शास्त्रं च यस्यौशनसा प्रणीतं स रावणो दैववसाद विपन्न: !!
त्रिकूट पर्वत जिसका दुर्ग था,समुद्र जिसकी खाईं थी, महाबलवान राक्षसगण जिसके योद्धा थे, कुबेर के धन को भी जिसने जीत लिया था, सभी शास्त्रों और वेदों को जानने वाले शुक्राचार्य जिसके परामर्श दाता थे, ऐसा रावण भी दैववश नष्ट हो गया !
युद्ध में, घर में, पर्वत पर, अग्नि में, गुफा अथवा समुद्र में, कहीं भी कोई जाय किन्तु वह काल के कोप से नहीं बच सकता
प्रत्यंगिरा देवी भगवती काली का ही प्रचण्ड स्वरुप हैं। शरभ तथा गंडभेरुंड अवतार के बीच भीषण युद्ध 18 दिनों तक चलता रहा। उनके युद्ध के कारण तीनों लोको में त्राहिमाम मच गया।
तब माँ आदिशक्ति सृष्टि के कल्याण के उद्देश्य से आदिशक्ति ने भयंकर अवतार धारण कर लिया जिसका मुख शेर के समान था। उसमें शिव के शरभ अवतार, विष्णु के दोनों अवतारों (नरसिंह व गंडभेरुंड) की शक्तियां समाहित थी। यह रूप इतना विशाल था कि उसके समक्ष ब्रह्मांड अतिसूक्ष्म था।
भयंकर प्रत्यंगिरा रूप धारण करके माँ आदिशक्ति शरभ तथा गंडभेरुंड अवतार के पास गयी तथा एक जोरदार चिंघाड़ मारी। उन दोनों ने युद्ध रोक दिया तथा अपने असली अवतार में वापस आ गए। इस प्रकार माँ आदिशक्ति ने भगवान शिव तथा भगवान विष्णु के बीच चल रहे भीषण युद्ध का अंत किया।
सुवर्ण-पर्वत (सुमेरु) – के समान शरीरवाले, करोड़ों मध्याह्न के सूर्य के सदृश अनन्त तेजोराशि, विशाल-हृदय, अत्यन्त बलवान् भुजाओं वाले तथा वज्र के तुल्य नख और शरीरवाले है। भौंह, जीभ, दाँत और मुख विकराल है।
बाल भूरे रंग के तथा पूँछ कठोर और दुष्टों के दल के बल का नाश करने वाली है। तुलसीदासजी कहते है।– श्रीपवनकुमार की डरावनी मूर्ति जिसके हृदय में निवास करती है। उस व्यक्ति के समीप दुःख और पाप स्वप्न में भी नहीं आते ।
विजया दशमी पर्व की आप सभी को मंगलमयी हार्दिक शुभकामनाएं I
यह असत्य पर सत्य की जीत का प्रतीक है। आज के दिन जया विजया और अपराजिता देवी का पूजन होता है, और अपराजिता स्तोत्र का पाठ करना भी बहुत शुभ माना जाता है।
इस दिन सुबह में शस्त्र पूजा की जाती है। यह शस्त्र मां दुर्गा की शक्ति का प्रतीक होते हैं। जिनका उद्देश्य सत्य और धर्म की रक्षा करना है। आज विजयादशमी के अवसर पर शाम के समय में रावण का दहन करते है, और खुशियां मनाते है।
दशहरा के अवसर पर शमी के पेड़ की पूजा करने की भी परंपरा है। और आज के दिन नीलकंठ पक्षी का देखना भी बहुत शुभ माना जाता है। जहां जहां पर मां दुर्गा की प्रतिमाएं रखी गई हैं। वहां वहां पर मां दुर्गा विसर्जन का कार्यक्रम भी आयोजित होगा।
श्री दुर्गा सप्तशती, तृतीय अध्याय, श्लोक क्रमांक ३७,३८,३९ तथा ४०
॥ देव्युवाच॥
गर्ज गर्ज क्षणं मूढ मधु यावत्पिबाम्यहम्।
मया त्वयि हतेऽत्रैव गर्जिष्यन्त्याषु देवताः।।
देवी ने कहा - ओ मूढ़ ! मैं जबतक मधु पीती हूँ, तबतक तू क्षणभर के लिए खूब गर्ज ले । मेरे हाथसे यहीं तेरी मृत्यु हो जानेपर अब शीघ्र ही देवता भी गर्जना करेंगे।
॥ ऋषिरुवाच ॥
एवमुक्त्वा समुत्पत्य साऽऽरूढा तं महासुरम्।
पादेनाक्रम्य कण्ठे च शूलेनैनमताडयत् ॥
ऋषि कहते हैं - यों कहकर देवी उछलीं और उस महादैत्य के ऊपर चढ़ गयीं। फिर अपने पैर से उसे दबाकर उन्होंने शूल से उसके कण्ठ में आघात किया।
बौद्धिक क्षमता विकसित करने, चित्त की चंचलता एवं अस्वस्थता दूर करने के लिए सरस्वती साधना की विशेष उपयोगिता है। मन्दबुद्धि लोगों के लिए गायत्री महाशक्ति का सरस्वती तत्त्व अधिक हितकर सिद्घ होता है। मस्तिष्क-तंत्र से संबंधित अनिद्रा, सिर दर्द तनाव,
जैसे रोगों में गायत्री के इस अंश-सरस्वती साधना का लाभ मिलता है। कल्पना शक्ति की कमी, समय पर उचित निणर्य न कर सकना, विस्मृति, प्रमाद, दीघर्सूत्रता, अरुचि जैसे कारणों से भी मनुष्य मानसिक दृष्टि से अपंग, असमर्थ जैसा बना रहता है। उसके लिए सरस्वती साधना एक उपयोगी आध्यात्मिक उपचार है।
शिक्षा के प्रति जन-जन के मन-मन में अधिक उत्साह भरने-लौकिक अध्ययन और आत्मिक स्वाध्याय की उपयोगिता अधिक गम्भीरता पूवर्क समझने के लिए भी सरस्वती पूजन की परम्परा है।