लगभग सारे विवरण इस बात पर सहमत हैं कि अशोक का प्रारंभिक शासनकाल हिंसक और अलोकप्रिय था, उसे ‘चंड अशोक’ कहा जाता था।
अशोक का 13वां शिलालेख कलिंग युद्ध का वर्णन करता है। जबकि किसी भी बौद्ध ग्रंथ में इस युद्ध की चर्चा नहीं की गई है। #ashoka
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262 ईसा पूर्व में अशोक ने कलिंग पर हमला किया था जबकि लघु शिलालेखों से हमें पता है कि अशोक लगभग 2 साल पहले ही बौद्ध धर्म अपना चुका था।
कोई भी बौद्ध ग्रंथ उसके धर्म परिवर्तन को युद्ध से नहीं जोड़ता और चार्ल्स ऐलन जैसे अशोक के प्रशंसक भी सहमत हैं कि
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उसने कलिंग युद्ध से पहले धर्म परिवर्तन कर लिया था। इसके अलावा धर्म परिवर्तन करने से एक दशक पहले से उसके बौद्धों के साथ संबंध प्रतीत होते हैं। यह साक्ष्य साबित करता है कि उसका बौद्ध धर्म अपनाना उत्तराधिकार की राजनीति ज्यादा रही होगी, युद्ध की त्रासदी से उपजा पश्चाताप कम।
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262 ईसा पूर्व में एक विशाल मौर्य सेना ने कलिंग पर हमला किया। अशोक के अपने अभिलेख बताते हैं कि युद्ध में एक लाख लोग मारे गए थे और उससे भी बड़ी तादाद में लोग जख्मो औऱ भूख से मरे थे। इसके अलावा डेढ़ लाख लोगों को बंदी बनाया गया था।
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आधिकारिक कहानी के मुताबिक अपनी ही निर्ममता को देखकर अशोक सहम गया और बौद्ध व शांतिप्रिय बन गया। मगर जैसा कि हमने देखा है, उस समय तक वह धर्म का पालन करने वाला बौद्ध हो चुका था, और उसके प्रारंभिक शासन से हमें जितना पता है, वह ऐसा इंसान तो कतई नहीं था जो खून देखकर
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इतनी आसानी से विचलित हो जाता। उसके पश्चाताप का खास सुबूत उसके अपने अभिलेखों में मिलता है। मगर यह बहुत ही जिज्ञासा भरा है क्योंकि हम इस “पश्चाताप” का जिक्र केवल उड़ीसा से दूर स्थित स्थानों पर मिले अभिलेखों में ही पाते हैं (जैसे उत्तर-पश्चिम पाकिस्तान के शाहबाजगढ़ी में)।
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ओडिशा में मिले किसी भी अभिलेख में पश्चाताप नहीं झलकता; धौली में अशोक के अभिलेख पहाड़ी की तली में एक चट्टान पर खुदे हुए हैं। उन्हें पढ़ने वाले किसी भी व्यक्ति का इस ओर ध्यान जरूर जाएगा कि ये पश्चाताप के किसी संकेत तक का भी जिक्र नही करते । ये खामोशी चुभती है।
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अगर अशोक को वाकई पश्चाताप हुआ था, तो वह यकीनन उन लोगों से माफी मांगने की जहमत उठाता जिनके साथ उसने गलत किया था। यह तो दूर, उसने बंदियों को आजाद करने तक की पेशकश नहीं की, बाद में इन कैदियों ने अपने आपको खेतिहर-दासों के रूप में पाया।
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तथाकथित रूप से पश्चाताप भरे अभिलेखों तक में वन्य जनजातियों समेत दूसरे समूहों के खिलाफ हिंसा की स्पष्ट धमकी है। जिनमें स्पष्ट रूप से ‘उन्हें दंड देने की शक्ति के बारे में बताया जाता है जो प्रायश्चित करने के बावजूद देवनामप्रिय के पास है, जिससे वे अपने अपराधों पर शर्मिंदा हो
