प्रश्न = हिंदू धर्म के अनुसार ब्रह्मांड की आयु क्या है ?
नासा के जेम्स वेब टेलिस्कोप से कैरिना नेबुला (क्षीरमार्ग आकाशगंगा का एक क्षेत्र) की तस्वीर ली गई हैं। क्या इसे देखकर ऐसा प्रतीत नही होता की कोई अलौकिक व्यक्ति चिरनिद्रा में लीन हो ?
नासा ने इस निहारिका को एच पी लवक्राफ्ट के सम्मान में "मिस्टिक माउंटेन" नाम दिया हैं।
यह चित्र गर्भोदकशायी विष्णु का है जैसा कि वेदों में वर्णित है: योग निद्रा में विष्णु।
क्या आपको भी वही दिखा जो मुझे दिखाई दिया ?
वेदों के अनुसार विष्णु के तीन रूप हैं:
महा विष्णु
गर्भोदकशायी विष्णु
क्षीरोदकशायी विष्णु
महा विष्णु के साँस छोड़ने से उनके शरीर के अनेक छिद्रों से असीमित संख्या में ब्रह्मांड फैलते (एक्सपेंशन) हैं और इनमें से प्रत्येक ब्रह्मांड में महा विष्णु स्वयं को गर्भोदकशायी विष्णु के रूप में अवतरित करते हैं।
भगवद गीता: अध्याय 8, श्लोक 20
परस्तस्तव्य भावोऽन्योऽक्तोव्यक्त्सनातन: |
य: स सर्वेषु भूतेषु नचित्त न विन्स्यति ||
अर्थात = इस प्रकट और अव्यक्त रचना से परे एक और अव्यक्त शाश्वत आयाम है। जब अन्य सभी नष्ट हो जाते हैं तब भी यह क्षेत्र समाप्त नहीं होता है।
महा विष्णु अनंत काल का प्रतिनिधित्व करते हैं जो हमारे ब्रह्मांड से परे है जिसका ना जन्म हैं ना मृत्यु है जो शाश्वत सनातन है ! हमारे जैसे कई ब्रह्मांड विष्णु में मौजूद हैं। वेद कहते हैं कि हजारों ब्रह्म नष्ट हुए हैं ! दूसरे शब्दों में यह पहली बार नहीं है जब ब्रह्मांड बनाया गया है
वह अव्यक्त आयाम सर्वोच्च लक्ष्य है और उस तक पहुंचने पर कोई भी इस नश्वर ब्रह्मांड में कभी नहीं लौटता है। वही विष्णु का परमधाम है। जब महा विष्णु श्वास लेते हैं तो ये
सभी अनंत ब्रह्मांड उनके शरीर के छिद्रों में सोंख लिए जाते हैं अर्थात नष्ट हो जाते हैं। फिर जब वह साँस छोड़ते हैं तो अनंत ब्रह्मांडों का निर्माण होता है और ये प्रक्रिया निरंतर जारी रहती है। महा विष्णु के एक साँस छोड़ने और साँस लेने के बीच का समय हजारों खरब वर्ष है
महा विष्णु प्रत्येक ब्रह्मांड में गर्भोदकशायी विष्णु के रूप में प्रवेश करते हैं। प्रत्येक ब्रह्मांड में एक ब्रम्हा हैं जो गर्भोदकशायी विष्णु की नाभि से निकलने वाले कमल से पैदा हुए हैं। ब्रम्हा जी ने ग्रह प्रणालियों का निर्माण किया और उनका आकार विभिन्न ब्रह्मांडों में भिन्न है।
ब्रम्हा जी के 4 सिर, 8 सिर, 16 सिर होते है। खरबों सिर वाले ब्रह्मा भी हैं। प्रत्येक ब्रह्मांड का आकार और जटिलता उस ब्रह्मांड के ब्रम्हा जी के सिर की संख्या पर निर्भर करती है। हमारे ब्रह्मांड के ब्रम्हा जी चार सिरों वाले हैं। महा विष्णु शाश्वत विविधता का अवतार हैं जो बिना
किसी शुरुआत या अंत के हमेशा के लिए मौजूद हैं। ब्रह्मा हमारे अस्थायी भौतिक ब्रह्मांड की पहचान है।
अर्थात = ब्रह्मा के दिन के आगमन पर सभी जीवित प्राणी
