सनातनी हिन्दू राकेश (मोदी का परिवार) Profile picture
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चीन की सभ्यता 5000 साल पुरानी मानी जाती है, लगभग महाभारत काल का समय, तो चीन का उल्लेख महाभारत में क्यों नहीं है?

महाभारत काल में भारतीयों का विदेशों से संपर्क, प्रमाण जानकर चौंक जाएंगे।

युद्ध तिथि: महाभारत का युद्ध और महाभारत ग्रंथ की रचना का काल अलग अलग रहा है। इससे भ्रम की स्थिति उत्पन्न होने की जरूरत नहीं। यह सभी और से स्थापित सत्य है कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र तथा अष्टमी तिथि के संयोग से जयंती नामक योग में लगभग 3112 ईसा पूर्व को हुआ हुआ। भारतीय खगोल वैज्ञानिक आर्यभट्ट के अनुसार महाभारत युद्ध 3137 ईसा पूर्व में हुआ और कलियुग का आरम्भ कृष्ण के निधन के 35 वर्ष पश्चात हुआ। महाभारत काल वह काल है जब सिंधुघाटी की सभ्यता अपने चरम पर थी।

विद्वानों का मानना है कि महाभारत में वर्णित सूर्य और चंद्रग्रहण के अध्ययन से पता चलता है कि युद्ध 31वीं सदी ईसा पूर्व हुआ था लेकिन ग्रंथ का रचना काल भिन्न भिन्न काल में गढ़ा गया। प्रारंभ में इसमें 60 हजार श्लोक थे जो बाद में अन्य स्रोतों के आधार पर बढ़ गए। इतिहासकार डी.एस त्रिवेदी ने विभिन्न ऐतिहासिक एवं ज्योतिष संबंधी आधारों पर बल देते हुए युद्ध का समय 3137 ईसा पूर्व निश्चित किया है। ताजा शोधानुसार ब्रिटेन में कार्यरत न्यूक्लियर मेडिसिन के फिजिशियन डॉ. मनीष पंडित ने महाभारत में वर्णित 150 खगोलीय घटनाओं के संदर्भ में कहा कि महाभारत का युद्ध 22 नवंबर 3067 ईसा पूर्व को हुआ था। ...तो यह तो थी युद्ध तिथि। अब जानिए महाभारत काल में भारतीयों का विदेशियों से संपर्क।

महाभारत काल में अखंड भारत के मुख्यत: 16 महाजनपदों (कुरु, पंचाल, शूरसेन, वत्स, कोशल, मल्ल, काशी, अंग, मगध, वृज्जि, चे‍दि, मत्स्य, अश्मक, अवंति, गांधार और कंबोज) के अंतर्गत 200 से अधिक जनपद थे। दार्द, हूण, हुंजा, अम्बिस्ट आम्ब, पख्तू, कैकय, वाल्हीक बलख, अभिसार (राजौरी), कश्मीर, मद्र, यदु, तृसु, खांडव, सौवीर सौराष्ट्र, शल्य, यवन, किरात, निषाद, उशीनर, धनीप, कौशाम्बी, विदेही, अंग, प्राग्ज्योतिष (असम), घंग, मालव, कलिंग, कर्णाटक, पांडय, अनूप, विन्ध्य, मलय, द्रविड़, चोल, शिवि शिवस्थान-सीस्टान-सारा बलूच क्षेत्र, सिंध का निचला क्षेत्र दंडक महाराष्ट्र सुरभिपट्टन मैसूर, आंध्र, सिंहल, आभीर अहीर, तंवर, शिना, काक, पणि, चुलूक चालुक्य, सरोस्ट सरोटे, कक्कड़, खोखर, चिन्धा चिन्धड़, समेरा, कोकन, जांगल, शक, पुण्ड्र, ओड्र, क्षुद्रक, योधेय जोहिया, शूर, तक्षक व लोहड़ लगभग 200 जनपद से अधिक जनपदों का महाभारत में उल्लेख मिलता है।

महाभारत काल में म्लेच्छ और यवन को विदेशी माना जाता था। भारत में भी इनके कुछ क्षेत्र हो चले थे। हालांकि इन विदेशियों में भारत से बाहर जाकर बसे लोग ही अधिक थे। देखा जाए तो भारतीयों ने ही अरब और योरप के अधिकतर क्षेत्रों पर शासन करके अपने कुल, संस्कृति और धर्म को बढ़ाया था। उस काल में भारत दुनिया का सबसे आधुनिक देश था और सभी लोग यहां आकर बसने और व्यापार आदि करने के प्रति उत्सुक रहते थे। भारतीय लोगों ने भी दुनिया के कई हिस्सों में पहुंचकर वहां शासन की एक नए देश को गढ़ा है, इंडोनेशिया, सिंगापुर, मलेशिया, कंबोडिया, वियतनाम, थाईलैंड इसके बचे हुए उदाहरण है। भारत के ऐसे कई उपनिवेश थे जहां पर भारतीय धर्म और संस्कृति का प्रचलन था।

ऋषि गर्ग को यवनाचार्य कहते थे। यह भी कहा जाता है कि अर्जुन की आदिवासी पत्नी उलूपी स्वयं अमेरिका की थी। धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी कंदहार और पांडु की पत्नी माद्री ईरान के राजा सेल्यूकस (शल्य) की बहिन थी। ऐसे उल्लेख मिलता है कि एक बार मुनि वेद व्यास और उनके पुत्र शुकदेव आदि जो अमेरिका मेँ थे। शुक ने पिता से कोई प्रश्न पूछा। व्यास जी इस बारे मेँ चूंकि पहले बता चुके थे, अत उन्होंने उत्तर न देते हुए शुक को आदेश दिया कि शुक तुम मिथिला (नेपाल) जाओ और यही प्रश्न राजा जनक से पूछना।

तब शुक अमेरिका से नेपाल जाना पड़ा था। कहते हैं कि वे उस काल के हवाई जहाज से जिस मार्ग से निकले उसका विवरण एक सुन्दर श्लोक में है:- "मेरोहर्रेश्च द्वे वर्षे हेमवँते तत:। क्रमेणेव समागम्य भारतं वर्ष मासदत्।। सदृष्टवा विविधान देशान चीन हूण निषेवितान।
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अर्थात शुकदेव अमेरिका से यूरोप (हरिवर्ष, हूण, होकर चीन और फिर मिथिला पहुंचे। पुराणों हरि बंदर को कहा है। वर्ष माने देश। बंदर लाल मुंह वाले होते हैं। यूरोपवासी के मुंह लाल होते हैं। अत:हरिवर्ष को यूरोप कहा है। हूणदेश हंगरी है यह शुकदेव के हवाई जहाज का मार्ग था।... अमेरिकन महाद्वीप के बोलीविया (वर्तमान में पेरू और चिली) में हिन्दुओं ने प्राचीनकाल में अपनी बस्तियां बनाईं और कृषि का भी विकास किया। यहां के प्राचीन मंदिरों के द्वार पर विरोचन, सूर्य द्वार, चन्द्र द्वार, नाग आदि सब कुछ हिन्दू धर्म समान हैं। जम्बू द्वीप के वर्ण में अमेरिका का उल्लेख भी मिलता है। पारसी, यजीदी, पैगन, सबाईन, मुशरिक, कुरैश आदि प्रचीन जाति को हिन्दू धर्म की प्राचीन शाखा माना जाता है।

