वृंदावन से मथुरा जाने के बाद श्रीकृष्ण फिर कभी वृंदावन वापस नहीं लौटे। इस दौरान वे केवल दो बार राधा से मिले थे। एक बार कुरुक्षेत्र में और दूसरी बार प्रभास तीर्थ क्षेत्र में। सोमनाथ मंदिर प्रभास तीर्थ क्षेत्र में ही है। गोलोक जाने के पहले एक बार 👇
श्रीकृष्ण ने समस्त ब्रजवासियों को प्रभास तीर्थ में मिलने के लिए बुलाया था। वृंदावन से जाने के बाद राधा-कृष्ण की यही दूसरी और अंतिम भेंट थी। रुक्मिणी भी आई थीं। राधा का जब श्रीकृष्ण से सामना हुआ तो मिलते ही राधा ने कहा कि कहो कृष्ण कैसे हो? श्रीकृष्ण हतप्रभ रह गए। अचकचाते हुए
कहा कि मैं तुम्हारे लिए कृष्ण कब से हो गया राधे? मैं तो अब भी तुम्हारे लिए कान्हा ही हूं। राधा ने कहा नहीं कृष्ण अब तुम कान्हा नहीं रहे। बहुत बदल गये हो। कृष्ण ने अचरज भरें भाव के साथ पूछा कि क्या बदलाव आ गया है मुझमें। राधा बोली कोई एक हो तब न बताऊं। अगर तुम श्याम होते तो
सुदामा के पास तुम जाते। सुदामा को तुम्हारे पास नहीं आना पड़ता। अब तुम्हारे गले में वनमाला भी नहीं है। वनमाला की जगह तुम्हारे गले में हीरे-जवाहरात जड़ित सोने की माला है। कभी तुम्हारे हाथों में मुरली शोभायमान होती थी। अब उन हाथों में सुदर्शन चक्र आ गया है। आज उन्हीं हाथों से संहार
कर रहे हो। लोग कहते हैं कि तुम भगवान हो। और ऐसा तुमने भी गीता में कहा है। पर मैंने तो तुम्हें कभी ब्रह्म माना ही नहीं। कृष्ण चुपचाप सुनते रहे। पर राधा चुप ना हुई। बोलतीं ही गई याद रखना कृष्ण मेरे बिना अधूरे रहोगे संसार में जहां भी तुम्हारी पूजा होगी, मैं साथ रहूंगी। एक को छोड़कर
(जगन्नाथ जी) कोई ऐसा मंदिर नहीं होगा जहां मैं तुम्हारे साथ नहीं होऊंगी। हमेशा तुम्हारे नाम के पहले मेरा नाम लिया जाएगा। ठीक उसी प्रकार जैसे प्रभु राम के पहले मां सीता का नाम लिया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण ने एवमस्तु कहा और एक अंतिम बात कही कि राधा अब इस जीवन में मेरी तुम्हारी
मुलाकात नहीं होगी। पर मैं तुम्हें कुछ देना चाहता हूं। जो भी इच्छा हो मांग लो। राधा ने कहा...कन्हैया मुझे तो सब कुछ मिल चुका है। और कुछ नहीं चाहिए। परंतु कहते ही हो तो एक बार वही मुरली की तान सुना दो। राधा की इस इच्छा को श्रीकृष्ण टाल न सके। जबकि सर्वज्ञ सर्वशक्तिमान श्रीकृष्ण
इसके परिणाम को जानते थे। फिर भी उन्होंने बहुत दिनों से संजोकर रखी हुई बांसुरी निकाली और एक अद्भुत, अविस्मरणीय तान छेड़ दी। सारा संसार तरंगित हो उठा। यद्यपि श्रीकृष्ण ने अनेकों बार मुरली बजाई थी। पर यह तान विलक्षण, अद्भुत और हृदय के तार को झंकृत करने वाली थी।
राधा सुध-बुध खोकर मुरली की धुन सुनती हुई श्रीकृष्ण में समा गई। #श्री_राधे_श्याम 🙏
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वक्फ एक्ट 1995 सेक्शन 40: वक्फ के सोचने के बाद वक्फ को आपकी जमीन पर अपना दावा साबित नहीं करना है बल्कि जमीन मालिक को ये साबित करना होगा कि ये जमीन वक्फ की नहीं बल्कि उसकी है.
जमीन मालिक अपनी जमीन बचाने के लिए सिविल कोर्ट भी नहीं जा सकता बल्कि उसे वक्फ के ट्रिब्यूनल कोर्ट में
जाकर अपना दावा साबित करना होता है.
अब वक्फ के ट्रिब्यूनल कोर्ट ने कह दिया कि वक्फ का दावा सही तो आप तुरंत भूमिहीन हो जाएंगे, आपकी जमीन वक्फ की हो जाएगी.
