनिक शब्दावली में उन्हें 'नीचा' कहते हैं।
साक्ष्य बताते हैं कि सभी उपरोक्त समुदाय बड़े गर्व से अपनी हिंदू पहचान धारण और प्रदर्शित करते थे।
ऊपर चित्र में आप एक कुम्हार को यज्ञोपवीत पहने और पूरे शरीर में धार्मिक चिह्नों को धारण किये देख सकते हैं -
प्रश्न = प्रत्येक मन्वन्तर काल में कौन-कौन से सप्तऋषि रहे हैं ?
देखिए आकाश में 7 तारों का एक मंडल नजर आता है। उन्हें सप्तर्षियों का मंडल कहा जाता है। इसके अतिरिक्त सप्तर्षि से उन 7 तारों का बोध होता है, जो ध्रुव तारे की परिक्रमा करते हैं उक्त मंडल के तारों के नाम भारत के महान 7
संतों के आधार पर ही रखे गए हैं। वेदों में उक्त मंडल की स्थिति, गति, दूरी और विस्तार की विस्तृत चर्चा मिलती है।
अर्थात : 1. ब्रह्मर्षि, 2. देवर्षि, 3. महर्षि, 4. परमर्षि, 5. काण्डर्षि, 6. श्रुतर्षि और 7. राजर्षि-
ये 7 प्रकार के ऋषि होते हैं इसलिए इन्हें सप्तर्षि कहते हैं।
भारतीय ऋषियों और मुनियों ने ही इस धरती पर धर्म, समाज, नगर, ज्ञान, विज्ञान, खगोल, ज्योतिष, वास्तु, योग आदि
जन्म से ही क्यों होते हैं ब्राह्मण, कर्म से क्यों नहीं हो सकते ?
देखिए जो जन्म से ब्राह्मण होते हैं , वे कर्म से ही ब्राह्मण हुए होते हैं । किन्तु कर्म का सिद्धान्त न जानने से तथाकथित बुद्धिजीवी लोग भ्रमित हो गये हैं ।
देखो ऐसे समझो -
हम जो भी पाप या पुण्य कर्म करते हैं , वे कर्म एक बीज की भॉति होता है ।
वो बीज समय के गर्भ में संचित हो जाता है और फिर हमें ही फल बनकर मिलता है।
ये है प्रकृति का नियम ।
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जो कर्म हम अभी वर्तमान् काल में कर रहे हैं , उसे कहते हैं क्रियमाण कर्म ।
श्री विष्णु पुराण ( चतुर्युगानुसार भिन्न - भिन्न व्यासोंके नाम तथा ब्रह्मज्ञानके माहात्म्यका वर्णन ) ( अंश 3 / अध्याय 3 )
श्रीमैत्रेयजी बोले- हे भगवन् ! आपके कथनसे मैं यह जान गया कि किस प्रकार यह सम्पूर्ण जगत् विष्णुरूप है , विष्णुमें ही स्थित है , विष्णुसे ही उत्पन्न हुआ है
तथा विष्णुसे अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है ॥ अब मैं यह सुनना चाहता हूँ कि भगवान्ने वेदव्यासरूपसे युग - युगमें किस प्रकार वेदोंका विभाग किया हे महामुने ! हे भगवन् ! जिस - जिस युगमें जो - जो वेदव्यास हुए उनका तथा वेदोंके सम्पूर्ण शाखा - भेदोंका आप मुझसे वर्णन कीजिये ॥
श्रीपराशरजी बोले- हे मैत्रेय ! वेदरूप वृक्षके सहस्रों शाखा - भेद हैं , उनका विस्तारसे वर्णन करनेमें तो कोई भी समर्थ नहीं है , अत : संक्षेपसे सुनो हे महामुने ! प्रत्येक द्वापरयुगमें भगवान् विष्णु व्यासरूपसे अवतीर्ण होते हैं और संसारके कल्याणके लिये एक वेदके अनेक भेद कर देते हैं ॥