ऋग्वेद में सात पहियों वाले हवाई जहाज का भी वर्णन है।- "सोमा पूषण रजसो विमानं सप्तचक्रम् रथम् विश्वार्भन्वम्।''... इसके अलावा ऋग्वेद संहिता में पनडुब्बी का उल्लेख भी मिलता है, "यास्ते पूषन्नावो अन्त:समुद्रे हिरण्मयी रन्तिरिक्षे चरन्ति। ताभिर्यासि दूतां सूर्यस्यकामेन कृतश्रव इच्छभान:"।

श्रीकृष्ण और अर्जुन अग्नि यान (अश्वतरी) से समुद्र द्वारा उद्धालक ऋषि को आर्यावर्त लाने के लिए पाताल गए। भीम, नकुल और सहदेव भी विदेश गए थे। अवसर था युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ का। यह महान ऋषियोँ और राजाओँ को निमंत्रण देने गए। यह लोग चारों दिशाओं में गए। कृष्ण अर्जुन का अग्नियान अति आधुनिक मोटर वोट थी। कहते हैं कि कृष्ण और बलराम एक बोट के सहारे ही नदी मार्ग से बहुत कम समय में मथुरा से द्वारिका में पहुंच जाते थे।

महाभारत में अर्जुन के उत्तर-कुरु तक जाने का उल्लेख है। कुरु वंश के लोगों की एक शाखा उत्तरी ध्रुव के एक क्षेत्र में रहती थी। उन्हें उत्तर कुरु इसलिए कहते हैं, क्योंकि वे हिमालय के उत्तर में रहते थे। महाभारत में उत्तर-कुरु की भौगोलिक स्थिति का जो उल्लेख मिलता है वह रूस और उत्तरी ध्रुव से मिलता जुलता है। हिमालय के उत्तर में रशिया, तिब्बत, मंगोल, चीन, किर्गिस्तान, कजाकिस्तान आदि आते हैं। अर्जुन के बाद बाद सम्राट ललितादित्य मुक्तापिद और उनके पोते जयदीप के उत्तर कुरु को जीतने का उल्लेख मिलता है।

अर्जुन के अपने उत्तर के अभियान में राजा भगदत्त से हुए युद्ध के संदर्भ में कहा गया है कि चीनियों ने राजा भगदत्त की सहायता की थी। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ सम्पन्न के दौरान चीनी लोग भी उन्हें भेंट देने आए थे।

महाभारत में यवनों का अनेका बार उल्लेख हुआ है। संकेत मिलता है कि यवन भारत की पश्चिमी सीमा के अलाव मथुरा के आसपास रहते थे। यवनों ने पुष्यमित्र शुंग के शासन काल में भयंकर आक्रमण किया था। कौरव पांडवों के युद्ध के समय यवनों का उल्लेख कृपाचार्य के सहायकों के रूप में किया गया है। महाभारत काल में यवन, म्लेच्छ और अन्य अनेकानेक अवर वर्ण भी क्षत्रियों के समकक्ष आदर पाते थे। महाभारत काल में विदेशी भाषा के प्रयोग के संकेत भी विद्यमान हैं। कहते हैं कि विदुर लाक्षागृह में होने वाली घटना का संकेत विदेशी भाषा में देते हैं।

जरासंध का मित्र कालयवन खुद यवन देश का था। कालयवन ऋषि शेशिरायण और अप्सारा रम्भा का पुत्र था। गर्ग गोत्र के ऋषि शेशिरायण त्रिगत राज्य के कुलगुरु थे। काल जंग नामक एक क्रूर राजा मलीच देश पर राज करता था। उसे कोई संतान न थी जिसके कारण वह परेशान रहता था। उसका मंत्री उसे आनंदगिरि पर्वत के बाबा के पास ले गया। बाबा ने उसे बताया की वह ऋषि शेशिरायण से उनका पुत्र मांग ले। ऋषि शेशिरायण ने बाबा के अनुग्रह पर पुत्र को काल जंग को दे दिया। इस प्रकार कालयवन यवन देश का राजा बना।

महाभारत में उल्लेख मिलता है कि नकुल में पश्चिम दिशा में जाकर हूणों को परास्त किया था। युद्धिष्ठिर द्वारा राजसूय यज्ञ सम्पन्न करने के बाद हूण उन्हें भेंट देने आए थे। उल्लेखनीय है कि हूणों ने सर्वप्रथम स्कन्दगुप्त के शासन काल (455 से 467 ईस्वी) में भारत के भितरी भाग पर आक्रमण करके शासन किया था। हूण भारत की पश्‍चिमी सीमा पर स्थित थे। इसी प्रकार महाभारत में सहदेव द्वारा दक्षिण भारत में सैन्य अभियान किए जाने के संदर्भ में उल्लेख मिलता है कि सहदेव के दूतों ने वहां स्थित यवनों के नगर को वश में कर लिया था।

प्राचीनकाल में भारत और रोम के मध्य घनिष्ठ व्यापारिक संबंध था। आरिकामेडु ने सन् 1945 में व्हीलर द्वारा कराए गए उत्खनन के फलस्वरूप रोमन बस्ती का अस्तित्व प्रकाश में आया है। महाभारत में दक्षिण भारत की यवन बस्ती से तात्पर्य आरिकामेडु से प्राप्त रोमन बस्ती ही रही होगी। हालांकि महाभारत में एक अन्य स्थान पर रोमनों का स्पष्ट उल्लेख मिलता है। इस उल्लेख के अनुसार रोमनों द्वारा युद्धिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के समापन में दौरान भेंट देने की बात कही गई है।
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धर्म ग्रंथों के ज्ञान का सार

१. ईश्वर के बारे में:

ब्रह्म (परमात्मा) एक ही है जिसे कुछ लोग सगुण (साकार) कुछ लोग निर्गुण (निराकार) कहते हैं। हालांकि वह अजन्मा, अप्रकट है। उसका न कोई पिता है और न ही कोई उसका पुत्र है। वह किसी के भाग्य या कर्म को नियंत्रित नहीं करता। ना कि वह किसी को दंड या पुरस्कार देता है। उसका न तो कोई प्रारंभ है और ना ही अंत। वह अनादि और अनंत है। उसकी उपस्थिति से ही संपूर्ण ब्रह्मांड चलायमान है। सभी कुछ उसी से उत्पन्न होकर अंत में उसी में लीन हो जाता है। ब्रह्मलीन।

२. ब्रह्मांड के बारे में:

