एक ट्रेन द्रुत गति से दौड़ रही थी। ट्रेन अंग्रेजों से भरी हुई थी। उसी ट्रेन के एक डिब्बे में अंग्रेजों के साथ एक भारतीय भी बैठा हुआ था।
डिब्बा अंग्रेजों से खचाखच भरा हुआ था। वे सभी उस भारतीय का मजाक उड़ाते जा रहे थे। कोई
कह रहा था, देखो कौन नमूना ट्रेन में बैठ गया, तो कोई उनकी वेश-भूषा देखकर उन्हें गंवार कहकर हँस रहा था।कोई तो इतने गुस्से में था कि ट्रेन को कोसकर चिल्ला रहा था, एक भारतीय को ट्रेन मे चढ़ने क्यों दिया ? इसे डिब्बे से उतारो।
किँतु उस धोती-कुर्ता, काला कोट एवं सिर पर पगड़ी पहने
शख्स पर इसका कोई प्रभाव नही पड़ा।वहशांत गम्भीर भाव लिये बैठा था, मानो किसी उधेड़-बुन मे लगा हो।
ट्रेन द्रुत गति से दौड़े जा रही थी औऱ अंग्रेजों का उस भारतीय का उपहास, अपमान भी उसी गति से जारी था।किन्तु यकायक वह शख्स सीट से उठा और जोर सेचिल्लाया "ट्रेन रोको"।कोई कुछ समझ पाता उसके
पूर्व ही उसने ट्रेन की जंजीर खींच दी।ट्रेन रुक गईं।
अब तो जैसे अंग्रेजों का गुस्सा फूट पड़ा।सभी उसको गालियां दे रहे थे।गंवार, जाहिल जितने भी शब्द शब्दकोश मे थे, बौछार कर रहे थे।किंतु वह शख्स गम्भीर मुद्रा में शांत खड़ा था। मानो उसपर किसी की बात का कोई असर न पड़ रहा हो।
उसकी चुप्पी अंग्रेजों का गुस्सा और बढा रही थी।ट्रेन का गार्ड दौड़ा-दौड़ा आया. कड़क आवाज में पूछा, "किसने ट्रेन रोकी"।
कोई अंग्रेज बोलता उसके पहले ही, वह शख्स बोल उठा:- "मैंने रोकी श्रीमान"।
पागल हो क्या ? पहली बार ट्रेन में बैठे हो ? तुम्हें पता है, अकारण ट्रेन रोकना अपराध है,"
गार्ड गुस्से से बोला।
हाँ श्रीमान ! ज्ञात है किंतु मैं ट्रेन न रोकता तो सैकड़ो लोगो की जान चली जाती।
उस शख्स की बात सुनकर सब जोर-जोर से हंसने लगे। किँतु उसने बिना विचलित हुये, पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा:- यहाँ से करीब एक फरलाँग की दूरी पर पटरी टूटी हुई हैं।आप चाहे तो चलकर देख
सकते हैं।
गार्ड के साथ वह शख्स और कुछ अंग्रेज सवारी भी साथ चल दी। रास्ते भर भी अंग्रेज उस पर फब्तियां कसने मे कोई कोर-कसर नही रख रहे थे।
किँतु सबकी आँखें उस वक्त फ़टी की फटी रह गई जब वाक़ई , बताई गई दूरी के आस-पास पटरी टूटी हुई थी।नट-बोल्ट खुले हुए
थे।अब गार्ड सहित वे सभी चेहरे जो उस भारतीय को गंवार, जाहिल, पागल कह रहे थे।वे उसकी और कौतूहलवश देखने लगे, मानो पूछ रहे हो आपको ये सब इतनी दूरी से कैसे पता चला ??..
गार्ड ने पूछा:- तुम्हें कैसे पता चला , पटरी टूटी हुई हैं ??.
