सामान्यजनो की यह मान्यता है की श्रीरामने #Dussehra के दिन #Ravana का वध किया था। इसी लिए आज के दिन #रावणदहन भी किया जाता है।
लेकिन हमारे कोई भी शास्त्रमें यह नहीं लिखा की रावणवध दशहरा को हुआ था। दशहरा तो छोडो, उसके आसपास भी नहीं हुआ था।
क्रिष्किन्धाकाण्ड सर्ग २६
श्रीराम सुग्रीव को कह रहे है की कार्तिकमास आने के बाद रावणवध के लिए प्रयत्न करना। तब तक तुम महलमें रहकर आनन्द करो।
दशहरा अश्विनमासमें आता है। कार्तिकमास तक तो श्रीराम क्रिष्किन्धामें ही थे। तो उन्होने दशहरे को रावणवध कैसे कर दिया?
यह सर्ग २७ के श्लोक है। जहाँ पर श्रीराम सुग्रीव से स्पष्ट कह रहे है की वह चतुर्मास के समय तक पर्वत पर निवास करेगे। चारमास समाप्त होने के बाद ही वह रावणवध के लिए प्रयत्न करेगे।
यह सर्वविदित है की निश्चित्काल बितने के बाद भी जब सुग्रीव सीताजी की खोज करने के लिए उद्यत नहीं हुआ तब लक्ष्मणजीने उसे जाकर डांटा था।
तब सुग्रीवने सीता की खोज करने के लिए सारे वानरो को एक माह का समय दिया था। यानी कार्तिक से खोज आरम्भ करी हो तो मृगशिर्ष मास तक केवल खोज चल रही थी।
अङ्गद के नेतृत्वमें जो वानरो का समुह दक्षिणमें गया था वह शिशिर ऋतु तक सीता को खोज नहीं पाया था। सुग्रीवने जो एक माह की अवधी दी थी, वह कब की बीत चूकी थी।
शिशिर भी समाप्त होकर वसन्तऋतु आनेवाली थी, लेकिन अबतक सीताजी का पता भी उनको नहीं लगा था।
इस लिए दशहरा को रावणवध करना असम्भव है
यहां अङ्गद खुद बोल रहा है की अश्विनमास चालु था तब वह सीता की खोज के लिए नीकले थे। सुग्रीवने जो एक माह का समय दिया था, वह कब का बीत चूका था। इस प्रकार यह सिद्ध होता है की अश्विन दशमी को तो श्रीरामजी को ज्ञात ही नहीं था की सीता कहा है। रावण का वध करने की तो कोई सम्भावना ही नहीं थी।
यहाँ ध्यान दे की श्रीराम कार्तिकमासमें रावण को खोजने की बात करते है और अङ्गद बोल रहा है की में अश्विनमास में नीकला था। तो क्या यह विरोधाभास है?