यह दिखाई देने वाला जगत फैलता जा रहा है और दूसरी ओर से यह सिकुड़ता भी जा रहा है। लाखों सूर्य, तारे और धरतीयों का जन्म है तो उसका अंत भी। जो जन्मा है वह मरेगा। सभी कुछ उसी ब्रह्म से जन्में और उसी में लीन हो जाने वाले हैं। यह ब्रह्मांड परिवर्तनशील है। इस जगत का संचालन उसी की शक्ति से स्वत: ही होता है। जैसे कि सूर्य के आकर्षण से ही धरती अपनी धूरी पर टिकी हुई होकर चलायमान है। उसी तरह लाखों सूर्य और तारे एक महासूर्य के आकर्षण से टिके होकर संचालित हो रहे हैं। उसी तरह लाखों महासूर्य उस एक ब्रह्मा की शक्ति से ही जगत में विद्यमान है।

३. आत्मा के बारे में:

आत्मा का स्वरूप ब्रह्म (परमात्मा) के समान है। जैसे सूर्य और दीपक में जो फर्क है उसी तरह आत्मा और परमात्मा में फर्क है। आत्मा के शरीर में होने के कारण ही यह शरीर संचालित हो रहा है। ठीक उसी तरह जिस तरह कि संपूर्ण धरती, सूर्य, ग्रह नक्षत्र और तारे भी उस एक परमपिता की उपस्थिति से ही संचालित हो रहे हैं।

आत्मा का ना जन्म होता है और ना ही उसकी कोई मृत्यु है। आत्मा एक शरीर को छोड़कर दूसरा शरीर धारण करती है। यह आत्मा अजर और अमर है। आत्मा को प्रकृति द्वारा तीन शरीर मिलते हैं एक वह जो स्थूल आंखों से दिखाई देता है। दूसरा वह जिसे सूक्ष्म शरीर कहते हैं जो कि ध्यानी को ही दिखाई देता है और तीसरा वह शरीर जिसे कारण शरीर कहते हैं उसे देखना अत्यंत ही मुश्लिल है। बस उसे वही आत्मा महसूस करती है जो कि उसमें रहती है। आप और हम दोनों ही आत्मा है हमारे नाम और शरीर अलग अलग हैं लेकिन भीतरी स्वरूप एक ही है।

४. स्वर्ग और नरक के बारे में :

वेदों के अनुसार पुराणों के स्वर्ग या नर्क को गतियों से समझा जा सकता है। स्वर्ग और नर्क दो गतियां हैं। आत्मा जब देह छोड़ती है तो मूलत: दो तरह की गतियां होती है:- १. अगति और २. गति।

१. अगति: अगति में व्यक्ति को मोक्ष नहीं मिलता है उसे फिर से जन्म लेना पड़ता है।

२. गति: गति में जीव को किसी लोक में जाना पड़ता है या वह अपने कर्मों से मोक्ष प्राप्त कर लेता है।

अगति के चार प्रकार है: १. क्षिणोदर्क, २. भूमोदर्क, ३. अगति और ४. दुर्गति।

क्षिणोदर्क: क्षिणोदर्क अगति में जीव पुन: पुण्यात्मा के रूप में मृत्यु लोक में आता है और संतों सा जीवन जीता है।

भूमोदर्क: भूमोदर्क में वह सुखी और ऐश्वर्यशाली जीवन पाता है।

अगति: अगति में नीच या पशु जीवन में चला जाता है।

दुर्गति: दुर्गति में वह कीट, कीड़ों जैसा जीवन पाता है।

गति के भी 4 प्रकार:-

गति के अंतर्गत चार लोक दिए गए हैं:- १. ब्रह्मलोक, २. देवलोक, ३. पितृलोक और ४. नर्कलोक। जीव अपने कर्मों के अनुसार उक्त लोकों में जाता है।

तीन मार्गों से यात्रा:

जब भी कोई मनुष्य मरता है या आत्मा शरीर को त्यागकर यात्रा प्रारंभ करती है तो इस दौरान उसे तीन प्रकार के मार्ग मिलते हैं। ऐसा कहते हैं कि उस आत्मा को किस मार्ग पर चलाया जाएगा यह केवल उसके कर्मों पर निर्भर करता है। ये तीन मार्ग हैं; अर्चि मार्ग, धूम मार्ग और उत्पत्ति विनाश मार्ग। अर्चि मार्ग ब्रह्मलोक और देवलोक की यात्रा के लिए होता है, वहीं धूममार्ग पितृलोक की यात्रा पर ले जाता है और उत्पत्ति-विनाश मार्ग नर्क की यात्रा के लिए है।

५. धर्म और मोक्ष के बारे में:

धर्मग्रंथों के अनुसार धर्म का अर्थ है यम और नियम को समझकर उसका पालन करना। नियम ही धर्म है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष में से मोक्ष ही अंतिम लक्ष्य होता है। हिंदु धर्म के अनुसार व्यक्ति को मोक्ष के बारे में विचार करना चाहिए। मोक्ष क्या है? स्थितप्रज्ञ आत्मा को मोक्ष मिलता है। मोक्ष का भावर्थ यह कि आत्मा शरीर नहीं है इस सत्य को पूर्णत: अनुभव करके ही अशरीरी होकर स्वयं के अस्तित्व को पूख्‍ता करना ही मोक्ष की प्रथम सीढ़ी है।
(१/४)Image ६. व्रत और त्योहार के बारे में:

हिन्दु धर्म के सभी व्रत, त्योहार या तीर्थ सिर्फ मोक्ष की प्राप्त हेतु ही निर्मित हुए हैं। मोक्ष तब मिलेगा जब व्यक्ति स्वस्थ रहकर प्रसन्नचित्त और खुशहाल जीवन जीएगा। व्रत से शरीर और मन स्वस्थ होता है। त्योहार से मन प्रसन्न होता है और तीर्थ से मन और मस्तिष्क में वैराग्य और आध्यात्म का जन्म होता है।

मौसम और ग्रह नक्षत्रों की गतियों को ध्यान में रखकर बनाए गए व्रत और त्योहार का महत्व अधिक है। व्रतों में चतुर्थी, एकादशी, प्रदोष, अमावस्या, पूर्णिमा, श्रावण मास और कार्तिक मास के दिन व्रत रखना श्रेष्ठ है। यदि उपरोक्त सभी नहीं रख सकते हैं तो श्रावण के पूरे महीने व्रत रखें। त्योहारों में मकर संक्रांति, महाशिवरात्रि, नवरात्रि, रामनवमी, कृष्ण जन्माष्टमी और हनुमान जन्मोत्सव ही मनाएं। पर्व में श्राद्ध और कुंभ का पर्व जरूर मनाएं।