अव्यक्त स्रोत से उत्पन्न होते हैं। ब्रह्म के रात में सभी देहधारी प्राणी फिर से अपने अव्यक्त स्रोत में विलीन हो जाते हैं। ब्रह्मा द्वारा हमारे ब्रह्मांड का प्रतिनिधित्व किया गया। यह ब्रह्मांड एक स्थायी ब्रह्मांड नहीं बल्कि अस्थायी है। ब्रह्मा 100 साल तक जीवित रहते हैं।
और फिर नष्ट हो जाते हैं और फिर एक नए ब्रह्मांड (ब्रह्मा) का जन्म होता है। तो वेदों के अनुसार हमारा ब्रह्मांड 100 साल तक जीवित रहता है।
भगवद गीता: अध्याय 8, श्लोक 19
भूतभ्रम: स एवायं भूत्वा प्रलीयते |
रात्र्यागमेऽवस: पार्थ प्रभवत्यहरागमे ||
ब्रह्मा के दिन के आगमन के साथ कई प्राणी जन्म लेते हैं और ब्रह्मांडीय रात के आगमन पर पुन: अवशोषित हो जाते हैं फिर अगले ब्रह्मांडीय दिन के आगमन पर स्वचालित रूप से फिर से प्रकट होते हैं ब्रह्मा सौ साल तक जीवित रहते हैं। वेद कहते हैं और हम ब्रह्मा के 51 वें वर्ष के पहले दिन में हैं।
वेद के अनुसार दिन में ब्रह्मा जीवन की रचना में व्यस्त रहते हैं और रात के समय उनके द्वारा रचित सारा जीवन उसी में लीन हो जाता है ! हम केवल ब्रह्मा के इस दिन के लिए हैं जो उनके 51वें वर्ष का पहला दिन है के लिए ब्रह्मांड का हिस्सा हैं।
ब्रह्मा के प्रत्येक दिन और रात के योग को कल्प कहा जाता है। और यह अपने आप में बहुत बड़ी संख्या है !!
ब्रह्म की काल गणना
360 मानव दिवस = एक दिव्य दिवस
30 दिव्य दिवस = 1 दिव्य मास
12 दिव्य मास = 1 दिव्य वर्ष
दिव्य जीवन काल = 100 दिव्य वर्ष = 36000 मानव वर्ष
विष्णु पुराण के अनुसार काल-गणना विभाग, विष्णु पुराण भाग १, तॄतीय अध्याय :
युग (उचित)+युग-संध्या (सुबह)+युग-संध्यामसा (शाम)
2 अयन (छः मास अवधि) = 360 मानव वर्ष = एक दिव्य वर्ष
4,000 + 400 + 400 = 4,800 दिव्य वर्ष = 1 कॄत युग = 1728,000 मानव वर्ष
3,000 + 300 + 300 = 3,600 दिव्य वर्ष = 1 त्रेता युग =1296000 मानव वर्ष
2,000 + 200 + 200 = 2,400 दिव्य वर्ष = 1 द्वापर युग = 864000 मानव वर्ष
1,000 + 100 + 100 = 1,200 दिव्य वर्ष = 1 कलि युग = 432000 मानव वर्ष
4800+3600+2400+1200 =12,000 दिव्य वर्ष = 4 युग = 1 महायुग (दिव्य युग) = 432,000+864,000+1,728,000+1,296,000=4320000 मानव वर्ष।
12000 दिव्य वर्ष = 360 x 12000= 4320000 मानव वर्ष।
1 महायुग = 4320000 मानव वर्ष।
एक कल्प ब्रह्मा के एक दिन और एक रात से मिलकर बनता है।
एक दिन में 14 मन्वन्तर होते हैं। हम ब्रह्म के दिन के सातवें मन्वन्तर में हैं। प्रत्येक मन्वन्तर 71 महायुग से मिलकर बना है। हम वेदों के अनुसार इस मन्वन्तर के 28वें महायुग में हैं एक महायुग 4 युगों का संग्रह है। महा का अर्थ है विशाल या बहुत बड़ा।
4 युग सत्य युग (जिसे कृत युग भी कहा जाता है), त्रेता युग, द्वापर युग, कलियुग हैं हम अपने वर्तमान महायुग के कलियुग में हैं, वेद कहते हैं।
चार युगों का लंबाई और धर्म का 4:3:2:1 अनुपात बताया गया हैं। सत्य युग अपने महायुग के 40% तक रहता है। यह परमात्मा का युग
