जनकपुर के राजपरिवार ने अपनी चारों राजकुमारियों का विवाह संपन्न करा लिया। पिता के बटवारे में बेटियों के हिस्से आंगन आता है। जब आंगन में बेटी के विवाह का मण्डप बनता है, उसी क्षण वह आंगन बेटी का हो जाता है। विवाह के बाद वर के पिता कन्या के पिता से थोड़ा धन लेकर (1/11)
मण्डप का बंधन खोल वह आंगन लौटा तो देते हैं, पर सच यही है कि पिता अपना आंगन ले नहीं पाता। आंगन सदा बेटियों का ही होता है। घर के आंगन पर बेटियों का अधिकार होने का अर्थ समझ रहे हैं न? अपने घर में भी स्मरण रखियेगा इस बात को... उस दिन राजा जनक के राजमहल के आंगन पर ही नहीं, (2/11)
जनकपुर के हर आंगन पर सिया का अधिकार हो गया। वह आज भी है...
राजा ने बेटियों को भरपूर कन्या धन दिया। लाखों गायें, अकूत स्वर्ण, असंख्य दासियाँ... अब विदा की बेला थी। अपनी अंजुरी में अक्षत भर कर पीछे फेंकती बेटियां आगे बढ़ी, जैसे आशीष देती जा रही हों कि मेरे जाने के बाद (3/11)
भी इस घर में अन्न-धन बरसता रहे, यह घर हमेशा सुखी रहे। वे बढ़ीं अपने नए संसार की ओर! उनकी आंखों से बहते अश्रु उस आंगन को पवित्र कर रहे थे। उनकी सिसकियां कह रही थीं, "पिता! तुम्हारी सारी कठोरता को क्षमा करते हैं। तुम्हारी हर डांट क्षमा... हमारे पोषण में हुई तुम्हारी हर चूक (4/11)
क्षमा..."
माताओं ने बेटियों के आँचल में बांध दिया खोइछां! थोड़े चावल, हल्दी, दूभ और थोड़ा सा धन... ईश्वर से यह प्रार्थना करते हुए, कि तेरे घर में कभी अन्न की कमी न हो! तेरे जीवन में हल्दी का रंग सदैव उतरा रहे, तेरा वंश दूभ की तरह बढ़ता रहे, तेरे घर में धन की वर्षा होती (5/11)
रहे। और साथ ही यह बताते हुए, कि याद रखना! इस घर का सारा अन्न, सारा धन, सारी समृद्धि तुम्हारी भी है, तुम्हारे लिए हम सदैव सबकुछ लेकर खड़े रहेंगे।
जनकपुर की चारों बेटियां विदा हुईं तो सारा जनकपुर रोया। पर ये सिया के मोह में निकले अश्रु नहीं थे, ये सभ्यता के आंसू थे। गाँव (6/11)
के सबसे निर्धन कुल की बेटी के विदा होते समय गाँव की हवेली भी वैसे ही रोती है, जैसे गाँव की राजकुमारी के विदा होते समय गाँव का सबसे दरिद्र बुजुर्ग रोता है। बेटियां किसी के आंगन में जन्में, पर होती सारे गाँव की हैं। सिया उर्मिला केवल जनक की नहीं, जनकपुर की बेटी थीं।
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राजा दशरथ पहले ही जनकपुर के राजमहल से निकल कर जनवासे चले गए थे। परम्परा है कि ससुर मायके से विदा होती बहुओं का रोना नहीं सुनता। शायद उस नन्हे पौधे को उसकी मिट्टी से उखाड़ने के पाप से बचने के लिए... उसका धर्म यह है कि जब पौधा उसकी मिट्टी में रोपा जाय, तो वह माली दिन रात उसे (8/11)
पानी दे, खाद दे... अपने बच्चों की नई गृहस्थी को ठीक से सँवार देना ही उसका धर्म है।
चारों वधुएँ अपने नए कुटुंब के संग पतिलोक को चलीं। जनकपुर में महीनों तक छक कर खाने के बाद अयोध्या की प्रजा समधियाने से मिले उपहारों को लेकर गदगद हुई अयोध्या लौट चली।
समय ध्यान से देख रहा था (9/11)
उन चार महान बालिकाओं को, जिन्हें भविष्य में जीवन के अलग अलग मोर्चों पर बड़े कठिन युद्ध लड़ने थे। समय देख रहा था उन चार बालकों को भी, जिनके हिस्से उसने हजार परम्पराओं को एक सूत्र में बांध कर एक नए राष्ट्र के गठन की जिम्मेवारी दी थी।
बारात जनकपुर की सीमा से जैसे ही बाहर (10/11)
