यह सत्य है कि BJP ने वक़्फ़ बोर्ड के राष्ट्रघाती खतरनाक कानूनों को लेकर अबतक कुछ नहीं किया।
लेकिन, ये भी सच है कि कांग्रेस द्वारा बनाये गये ये काले कानून आज अगर चर्चा का विषय हैं तो BJP के ही कारण... नहीं तो किसी को पता भी नहीं चलता और वह लोग इसका इस्तेमाल करते...
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2045 के बाद...! जब वे जनसंख्या में बराबरी पर होते, तब तक वो शांत पड़े रहते।
इतिहासबोध, अधिकारबोध और राष्ट्रबोध का हिन्दुओं में आलम ये है कि - 98% लोगों को तो ये पता भी नहीं कि वक़्फ़ होता क्या है ? अनपढ़ों की ही नहीं, उच्च शिक्षितों की भी स्थिति यही है।...
क्योंकि- इस जानकारी से न तो बैंक बैलेंस बनेगा, न ही कुछ मिलेगा, तो हिन्दू जानकर करेगा क्या, हिन्दू राष्ट्रहित का अर्थ ही भूल चुका है। सिर्फ निजी फायदे या नुकसान का ही उसके लिए महत्व है। यदि किसी को बताओ भी, तो वह सुनने के लिए तैयार ही नहीं। हमने मोदी को वोट दे दिया !
बस....!
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भारत माता पर अहसान कर दिया, अब मोदी देखेगा।
अश्विनी उपाध्याय जैसे महापुरुष वास्तविक देशभक्त हैं। तन मन धन से लड़े पड़े हैं, दिन रात हिन्दुओं के लिए। जिस आदमी को हिन्दुओं को सोने में तौल देना चाहिए, ज्यादातर उसका नाम भी नहीं जानते।🙏 #वक्फ_बोर्ड_खत्म_करो!
जय हिन्द ! 🇮🇳🚩
- जिनके लिए मोदी ने सुप्रीम कोर्ट का आदेश नहीं माना !
- जिनके लिए सरकार ने एक्ट में बदलाव किया!
- किसके लिए सरकार ने बदले सारे नियम ?
- जिन्हें हटाने के लिए पूरा विपक्ष और दुनिया के सबसे ताकतवर एनजीओ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे !
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- किसने अकेले ही भारत में वामपंथी पारिस्थितिकी तंत्र को नष्ट कर दिया?
*ईडी के निदेशक संजय कुमार मिश्रा*
एसके मिश्रा यूपी से ताल्लुक रखते हैं और 1984 में आईआरएस में चयनित हुए थे। वह उस समय के सबसे कम उम्र के आईआरएस अधिकारी थे।
उन्होंने अपना अधिकांश कैरियर आयकर विभाग में...
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बिताया,वे तेज दिमाग, ईमानदारी और कड़ी मेहनत के लिए मशहूर थे।
वह जानते हैं कि भारत के विकास में सबसे बड़ी बाधा भारत विरोधी ताकतों, विदेशी वित्त पोषित गैर सरकारी संगठनों, भ्रष्ट भारतीय राजनेताओं और उनका ईंधन काला धन है।
वे मनी लॉन्ड्रिंग के लिए एनजीओ, कॉरपोरेट्स, शेल कंपनियों
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*गुरुकुल घरोंदा के एक आचार्य । #जनसंघ के टिकट पर सांसद बन गए, तो उन्होंने सरकारी आवास नहीं लिया । वे दिल्ली के बाजार सीताराम, दिल्ली-6 के आर्य समाज मंदिर में ही रहते थे । वहीं से #संसद तक पैदल जाया करते थे कार्रवाई में भाग लेने।*
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*वे ऐसे पहले #सांसद थे, जो हर सवाल पूछने से पहले संसद में एक वेद मंत्र बोला करते थे। वे सब #वेदमंत्र संसद की कार्रवाई के रिकार्ड में देखे जा सकते हैं। उन्होंने एक बार संसद का घेराव भी किया था, गोहत्या पर बंदी के लिए ।
*एक बार इंदिरा गांधी ने किसी मीटिंग में उन स्वामी जी को...