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और मारे ना जाएं।’ यह तो बिल्कुल भी शांतिप्रियता नहीं है।
अशोकावदान की एक कथा में ये वर्णित है कि अशोक अपनी कुरूपता के कारण अपने पिता बिंदुसार का प्रिय नहीं था। अशोक ने बिंदुसार द्वारा चयनित उत्तराधिकारी, सुसीम को अपदस्थ कर (उसने ऐसा यूनानी सेनिको की मदद से किया था) शासन की
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बागडोर संभाली थी। वास्तविक उत्तराधिकारी को जलते कोयले की खाई में डलवा दिया। सत्ता में आने के बाद उसने मंत्रियों की विश्वसनीयता की परीक्षा ली। उनमें से 500 का उसने स्वंम सिर कलम किया, जो उसकी अपेक्षा पर खरे नहीं उतर सके।
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अशोक ने अपने परिवार के सभी पुरुष प्रतिद्वंदियों को मरवा दिया था। बौद्ध ग्रंथ बताते है कि उसने अपने सगे भाई तिस्सा को छोड़कर बांकी सभी निन्यानबे भाइयों को भरवा दिया था। इस हद्द-दर्जे की क्रुरता के वाले ग्रहयुद्ध के बाद 270 ईसा पूर्व, में आखिरकार वह राजा बना था।
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एक बार राजप्रसाद के अन्तःपुर की किसी स्त्री के व्यवहार से अशोक ने स्वयं को अपमानित महसूस किया, उसने बदले में वहां की सभी स्त्रियों को जिंदा जलवा दिया। यातनाएं उसे अभिभूत करती थी। उसने एक नर्क का भी निर्माण करवा रखा था। यह एक प्रकार का एक ‘यातना कक्ष’ था
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जिसके दृश्यों से वह आनंदित होता था। वहां दुर्भाग्यशाली कैदियों को प्रताड़ना दी जाती थी।
जुआन-जांग जो 7वीं सदी में भारत आया था, उसने अपने यात्रा वृत्तांत में अशोक के इस यातना-स्थल की चर्चा की है।
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१४ अक्टूबर १९५६ को भीमराव अम्बेडकर ने यह घोषणा की कि मैं अब हिन्दू नहीं बौद्ध हूँ ; जबकि वास्तविकता यह है कि भीमराव जीवन भर बौद्ध नहीं बन पाए क्योंकि उनकी विचारधारा महात्मा बुद्ध से बिलकुल विपरीत रही | 1/n
2/n भीमराव बौद्ध थे या नहीं यह समझने के लिए भीमराव अम्बेडकर के विचार और महात्मा बुद्ध के उपदेशों का तुलनात्मक अध्ययन करना आवश्यक है |
भीमराव अम्बेडकर के वेदों पर विचार ( निम्नलिखित उद्धरण अम्बेडकर वांग्मय से लिए हैं ) –
3/n वेद बेकार की रचनाएँ हैं उन्हें पवित्र या संदेह से परे बताने में कोई तुक नहीं | ( खण्ड १३ प्र. १११ )
ऐसे वेद शास्त्रों के धर्म को निर्मूल करना अनिवार्य है | ( खण्ड १ प्र. १५ )
वेदों और शास्त्रों में डायनामाईट लगाना होगा , आपको श्रुति और स्मृति के धर्म को नष्ट करना ही चाहिए |
भारत बुद्ध की नहीं युद्ध की आदि भूमि है।
जब यह कहा जाता है कि भारत युद्ध की नहीं बुद्ध की भूमि है तो यह प्राचीन क्षात्र धर्म और शौर्य परंपरा के साथ एक मजाक है। वेदों में जितनी ऋचाएं ईश्वर की स्तुतिपरक है उतनी ही ऋचाएं राजा को रणभूमि गमन संग्राम को प्रेरित करने वाली हैं।
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बुद्ध से परे भी विशाल कालखंड रहा है जहां चक्रवर्ती राजाओं ने वैदिक काल से लेकर उपनिषद काल रामायण काल व महाभारत काल पश्चात् में मध्यकाल तक धर्म मानवता की स्थापना के लिए अनेकों महान संग्राम लड़े हैं।
