कुछ लोग बड़ा इतराते हैं कि हम यहा लंगर लगाते हम वहां लंगर लगाते हैं ऐसे लोगों को एक बार हिंदुओं के अमरनाथ तीर्थ यात्रा पर या माता चिंतपूर्णी के मेले पर जरूर जाना चाहिए उनका सारा हंकार टूट जाएगा।
तस्लीमा नसरीन को सत्य घटनाओं पर आधारित जिस 'लज्जा' उपन्यास के कारण अपने वतन से निर्वासित होना पड़ा, उसका यह अंश जरूर पढ़ें, और फिर CAA पर अपनी राय तय करें...
बेटियों के बलात्कारियों से जब माँ ने कहा "अब्दुल अली, एक-एक करके करो,,, नहीं तो वो मर जाएंगी "।
यह सच्ची घटना घटित हुई थी 8 अक्टूबर 2001 को बांग्लादेश में।
अनिल चंद्र और उनका परिवार 2 बेटियों 14 वर्षीय पूर्णिमा व 6 वर्षीय छोटी बेटी के साथ बांग्लादेश के सिराजगंज में रहता था। उनके पास जीने, खाने और रहने के लिए पर्याप्त जमीन थी।
बस एक गलती उनसे हो गयी, और ये गलती थी कि एक हिंदू होकर 14 साल व 6 साल की बेटी के साथ बांग्लादेश में रहना। एक क़ाफिर के पास इतनी जमीन कैसे रह सकती है..? यही सवाल था बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री खालिद ज़िया के पार्टी से सम्बंधित कुछ उन्मादी लोगों का।
क्या आप जानते हैं "30A" का हिन्दी में क्या मतलब होता है?
अधिक जानने के लिए देर न करें...
30A संविधान में निहित एक कानून है
जब नेहरू ने इस कानून को संविधान में शामिल करने की कोशिश की तो बाबा साहेब आंबेडकर ने इसका कड़ा विरोध किया।
बाबा साहेब आंबेडकर ने कहा, "यह कानून हिंदुओं के साथ विश्वासघात है, इसलिए अगर यह पशु कानून संविधान में लाया गया तो मैं कैबिनेट और कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दूंगा... इसके खिलाफ...
आखिरकार .....
बाबा साहेब आंबेडकर की इच्छा के आगे घुटने टेकने पड़े नेहरू...
लेकिन दुर्भाग्य से...
पता नहीं.. इस घटना के बाद कुछ ही महीनों में बाबा साहेब आंबेडकर की अचानक मौत कैसे हो गई...?????
अंबेडकर की मृत्यु के बाद नेहरू ने इस कानून को संविधान में शामिल किया।
1/4 - प्रश्न यह नहीं है कि ताजमहल किसका है। वह आज भी देश का है और कल भी देश का ही रहेगा।
प्रश्न यह है कि इसका सही इतिहास क्या है? प्रश्न यह है कि यह झूठ हमसे किसने और क्यों बोला? प्रश्न यह है कि हमें झूठा इतिहास पढ़ाने वाले लोगों ने और क्या क्या झूठ बोले हैं और ये झूठे लोग आज भी
2/4- हमारे शिक्षण संस्थानों में क्या कर रहे हैं?
हमें सच जानना है और अपने इतिहास का सच जानना हमारा अधिकार है। अगर यह सच है तो यह पढ़ाओ स्कूलों में कि ताजमहल पहले राजा मानसिंह का महल था जिसे शाहजहां ने छीना और बाद में वर्षों तक रोमिला थापर और इरफान हबीब जैसे कम्युनिस्टों ने उसे
3/4 - मुगल आर्किटेक्चर और प्यार की निशानी बताया। ताजमहल भारत में इस्लामिक आक्रांताओं के आतंक का और कम्युनिस्ट इतिहासकारों के झूठ का प्रतीक है। ताजमहल भारत में इतिहास के साथ हुए बलात्कार का प्रतीक है। और इतिहास न्याय मांगने आपके दरवाजे पर खड़ा है मी लॉर्ड...