स्पष्ट है कि वक्फ एक्ट 1995 दूसरों की जमीन कब्जाने का माध्यम है तथा वक्फ ऐसा कर भी रहा है. आज वक्फ के पास सेना व रेलवे के
- देश इस रास्ते पर है कि वक्फ बोर्ड में सभी 7 सदस्य मुस्लिम होंगे । जबकि हिन्दू मंदिर का ट्रस्ट सरकारी होगा उसके सदस्य भी गैर हिन्दू होंगे | वक्फ बोर्ड की संपत्ति मुस्लिम समाज की होगी और मुस्लिम समाज गजवा ए हिंद के लिए
लिए वो संपत्ति खर्च करेगा लेकिन हिन्दू मंदिरों की संपत्ति सरकारी होगी और हिन्दू मंदिरों का पैसा हिन्दू मंदिरों, हिन्दू समाज पर नहीं बल्कि ईसाई और मुस्लिम समाज पर सरकारी योजनाओं के माध्यम से खर्च होगा
- *वक्फ बोर्ड ने इतनी जमीन कब्जा कर ली है कि खुद को छोटा देश घोषित कर सकता है !
भारत की सेना के पास करीब 18 लाख एकड़ जमीन है रेलवे के पास करीब 12 लाख एकड़ में फैली हैं । और देश के सभी वक्फ बोर्डों के पास कुल 8 लाख एकड़ से ज्यादा जमीन हैं ।मतलब जमीन के मामले में वक्फ बोर्ड सेना और रेलवे के बाद तीसरे नंबर पर है । और यहां से जो पैसा आता है वो भारत में
ये औरत खुद स्वीकार कर रही के हमने 1 दिन में 29000 लोगों का धर्म परिवर्तन कर ईसाई बनाया - टेरेसा
मदर टेरेसा सेवा का मुखौटा
धर्म परिवर्तन की दुकान इस औरत को कांग्रेस सरकार ने "मदर" का दर्जा दिया था हो तो भी वह सत्य ही कहलाता है। संत का उद्देश्य पक्षपात रहित मानवता की भलाई है।
24 मई 1931 को वे कलकत्ता आई और यही की होकर रह गई। कोलकाता आने पर धन की उगाही करने के लिए मदर टेरेसा ने अपनी *मार्केटिंग आरम्भ* करी। उन्होंने कोलकाता को गरीबों का शहर के रूप में चर्चित कर और खुद को उनकी सेवा करने वाली के रूप में चर्चित कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त करी।
वे कुछ ही वर्षों में "दया की मूर्ति", "मानवता की सेविका", "बेसहारा और गरीबों की मसीहा", “लार्जर दैन लाईफ़” वाली छवि से प्रसिद्ध हो गई।
क्रिस्टोफर हिचेन्स (अप्रैल 1949-दिसंबर 2011) ने टेरेसा पर एक किताब लिखी है। 'द मिशनरी पोजीशन : मदर टेरेसा इन थ्योरी एंड प्रैक्टिस'।
भीष्म चुप रहे , कुछ क्षण बाद बोले," पुत्र युधिष्ठिर का राज्याभिषेक करा चुके केशव ... ?*
*उनका ध्यान रखना , परिवार के बुजुर्गों से रिक्त हो चुके राजप्रासाद में उन्हें अब सबसे अधिक तुम्हारी ही आवश्यकता है" .
*भीष्म ने पुनः कहा , "कुछ पूछूँ केशव .... ?*
*बड़े अच्छे समय से आये हो .... !*
*सम्भवतः धरा छोड़ने के पूर्व मेरे अनेक भ्रम समाप्त हो जाँय " .... !!*
*कृष्ण बोले - कहिये न पितामह ....!*
*एक बात बताओ प्रभु ! तुम तो ईश्वर हो न .... ?*
*कृष्ण ने बीच में ही टोका , "नहीं पितामह !
मैं ईश्वर नहीं ... मैं तो आपका पौत्र हूँ पितामह ईश्वर नहीं ."*
*भीष्म उस घोर पीड़ा में भी ठठा के हँस पड़े. ! बोले , " अपने जीवन का स्वयं कभी आकलन नहीं कर पाया कृष्ण , सो नहीं जानता कि अच्छा रहा या बुरा , पर अब तो इस धरा से जा रहा हूँ कन्हैया , अब तो ठगना छोड़ दे रे .. !! "*
कहते हैं कि काशी में शिवजी का एक बहुत ही विशालकाय मंदिर था।
इसे मध्यकाल में तोड़कर यहां पर एक मस्जिद बना दिए जाने का दावा किया जाता रहा है।
आओ जानते हैं काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद का प्राचीन इतिहास।
1. आदिकाल : हिन्दू पुराणों अनुसार काशी में विशालकाय मंदिर में आदिलिंग के रूप में अविमुक्तेश्वर शिवलिंग स्थापित है।
2. प्राचीनकाल : ईसा पूर्व 11वीं सदी में राजा हरीशचन्द्र ने जिस विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था उसका सम्राट विक्रमादित्य ने अपने कार्यकाल में पुन:
जीर्णोद्धार करवाया था।
3. 1194 : इस भव्य मंदिर को बाद में मुहम्मद गौरी ने लूटने के बाद तुड़वा दिया था।
4. 1447 : मंदिर को स्थानीय लोगों ने मिलकर फिर से बनाया परंतु जौनपुर के शर्की सुल्तान महमूद शाह द्वारा तोड़ दिया गया और मस्जिद बनाई गई। हालांकि इसको लेकर इतिहासकारों में