लोलार्क कुंड...काशी के भदैनी मोहल्ले में स्थित है ये पौराणिक कुंड।
मान्यता है कि यहां स्नान और लोलार्केश्वर महादेव के दर्शन मात्र से निःसंतान दंपतियों को संतान प्राप्ति होती है। थोड़ा और गहरे उतरें तो पता चलता है कि इसके लिए एक विशिष्ट तिथि भी नियत है,
भाद्रपद मास की षष्ठी तिथि...जानकार बताते हैं कि इस दिन सूर्य की रोशनी में एक अलग प्रकार का कंपन होता है। इसे लोलन कहते हैं और यही लोलार्क कुंड या लोलार्केश्वर महादेव की महिमा है...मान्यताएं और भी हैं, कहते हैं कि यहां दर्शन भर से भी महादेव दंपतियों को उनका अभीष्ट देते हैं।
कहते हैं कि सदियों पहले यहां एक बड़ा उल्कापिंड गिरा था, जिससे इस कुंड का निर्माण हुआ था। इस वक़्त लोगों को लगा था कि सूर्य का टुकड़ा टूट कर यहां आ गिरा है। कालांतर में महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने कुंड का सुंदरीकरण कराया और इसे वह स्वरूप मिला जिसमें यह अब नज़र आता है।
काशी खंड, शिवपुराण, विष्णु पुराण समेत तमाम सनातनी धर्मग्रंथों में इसका उल्लेख और प्रमाण है। केदारखंड का यह तीर्थ काशी के लखी मेलों में से एक, लोलरक छठ का आयोजन स्थल भी है।
स्नान के साथ यहां एक सब्जी कुंड को समर्पित की जाती है, जिसका दोबारा जन्म भर सेवन नहीं करना होता हैं। इस पुत्रेष्टि यज्ञ के पूर्ण होने पर देवकृपा के लिए आभार अर्पित करने लोग दोबारा भी यहां आते हैं!!
अष्ट -शंकरुद्घोष -(१) श्री आद्य शंकराचार्य इस कलिकाल में सनातन हिन्दू धर्म के सर्वोच्च तथा प्रामाणिक जगद्गुरु हैं - ये धारणा प्रत्येक हिन्दू के हृदय मे सुदृढ हो !
(२) श्री आद्य शंकराचार्य ने जो कहा है उसी के अनुकूल किसी भी वर्त्तमान संन्यासी अथवा अन्य धर्मोपदेशक का कथन मान्य है
तद्विपरीत नही - ये धारणा प्रत्येक हिन्दू के हृदय मे सुदृढ हो !
(३) श्री आद्य शंकराचार्य का विरचित शांकर भाष्य ही सनातन धर्म का यथार्थ अभिप्राय व्यक्तकरता है , यह भाष्य सनातन वैदिक धर्म का प्रामाणिक सार -सर्वस्व है - ये धारणा प्रत्येक हिन्दू के हृदय मे सुदृढ हो !
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(४) श्री आद्य शंकराचार्य के विरचित साहित्य का एक -एक वाक्य सनातन हिन्दू धर्म का सम्पोषक अमृतरस है - ये धारणा प्रत्येक हिन्दू के हृदय मे सुदृढ हो !
सनत्कुमारों द्वारा भागवत सप्ताह व उसकी विधि
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सनत्कुमारों ने भागवत कथा श्रवण की विधि बताते हुए कहते हैं कि मुहूर्त निकालना चाहिए, तैयारी करनी चाहिए, लोगों को आमंत्रण देना चाहिए।
बोलना चाहिए कि यहाँ कथा होने वाली है, आप अवश्य आइये।
श्रोता-वक्ता दोनों को भक्तिपूर्वक, श्रद्धापूर्वक आना चाहिए। वक्ता को बड़ी श्रद्धा से कथा कहनी चाहिए। और इसका ध्यान रखना चाहिए कि श्रवण में कोई बाधा न पड़ जाए।
इसलिए इतना अधिक भोजन नहीं करना चाहिए कि बैठ ही न सकें।
तो नियमपूर्वक, भली प्रकार से कथा सुनने और कहने से बड़ा आनन्द आता है।
इस प्रकार भागवत कथा की विधि बताने के बाद पूरी भागवत कथा वहाँ पर बतायी गयी।
कथा की समाप्ति पर शुकदेव जी साक्षात् वहाँ पधारे।
सोलह वर्ष के शुकदेव जी हैं। उनके प्रवेश करते ही सब-के-सब लोग खड़े हो गये।