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वे उस समय न स्त्री होते हैं और न ही पुरुष होते हैं। वे मनोमय, प्रीतिभक्ष, शुभचारी होते हैं।
दोस्तों बौद्ध विज्ञान बता रहा है कि मनुष्योत्पत्ति धरती पर दूसरे लोक (आभास्वार लोक) से आये हुए प्राणियों के द्वारा हुई थी। अर्थात् एलियनों से उत्पत्ति का सिद्धांत एसिंयट एलियन
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(हिस्ट्री टीवी) से बहुत पहले ही बौद्धों ने दे दिया था। यहां बौद्ध मत का यह सिद्धांत विकासवाद के भी पूर्णतः विपरीत है। जबकि नास्तिक लोग विकासवाद को पूर्णतः सत्य मानते हैं। अब नास्तिकों को अन्य धर्मों की तरह बौद्ध धम्म को भी विज्ञान के मामले में गप्प मान लेना चाहिए।
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इसके आगे मनुष्योत्पत्ति के रहस्य से पर्दा उठाते हुए बौद्ध ग्रंथ दीर्घनिकाय में लिखा है -
अर्थात् जो दूसरे लोक के प्राणी सत्व थे, वे धरती पर धान खाने लगे। ये धान भी बडी चमत्कारी थी कि शाम को लाओ और सुबह अपने आप पककर तैयार हो जाती थी। वे उस अकृष्ट पच धान को खाने लगे।
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उसे खाने से उनके शरीर में विकार होने लगे। इससे उनके वर्णों में भी विकार आया। फिर उनमें स्त्रियों के स्त्रीलिंग अर्थात् योनि और पुरुषों में पुल्लिंग अर्थात् शिश्न उत्पन्न हो गये। फिर उनमें आपस में मैथुन शुरु हो गया। जब दो सत्व (एलियन) मैथुन करते थे तो
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अन्य सत्व उन पर धूल, गोबर फैंकते थे। इस तरह सत्व छुप छुपकर मैथुन करने लगे और गांवों व निगमों से महीने, तीन महीने दूर रहने लगे। इससे बचने तथा छुपकर मैथुन करने के लिए उन्होंने घर अर्थात् अपने चारों और आवरण बनाया।
दोस्तों ऊपर बौद्ध मत ने बिंग बेंग को तिलांजलि दी और
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यहां विकासवाद को पूरी तरह से अस्वीकार कर दिया है। यहां सृष्टि के आरम्भ से सत्व रुप में मनुष्य और गोबर करने वाले पशु थे।आश्चर्य जनक रूप से विकासवाद यहां भी है लेकिन वो विकास गुप्त अंगों का प्रकट होना है तथा उन पारलौकिक सत्वों (मनुष्यों) में गुप्त अंग चावल खाने से प्रकट हुए थे
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एक और बात कि मनुष्यों ने घरों का निर्माण छुपकर मैथुन करने के लिए किया था न कि अपनी मौसम आदि से सुरक्षा के लिए। जबकि हम देखतें हैं कि दुनिया में कोई भी जीव अगर घर बनाता है तो अपनी सुरक्षा के लिए ही बनाता है जैसे - चिडिया घोसला बनाती है ताकि अंडे सुरक्षित हो। चूहा बिल
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बनाता हैं ताकि सांप आदि जीवों से बचा रह सके। इस प्रकार अनेकों जीव अपना अपना घर बनातें हैं किंतु बौद्ध विज्ञान कहता है कि मनुष्यों ने घर छिपकर मैथुन करने के लिए बनाये थे।
अब वैज्ञानिकों को विकासवाद के सिद्धांत छोडकर एलियनों से मनुष्योत्पत्ति का सिद्धांत मान लेना चाहिए।
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यहां विकासवाद बस उतना ही है कि चावल खाने से स्त्रियों और पुरुषों में अपने- अपने गुप्तांग प्रकट हुए।
संदर्भित ग्रंथ एवं पुस्तकें - 1) दीघनिकाय (मूल) - palitripitak से 2) दीघनिकाय - अनु. भिक्षु राहुल सांकृत्यायन
बौद्ध मत में जातिवाद! शूद्रों को पांव से पैदा होना! 1/12
यह लेख सुत्तपिटक, दीघनिकाय, अंबष्ठसुत्त (१.३) आधारित है।