जी नहीं। श्रीराम उत्तरापथ से थे जहाँ पुर्णिमान्त मास चलता है और अंगद दक्षिणापथ से था, जहाँ अमान्तमास चलता है।
दशहरे के बाद जो कृष्णपक्ष आता है वह श्रीराम के लिए कार्तिकमास का कृष्णपक्ष था, लेकिन अङ्गद के लिए अश्विनमास का ही कृष्णपक्ष था।
इस लिए श्रीरामने के लिए जो महिना कार्तिक था वही अङ्गद के लिए अश्विन था।
यह भेद आज भी यथावत् है।
श्रीराम का राज्याभिषेक चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को होना था। रावणवध के बाद वह शीघ्र अयोध्या पहुंचना चाहते थे क्यु की उनके वनवास की अवधी समाप्त हो रही थी।
इससे सिद्ध होता है की रावणवध चैत्र प्रतिपदा के आसपास हुआ था, क्यु की रावणवध के पश्चात् श्रीराम लङ्कामें लम्बा समय नहीं रुके थे।
अब कुछ पुराणो के प्रमाण भी देखते है। पुराण अनार्ष है, लेकिन वह भी इसी मान्यता का खण्डन करते है की रावणवध दशहरा को हुआ था।
पद्मपुराण के पातालखण्ड के अध्याय ३६में रामायण के घटनाक्रमकी तिथि दी है। उस पर एक नज़र डालते है।
सीताजी का हरण वनवास के तेरवे वर्षमें हुआ था। उस दिन माघमास के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि थी।
मार्गशिर्ष मास की शुक्लपक्ष की एकादशी को हनुमानजी लङ्का पहुंचे थे। चतुर्दशी के दिन उनहे ब्रह्मास्त्र से बान्धा गया था। पुर्णिमा के दिन उनहोने लङ्कादहन किया था।
मार्गशिर्ष वद अष्टमी के दिन उत्तराफाल्गुनी नक्षत्रमें श्रीराम दक्षिण के लिए प्रयाण करते है।
पौषमास में वह सागरतट तक पहुंचे। माघ मास से वानरसेना और राक्षसो के मध्य युद्ध का प्रारम्भ हुआ।
चैत्रमास के प्रतिपदा से रामरावण के मध्य युद्ध शुरु हुआ जो कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तक चला। श्रीरामने चैत्रमास की चतुर्दशी के दिन रावण का वध किया और अमावस्या को विभिषणने उसका अन्तिम संस्कार किया।
इस प्रकार रावणवध चैत्र कृष्ण चतुर्दशी को हुआ। उत्तरभारतमें यह वैशाख मास की चतुर्दशी थी
वैशाख की तृतीया को विभिषण का अभिषेक कर के श्रीराम अयोध्या आने को नीकले।
वह वैशाख मास की षष्ठी को अयोध्या पधारे और सप्तमी को उनका राज्याभिषेक हुआ।
सीता ११ महिने १४ दिन रावण के पास रही। श्रीराम की राज्याभिषेक के समय आयु ४२ वर्ष थी।
इस प्रकार पुराण के प्रमाण से भी सिद्ध होता है की दशहरा के दिन रावणवध नहीं हुआ था, परन्तु चैत्र (वैशाख) कृष्ण चतुर्दशी के दिन हुआ था।
इस लिए दशहरे पर रावणवध का उत्सव मनाना अशास्त्रीय है।
While certain cults refused to treat Women even as human, Veda treated them as Empress.
Rigveda 10.85.6 proclaims women to be empress of her in-laws family. Veda commands women to rule as empress after marriage.
Compare this with Quran 2.223 which considers women as a tilth for their husbands.
Contrary to the claim that women were denied education in Sanatan Dharma, Apala, Ghosha, Lopamudra, Surya, Kadru, Aditi, Indrani, Vishvara, Shraddha, etc is the name of a few female scholars who received the Veda mantra.
We have yet to see a single female scholar of the Quran from Islam.
Contrary to the Claim that Sanatan Dharma teaches to fill the ears of women with hot led, if they hear Veda Mantra, here the President of India, a tribal woman is doing Yajna (Fire Sacrifice) with full Vedic chants.
And see carefully, the prayers are also led by the female priests.
Just show me one picture from the Mosque where women were leading prayers for men. You will find none.