व्रत करने से काया निरोगी और जीवन में शांति मिलती है। सूर्य की १२ और १२ चंद्र की संक्रांति होती है। सूर्य संक्रांतियों में उत्सव का अधिक महत्व है तो चंद्र संक्रांति में व्रतों का अधिक महत्व है। चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, अषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, अश्विन, कार्तिक, अगहन, पौष, माघ और फाल्गुन। इसमें से श्रावण मास को व्रतों में सबसे श्रेष्ठ मास माना गया है। इसके अलावा प्रत्येक माह की एकादशी, चतुर्दशी, चतुर्थी, पूर्णिमा, अमावस्या और अधिमास में व्रतों का अलग-अलग महत्व है। सौरमास और चंद्रमास के बीच बढ़े हुए दिनों को मलमास या अधिमास कहते हैं। साधुजन चतुर्मास अर्थात चार महीने श्रावण, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक माह में व्रत रखते हैं।

उत्सव, पर्व और त्योहार सभी का अलग-अलग अर्थ और महत्व है। प्रत्येक ऋतु में एक उत्सव है। उन त्योहार, पर्व या उत्सव को मनाने का महत्व अधिक है जिनकी उत्पत्ति स्थानीय परम्परा या संस्कृति से न होकर जिनका उल्लेख वैदिक धर्मग्रंथ, धर्मसूत्र, स्मृति, पुराण और आचार संहिता में मिलता है। चंद्र और सूर्य की संक्रांतियों अनुसार कुछ त्योहार मनाएं जाते हैं। १२ सूर्य संक्रांति होती हैं जिसमें चार प्रमुख है:- मकर, मेष, तुला और कर्क। इन चार में मकर संक्रांति महत्वपूर्ण है। सूर्योपासना के लिए प्रसिद्ध पर्व है छठ, संक्रांति और कुंभ। पर्वों में रामनवमी, कृष्ण जन्माष्टमी, गुरुपूर्णिमा, वसंत पंचमी, हनुमान जयंती, नवरात्री, शिवरात्री, होली, ओणम, दीपावली, गणेशचतुर्थी और रक्षाबंधन प्रमुख हैं। हालांकि सभी में मकर संक्रांति और कुंभ को सर्वोच्च माना गया है।

७. तीर्थ के बारे में:

तीर्थ और तीर्थयात्रा का बहुत पुण्य है। जो मनमाने तीर्थ और तीर्थ पर जाने के समय हैं उनकी यात्रा का सनातन धर्म से कोई संबंध नहीं। तीर्थों में चार धाम, ज्योतिर्लिंग, अमरनाथ, शक्तिपीठ और सप्तपुरी की यात्रा का ही महत्व है। अयोध्या, मथुरा, काशी और प्रयाग को तीर्थों का प्रमुख केंद्र माना जाता है, जबकि कैलाश मानसरोवर को सर्वोच्च तीर्थ माना है। बद्रीनाथ, द्वारका, रामेश्वरम और जगन्नाथ पुरी ये चार धान है। सोमनाथ, द्वारका, महाकालेश्वर, श्रीशैल, भीमाशंकर, ॐकारेश्वर, केदारनाथ विश्वनाथ, त्र्यंबकेश्वर, रामेश्वरम, घृष्णेश्वर और बैद्यनाथ ये द्वादश ज्योतिर्लिंग है। काशी, मथुरा, अयोध्या, द्वारका, माया, कांची और अवंति उज्जैन ये सप्तपुरी। उपरोक्त कहे गए तीर्थ की यात्रा ही धर्मसम्मत है।

८. संस्कार के बारे में:

संस्कारों के प्रमुख प्रकार सोलह बताए गए हैं जिनका पालन करना हर हिंदू का कर्तव्य है। इन संस्कारों के नाम है; गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, मुंडन, कर्णवेधन, विद्यारंभ, उपनयन, वेदारंभ, केशांत, सम्वर्तन, विवाह और अंत्येष्टि। प्रत्येक हिन्दू को उक्त संस्कार को अच्छे से नियमपूर्वक करना चाहिए। यह मनुष्य के सभ्य और हिन्दू होने की निशानी है। उक्त संस्कारों को वैदिक नियमों के द्वारा ही संपन्न किया जाना चाहिए।

९. पाठ करने के बारे में:

वेदो, उपनिषद या गीता का पाठ करना या सुनना प्रत्येक हिन्दू का कर्तव्य है। उपनिषद और गीता का स्वयंम अध्ययन करना और उसकी बातों की किसी जिज्ञासु के समक्ष चर्चा करना पुण्य का कार्य है, लेकिन किसी बहसकर्ता या भ्रमित व्यक्ति के समक्ष वेद वचनों को कहना निषेध माना जाता है। प्रतिदिन धर्म ग्रंथों का कुछ पाठ करने से देव शक्तियों की कृपा मिलती है। हिन्दू धर्म में वेद, उपनिषद और गीता के पाठ करने की परंपरा प्राचीनकाल से रही है। वक्त बदला तो लोगों ने पुराणों में उल्लेखित कथा की परंपरा शुरू कर दी, जबकि वेदपाठ और गीता पाठ का अधिक महत्व है।
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Dec 14, 2023 5 tweets 13 min read
लाशें नोची गिद्धों ने, कुत्तों ने खाई खाल,
साबरमती के सन्त, तूने कर दिया कमाल...

“कौन महा आत्मा, कैसी अहिंसा” पढ़ेंगे तो ही जान पाएंगे, अपनी पढ़ी पढाई बातो से हट कर “निष्पक्ष नजरिया” रखते हुए, आज आप गिनती कीजिये कि...

इस लेख में कितने महापुरुषों के कथन आये है और गिनती कीजिये इन घटनाओं पर तात्कालीन नेताओं ने क्या क्या लिखा है, और कितनी किताबे लिखी गयी है।

महापुरुषों के विचार पढिये, “सत्य” अंधेरे को चीर के बाहर निकलता दिखाई देगा।

सत्य जानने के लिये मेरे द्वारा “चिन्हित” किये गये हर एक शब्द को आराम से “समझ समझ” कर पढिये।

प्रथम विश्व युद्ध से पहले “ओटोमन सम्राज्य” के नाम से एक “मुस्लिम साम्राज्य” हुआ करता था जो आज के कई देशों में फैला हुआ था। “ओटोमन सम्राज्य” विशाल भूभाग पर फैला हुआ था, उस “ओटोमन सम्राज्य” का मुख्यालय आज का तुर्की था।

प्रथम विश्व युद्ध जब स्थिति बदली तो “तुर्की” अंग्रेजों के विरुद्ध और जर्मनी के पक्ष में हो गया। विश्व युद्ध में जर्मनी की पराजय के पश्चात अंग्रेजों ने “तुर्की” को मजा चखाने के लिए तुर्की को विघटित कर दिया। अंग्रेज “तुर्की” के “खलीफा” के विरोध में सामने आ गए। मुसलमान “खलीफा” को अपना नेता मानते थे। अंग्रेजों द्वारा अपने खलीफा के विरोध करने के कारण मुसलमानों मे अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह की लहर दौड़ गई।