नवबौद्ध हम पर आक्षेप करते हैं कि ब्रह्मा के मुंह से ब्राह्मण व पांव से शूद्र पैदा हुये। ये भ्रांतधारणा गौतम बुद्ध के समय भी थी। यही नहीं, इसका मूक समर्थन भी करते थे।
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अंबष्ठसुत्त में अंबष्ठ नामक ब्राह्मण बुद्ध के शाक्यवंश पर नीचता का आरोप लगाता है:- 13- "अम्बष्ठ! लटुकिका(छोटी चिड़िया) भी अपने घोसले पर स्वच्छन्द आलाप करती है। कपिलवस्तु शाक्यों का अपना घर है। अम्बष्ठ! इतनी छोटी बात पर तुम्हें अप्रसन्न नहीं होना चाहिये।"
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"भो गौतम! समाज में ये चार वर्ण हैं–क्षत्रिय, ब्राह्मण, वैश्य एवं शूद्र। भो गौतम! इनमें से तीन वर्ण क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र तीनों ब्राह्मण के ही सेवक हैं। भो गौतम! क्या यह उचित नहीं कि -------आवभगत करे।" इस तरह अम्बष्ठ ने तीसरी बार शाक्यों पर नीच होने का आक्षेप किया।
बौद्ध लोग अक्सर वैदिक धर्म पर आक्षेप करते हैं कि विमान आदि सब काल्पनिक है । परंतु त्रिपिटक में स्वयं उड़ने वाले विमानों का वर्णन है! यही नहीं, बल्कि इनके तो घर और महल तक उड़ते हैं! मजे की बात है कि इनके सुत्तपिटक, खुद्दकनिकाय, 1/6
2/6 विमानवत्थु सुत्त में विमानों का वर्णन है।
"पथम नाग विमान" ( सुत्तपिटक खुद्दकनिकाय विमानवत्थु)
यहां पर उड़ने वाले ऐरावत हाथी का वर्णन है:-
Thirty-three(heaven) saw deva(angel)-youth mounted on a great all-white elephant with a great retinue(attendants group) going
3/6 through the air, and went towards him. The deva(angel)-youth descended and saluted him and the Elder asked him about the deed he had done:
1 "Mounted on an elephant whose body is dazzling white, pure bred, a tusker, strong and swift, mounted on the glorious elephant,
केवल पुराण ही नही बल्कि बोद्धो के ग्रन्थ भी बुद्ध को विष्णु का अवतार बतात है | भागवत १-३,२८ ,गरुड पुराण १.१४९ मत्स्य पुराण अध्याय ४७ कल्कि पुराण २,३,२६ में बुद्ध को विष्णु का अवतार बताया है |
2/6 अम्बेडकरवादी नवबोद्ध हिन्दुओ को गालिया देते है कि उन्होंने बुद्ध को अवतार बना कर हाईजेक करने की कोसिस करी लेकिन बोद्ध ग्रंथो में बुद्ध का विष्णु का अवतार देख उन्हें मानना पड़ेगा कि हिन्दू ही नही बोद्ध भी बुद्ध को अवतार मानते थे |
बोद्ध ग्रंथो से अवतार के प्रमाण -
3/6 (१) ललितविस्तार सुत्त अध्याय ७ -
" तेन च सम पेन हिमवत .... वज्र दृढ अभेद नारायण आत्मभावो गुरुवीर्यब्लोपत सोकम्पय : सर्वसत्तोन्त्य : "
अर्थात बल वीर्य और वज्र देह के साथ नारायण स्वयम बुद्ध रूप में प्रकट हुए |
बौद्ध मत धरती पर एक सुमेरु पर्वत के होने का वर्णन करते है. उस सुमेरु पर्वत के ऊपर 6 स्वर्ग है. जो सबसे नीचे है, वहां पर रहते है चार राजा जो चारों दिशाओं के रक्षक है. शिखर पर जो स्वर्ग है, वहां पर रहते है देवता. जी हां, देवता ही रहते है. 1/8
2/8 अगला प्रश्न मन में आता है कि कौन से देवता रहते है?
इसका उत्तर है कि उस स्वर्ग में तैतीस देवता रहते है. इन तैतीस देवताओं का राजा है इंद्र. आपने सही पढ़ा है. इंद्र ही उन तैतीस देवताओं के राजा है, जो स्वर्ग में निवास करते है. ये सारी बातें बौद्ध मत की ही हो रही है.
3/8 महात्मा बुद्ध ने वेदों को नकार दिया था पर वेदों में जिस देवता का सबसे अधिक उल्लेख है, उसे ही बौद्धों ने स्वर्ग का राजा बना दिया. सनातन मत में तैतीस कोटि अर्थात तैतीस तरह के देवता होते है. सनातन मत के ही अनुसार इंद्र उनके राजा है. उसी सुमेरु पर्वत की परछाई जहाँ पड़ती है,