लड़कियों को ज़िन्दा दफना दिया जाता था।मर्दो की नज़र में औरत अपनी नफसानी खाहिश को पूरा करने का खिलौना थी।मर्दो को औरतों की कद्र नही थी।औरतों पर तरह-तरह के ज़ुल्मों-सितम किए जाते थे।
औरत को उसके माँ बाप भाई बहन शौहर की…..1/7
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मीरास से कोई हक़ नही दिया जाता था।जिसका शौहर मर जाता उसे घर से निकलने न दिया जाता।उनकी ज़िंदगी घर में क़ैद खानो से कम न थी।बेवाओ को उस दौर में कोई इज़्ज़त न थी।न उन्हे ये हक़ था कि वो अपने हिसाब से ज़िंदगी बसर करें।
दुनियाँ के हर मुल्क में औरतों पर जुल्मो-सितम की……2/7
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कमी नही थी।जिन्हे ये बातें खोखली (Fake) लगती हो वो तारीख उठा कर देखले।हमारे मुल्क हिंदुस्तान में औरतों का क्या मक़ाम था।
किस कद्र औरतों को ज़िल्लत और ज़ुल्म से भरी ज़िंदगी बसर करनी पड़ रही थी।आज भी गैर मज़हब मे लड़कियो को पैदा होने से पहले ही मार दिया जाता है।आज तक वो…..3/7
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इस काम को रोक नही पाए और हमारी ख्वातीनो को इंसाफ दिलाने की बात हो रही है।
💚हुज़ूर ﷺ की विलादत के बाद औरत⤵️
जब दुनियाँ का जुल्मों-सितम औरतो पर जारी था तब अल्लाह त’आला ने अपने हबीब रहमतुललिलआलमीन ﷺ को भेजा।इस्लाम ने औरत को इज़्ज़त दी हुक़ूक़ दिए जिसकी वो हक़दार थी।उनपर…4/7
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हो रहे जुल्मों-सितम को मेरे आकाﷺ के फ़र्मान ने रोक दिया।इस्लाम ने औरतो को वो हुक़ूक़ मुकर्र किए जिन्हें इस्लाम से पहले किसी मज़हब ने ना दिया था।पर अफ़सोस दर अफ़सोस आज हमारे ही कुछ भाई बहन की मॉडर्न सोच को फर्मान-ए-मुस्तफा ﷺ की कोई अहमियत नही रही है।इनका कहना है…...5/7
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कि इन्हे इंसाफ़ चाहिए।एक बात खूब ज़ेहेनशीं फ़र्मालें कि इस कायनात मे मेरे आका ﷺ जैसा इंसाफ़ कोई नही कर सकता है।
💚नबीﷺ ने बहुत सारे हक़ दिए जिनमें से कुछ यहाँ हैं⤵️
#महर का हक़, बेवा(#Widow) को फिरसे शादी करने का हक़, वालिद के प्रोपर्टी में हिस्सा, लड़की की….6/7
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इजाज़त के बग़ैर निकाह करने से भी नबीﷺ ने मना फ़र्माया और ऐसे बहुत सारे हक़ हैं जो कि यहाँ लिखना इम्पासिबल है
सोचो अगर नबी ﷺ न आते तो क्या होता.??
अल्लाहुअकबर !
अल्लाह का शुक्र है कि उसने अपने हबीब ﷺ की उम्मत में हमको पैदा किया।
अबू लहब जिसके बारे में तो एक #क़ुरआन की सुरह ही नाज़िल हो गई “सुरह लहब” इतने बड़े #काफिर शख़्स को नबी ﷺ के मिलाद पर अजर मिलता है तो हम मुसलमानो को क्यू नही.??
जो हदीस पोस्ट में Mention की गई उस हदीस को नक़ल फ़र्माया है।
अबू लहब की लौंडी थी जिसका नाम सोबिया था, उसने सरवर-ए-दो आलम ﷺ की पैदाइश पर अबू लहब को खबर दी थी तो रसूलअल्लाह ﷺ की पैदाइश की खबर सुनने पर अबू लहब सोबिया को आज़ाद कर दिया था
तो अबूलहब के मरने के बाद…2/6
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किसी ने उसे खाब में देखा, पूछा कि “कहो क्या हाल है.?”
