ये औरत खुद स्वीकार कर रही के हमने 1 दिन में 29000 लोगों का धर्म परिवर्तन कर ईसाई बनाया - टेरेसा
मदर टेरेसा सेवा का मुखौटा
धर्म परिवर्तन की दुकान इस औरत को कांग्रेस सरकार ने "मदर" का दर्जा दिया था हो तो भी वह सत्य ही कहलाता है। संत का उद्देश्य पक्षपात रहित मानवता की भलाई है।
24 मई 1931 को वे कलकत्ता आई और यही की होकर रह गई। कोलकाता आने पर धन की उगाही करने के लिए मदर टेरेसा ने अपनी *मार्केटिंग आरम्भ* करी। उन्होंने कोलकाता को गरीबों का शहर के रूप में चर्चित कर और खुद को उनकी सेवा करने वाली के रूप में चर्चित कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त करी।
वे कुछ ही वर्षों में "दया की मूर्ति", "मानवता की सेविका", "बेसहारा और गरीबों की मसीहा", “लार्जर दैन लाईफ़” वाली छवि से प्रसिद्ध हो गई।
क्रिस्टोफर हिचेन्स (अप्रैल 1949-दिसंबर 2011) ने टेरेसा पर एक किताब लिखी है। 'द मिशनरी पोजीशन : मदर टेरेसा इन थ्योरी एंड प्रैक्टिस'।
भीष्म चुप रहे , कुछ क्षण बाद बोले," पुत्र युधिष्ठिर का राज्याभिषेक करा चुके केशव ... ?*
*उनका ध्यान रखना , परिवार के बुजुर्गों से रिक्त हो चुके राजप्रासाद में उन्हें अब सबसे अधिक तुम्हारी ही आवश्यकता है" .
*भीष्म ने पुनः कहा , "कुछ पूछूँ केशव .... ?*
*बड़े अच्छे समय से आये हो .... !*
*सम्भवतः धरा छोड़ने के पूर्व मेरे अनेक भ्रम समाप्त हो जाँय " .... !!*
*कृष्ण बोले - कहिये न पितामह ....!*
*एक बात बताओ प्रभु ! तुम तो ईश्वर हो न .... ?*
*कृष्ण ने बीच में ही टोका , "नहीं पितामह !
मैं ईश्वर नहीं ... मैं तो आपका पौत्र हूँ पितामह ईश्वर नहीं ."*
*भीष्म उस घोर पीड़ा में भी ठठा के हँस पड़े. ! बोले , " अपने जीवन का स्वयं कभी आकलन नहीं कर पाया कृष्ण , सो नहीं जानता कि अच्छा रहा या बुरा , पर अब तो इस धरा से जा रहा हूँ कन्हैया , अब तो ठगना छोड़ दे रे .. !! "*
कहते हैं कि काशी में शिवजी का एक बहुत ही विशालकाय मंदिर था।
इसे मध्यकाल में तोड़कर यहां पर एक मस्जिद बना दिए जाने का दावा किया जाता रहा है।
आओ जानते हैं काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद का प्राचीन इतिहास।
1. आदिकाल : हिन्दू पुराणों अनुसार काशी में विशालकाय मंदिर में आदिलिंग के रूप में अविमुक्तेश्वर शिवलिंग स्थापित है।
2. प्राचीनकाल : ईसा पूर्व 11वीं सदी में राजा हरीशचन्द्र ने जिस विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था उसका सम्राट विक्रमादित्य ने अपने कार्यकाल में पुन:
जीर्णोद्धार करवाया था।
3. 1194 : इस भव्य मंदिर को बाद में मुहम्मद गौरी ने लूटने के बाद तुड़वा दिया था।
4. 1447 : मंदिर को स्थानीय लोगों ने मिलकर फिर से बनाया परंतु जौनपुर के शर्की सुल्तान महमूद शाह द्वारा तोड़ दिया गया और मस्जिद बनाई गई। हालांकि इसको लेकर इतिहासकारों में