एक आदमी शोरूम में जाता है और सेल्समेन से पूछता है - भाई ये छोटी टीवी कितने की है.. वो बोलता है जाओ भाई साब ये आपके काम की नही है।
...आदमी को बड़ा गुस्सा आता है।
अगले दिन सूट-बूट पहनकर जाता है और भाव पूछता है।
...वो फिर मना कर देता है।
आदमी उसे अब ईगो पर ले लेता है।
अगले दिन साड़ी पहन बिंदी लाली लगा औरत बन कर जाता है और भाव पूछता है
...वो उसे देख हँसता है और फिर मना कर देता है।
अब उस इंसान का पारा गरम हो जाता है
अगले दिन बुर्का पहनकर जाता है और फिर भाव पूछता है।
...सेल्समेन बोलता है - तुम फिर आ गए, मना किया था न तुमको
आदमी बड़े आश्चर्य से पूचता है - आज तो शक्ल तक न देखी, फिर कैसे पहचान लिया ?
सेल्समेन हँसते हुए बोलता है -आप इतने दिनों से जिस छोटी टीवी का भाव पूछ रहे है, दरअसल वो "माइक्रोवेव ओवन है" ...
""एक पंडित जिसने अपने साथ हुए अन्याय के लिए 80 लोगों को हूरो के पास पहुंचाया।""
तासीर मोहम्मद रसूख वाले आदमी थे। मजहब में उनकी चर्चा थी
जलसा हो या मज़लिस, हर जगह उनकी धाक होती थी।
पैसे वाले भी थे। इकलौते बेटे का निकाह था।
पूरा मजमा गया था बारात में
नब्बे के दशक की कहानी है।
तब बरात या तो पैदल या तो साइकिल से जाती थी!
रसूख वालों की बारातें बसों में जाया करती थी....
बारात भिंड से चलकर मुरैना आई थी...
भाईजान का निकाह था।
बिल्कुल "अज़ीम ओ शान शहंशाह" मरहबा वाला माहौल था..
तो मुर्ग, मुसल्लम और सालन में कोई कमी न थी!!!
अब मियां, भाई के निकाह में दही-चूरा तो चलेगा नहीं।
दुर्भाग्यवश उस बरात में एक "पंडित" जी भी शामिल थे। जनेऊधारी। टीका धारी।
पंडित जी जो नॉनवेज खाना तो दूर, उसकी महक भी नहीं लिए होंगे जीवन में कभी...
वनवास के दौरान माता सीता जी को प्यास लगी, तभी श्रीरामजी ने चारों ओर देखा, तो उनको दूर-दूर तक जंगल ही जंगल दिख रहा था।
कुदरत से प्रार्थना की ~ हे वन देवता आसपास जहाँ कहीं पानी हो, वहाँ जाने का मार्ग कृपा कर सुझाईय। तभी वहाँ एक मयूर ने आकर श्रीरामजी से कहा कि आगे थोड़ी
दूर पर एक जलाशय है। चलिए मैं आपका मार्ग पथ प्रदर्शक बनता हूँ, किंतु मार्ग में हमारी भूल चूक होने की संभावना है।
श्रीरामजी ने पूछा ~ वह क्यों ?
तब मयूर ने उत्तर दिया कि~मैं उड़ता हुआ जाऊंगा और आप चलते हुए आएंगे, इसलिए मार्ग में मैं अपना एक-एक पंख बिखेरता हुआ जाऊंगा। उस के सहारे
आप जलाशय तक पहुँच ही जाओगे।
यहां पर एक बात स्पष्ट कि
मयूर के पंख, एक विशेष समय एवं एक विशेष ऋतु में ही बिखरते हैं।
अगर वह अपनी इच्छा विरुद्ध पंखों को बिखेरेगा, तो उसकी मृत्यु हो जाती है। और वही हुआ। अंत में जब मयूर अपनी अंतिम सांस ले रहा होता है, तब उसने मन में ही कहा कि वह