केरल में मलयाली मेगा मॉल की एक प्रसिद्ध शृंखला है, जो केरल में बहुत लोकप्रिय है और कर्नाटक में फैल रही है।
इस मॉल का नाम लुलु (Lulu) है। इस मॉल के मालिक का नाम #युसुफ है। यह कन्नूर, कासरगोड, कोझीकोड और मलप्पुरम आदि में ऐसे मॉल स्थापित नहीं करना
चाहता है, क्योंकि वहाँ मु_सलमान बहुसंख्यक हैं,
किन्तु यह एर्नाकुलम, तिरुवनन्तपुरम या किसी अन्य क्षेत्र में मॉल खोलना चाहता है जहाँ काफिर बहुसंख्यक हैं।
इसका पहला कारण यह है कि मु_सलमान बहुल क्षेत्रों में यदि वह अपना मॉल खोलेगा तो मु_सलमानों द्वारा चलाई जा रही छोटी छोटी दुकानों
को हानि होगी। यह उन क्षेत्रों में अपना मॉल स्थापित करना चाहता है, जहाँ काफिर बहुसंख्यक हैं ताकि काफिरों के छोटे व्यवसाय नष्ट हो जायें।
इसका दूसरा कारण यह है कि वह एक मॉल में 20,000 कर्मचारियों की भर्ती करता है। इनमें से 15,000 मलप्पुरम के मु_सलमान युवा होते हैं और 5000 काफिर
महिलायें होती हैं।
इस प्रकार 15,000 मु_सलमान पुरुष , 5000 युवा काफिर लड़कियों के साथ बातचीत करते हैं। इस तरह से #लव_जिहाद भी जोरों पर चल रहा है। उनमें से अधिकांश लड़कियाँ और उनके परिवार वाले चुप हैं, क्योंकि विरोध करने पर उपर्युक्त लड़कियों की नौकरी को खतरा है।
इसका तीसरा कारण यह है कि ऐसा करने से 15,000 वफादार मु_सलमान युवाओं को एक परिवार के रूप में काफिरों की भूमि पर प्रवास करने का अवसर मिलता है।
कम से कम एक विधानसभा क्षेत्र के उम्मीदवार की जीत का निर्धारण करने के लिए 30,000 लोग पर्याप्त होते हैं। इसलिए लुलु मेगा मॉल्स सदा काफिर
बहुल क्षेत्रों में ही बनाये जाते हैं। इसके लिए इसका मालिक वैश्विक स्तर पर आतंकी फंडिंग के लिए कुख्यात अरब देश कतर से पैसे जुटा रहा है।
उपर्युक्त प्रकार का मूक मॉल G-हाद इस मॉल के बहिष्कार से ही समाप्त होगा। लुलु मॉल का मालिक युसूफ है और इस मॉल के लिए पैसा, तालिबान के लिए सबसे
अधिक सहायक देश कतर से आ रहा है। कतर लम्बे समय से G-हादियों का समर्थन भी करता आ रहा है। इसलिए हिंदुओं के लिए अच्छा होगा कि वे रिलायंस, सेंट्रल, बिग बाजार और मॉल ऑफ जॉय का समर्थन करें और उन्हें प्रोत्साहित करें।
एडापल्ली में लुलु के आगमन के कुछ ही वर्षों के बाद,
वहाँ व्यापार करने वाले हिंदुओं के लगभग 50 छोटे व्यवसाय बन्द हो गये और वहाँ कई नये होटल, जूस सेंटर, बैग की दुकानें और ऑप्टिकल दुकानें खुल गईं थीं, जिनमें से लगभग सभी के मालिक मु_सलमान थे।
देखिये कि कैसे किसी क्षेत्र की अर्थव्यवस्था बदल दी गई। इसका एक उदाहरण, अब एडापल्ली से
पुकट्टुपदी तक के क्षेत्र में देखा जा सकता है। त्रिक्काकारा नगर निगम में हुए परिवर्तन को सभी स्पष्ट रूप से देख सकते थे।
यूपी के लखनऊ शहर में भी लुलु मॉल खुल गया है, अत: वहाँ भी सावधानी की आवश्यकता है।
अतः “Be Hindu, Buy Hindu, Employee Hindu”..!!