“भारत के मुस्लिम नेताओं ने भी” इस मामले को लेकर अंग्रेजों के विरुद्ध सन १९२१ में “खिलाफत आन्दोलन” शुरू किया।

अब “खिलाफत और खलीफा” के बारे में जान लीजिये, मुसलमान पूरी दुनिया में “इस्लाम” की सत्ता चाहते है और अपने नेता को “खलीफा” कहते है।

“इस्लाम की सत्ता” कायम करने और अपने नेता को वापिस “खलीफा पद” स्थापित करने के लिये ही भारत में “खिलाफत आन्दोलन” शुरू किया गया था।

इस आंदोलन के दौरान ही “मो. अली जौहर” ने अफगानिस्तान के “शाह अमानुल्ला” को तार भेजकर भारत को “दारुल इस्लाम” बनाने के लिए अपनी सेनाएं भेजने का अनुरोध किया। {ये वो ही जौहर था इसी के नाम पर आजम खान ने कॉलेज बनवाया था}

इसी बीच “खलीफा सुल्तान अब्दुल माजिद” अंग्रेजों की शरण में आकर माल्टा चले गये। आधुनिक विचारों के समर्थक “कमाल अता तुर्क” नये शासक बने। देशभक्त जनता ने भी उनका साथ दिया। इस प्रकार “खिलाफत आंदोलन” अपने घर में ही मर गया, पर भारत में इस आन्दोलन के नाम पर “अली भाइयों” ने अपनी रोटियां अच्छी तरह सेंक लीं।

अब “अली भाई” एक “शिष्टमंडल” लेकर “सऊदी अरब” के “शाह अब्दुल अजीज” से खलीफा बनने की प्रार्थना करने गये। शाह ने तीन दिन तक मिलने का समय ही नहीं दिया और चौथे दिन दरबार में सबके सामने उन्हें दुत्कार कर बाहर निकाल दिया।

भारत आकर मो. अली ने भारत को “दारुल हरब”(संघर्ष की भूमि) कहकर “मौलाना अब्दुल बारी” से हिजरत का फतवा जारी करवाया।

इस पर हजारों मुसलमान अपनी सम्पत्ति बेचकर अफगानिस्तान चल दिये। इनमें उत्तर भारतीयों की संख्या सर्वाधिक थी; पर वहां उनके मजहबी भाइयों ने उन्हें खूब मारा तथा उनकी सम्पत्ति भी लूट ली। वापस लौटते हुए उन्होंने भी देश भर में दंगे और लूटपाट की।

खिलाफात आन्दोलन की असफलता से चिढ़े मुसलमानों ने पुरे देश में दंगे करने शुरू कर दिए, केरल में मालाबार क्षेत्र में मुस्लिम मोपलाओं ने वहां के हिन्दुओं पर जो अत्याचार ढाए, उनकी जिस बर्बरता से हत्या की उसे पढ़कर हृदय दहल जाता है।

इसी “खिलाफत आन्दोलन” को “कांग्रेस और गांधी” का समर्थन मिलने के बाद ही मुसलमान संगठित हुए थे। उसी की बदोलत मोपला, मालाबार और नोवाखाली में हिन्दुओं का कत्लेआम हुआ, माताओं, बहनों से बलात्कार हुए और हिन्दुओं को जबरन मुसलमान बनाया गया था।

मुस्लिम नेताओं तथा भारतीय मुसलमानों को खुश करने के लिए गाँधी ने मोतीलाल नेहरु के सुझाव पर कांग्रेस की ओर से “खिलाफत आन्दोलन” के “समर्थन” की घोषणा की।

श्री विपिन चन्द्र पाल, डा. एनी बेसेंट, सी. ऍफ़ अन्द्रूज आदि नेताओं ने कांग्रेस की बैठक में “खिलाफत के समर्थन का विरोध किया”, किन्तु इस प्रश्न पर हुए मतदान में गाँधी जीत गए। गाँधी खिलाफत आन्दोलन के “खलीफा” ही बन गए।

गांधी जी के नेतृत्व में “हिन्दू समाज” समझ रहा था कि हम राष्ट्रीय एकता और स्वराज्य की दिशा में बढ़ रहे हैं और मुस्लिम समाज की सोच थी कि खिलाफत की रक्षा का अर्थ है इस्लाम के वर्चस्व की वापसी।

“इस्लाम” की सत्ता लाने के लिए, गान्धी खुद “अखिल भारतीय ख़िलाफ़त समिति” के पहले अधिवेशन का पहला "अध्यक्ष" भी बन गया था। गाँधी ने खुद 1919 ई. में “अखिल भारतीय ख़िलाफ़त समिति” का अधिवेशन अपनी अध्यक्षता में किया था।
(१/५)Image खिलाफत के प्रश्न को भारत के “राष्ट्रीय आंदोलन” का हिस्सा बनाकर गांधी ने “उलेमा वर्ग” को “प्रतिष्ठा प्रदान” की और विशाल मुस्लिम समाज की “मजहबी कट्टरता” को “संगठित होकर” आंदोलन के रास्ते पर बढ़ने का अवसर प्रदान किया।

अगर “खिलाफत आन्दोलन” नहीं होता तो “मुस्लिम लीग” का वजूद एक “क्षेत्रिय्र दल” जैसा ही रहता और कभी ये राष्ट्रीय स्तर तक नही पहुँचती और देश का बटवारा भी नही हुआ होता, हम कह सकते हैं कि “मोपला और खिलाफत आन्दोलन” के कारण ही “मुस्लिम नेताओं” को आधार मिला “देश के बटवारे का और हिन्दुओं के कत्लेआम का”।

"खिलाफत आंदोलन" ने आम "मुस्लिम समाज" में "राजनीतिक जागृति" पैदा की और उन्हें अपनी "शक्ति" का अहसास कराया। "मुसलमानों व कांग्रेस" ने जगह जगह प्रदर्शन किये। “अल्लाह हो अकबर” जैसे नारे लगाकर मुस्लिमो की भावनाएं भड़काई गयी।

महामना मदनमोहन मालवीय जी और कुछ अन्य नेताओं ने चेतावनी दी कि खिलाफत आन्दोलन की आड़ मे मुस्लिम भावनाएं भड़काकर भविष्य के लिए खतरा पैदा किया जा रहा है, किन्तु गांधी ने कहा, “मैं मुसलमान भाईओं के इस आन्दोलन को स्वराज से भी ज्यादा महत्व देता हूँ l”

भले ही भारतीय मुसलमान "खिलाफत आन्दोलन" करने के बावजूद अंगेजों का बाल बांका नहीं कर पाए, किन्तु उन्होंने पुरे भारत में “मृतप्राय मुस्लिम कट्टरपंथ” को “जहरीले सर्प” की तरह “जिन्दा” कर डाला।