निकली, एकाएक तेज आँधी चलने लगी। हाथी भड़कने लगे, रथ डगमगाने लगे, धूल से समूचा आकाश काला हो गया। अचानक सबने देखा, धूल के अंधेरे से एक विराट तेजस्वी मूर्ति निकल कर चली आ रही थी। निकट आने पर सबने पहचाना, वे पिछले युग के राम थे, परशु-राम।
एक राजा की लड़की तारा भोजन करती थी। उसने अपने पिताजी से कहा, पिताजी मुझे नौ लाख तारे बनवा दो, मैं, दान करूँगी। राजा ने सुनार को बुलाया और कहा कि मेरी बेटी तारा भोजन करती है तुम नौ लाख तारे बना दो। इतना सुनकर सुनार सूखने लगा।
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सुनारी ने पूछा कि उदास क्यों रहते हो। उसने कहा राजा की लड़की ने नौ लाख तारे बनाने के लिए कहा है। मैं कैसे बनाऊँ मुझे तारे बनाने नहीं आते। राजा की बात है, नहीं बने तो कोल्हू में पिलवा देगा।
सुनारी ने कहा, इसमें परेशान होने की क्या बात है। गोल-सा पतरा काट के कलिया काट (2/7)
देना, राजा ले जाएगा।
सुनार ने ऐसा ही किया, राजा ले गया। राजा की लड़की ने नौ लाख तारे और बहुत-सा दान दिया। भगवान का सिंहासन डोलने लगा। भगवान ने कहा देखों मेरे नेम व्रत पर कौन है, तीन कूट देखा तो कोई नहीं था, चौथे कूट देखा कि राजा की लड़की तारा भोजन करा रही है। भगवान ने (3/7)
काशी... साल में केवल चार दिन दर्शन देती हैं मां अन्नपूर्णा। अगर मिल जाए माता का खजाना, तो हमेशा भरी रहेगी तिजोरी।
वाराणसी को मंदिरों का शहर भी कहते हैं। इन मंदिरों की श्रृंखला में काशी का एक ऐसा मंदिर है जो काफी अनोखा है। क्योंकि इस मंदिर का कपाट साल में केवल चार दिन (1/4)
ही खुलता हैं। हम बात कर रहे हैं काशी के प्रसिद्ध माता अन्नपूर्णा मंदिर की। इन्हें तीनों लोकों में धन- धान्य और खाद्यान्न की देवी माना जाता है। कहा जाता है कि माता ने स्वयं भगवान शिव को भोजन खिलाया था। जिस की गवाही मंदिर की दीवारों पर बने चित्र देते हैं।
साल में केवल (2/4)
चार दिन "धनतेरस, छोटी दीवाली, बड़ी दीवाली और अन्नकूट" को खुलते है कपाट। यह अन्नकूट महोत्सव गोबर्धन पूजा के दिन आयोजित होता है। धनतेरस को माता जी का खजाना खुलता है, उस खजाने में से भक्तों को धान, लावा और सिक्के का प्रसाद दिया जाता है। ऐसी मान्यता है कि प्रसाद में मिला (3/4)
दुर्योधन ने उस अबला स्त्री को दिखा कर अपनी जंघा ठोकी थी, तो उसकी जंघा तोड़ी गयी। दु:शासन ने छाती ठोकी तो उसकी छाती फाड़ दी गयी।
महारथी कर्ण ने एक असहाय स्त्री के अपमान का समर्थन किया, तो श्रीकृष्ण ने असहाय दशा में ही उसका वध कराया।
भीष्म ने यदि प्रतिज्ञा में बंध कर (1/11)
एक स्त्री के अपमान को देखने और सहन करने का पाप किया, तो असँख्य तीरों में बिंध कर अपने पूरे कुल को एक-एक कर मरते हुए भी देखा...।
भारत का कोई बुजुर्ग अपने सामने अपने बच्चों को मरते देखना नहीं चाहता, पर भीष्म अपने सामने चार पीढ़ियों को मरते देखते रहे। जब-तक सब देख नहीं (2/11)
लिया, तब-तक मर भी न सके... यही उनका दण्ड था।
धृतराष्ट्र का दोष था पुत्रमोह, तो सौ पुत्रों के शव को कंधा देने का दण्ड मिला उन्हें। सौ हाथियों के बराबर बल वाला धृतराष्ट्र सिवाय रोने के और कुछ नहीं कर सका।
दण्ड केवल कौरव दल को ही नहीं मिला था। दण्ड पांडवों को भी मिला।
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क्या आप जानते है कि केला 🍌 और नारियल 🥥 सनातनी हिन्दुओ के पूजा पाठ में खास स्थान क्यूं रखते है?