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एक मुस्लिम लेखिका द्वारा समस्त हिंदू समाज के गालों पर इस लेख के माध्यम से ऐसा थप्पड़ मारा गया है कि...
आपकी विवाहित महिलाओं ने माथे पर पल्लू तो छोड़िये, साड़ी पहनना तक छोड़ दिया ... किसने रोका है उन्हें?
तिलक बिंदी तो आपकी पहचान हुआ करती थी न ... कोरा मस्तक और सुने कपाल को
तो आप अशुभ, अमंगल का और शोकाकुल होने का चिह्न मानते थे न ... आपने घर से निकलने से पहले तिलक लगाना तो छोड़ा ही, आपकी महिलाओं ने भी आधुनिकता और फैशन के चक्कर में और फारवर्ड दिखने की होड़ में माथे पर बिंदी लगाना क्यों छोड़ दिया?
आप लोगो ने नामकरण, विवाह, सगाई जैसे
संस्कारों को दिखावे की लज्जा विहीन फूहड़ रस्मों में और जन्म दिवस, वर्षगांठ जैसे अवसरों को बर्थ-डे और एनिवर्सरी फंक्शंस में बदल दिया तो क्या यह हमारी त्रुटि है?
हमारे यहां बच्चा जब चलना सीखता है तो बाप की उंगलियां पकड़ कर इबादत के लिए जाता है और जीवन भर इबादत को अपना
इस देश में लगभग 700-800 वर्ष तक मुसलमान होना एक प्रिविलेज रहा है।
यह फ़ायदा धीरे धीरे अगले 25 वर्ष में बदलकर घाटे का सौदा होता जाएगा।
आप जहांगीरपूरी के घटना भर से इस परिवर्तन को देखना बंद मत करिए।
मुसलमान यह मानकर चलता है की गुंडागर्दी, दंगा और क़ब्ज़ेबाज़ी उसका
साधारण जन्मसिद्ध अधिकार है।
हिंदू भी 10-15 वर्ष पूर्व तक यह मानकर चलता था।
अब संक्रमण काल है।
इस्लाम के जिस भार से हिंदुत्व का स्प्रिंग दबा हुआ था मोदी ने आकर उसको एक एक कर के हटा दिया है।
जो भी परिवर्तन आप देख रहे हैं वह सब मोदीजनित राजनीतिक परिवर्तन है।
राम मंदिर, काशी विश्वनाथ, धारा 370, राष्ट्रीय सुरक्षा, स्वतंत्र विदेश नीति, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, उत्तराखंड, आसाम से लेकर पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में हिंदुवादी सरकारों की वापसी उस क्रांति के बड़े बिंदु हैं।
अजान के बदले हनुमान चालीसा, रामनवमी पर जुलूसों का संचालन,
बटवारे में कलकत्ता भारत से अलग हो जाता यदि महावीर गोपाल पाठ (मुखर्जी ) न होते
जिन्ना ने अपने डायरेक्ट एक्शन डे के लिए कोलकाता (कलकत्ता) को चुना क्योंकि वह चाहते थे कि कोलकाता पाकिस्तान में हो। कोलकाता उस समय भारत का एक प्रमुख व्यापारिक शहर था, और जिन्ना कोलकाता को खोना
नहीं चाहते थे!
कोलकाता को हिंदू मुक्त बनाने का मिशन सुहरावर्दी को दिया गया था, जो बंगाल के मुख्यमंत्री थे, और जिन्ना के प्रति वफादार थे।
उस समय 1946 में कलकत्ता में 64% हिंदू और 33% मुसलमान थे।
सुहरावर्दी ने 16 अगस्त को अपनी योजना को अंजाम देना शुरू किया - उसके द्वारा
एक हड़ताल की घोषणा की गई और सभी मुसलमानों ने अपनी दुकानें बंद कर दीं और मस्सिद में इकट्ठा हो गए। रमजान का शुक्रवार और 18वां दिन था। और नमाज के बाद हिंदुओं को कुचलने लगी मुस्लिम भीड़!