यह सोच “खिलाफत आंदोलन” के प्रारंभ होने के कुछ ही महीनों के भीतर अगस्त 1921 में केरल के “मलाबार” क्षेत्र में वहां के हिन्दुओं पर मोपला मुसलमानों के आक्रमण के रूप में सामने आयी।

हिन्दुओं के सामने “इस्लाम या मौत” का विकल्प प्रस्तुत किया गया।

एक लाख हिन्दुओं को (मारा गया, बलात धर्मान्तरित किया गया, हिन्दू औरतों के बलात्कार हुए) सैकड़ों मंदिर तोड़े गए तथा तीन करोड़ से अधिक हिन्दुओं की संपत्ति लूट ली गई। पूरे घटनाक्रम में महिलाओं को सबसे ज्यादा उत्पीड़ित होना पड़ा। यहां तक कि “गर्भवती महिलाओं” को भी नहीं बख्शा गया।

मोपलाओं की वहशियत चरम पर थी। इस सम्बन्ध में 7 सितम्बर, 1921 में “टाइम्स आफ इंडिया” में जो खबर छपी वह इस प्रकार है, “विद्रोहियों ने सुन्दर हिन्दू महिलाओं को पकड़ कर जबरदस्ती मुसलमान बनाया। उन्हें 'अल्पकालिक पत्नी' के रूप में इस्तेमाल किया। हिन्दू महिलाओं को डराकर उनके साथ बलात्कार किया। हिन्दुओं को जबरन मुसलमान बनाया।”

जबकि “मौलाना हसरत मोहानी” ने कांग्रेस के “अहमदाबाद अधिवेशन” में मोपला अत्याचारों पर लाए गए निन्दा प्रस्ताव का विरोध करते हुए कहा, “मोपला प्रदेश “दारुल अमन” नहीं रह गया था, वह “दारुल हरब” में तब्दील हो गया था। मोपलाओं को संदेह था कि हिन्दू अंग्रेजों से मिले हुए हैं, जबकि अंग्रेज मुसलमानों के दुश्मन थे। मोपलाओं ने ठीक किया कि हिन्दुओं के सामने “कुरान और तलवार” का विकल्प रखा और यदि हिन्दू अपनी जान बचाने के लिए मुसलमान हो गए तो यह "स्वैच्छिक मतान्तरण" है, इसे जबरन नहीं कहा जा सकता।” (राम गोपाल: इंडियन मुस्लिम ए पालिटिकल हिस्ट्री, पृष्ठ-157)

यदपि इस आंदोलन की पहली मांग “खलीफा पद” की पुनर्स्थापना तथा दूसरी मांग भारत की स्वतंत्रता थी। इसलिए “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ” के “संस्थापक डा. हेडगेवार” इसे “अखिल आफत आंदोलन” तथा “हिन्दू महासभा” के “डा. मुंजे” “खिला खिलाकर आफत बुलाना” कहते थे; पर इन देशभक्तों की बात को गांधी ने नहीं सुना।

कांग्रेस ने “मुस्लिम तुष्टीकरण” का जो देशघाती मार्ग उस समय अपनाया था, उसी पर आज भारत के अधिकांश राजनीतिक दल चल रहे हैं।

“स्वामी श्रद्धानन्द” जी “शिक्षाविद तथा आर्य प्रचारक” के साथ साथ कांग्रेस के नेता भी थे। वह कांग्रेस कार्यकारिणी के सदस्य भी थे।

स्वामी श्रद्धानन्द जी, लाला लाजपत राय जी और महात्मा हंसराज जी ने “धर्म परिवर्तन” करने वाले हिन्दुओं को पुन: “वैदिक धर्म” में शामिल करने का अभियान शुरू किया। कांग्रेस के मुस्लिम नेताओं ने इनके द्वारा चलाये जा रहे “शुद्धि आन्दोलन” का “विरोध” शुरू कर दिया। कहा गया कि यह आन्दोलन हिन्दू मुस्लिम एकता को कमजोर कर रहा है। गाँधी के निर्देश पर कांग्रेस ने स्वामी जी को आदेश दिया कि वे इस अभियान में भाग ना लें।

स्वामी श्रद्धानन्द जी ने उत्तर दिया, “मुस्लिम मौलवी तबलीग” हिन्दुओं के धर्मान्तरण का अभियान चला रहे हैं! क्या कांग्रेस उसे भी बंद कराने का प्रयास करेगी?

कांग्रेस मुस्लिमों को तुष्ट करने के लिए “शुद्धि अभियान” का विरोध करती रही, लेकिन गांधीजी और कांग्रेस ने “तबलीग अभियान” के विरुद्ध एक भी शब्द नहीं कहा।

“शुद्धि आन्दोलन” का कांग्रेस के विरोध करने के कारण स्वामी श्रद्धानन्द जी ने कांग्रेस से सम्बन्ध तोड़ लिया।
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Dec 1, 2023 5 tweets 13 min read
जैसी माँ वैसी बेटी!

भारतीय परम्परा में महिलाओं को पूज्यनीय मानकर आदर और सम्मान दिया जता है।

लेकिन इतिहास साक्षी है की जब भी किसी विदेशी वर्णसंकर महिला के हाथों में असीमित अधिकार आ जाते हैं तो वह सत्ता के मद में अंधी हो जाती है।

और देश, समाज, व् अपने परिवार के लिए घातक बन जाती है।

ऎसी महिला अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए अपने सहयोगिओं, मित्रों और निकट सम्बंधिओं की बलि लेने से भी नहीं चूकती है।

पिछले तीस सालों के इतिहास का अवलोकन करने पर हमें पता चलता है की इस दौरान कुछ ऐसे बहुचार्तित, प्रसिद्ध व्यक्तियों की विभिन्न कारणों से अप्रत्याशित रूप से मौतें हुई हैं, जिनका सम्बन्ध सोनिया गांधी और उसके परिवार से था!!

पहली नज़र ने यह सभी मामले आकस्मिक दुर्घटना या आत्महत्या के लगते हैं, लेकिन गहराई से खोज करने पर कुछ और ही सच्चाई सामने आती है।

क्योंकि इन सभी मामलों की न तो ठीक से कोई जांच ही करायी गयी और न ही उन आधी अधूरी जांचों की रिपोर्ट ही सार्वजनिक की गयी।

केवल खानापूर्ति करके सभी मामले ठंडे बस्ते डाल दिये गये।

सभी जानते हैं की सोनिया एक कुटिल और चालाक महिला है। उसका एकमात्र उद्देश्य सत्ता हथियाना और अपने कपूत राहुल को प्रधान मंत्री बनाना है।

इस योजना को सफल बनाने के लिए सोनिया ने 1980 के पहिले से ही शतरंज की बाजी बिछा रखी थी।

और जो मोहरा उसके सामने आता गया वह बड़ी चालाकी से उसे हटाती गयी।

और अपने बेटे के लिए रास्ता साफ़ करती गयी।सोनिया की लड़की प्रियंका भी अपनी माँ की तरह धूर्त और शातिर है। इसने अपने रूप जाल में अपनी मक्कारी और कुटिलता को छुपा रखा है।

इसलिए आज यह बेहद जरूरी है कि दिए जा रहे इन सभी मामलों की सच्चाई, लोगों के सामने प्रस्तुत की जाए।

ताकि लोगों के सामने सोनिया और प्रियंका का असली घिनौना चेहरा जनता के सामने आ जाए, जिसे यह दोनों अपनी भोलीभाली सूरत में छुपा कर देश के लोगों को मूर्ख बना रहे हैं। कुछ प्रसिद्ध घटनाएं इस प्रकार हैं...