रामायण व महाभारत अचार् विचार राजनीति नीति की शिक्षा विषयक ग्रंथ है
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लेकिन महर्षि वाल्मीकि व महर्षि वेदव्यास ने युद्धों के वर्णन प्रसंग की उपेक्षा ने नहीं की अपितु युद्धों को लेकर पूरे अध्याय रचे गये है इनमें ।
भारत यदि बुद्ध की भूमि है तो क्या मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने युद्ध अपराध किया था या योगेश्वर श्री कृष्ण पांडवों ने भी युद्ध
ये लिंग भी विभिन्न आकर, रंग आदि में मिलते हैं कोई ड्रैगन के आकार का होता है, तो कोई रिबन से बंधा होता है जैसे की कोई तोहफा हो. कुछ में आँखें भी होती हैं, और सभी सख्त एवं खड़े हुए होते हैं
इन बने लिंगो को उनकी आकृति को भूटानी लोग अपनी और बुद्ध मत की परम्परा की शान बताते है | 2/5
भूटानी लोगो के अनुसार शहरी करण और आधुनिक करण से उनकी ये कला विलुप्त हो रही है इन लोगो का अंधविशवास है कि इससे (घरो के बाहर लिंग बनाने से ) इनमे सेक्स क्षमता बढती है |
भूटान के लोग लिंग को अपने घरो में इसलिए टांगते हैं जिससे उनका घर, और परिवार के लोग बुरी ताकतों से बचे रहें 3/5
आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि स्वयं बुद्ध अघोरियों की तरह रहे थे अर्थात् बुद्ध श्मशान में रहते थे। मुर्दों की हड्डियों का तकिया लगाते थे। बछडों का गोबर खाते थे और खुद का भी मल - मूत्र खा जाते थे। ये बात किसी ऐसी वैसी पुस्तक में नहीं लिखी है,
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2/3 बल्कि बौद्धों के प्रामाणिक ग्रंथ त्रिपिटक के मज्झिम निकाय में लिखी है। हम यहां मज्झिम निकाय (अनु. राहुल सांस्कृत्यायन) का स्क्रीन शाँट प्रमाण स्वरुप प्रस्तुत कर रहे हैं।
ये चित्र मज्झिम निकाय अध्याय 12 महासीहनाद (1/2/2) हिन्दी अनुवाद के पेज क्रमांक 49-50 का है।
3/3 यहां बुद्ध सारिपुत्र को बता रहे हैं कि उन्होने बछडों का गोबर खाया था और खुद का मल - मूत्र भी खाया था। वो श्मशान में मूर्दों की हड्डियों का तकिया लगा कर सोते थे। यहां तक की बुद्ध नहाते - धोते तक नही थे।
अबतक,
अशोक राजा बनने के पहले से बोद्धो के संपर्क में था और उत्तराधिकार युद्ध में यूनानी सिपाहियों की सहायता ली और 99 भाइयो को मरवा दिया। कलिंग युद्ध के 2 साल पहले बौद्ध धर्म अपना लिया था। इस युद्ध में लाखो मारे गए और बंदियों को मजदूर बना दिया गया 1/7
2/7 अब आगे,
अशोकावदान ही एक दूसरी जगह बताती है कि शांतिप्रिय होने के कई साल बाद भी सम्राट द्वारा नरसंहार के अनेक कृत्य किए गए थे जो जैन और आजीवन सम्प्रदाय के खिलाफ थे।
अशोकावदान याद करता है कि कैसे एक बार बंगाल में अशोक ने अठारह हजार आजीवकों को एक साथ मौत के घाट उतरवा दिया था।
3/7 अशोकावदान में वर्णित ये एकमात्र घटना नही है। पाटलीपुत्र के एक जैन श्रद्धालु को एक तस्वीर बनाते हुए पाया गया जिसमें बुद्ध एक जैन तीर्थंकर के आगे नमन कर रहे थे। अशोक ने आदेश दिया कि उसे और उसके परिवार को उसके घर में बंद कर दिया जाए और भवन को जला दिया जाए।