और जैसा कि सुहरावर्दी को उम्मीद थी, हिंदुओं ने कोई प्रतिरोध नहीं दिखाया, और आसानी से मुस्लिम
26 जुलाई 2008 को जब कुछ न्यूज़ एजेंसियों और पत्रकारों को एक मेल आया जो अनजान जगह से भेजा गया था तब उन्होंने इसे मजाक समझा और पढ़ने की भी जहमत नहीं उठाई।मेल में लिखा गया था कि हम नरेंद्र मोदी को बता देंगे की उसकी औकात क्या है ।भेजने वाले की जगह लिखा था IM ......
मगर शाम होते होते कहर बरप चुका था। अहमदाबाद में लगातार 20 बम धमाके हुए सीरियल ब्लास्ट ....एक के बाद एक ....70 मिनट के फासले में सब पूरी तरह प्लानिंग के साथ ... परफेक्ट प्लानिंग के साथ । सबसे हैरत की बात है कि पहली बार सूचना देकर ब्लास्ट किए गए। आतंकवादी जानते थे कि बाज़ार में
बम विस्फोट होने के बाद घायलों को अस्पताल ले जाया जाएगा । अतः उन्होंने उस इलाके के अस्पताल में पहले से दो कारों में विस्फोटक सामग्री जमा कर रखा था । जैसे ही घायलों को लेकर एम्बुलेंस, टेंपो,कार ,बस वहां पहुंचे और घायलों को स्ट्रेचर पर लाद कर अंदर ले जाया जाने लगा ....
नेता तो बहुत हैं पर उनके मन में हिंदुओं के साम्राज्य जैसा कोई लक्ष्य नहीं, कोई महत्वाकांक्षा नहीं; इसलिए हिंदु नेताओं को सेकुलरिज्म की चादर ओढ़कर हिंदुओं के रक्त की प्यासी कौम से भाईचारा निभाने में भी कोई लज्जा नहीं आती!
सत्ता का जो तंत्र अंग्रेज स्थापित कर गए,
मात्र वे उसे ढोना चाहते हैं, उसपर बैठकर उसे भोगना चाहते हैं, यही हिंदु नेताओं की महत्वाकांक्षा है!
जबकि कम्युनिस्टों, मुसलमानों और ईसाईयों का स्पष्ट राजनैतिक लक्ष्य है। कम्युनिस्ट साम्यवादी शासन वाला भारत चाहते हैं, मुसलमान शरीयत कानून वाला इस्लामिक भारत चाहते हैं और ईसाई
इंडोनेशिया के पूर्व मुस्लिम राष्ट्रपति सुकर्णो की बेटी ने हिंदू धर्म अपनाया
इंडोनेशिया में चर्चा है कि खत्म हो जाएगा इस्लाम धर्म और क्या 500 साल पुरानी भविष्यवाणी सच हो जाएगी
इंडोनेशिया के पूर्व राष्ट्रपति सुकर्णो की बेटी ने हिंदू धर्म अपना लिया है । इंडोनेशिया के
पहले राष्ट्रपति सुकर्णो को इंडोनेशिया में राष्ट्रपिता के जैसा दर्जा हासिल है । सुकर्णो नाम तो संस्कृत भाषा से मिलता जुलता है लेकिन वो एक मुसलमान थे ।
इंडोनेशिया में इस्लाम ने आक्रमण के माध्यम से... तलवार के जरिए अपनी जड़ें जमा लीं और 99 प्रतिशत आबादी को
इस्लाम में कन्वर्ट करवा लिया लेकिन इसके बाद भी वहां पर अरब कल्चर की जड़ें नहीं जम पाईं यही वजह है कि आज भी वहां लोगों के नाम संस्कृत भाषा से मिलते जुलते हैं
सुकुमावती सुकर्णोपुत्री ने इंडोनेशिया के बाली द्वीप में पूरे धार्मिक रीति रिवाज से घर वापसी कर ली है और इस घटना को