१. संजय गांधी (मृत्यु दिनांक 23 अक्टूबर 1980): संजय गांधी में होनहार नेता के सभी गुण मौजूद थे। इसीलिए इंदिरा गांधी उसे ही अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहती थी। संजय का हिंदुत्व के प्रति कुछ अधिक ही झुकाव था जो कुछ कांग्रेसियों, और खासकर सोनिया को बिल्कुल ही पसंद नहीं था। सोनिया का संजय से नफ़रत करने का एक और भी कारण था। जिस समय इंदिरा ने राजीव को पढने के लिए लन्दन भेजा था तो उसी समय कैम्ब्रिज में राजीव की सोनिया से मुलाक़ात हुई थी। इंदिरा राजीव को उसके निजी खर्चे के लिए प्रति माह एक निर्धारित राशि भेजती थी जो वह सोनिया पर खर्च कर देता था। और वह अक्सर गुप्त रूप से संजय से पैसे मँगवाया करता था। लेकिन जब संजय को यह पता चला की उसका बड़ा भाई पढाई छोड़ कर सारे पैसे सोनिया पर खर्च कर के अय्याशी कर रहा है, तो उसने पैसे देना बंद कर दिए।

उधर पढाई में ठीक से ध्यान न देने के कारण परीक्षा में राजीव के बहुत कम नंबर आए, और उसे कैम्ब्रिज से निकाल दिया गया।

कुछ समय तक वह ब्रिटेन में भारतीय राजदूत के घर में रहा, फ़िर अधूरी पढाई छोड़ कर वापिस घर आ गया। सोनिया मन ही मन में इसके लिए संजय को जिम्मेदार मानती थी। और बदला लेने के लिए मौके की तलाश में थी। सोनिया के केजीबी से गुप्त सम्बन्ध थे। उन दिनों संजय को प्लेन उडाने का नया नया शौक लगा था।

जब एक दिन संजय ने जैसे ही अपना प्लेन उडाया तो वह कुछ ही मिनटों में ज़मीन पर गिर कर बिखर गया।

ध्यान करने की बात यह थी की उस प्लेन में न तो आग लगी और न ही कोई विस्फोट ही हुआ। प्लेन उडाने से पाहिले उसकी टंकी में पूरा ईंधन भरा गया था। लेकिन तात्कालिक जांच में दुर्घटना का कारण "प्लेन की टंकी में ईंधन न होना "बताया गया था।

आज भी दुर्घटना का असली कारण रहस्य के परदे में ही है।

२. इंदिरा गांधी (मृत्यु दिनांक 31 अक्टूबर 1984): जब इंदिरा गांधी के सुरक्षा गार्डों ने उन्हें गोली मारी थी तो उस समय वह घायल अवस्था में बेहोश पडी थीं और जीवित थीं।

उनका खून लगातार बह रहा था। उन्हें फ़ौरन मेडिकल सहायता की जरूरत थी।

सोनियां उनके बिल्कुल नजदीक थी। लोग इंदिरा को एम्स अस्पताल ले जाना चाहते थे, जो इंदिरा के निकास के पास ही था। लेकिन सोनिया ने किसी की बात नहीं सुनी और इंदिरा को राम मनोहर लोहिया अस्पताल ले जाने की जिद की।

जो कि वहां से काफी दूर था। जब लोग घायल इन्दिरा को लेकर राम मनोहर लोहिया अस्पताल के पास पहुंचे तो अचानक सोनिया ने अपना इरादा बदल दिया।

और गाडी को वापिस एम्स की तरफ़ मोड़ने को कहा। इस बेकार आने जाने में लगभग डेढ़ घंटा बरबाद हो गया। और अत्याधिक खून बह जाने के कारण इन्दिरा की मौत हो गयी।
(१/५)
Image अगर इन्दिरा गांधी को समय पर मेडिकल सहायता मिल जाती तो उनकी जान बच सकती थी। लोग ख़ुद समझ सकते हैं की सोनिया ने जानबूझ कर क्यों समय बरबाद किया और इन्दिरा की मौत से सोनिया क्या लाभ होने वाला था।

३. जीतेन्द्र प्रसाद (मृत्यु दिनांक 16 जनवरी 2001): यह कोंग्रेस के एक अनुभवी और वरिष्ठ नेता थे। इन्होंने शाहज़हां पुर से लोकसभा का चुनाव लड़ा था।

उस समय वह कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष थे। सीताराम केसरी की मौत के बाद वे कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के प्रत्याशी थे।

राजेश पायलट भी इनके समर्थक थे। जीतेन्द्र प्रसाद सोनिया के प्रमुख आलोचक थे। सोनिया यह पद ख़ुद हथियाना थी।

लेकिन वरिष्ठ होने के कारण अध्यक्ष पद के लिए पहला नाम जितेन्द्र प्रसाद का था। कांग्रेस वर्किंग कमेटी में इस विषय पर कई बार गर्मागर्म चर्चा होने के बाद, मेम्बरों में जितेन्द्र प्रसाद का पल्ला भारी पड़ने लगा था।

और मजबूरन सोनिया को पीछे हटना पडा।

लेकिन उसके मन में कुछ और ही योजना थी।

एक दिन सोनिया के द्वारा आयोजित एक भोजन समारोह में जितेन्द्र प्रसाद को बुलाया गया।

जिसमे लगभग सभी प्रमुख नेता शामिल थे। भोजन के बाद जब जितेन्द्र प्रसाद अपने निवास पर पहुंचे तो अचानक उनकी तबियत बिगड़ गयी।

और अस्पताल पहुँचने से पहले ही उनकी मौत हो गयी। डाक्टरों ने पहले तो मौत का कारण फ़ूड पोइजिनिंग बताया, लेकिन बाद में मौत का कारण हार्ट फेल बताया। साफ़ है की की किसी के दवाब में रिपोर्ट बदल दी गयी थी।

४. राजेश पायलट (मृत्यु 11 जून 2000): यह भी सोनिया के प्रमुख प्रतिद्वंदी थे और अक्सर सार्वजनिक रूप से सोनिया की आलोचना किया करते थे।