उसने कहा:- श्रीमान लोग ट्रेन में
अपने-अपने कार्यो मे व्यस्त थे।उस वक्त मेरा ध्यान ट्रेन की गति पर केंद्रित था। ट्रेन स्वाभाविक गति से चल रही थी। किन्तु अचानक पटरी की कम्पन से उसकी गति में परिवर्तन महसूस हुआ।ऐसा तब होता है, जब कुछ दूरी पर पटरी टूटी हुई हो।अतः मैंने बिना क्षण गंवाए, ट्रेन रोकने हेतु जंजीर खींच दी।
गार्ड औऱ वहाँ खड़े अंग्रेज दंग रह गये. गार्ड ने पूछा, इतना बारीक तकनीकी ज्ञान ! आप कोई साधारण व्यक्ति नही लगते।अपना परिचय दीजिये।
एक सेठ जी बहुत ही दयालु थे। धर्म-कर्म में यकीन करते थे। उनके पास जो भी व्यक्ति उधार माँगने आता वे उसे मना नहीं करते थे। सेठ जी मुनीम को बुलाते और जो उधार माँगने वाला व्यक्ति होता उससे पूछते कि "भाई ! तुम उधार कब लौटाओगे ? इस जन्म में या फिर अगले जन्म में ?"
जो लोग ईमानदार होते वो कहते -सेठ जी ! हम तो इसी जन्म में आपका कर्ज़ चुकता कर देंगे।" और कुछ लोग जो ज्यादा चालक व बेईमान होते वे कहते - "सेठ जी ! हम आपका कर्ज़ अगले जन्म में उतारेंगे।" और अपनी चालाकी पर वे मन ही मन खुश होते कि "क्या मूर्ख सेठ है! अगले जन्म में उधार वापसी की उम्मीद
लगाए बैठा है. "
ऐसे लोग मुनीम से पहले ही कह देते कि वो अपना कर्ज़ अगले जन्म में लौटाएंगे और मुनीम भी कभी किसी से कुछ पूछता नहीं था। जो जैसा कह देता मुनीम वैसा ही बही में लिख लेता।
एक दिन एक चोर भी सेठ जी के पास उधार माँगने पहुँचा। उसे भी
*एक पिता ने अपनी बेटी की सगाई करवाई,*
*लड़का बड़े अच्छे घर से था
तो पिता बहुत खुश हुए।
*लड़के ओर लड़के के माता पिता का स्वभाव
बड़ा अच्छा था..*
*तो पिता के सिर से बड़ा बोझ उतर गया।
*एक दिन शादी से पहले
लड़के वालो ने लड़की के पिता को खाने पे बुलाया।*
पिता की तबीयत ठीक नहीं थी फिर भी वह ना न कह सके।
लड़के वालो ने बड़े ही आदर सत्कार से उनका स्वागत किया।
फ़िर लडकी के पिता के लिए चाय आई.
शुगर कि वजह से लडकी के पिता को चीनी वाली चाय से दुर रहने को कहा गया था।
लेकिन लड़की के होने वाली ससुराल घर में थे तो चुप रह कर चाय ले ली.
चाय कि पहली चुस्की लेते ही वो चौंक से गये,चाय में चीनी बिल्कुल ही नहीं थी..और इलायची भी डली हुई थी।
वो सोच मे पड़ गये कि ये लोग भी हमारी जैसी ही चाय पीते हैं।दोपहर में खाना खाया वो भी बिल्कुल उनके घर जैसा,दोपहर में आराम करने के लिए दो तकिये पतली चादर।उठते ही सोंफ का पानी....
क्या भगवान हमारे द्वारा चढ़ाया गया भोग खाते हैं ?
यदि खाते हैं, तो वह वस्तु समाप्त क्यों नहीं हो जाती ?
और यदि नहीं खाते हैं, तो भोग लगाने का क्या लाभ ?
