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Sep 17 12 tweets 3 min read
#एक_प्रेत_कथा

कहते हैं एक बार राज्य में संकट आया तो राजा अपना राज्य बचाने के उपाय ढूंढने लगा। तब किसी ने कहा एक प्रेत है अगर उसे प्रसन्न कर दिया जाए तो राज्य बच जाएगा और राजा सौ साल राज करेगा।
राजा उस प्रेत को प्रसन्न करने का अनुष्ठान करने लगा।
प्रेत उसकी सभा में प्रकट हुआ। बोला मुझे खाने को दो।
राजा ने कहा जो चाहे खाओ, बस प्रसन्न हो जाओ। प्रेत मुस्कुराया बोला मैं तो भूमि खाता हूं, वही खाऊंगा। राजा ने कहा खुशी से खाओ।
प्रेत प्रसन्न हुआ कहने लगा मांगो तुमको क्या चाहिए?
राजा बोला मेरा राज बना रहना चाहिए।
प्रेत ने कहा राज जनता से है, तुम्हारे राज्य की जितनी जनता मेरी पूजा करती है। उनपर मेरा पूरा प्रभाव है मैं तुम्हें अपने प्रभाव वाली सारी जनता का समर्थन देता हूं। वे आंख बंद करके तुम्हारे साथ रहेंगे तुमको मुझे प्रसन्न रखना होगा और मेरे पूजा करने वालों को अधिक महत्त्व देना होगा।
राजा ने कहा हां हां। जैसा कहो प्रेत महाराज। आपको कैसे प्रसन्न करूं?
प्रेत बोला बस इतना सा कानून बना दो कि मैं जितनी भूमि पर पैर पसारूं वह भूमि में खा सकूं।
राजा ने प्रेत को देखा, देखने में छोटा सा था। उसे लगा कितनी भूमि खाएगा। खुशी खुशी कानून बना दिया।
राजा की सत्ता बच गई और राजा खुशी खुशी रहने लगा। अब प्रेत ने पहले महल का एक कोना खाया। फिर एक मैदान में उसके पूजा करने वालों ने उस प्रेत का एक चबूतरा बनवाया। प्रेत का आह्वान किया, प्रेत प्रकट हो गया। लोगों ने प्रेत को वहां रहने का आग्रह किया। प्रेत उस चबूतरे पर रुकने तैयार हो गया।
वहां छत ढाल दी गई फिर उसके रहने के लिए इमारत बना दी गई। प्रेत ने पहले इमारत खाई। फिर मैदान खा गया। राजा कुछ न कर सकता था, कानून बन गया तो बन गया। फिर तो उस प्रेत के अनुयायी जहां मन करता उस प्रेत का चबूतरा बनाते, प्रेत प्रकट होता और फिर वह जगह लील जाता।
मैदान, मकान, महल, अटारी, सड़क, रेल, नदी, तालाब, खेत, बगीचे धीरे धीरे प्रेत सब खाता गया।
जब दूसरा राजा आया तो लोगों ने उससे कहा महाराज कुछ कीजिए, ये प्रेत सब भूमि खाता जाता है। ऐसे तो सब खा जाएगा। राजा ने कहा देखो एक तो कानून है कि उसका कुछ नहीं कर सकते।
दूसरा, प्रेत इतना बड़ा नहीं है कि सब कुछ खा जाए। थोड़ी बहुत जमीन के टुकड़े ही तो खाता है। खाने दो।
लोगों ने कहा महाराज ये सब लीलकर ही मानेगा। टुकड़े टुकड़े कर के बहुत सी भूमि डकार गया है। अब तो जहां पांव रखता है उसी भूमि पर अधिकार जताने लगता है।
राजा ने कहा ऐसा नहीं है, समझो उसका तृप्तिकरण हो रहा है। जब तृप्त होगा तो सब ठीक हो जाएगा।
लोगों ने कहा -ऐसे प्रेत तृप्त नहीं होते। पहले भूमि खा रहे हैं, फिर संपत्ति खायेंगे। फिर पहले आपको खायेंगे फिर उनको खा जायेंगे जो इनको नहीं पूजते इसलिए महाराज कुछ उपाय कीजिए।
राजा सोच ही रहा था कि इन लोगों को कैसे टाला जाए। क्योंकि प्रेत तृप्त हुआ तो राज नहीं जाएगा और प्रेत से उलझा तो संकट निश्चित है। कौन संकट मोल ले। अन्य राजा लोग तो इस प्रेत को भूमि के साथ धन, संपत्ति, सम्मान, ऐश्वर्य सब देते हैं।
लोगों ने कहा – इस प्रेत की भूख की सीमा नहीं है।
यह जब तक संसार को नहीं डकार जाएगा तब तक नहीं मानेगा। अभी तो ये सिर्फ अपने मुंह को उतना बड़ा करने की कोशिश कर रहा है जिसमें सब समा जाए। आ
राजा ने कहा – लेकिन मुझे राज चलाने के लिए इस प्रेत का साथ और विश्वास भी चाहिए। जो मैं लेकर रहूंगा।
लोगों ने कहा महाराज आप मुसीबत पाल रहे हैं।
इतने में एक दूत दौड़ता आया बोला – महाराज भक्क प्रेत ने पूरा गांव लील लिया है। भक्क प्रेत अब बहुत ताकतवर और बड़ा हो गया है।
अब किसी के पास इस प्रेत बाधा को कोई उपाय होय तो महाराज तक पहुंचा देवें।

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