वामपन्थीओ द्वारा सनातनधर्म पर यह आक्षेप लगाया जाता है की सनातनधर्म में स्त्री को एक वस्तु मानकर विवाह के समय उसका कन्यादान किया जाता है। बोलिवुड के प्रभाव में आया हुआ हिन्दू भी कन्यादान को सत्य मान चुका है।
लेकिन हमारे वैदिक शास्त्र में कन्यादान शब्द है ही नहीं, पाणिग्रहण संस्कार है। इस संस्कार में वर द्वारा अपने दाहिने हाथ द्वारा कन्या का दाहिना हाथ पकडा जाता है।
पाणि का अर्थ है हाथ और वर द्वारा कन्या का हाथ ग्रहण करने के कारण यह संस्कार को पाणिग्रहण कहा जाता है।
कुछ प्रमाण देखते है।
आश्वालयन गृह्यसूत्र १.७.३ में पाणिग्रहण का वर्णन है। ऋग्वेद (10.85.6) के विवाहसूक्त के मन्त्र 'गृ॒भ्णामि॑ ते सौभग॒त्वाय॒' बोलकर वर द्वारा अपने दाहिने हाथ से कन्या का दाहिना हाथ ग्रहण करना लिखा है।
इस सूत्र में कन्यादान शब्द नहीं, ना ही कन्यादान की कोई विधि का वर्णन है।
आश्वालयन गृह्यसूत्र एक वेदाङ्ग है।
गोभिल गृह्यसूत्र २.२.१६ में भी पाणिग्रहण संस्कार का वर्णन है, कन्यादान का नहीं। यह भी एक वेदाङ्ग ही है।
महाभारतयुद्ध तक का तो भारत का इतिहास ब्राह्मणग्रन्थ और महाभारत आदि ग्रन्थो में सुरक्षित है। परंतु उसके बाद का इतिहास खोजना बहुत ही मुश्कील है।
महाभारतकाल में सूर्यवंश का प्रभुत्व नहीं दिखता। वह तब बडी सत्ता नहीं रहे थे। महाभारत में सूर्यवंशी बृहदबल मारा गया। उसका पुत्र उरुक्षय, फिर वत्यव्यूह, प्रतिव्योम शासक बने। परंतु उनका प्रभाव सीमित था। अंत में दिवाकर हुआ जो पांडवो के वंशज अधिसीमकृष्ण का समकालिन था। इसके बाद आर्षकाल समाप्त हुआ।
युधिष्ठिर के राज्यारोहण के १५ वर्ष बाद धृतराष्ट्र आदि वानप्रस्थ हुए। इसके बाद युधिष्ठिरने २१ वर्ष शासन किया।
श्रीकृष्ण का अवसान और द्वारिका के विनाश का समाचार सुनकर वह भी वानप्रस्थी हो गये। उनहोंने अपना राज्य पांच व्यक्तिओ में विभाजित किया।
क्या हमारे इतिहास के ग्रन्थोमें सतिप्रथा का वर्णन मिलता है?
सती जैसी अमानुषि प्रथा के बचाव में पौराणिक द्वारा अनेक ऐतिहासिक उदाहरण दिये जाते है और सिद्ध करने का प्रयत्न किया जाता है की प्राचीनकाल से सतीप्रथा प्रचलनमें थी।
इस विषय में कुछ ऐतिहासिक तथ्य है उसे देखते है।
सब से प्रचलित उदाहरण माद्री का है - जिसने पाण्डु के साथ सहगमन किया था। वास्तवमें माद्री के मोह के कारण पाण्डु का निधन हुआ था, इस अपराधबोध के कारण माद्रीने मरना पसन्द किया था। वह इस कलङ्क के साथ जीवीत नहीं रहना चाहती थी। इसी लिए उसने मरना पसन्द किया, इसे सती नहीं माना जा सकता।
वास्तवमें परिवार के किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाने पर शोकातुर होकर अपने प्राण त्याग देने के कयी उदाहरण हमारे शास्त्रोमें मिलते है। पिता-पुत्र, माता-पुत्र, भाई-भाई यह सब के उदाहरण हमे मिले है।
यह केवल भावना के अतिरेक में लिया हुआ निर्णय है, शास्त्रसम्मत परंपरा नहीं।
This is how idiots spread propaganda and fool common Hindus. He has zero understanding of the law and the Constitution but pretends to if a legal expert.
1. He claims that in India only Muslims, Parsi, Jain, etc are a minority. Hindus are not a minority and hence cannot claim the benefit of minority status.
The fact is - as per Article 29, the minority is based on religion as well as language and script.
So if you speak a language which is a minority in your state, you can claim minority status.
Gurukul teaches in Sanskrit which is a minority language in all states. You can establish Vedpathshala and enjoy minority status.