एक लड़के ने पाठ के बीच में अपने गुरु से यह प्रश्न किया।
गुरु ने तत्काल कोई उत्तर नहीं दिया।
वे पाठ पढ़ाते रहे
उस दिन उन्होंने पाठ के अन्त में एक श्लोक पढ़ाया:
पाठ पूरा होने के बाद गुरु ने शिष्यों से कहा कि वे पुस्तक देखकर श्लोक कंठस्थ कर लें।
एक घंटे बाद गुरु ने प्रश्न करने
वाले शिष्य से पूछा कि उसे श्लोककंठस्थ हुआ कि नहीं ? उस शिष्य ने पूरा श्लोक शुद्ध-शुद्ध गुरु को सुना दिया।
फिर भी गुरु ने सिर 'नहीं' में हिलाया, तो शिष्य ने कहा कि" वे चाहें, तो पुस्तक देख लें; श्लोक बिल्कुल शुद्ध है।”
साभार डाक्टर परनेरकर :*
*हिन्दू कौन है, क्या आप जानते हैं, नहीं जानते हैं तो जो मैने पढा़ उसे पढे़ं और अगर, कोई त्रुटि हो तो अवगत कराये।*
*"हिन्दू" शब्द की खोज -*
*"हीनं दुष्यति इति हिन्दूः से हुई है।”*
*अर्थात: जो अज्ञानता और हीनता का त्याग करे, उसे हिन्दू कहते हैं ।*
' हिन्दू ' शब्द, करोड़ों वर्ष प्राचीन, संस्कृत शब्द से है !*
यदि संस्कृत के इस शब्द का सन्धि विछेदन करें तो पायेंगे ....
*हीन + दू = हीन भावना + से दूर*
*अर्थात : जो हीन भावना या दुर्भावना से दूर रहे, मुक्त रहे, वो हिन्दू है !*
हमें बार - बार, सदा झूठ ही
बतलाया जाता है कि *हिन्दू* शब्द मुगलों ने हमें दिया , जो " सिंधु " से " *हिन्दू* " हुआ l *हिन्दू* को गुमराह किया जा रहा है।
*हिन्दू शब्द की वेद से ही उत्पत्ति है !*
*जानिए , कहाँ से आया हिन्दू शब्द और कैसे हुई इसकी उत्पत्ति ?*
पति एक दरगाह पर माथा टेककर घर लौटा,
तो पत्नी ने.. बगैर नहाए घर में घुसने नहीं दिया ।
बोली : जब अपने खुद के बाप को शमशान में जलाकर आये थे, तब तो खूब रगड़ रगड़ के नहाये थे।
अब किसी की लाश पर मत्था टेककर आ रहे हो, अब नहीं नहाओगे?पति: अरी बावरी, वो तो समाधी है।
पत्नी: समाधि ! उसको जलाया कब ?
जलावेगा तभी तो समाधी बनेगी।
उसमें तो अभी लाश ही पड़ी है।
पति: अरे, वो तो देवता है।
पत्नी: तो तुम्हारे पिता क्या राक्षस थे ?
पति: अरी मुझे तो.. दोस्त अब्दुल ले गया था। अगर नहीं जाऊँगा तो उसे बुरा नहीं लगेगा
पत्नी: तो उस अब्दुल को.. सामने वाले हनुमान जी के मन्दिर में मत्था टेकवाने ले आना। कल मंगलवार भी है।पति: वो तो कभी नहीं आवेगा मत्था टेकने।
ला तू पानी की बाल्टी दे।
पत्नी: तो कान पकड़ के 10 दंड बैठक और लगाओ, और सौगंध लो कि.. आगे से किसी की मजार पर नहीं जाओगे !
रात का समय था । घर के सभी लोग आँगन में जुटे थे । रामसेवक जी भारी मन से कुर्सी से उठे और घर की दीवारों को निहारने लगे ।
"क्या सोच रहे हैं चाचाजी ? आलीशान महल बनवाऊँगा यहाँ !" रामसेवक जी के भतीजे नीरव ने उन्हें टोकते हुए कहा. लेकिन इस घर में क्या कमी है ?
मेरे और भैया के पसीने से सींचागया अरमानों का महल है ये, और तुम कहते हो कि इस घर को तोड़कर नया घर बनायेंगे । आखिर इसकी जरूरत ही क्या है ?
और तुम्हारे पास पैसे की कमी नहीं है दस महल बनवाओ, पर मैं इसको बनवाने के लिए अपने हिस्से के पैसे कहाँ से दे पाऊँगा ।
रामसेवक जी ने चिंतित होते हुए कहा ।
"लेकिन हमारे बारे में भी तो कुछ सोचिए चाचाजी । शहर में हमारा एक रुतबा है और गाँव में यह पुराना-सा घर ! "नीरव ने अपने ऐश्वर्य का दम्भ भरते हुए कहा ।
अब रामसेवक जी की पत्नी से न रहा गया । बोलीं "रुतबे की बात