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पांच सितारा होटल में बुलाया। वहां जब लंच चलने लगा तो सभी लोग बुफे काउंटर की ओर चल दिये । स्वामी जी ही वहां नही गए । उन्होंने अपनी जेब से लपेटी हुई #बाजरे की सूखी दो रोटी निकाली और बुफे काउंटर से दूर जमीन पर बैठकर खाने लगे।
हमारे देश में जब 1857 का स्वातंत्र्य युध्द समाप्त होने को था, उस समय अमरीका का दृश्य बड़ा भयानक था । 1861 से 1865 तक वहां गृहयुध्द चल रहा था। अमरीका के 34 प्रान्तों में से दक्षिण के 11 प्रान्तों ने गुलामी प्रथा के समर्थन में, बाकी बचे ....
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(उत्तर के) प्रान्तों के ‘यूनियन’ के विरोध में युध्द छेड़ दिया था। उनका कहना था, ‘हम अपने विचारों के आधार पर देश चलाएंगे. इसलिए हमें अलग देश, अलग राष्ट्र चाहिए..!’
वह तो भला था अमरीका का, जिसे अब्राहम लिंकन जैसा राष्ट्रपति उस समय मिला. लिंकन ने अमरीका के बंटवारे का पुरजोर...
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विरोध किया। गृहयुध्द होने दिया, लेकिन बंटवारे को टाला..! और आज..? आज अमरीका विश्व की सबसे बड़ी आर्थिक और सामरिक ताकत हैं।
यदि 1861 में लिंकन ने अमरीका का बंटवारा स्वीकार किया होता, तो क्या आज अमरीका वैश्विक ताकत बन सकता था..?
इस वाक्य के साथ कहानी का अंत नहीं हुआ. वरन एक अंतहीन से दिखने वाले लंबे संघर्ष का प्रारंभ हुआ!😘
बंटवारे का दर्द बहुत तीखा होता है. डेढ़ करोड़ से अधिक भारतीयों ने इस दर्द को झेला था ।😓
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लगभग बीस लाख हिन्दू – सिक्ख इस बंटवारे के कारण मारे गए. लाखों माता – बहनों की इज्जत के साथ खिलवाड़ हुआ है. अनेक घर – बार, आशियाने उजड़ गए.😡
उन मारे गए अभागे हिन्दू – सिक्ख भाइयों की लाशों पर, हमारी मां- बहनों की करुण चीख पुकारों पर, अभागे शिशुओं की वीभत्स मौत पर, हमारे......
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तत्कालीन नेताओं की हठधर्मिता पर और तुष्टीकरण की राजनीतिक नपुंसकता पर.. हमारी स्वतंत्रता खड़ी है!
विभाजन टल तो सकता था, यदि १९२३ के काकीनाडा अधिवेशन में पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर जी को ' वन्दे मातरम' के गायन के विरोध को गांधी जी गंभीरता से लेते. 1923 में कांग्रेस के काकीनाडा👇
अमीर खान की पिक्चर *इतनी फ्लॉप जाएगी इसका हमें अंदाजा नहीं था* क्योंकि ऐसा लग रहा था कि जब हिंदू इसका बायकाट कर रहे हैं *तो मुस्लिम जाकर पिक्चर देखेंगे और कम से कम 40 से 50% सीट बुक करवाएंगे।*
लेकिन अफसोस कि *मुसलमान पिक्चर नहीं देखता* वह अपने *खून पसीने का पैसा इस मूर्खता
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पर खर्च नहीं करता ।* मुसलमान समझता है कि अगर परिवार के साथ पिक्चर देखने जाएंगे *तो कम से कम 1000 से 15 सौ रुपए लगेंगे और इतने पैसे में एक छोटा मोटा हथियार आ जाएगा* या फिर इस पैसे को आतंकवादियों को जिहाद करने के लिए दिया जाएगा।
*मुसलमान को अपना लक्ष्य अच्छे से मालूम है ।
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इसलिए वह लोग अपना पैसा, अपनी मेहनत की कमाई सही जगह उपयोग करते हैं *दूसरी तरफ हिंदू लक्ष्य हीन है इन्हें ना कल का मालूम है ना यह कल का पता करना चाहते हैं इसलिए अपना पैसा बेदर्दी से उड़ाते हैं।*
लाल सिंह चड्ढा की हालत देखने के बाद यह बात समझ में आ गया कि *बॉलीवुड को सिर्फ और...
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