जहां मनुष्यों को अस्तित्व के लिए किसी भौतिक साधन की आवश्यकता नहीं होती है और वे भगवान के सीधे संपर्क में होते हैं। त्रेता युग अपने महायुग के 30% तक रहता है। जिस युग में बुरे कर्म दिखाई देने लगते हैं फिर भी बहुत कुछ सत्यनिष्ठ रहता है। वास्तव में इस युग का 3/4 अच्छाई है।
द्वापर युग अपने महायुग के 20% तक रहता है। द्वापर का मतलब है जहां लगभग बराबर मात्रा में अच्छे और बुरे होते हैं। कलियुग अपने महायुग के 10% तक रहता है। कलि का अर्थ है संस्कृत में अंधेरा। कोई आश्चर्य नहीं कि हम इस युग में हैं। अब अंतत: हम उस समय के पैमाने पर पहुंच गए हैं
जिसे हम अपने वर्षों से जोड़ सकते हैं। कलयुग 4320,000 वर्ष का 10%
1 कलियुग = 432000 सौर वर्ष!
एक कलियुग की लंबाई एक युग की होती है।
एक महायुग में युग होते हैं।
4 सतयुग : 3 त्रेता युग : 2 द्वापर :1 कलियुग
तो,
एक महायुग = कलियुग का 10 गुना = 4,320,000 सौर वर्ष।
भगवद गीता अध्याय 8 श्लोक 17
सहस्रयुगपर्यन्तमहर्यद्ब्रह्मणो विदु
रात्रिं युगसहस्रान्तां तेऽहोरात्रविदो जना
ब्रह्मा कल्प का एक दिन चार युगों महायुग के एक हजार चक्रों तक रहता है और उसकी रात भी उतनी ही अवधि तक फैली रहती है इसे जानने वाले दिन-रात की सच्चाई को समझते हैं। आगे पढ़िए👇
प्रश्न = जब गीता का सार सभी के लिए था तो अर्जुन को उपदेश देते समय श्रीकृष्ण ने पूरी सृष्ठि को कुछ छणों के लिए क्यों रोक दिया था ?
बिल्कुल नहीं। गीता का ज्ञान सिर्फ अर्जुन के लिए था और हमेशा अर्जुन का ही रहेगा। अर्जुन के अलावा गीता किसी को नहीं मिली।
भगवान ने भी गीता में यही कहा है कि
"हे अर्जुन। न तो ये ज्ञान तेरे सिवा किसी को मिला है और न ही कभी मिलेगा। क्योंकि तू ही मेरा सबसे प्रिय है। मेरे इस विराट रूप के दर्शन न तो तुझसे पहले किसी को हुए है और न ही कभी होंगे।"
तो फिर गीता हमारे किस काम की? जब अर्जुन प्रिय था और वही रहेगा तो हम क्यों गीता समझे। जब भगवान ने कहा है कि अर्जुन के अलावा विराट रूप के दर्शन और कोई नहीं कर सकता तो फिर हमारे किस काम कि है गीता। ये तो अर्जुन के काम ही तो रही।
आज 24 जुलाई को कामिका एकादशी है आइए कामिक एकादशी को पढ़े। 🌹
कामिका एकादशी कथा 🚩
एक बार नारदजी ब्रह्माजी से कामिका एकादशी की महिमा के बारे में प्रशन किया , ब्रह्माजीने कहा- नारद ! सुनो- मैं सम्पूर्ण लोकोंके हितकी इच्छासे तुम्हारे प्रश्नका उत्तर दे रहा हूँ ।
श्रावणमासमें जो कृष्णपक्ष की एकादशी होती है , उसका नाम ' कामिका ' है ; उसके स्मरणमात्रसे वाजपेय पक्षका फल मिलता है । उस दिन श्रीधर , हरि , विष्णु माधव और मधुसूदन आदि नामोंसे भगवान का पूजन करना चाहिये । भगवान् श्रीकृष्णके पूजनसे जो फल मिलता है , वह गंगा , काशी , नैमिषारण्य तथा
पुष्कर क्षेत्र में भी सुलभ नहीं है । अतः ' कामिका ' सब पापों को हरनेवाली है ; मानवों को इसका व्रत अवश्य करना चाहिये । यह स्वर्गलोक तथा महान् पुण्यफल प्रदान करनेवाली है । जो मनुष्य श्रद्धाके साथ इसका माहात्म्य श्रवण करता है , वह सब पापोंसे मुक्त हो तथा श्रीविष्णुलोक में जाता है ।
प्रश्न = क्या आपको लगता है कि सफलता के लिए भाग्य महत्वपूर्ण है ?
