सृष्टि के आरम्भ में चावल खाने से स्त्रियों में योनि और पुरुषों में शिश्न उत्पन्न हुआ (1/10)

मनुष्योत्पत्ति कैसे हुई? इस बारे में बौद्ध धम्म के दीर्घनिकाय में लिखा है -

जब प्रलय के बाद पुनः सृष्टि होती है तो आभास्वर लोक से सत्व (प्राणी विशेष) धरती पर आते हैं।

#Alien #नमोबुद्धाय सृष्टि के आरम्भ में चावल खा...
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वे उस समय न स्त्री होते हैं और न ही पुरुष होते हैं। वे मनोमय, प्रीतिभक्ष, शुभचारी होते हैं।

दोस्तों बौद्ध विज्ञान बता रहा है कि मनुष्योत्पत्ति धरती पर दूसरे लोक (आभास्वार लोक) से आये हुए प्राणियों के द्वारा हुई थी। अर्थात् एलियनों से उत्पत्ति का सिद्धांत एसिंयट एलियन
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(हिस्ट्री टीवी) से बहुत पहले ही बौद्धों ने दे दिया था। यहां बौद्ध मत का यह सिद्धांत विकासवाद के भी पूर्णतः विपरीत है। जबकि नास्तिक लोग विकासवाद को पूर्णतः सत्य मानते हैं। अब नास्तिकों को अन्य धर्मों की तरह बौद्ध धम्म को भी विज्ञान के मामले में गप्प मान लेना चाहिए।
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इसके आगे मनुष्योत्पत्ति के रहस्य से पर्दा उठाते हुए बौद्ध ग्रंथ दीर्घनिकाय में लिखा है -

अर्थात् जो दूसरे लोक के प्राणी सत्व थे, वे धरती पर धान खाने लगे। ये धान भी बडी चमत्कारी थी कि शाम को लाओ और सुबह अपने आप पककर तैयार हो जाती थी। वे उस अकृष्ट पच धान को खाने लगे। सृष्टि के आरम्भ में चावल खा...
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उसे खाने से उनके शरीर में विकार होने लगे। इससे उनके वर्णों में भी विकार आया। फिर उनमें स्त्रियों के स्त्रीलिंग अर्थात् योनि और पुरुषों में पुल्लिंग अर्थात् शिश्न उत्पन्न हो गये। फिर उनमें आपस में मैथुन शुरु हो गया। जब दो सत्व (एलियन) मैथुन करते थे तो
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अन्य सत्व उन पर धूल, गोबर फैंकते थे। इस तरह सत्व छुप छुपकर मैथुन करने लगे और गांवों व निगमों से महीने, तीन महीने दूर रहने लगे। इससे बचने तथा छुपकर मैथुन करने के लिए उन्होंने घर अर्थात् अपने चारों और आवरण बनाया।

दोस्तों ऊपर बौद्ध मत ने बिंग बेंग को तिलांजलि दी और
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यहां विकासवाद को पूरी तरह से अस्वीकार कर दिया है। यहां सृष्टि के आरम्भ से सत्व रुप में मनुष्य और गोबर करने वाले पशु थे।आश्चर्य जनक रूप से विकासवाद यहां भी है लेकिन वो विकास गुप्त अंगों का प्रकट होना है तथा उन पारलौकिक सत्वों (मनुष्यों) में गुप्त अंग चावल खाने से प्रकट हुए थे
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एक और बात कि मनुष्यों ने घरों का निर्माण छुपकर मैथुन करने के लिए किया था न कि अपनी मौसम आदि से सुरक्षा के लिए। जबकि हम देखतें हैं कि दुनिया में कोई भी जीव अगर घर बनाता है तो अपनी सुरक्षा के लिए ही बनाता है जैसे - चिडिया घोसला बनाती है ताकि अंडे सुरक्षित हो। चूहा बिल
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बनाता हैं ताकि सांप आदि जीवों से बचा रह सके। इस प्रकार अनेकों जीव अपना अपना घर बनातें हैं किंतु बौद्ध विज्ञान कहता है कि मनुष्यों ने घर छिपकर मैथुन करने के लिए बनाये थे।
अब वैज्ञानिकों को विकासवाद के सिद्धांत छोडकर एलियनों से मनुष्योत्पत्ति का सिद्धांत मान लेना चाहिए।
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यहां विकासवाद बस उतना ही है कि चावल खाने से स्त्रियों और पुरुषों में अपने- अपने गुप्तांग प्रकट हुए।
संदर्भित ग्रंथ एवं पुस्तकें -
1) दीघनिकाय (मूल) - palitripitak से
2) दीघनिकाय - अनु. भिक्षु राहुल सांकृत्यायन

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