तो वो बोला, आ-ग🔥 में हूँ अलबत्ता इतना करम है कि हर पीर की रात मुझ पर तकफीफ करदी जाती है और इशारे से बताया कि अपनी दो उंगलियों से पानी चूसता हूँ और ये इनायत मुझ पर इस वजह से है कि मुझे सोबिया ने भतीजे की पैदाइश की…..3/6
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नीचे वाली आयत में अल्लाह अज़्ज़वजल अपने प्यारे नबीﷺ से फ़र्मा रहा है कि हमने तुम्हें 1 या 2 आलम के लिए नही बल्कि सारे आलम के लिए रहमत बना के भेजा है
यहाँ गौर करें अल्लाह ने हुज़ूरﷺ को रहमत कहा है और जो पहली आयत पेश की गई है उसमें अल्लाह ने अपनी रहमत पर ख़ुशी…..1/6
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ख़ुशी करने का हुक्म दिया है
जो इन आयतों का मुनकिर होगा जो नबीﷺ को अपने लिए अल्लाह की रहमत और नेमत नही समझता वो आकाﷺ की विलादत की ख़ुशी से ऐतराज़ करेगा यानी वो ग़म मनाएगा प्यारे आकाﷺ की विलादत पर इब्लीस की तरह
Next Proof:-
Quran “अपने रब की नेअमतों का खूब खूब चर्चा करो”.2/6👇
(Surah Duha aayat 11)
इस आयत में अल्लाह अज़्ज़वजल ने हमें अपनी नेमतों का चर्चा करने का हुक्म दिया। हर मोमिन ये जनता है कि अल्लाह अज़्ज़वजल की सबसे बड़ी और अज़ीम नेमत हमारे लिए उसके रसूल हमारे प्यारे आका ﷺ हैं।
इस बात को समझ ने के लिए क़ुरान की एक आयत के मुलाहिज़ा फ़रमाए..3/6👇
कोई तो बतादो यार, कि कहाँ लिखा है..? ये लोग दलील देना छोड़ कर हमसे सवाल कर रहे हैं कि कहा लिखा है के मनाओ कहकर।
Principle(उसूल) तो ये है कि जो माना करे वो दलील दे और रोके😂
अल्लाह पाक़ ने भी क़ुरआन शरीफ़ में यही फ़र्माया है।…..1/6
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”लाओ अपनी दलील अगर सच्चे हो।”
“Produce Your Proof, If You Are Truthful”
(Sarah Al Baqrah Aayat 111)
जो मना करते है उन्हे चाहिए कि दलील लाएँ
For Example:- अगर मै कुछ काम करूँ जो कि इस्लाम में ग़लत है तो आप को ये बताना चाहिए कि ये क्यूँ ग़लत है या इसे ग़लत अल्लाह और....2/6
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रसूल ﷺ ने कहा या सहाबा ने कहा है।ये बता कर आप मुझे रोक सकते हैं।
आप तो कुछ बता नही रहे है उल्टा मुझसे ही दलील माँग रहे है तो ये लॉजिक और इस्लाम दोनो के ख़िलाफ़ है।अब रही बात मिलादुन्नबी ﷺ की तो उसके रोकने वालों को चाहिए कि दलील देकर रोकें कि कहाँ पर अल्लाह ने इसे हराम...3/6
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😂एक साल में 52 FRIDAYS आते हैं और सही हदीस के हिसाब से FRIDAYS जुमा भी #ईद है तो टोटल #ईद 52 हुई + #ईदुलफित्र + #ईदुल_अज़हा + #यौमे_अरफाह = 55 और इससे ज़्यादा तो हदीस से साबित है😂
अब Reality सुने, जो 2 #ईदें हैं उसको #ईद_ए_शरई कहते हैं यानी उसमें Condition होते हैं….1/5
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खुतबा📖, तकबीरात और उसदिन रोज़ा रखना भी जाइज़ नही है
लेकिन हम नबी ﷺ के लिए ईद का लफ़्ज़ इस्तेमाल करे तो इन भक्तों के कान खड़े होजाते हैं और कहते हैं
ईद तो सिर्फ़ दो है इस्लाम में ये तीसरी कहाँ से आगई.? Lol😂
खुद सबका बर्थडे विश करेगा इंग्लिश में तो वही मतलब होगा ओर उसमें #ईद का लफ़्ज़ ..3/5
अभी कुछ दिनो पहले जो नॉन मुसलिमों का तेवहार गुज़रा है उसे बहुत सारे हमारे मुस्लिम लोगों ने भी Celebrate किया, और Wishes की
लेकिन किसी भी Wहाबी, सेल्फ़ी, तबलीगी या देवबन्दी मोलवी ने सामने आकर ये नही कहा के Celebrate मत करो..1/3
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और Wishes मत करो न तो किसी ने Facebook पर या Twitter पर Live आकर कहा या न किसी ने अपने Official अकाउंट पर कुछ अपलोड किया🤔
चाहे वो कोई नालायक हो या कोई लाल दुपट्टे वाली आपा हों किसी ने भी कुछ नही कहा
लेकिन आप याद रखना यही लोग ईद मिलादुंनबी ﷺ पर जंगली कु/त्तों🦮 की तरह..2/3
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हर जगह भूकते नज़र आएँगे ये लोग विडीयो भी बनाएँगे और वही Silly Objection करेंगे की Celebrate मत करो, मत मनाओ,ETC.
इन सभी से और इनके Followers से मेरा सिर्फ़ एक☝️ सवाल है
👉क्या नान मुस्लिमों के तेवहारों से भी ज़्यादा मिलादुंनबी ﷺ मनाना तुम्हारे नज़दीक ग़लत है..??🤔