जो भी व्यक्ति इसका मर्म समझ गया, समझ लीजिए कि वह ईश्वर का नज़दीकी बन चुका है। इसके दो स्टेप हैं।
1-पहला स्टेप—वहाँ पहुँचने के लिए वर्षों के अवलोकन के बाद दो बातें समझ में आएँगी।
पहली यह कि यदि भाग्य (डेस्टिनी/प्रारब्ध) है तो उसे प्राप्त करने के प्रयास होने लगते हैं। अगर किसी के भाग्य में टेनिस का चैम्पियन बनना लिखा है तो आप देखेंगे की वह कम आयु से ही कई घंटे प्रैक्टिस कर रहा है।
दूसरी ये कि जब कोई रोज़ाना घंटों प्रैक्टिस कर रहा है और कुछ छोटे टूर्नामेंट्स जीत रहा है तो समझ जाइए कि उसके चैम्पियन बनने की प्रबल सम्भावना है, मतलब उसका ऐसा भाग्य है।
स्कन्ध पुराण अवन्ति खण्ड लिङ्ग माहात्म्य के 77 वें अध्याय में गन्धर्वराज पुष्पदंत के प्रादुर्भाव की कथा स्पष्ट लिखि हुई है ।
प्राचीन काल में शिनि नामक एक अत्यंत ही धर्मात्मा ब्राह्मण हुआ करते थे , वे अयोनिज ब्राह्मण थे । उनकी कोई संतान नहीं थी । संतान प्राप्ति के लिऐ वे भगवान शिव का कठोर तप करने लगे उनके तप से देवता गण क्षुब्ध हो उठे , नदियाँ सूखने लगी सम्पूर्ण पर्वत हिलने लगे ,
इस पर भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उन्हे पुत्र प्राप्ति का वरदान दे दिया । अपने वरदान को पूर्ण करने के लिऐ भगवान शिव ने अपने समस्त गणों को बुलाकर कहा कि तुममे से कौन पृथ्वी पर जाकर मेरे संकल्प को पूरा करेगा । शिव सानिध्य छोड़कर कोई भी गण पृथ्वी पर जाने को तैयार नहीं था
प्रश्न = क्या कर्म व कर्मफल का सिद्धांत एक अंधविश्वास है? भारत में लोग इसको कितना मानते हैं ?
जब अर्जुन गुरु द्रोण के गुरुकुल में दिन-रात परिश्रम कर रहा था तब उसका लक्ष्य धनुर्विद्या में सर्वश्रेष्ठ बनना था।
नकारात्मक लोग तो ये भी पूछ सकते थे कि सर्वश्रेष्ठ सिद्ध होकर भी क्या हो जाएगा?
वर्षों बाद जब लाक्षागृह से बचकर पांडव छिप कर रह रहे थे तब अचानक से द्रौपदी स्वयंवर की घोषणा हुई। उधर शर्त ऐसी निकली जो सिर्फ श्रेष्ठ धनुर्धर ही पूर्ण कर सकता था।
पहले अर्जुन को लगा ये प्रतियोगिता जीतकर
वो खुद को सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर सिद्ध कर देगा फिर जब उसने द्रौपदी को देखा तो उसको लगा कि इस विश्वसुंदरी से विवाह करने मिलेगा फिर उसको समझ आया कि द्रौपदी से विवाह के बाद वो पांचालों के दामाद बन जाएंगे ,