नारियल और केला ये दो ही ऐसे फल है जो किसी के जूठे बीज से उत्पन्न नही होते, मतलब अगर हमे आम का पेड़ लगाना है तो हम आम को खाते है और उसके बीज या गुठली को जमीन में गाड़ते है तो (1/4)
वह पौधे के रूप में उगता है, या फिर ऐसे ही गुठली निकाल के लगा दे तो भी वह उस पेड़ का बीज (जूठा या अंग) ही हुआ, लेकिन केले का या नारियल का पेड़ लगाने को केवल जमीन से निकला हुआ पौधा (ओधी) ही लगाते है, जो की खुद में ही पूर्ण है,न किसी का बीज न हिस्सा, न जूठा, इसलिए भगवान (2/4)
को सम्पूर्ण फल अर्पित किया जाता है।
हमारे पूर्वज कितने ज्ञाता थे, जो चीजे हमे आज तक पता नहीं वो पहले से जानते थे और उसका जीवन में इस्तेमाल कर जीवन पध्दति में ढाल लिए थे, जो हमे परंपरा से प्राप्त हुआ है, केवल हम उन्हे इस्तेमाल करते गए पर उनकी क्यों और क्या (3/4)
लिज ट्रस के इस्तीफे से लहालोट होने वालों की सद्यः बाढ़ सी आ गयी है। लोग अपनी और मोई जी की पीठ ठोंक रहे कि भारत के सख्त रुख ने ही उसे इस्तीफा देने पर मजबूर कर दिया। भईया, प्रशंसा करो या आलोचना, लेकिन उसमे कुछ तथ्य भी तो होने चाहिए। या एकदम ही बिना सरपैर की कुछ भी (1/8)
उड़ाने बैठ जाओगे?
ब्रिटेन ही नहीं, यूक्रेन एपिसोड पर अमेरिका के झांसे में आये अधिकतम यूरोपीय देशों का आज बदतरीन हाल है। रशियन पेट्रोलियम उत्पादों और कोल की सप्लाई सीमित होने से इन देशों में उद्योग-धंधे ठप्प हो रहे हैं, बेरोजगारी और महंगाई बेतहाशा बढ़ रही है, और आम यूरोपीय (2/8)
प्रजा में गुस्सा बढ़ता जा रहा है। फ्रांस और इटली में पुलिस को लाठीचार्ज करके प्रदर्शनकारियों को खदेड़ना पड़ रहा है, और अगले दो-तीन महीनों में स्थिति इतनी विकट होने जा रही है कि हमें पूरे यूरोप की सड़कों पर जिंदाबाद मुर्दाबाद करते करोड़ों लोग भी दिखें तो अब आश्चर्य नहीं (3/8)
जिन वैश्विक हालातों में भी हमारा देश काफी हद तक संभला हुआ है उसके लिए मोदी जी एवम टीम का धन्यवाद बनता है...
हर देश की सरकार परेशान है... महंगाई, भुखमरी, बेरोजगारी हर देश पर हावी है... सरकार में बने रहना मुश्किल होता जा रहा है...
लिज ट्रस ने पहले से त्रस्त ब्रिटेन (1/5)
को, अपने वाहियात फैसलों से मात्र 45 दिन में उस हालात पर ला खड़ा किया है कि कब लोग सड़कों पर उतर आएं कोई भरोसा नहीं...
बिना बैकअप के 6 ट्रिलियन डॉलर अमेरिका छाप चुका है कोरोना काल से अब तक... साथ ही डॉलर की सप्लाई पर बीच बीच मे ब्रेक लगाता है ताकि उसकी कीमत बढ़ती रहे... (2/5)
ये थोड़े ही समय के लिए है... आप जनवरी के बाद से डॉलर की हालत देखना (mark my words)... बैंड बजने वाली है डॉलर की...
रुपये को मजबूत करने के लिए यू ऐ ई से डिस्काउंटेड प्राइज पर 200 टन सोना खरीदा जा रहा है वो भी इंडियन रूपीज में... गोल्ड रिजर्व बढ़ेगा तो करेंसी अपने आप (3/5)