राजेश एक स्पष्टवक्ता और उभरते युवा नेता थे।

राजेश का चुनाव क्षेत्र दौसा था जो जयपुर के पास है।

मृत्यु के दिन अर्जुन सिंह ने राजेश को फोन करके दिल्ली बुलाया।

और कहा की एक बेहद जरूरी मीटिंग है। जब राजेश अपनी कार से दौसा से जयपुर एयर पोर्ट की तरफ़ जा रहे थे तो भण्डाना गांव के पास उनकी कार को राजस्थान ट्रांसपोर्ट की बस ने टक्कर मार दी। इस टक्कर से उनकी वहीं मौत हो गयी।

आज तक उस बस का ड्राईवर नहीं पकडा गया।

और न किसी के ख़िलाफ़ कोई केस चलाया गया।

राजेश के लड़के का मुंह बंद करने के लिए उसे कोई पद दे दिया गया। और मामला बंद कर दिया गया।

५. माधवराव सिंधिया (मृत्यु 30 सितम्बर 2001): इनके समर्थक इन्हें भावी प्रधान मंत्री के रूप में देखते थे। इनकी निष्पक्षता के कारण विरोधी दल के लोग भी इनका सम्मान करते थे।

इन से सोनिया मन ही मन में जलती थी।

पहले दोनों में बहुत घनिष्ठता थी। माधव राव ने ही सोनिया का राजीव से परिचय कराया था।

जब वह भी राजीव के साथ कैम्ब्रिज में पढ़ते थे।

जब सोनिया ने राजीव से शादी कर ली तब भी सोनिया और माधवराव की दोस्ती चलती रही। एकबार 1982 में जब सोनिया और माधवराव रात को दो बजे एक पार्टी से लौट रहे थे तो, दिल्ली की आईआईटी के गेट के पास एक्सीडेंट हो गया।

जिसमे माधवराव की टांग टूट गयी थी और सोनिया को मामूली चोट लगी थी।

सोनिया माधवराव को घायल छोड़ कर एक ओटो से घर भाग गयी। बाद में पुलिस ने माधवराव को अस्पताल पहुंचाया था।

सोनिया के इस व्यवहार से माधवराव नाराज़ थे। और अक्सर अपने मित्रों से इस घटना की चर्चा करते रहते थे।

जिस से सोनिया चिढ़ती थी। इसके अलावा माधवराव सोनिया के कई गुप्त राज़ भी जानते थे।

इसलिए सोनिया माधवराव को अपने लिए एक खतरा मानती थी।

एक बार माधवराव को जरूरी काम के लिए दिल्ली से मैनपुरी जाना था।

इसके लिए उन्हें जिंदल ग्रुप का प्लेन दिया गया था।

उड़ान से पूर्व प्लेन की जांच गयी थी और बताया गया था की प्लेन में पूरा ईंधन भरा गया था।

प्लेन 12:49 पर इन्दिरा गांधी एयर पोर्ट से उड़ा और आगरा से 85 किमी दूर भोगाव में गिर कर टूट गया।

इस प्लेन में भी न आग लगी न विस्फोट हुआ। इस दुर्घटना में माधवराव की वहीं तत्काल मौत हो गयी।

जांच में पता चला था की प्लेन की टंकी में पूरा ईंधन नहीं भरा गया था।

६. बाल योगी (म्रत्यु-13 मार्च 2002): यह लोकसभा के स्पीकर थे। इनके कार्यकाल में सोनिया की राष्ट्रीयता के बारे में सवाल उठ रहे थे। सोनिया ने संसद में अपनी शैक्षणिक योग्यता के बारे में जो हलफनामा दिया था उस पर लोगों को शंका थी।

दिनांक 5 फरवरी 2002 को सुब्रमण्यम स्वामी ने बाल योगी को एक पत्र लिखा जिसमे उनसे सोनिया की शैक्षणिक योग्यता के बारे में जांच कराने का अनुरोध किया गया था। और इस पत्र में कहा गया था की ऐसा करना उनका नैतिक दायित्व है।

इस पर बाल योगी ने सोनिया से 15 दिनों के अन्दर स्पष्टीकरण देने के लिए नोटिस दिया।
(२/५)
Aug 23, 2023 16 tweets 4 min read
मैं और मेरा पुरातन अतीत

नेहरू विज्ञान केन्द्र, मुंबई के निदेशक थे भौतिक वैज्ञानिक डॉक्टर सुब्रह्मण्यम। वैज्ञानिक थे पर जनेऊ पहनते थे। एक बार टाईम्स के पत्रकार ने उनसे पूछा… आप तो वैज्ञानिक हैं फिर ये जनेऊ क्यों और कैसे? जनेऊ क्यों पहनते हैं आप? उनका जवाब कालजयी था।
(1/14) Image उन्होंने कहा... “मैं खगोलविद हूं। आसमान देख रहे हैं, भौतिकी का वो हिस्सा है हमारा क्षेत्र, अनंत। भौतिक आकाश में ये जो तारे हैं, वो क्या हैं? मैं तारामंडल का निदेशक क्यों हूं?

विज्ञान, दरअसल भविष्य का अतीत है। जब भी मैं तारों भरा आकाश देखता हूं, तो मैं अतीत में देख रहा (2/14)
Aug 23, 2023 19 tweets 4 min read
मुसलमानों को अभी तक तो यही लग रहा था कि वे भारत जीत लेंगे...!

उन्हें लगता है कि उन्होंने 600 साल राज किया, बीच में अंग्रेज टपक पड़े वरना सब कुछ उनका ही था। अलीगढ़िया इतिहासकारों के अनुसार आजादी की लड़ाई मुस्लिम अपना खोया राज वापस प्राप्त करने के लिए (1/17) Image लड़े, खून बहाया लेकिन 1947 में दो छोटे भूमि के टुकड़ों से ही उन्हें संतोष करना पड़ा। जब तक यहूदी और हिन्दू फतेह नहीं कर लिए जाते, कयामत सम्भव नहीं और उसके बिना हिसाब लटका हुआ है और अभी हूरें भी काफी दूर है।

भारत विजय का उनका सपना अब भी अधूरा है। आज जब वे भारत में अपनी (2/17)
Aug 21, 2023 14 tweets 3 min read
कान्वेंट शब्द पर गर्व न करें... सच समझें कॉन्वेंट का मतलब क्या है?

‘काँन्वेंट’! सब से पहले तो यह जानना आवश्यक है कि, ये शब्द आखिर आया कहाँ से है, तो आइये प्रकाश डालते हैं।

ब्रिटेन में एक कानून था, "लिव इन रिलेशनशिप" बिना किसी वैवाहिक संबंध के एक लड़का और एक लड़की का साथ (1/12) Image में रहना, तो इस प्रक्रिया के अनुसार संतान भी पैदा हो जाती थी तो उन संतानों को किसी चर्च में छोड़ दिया जाता था।

अब ब्रिटेन की सरकार के सामने यह गम्भीर समस्या हुई कि इन बच्चों का क्या किया जाए तब वहाँ की सरकार ने काँन्वेंट खोले अर्थात् जो बच्चे अनाथ होने के साथ साथ नाजायज (2/12)
Aug 16, 2023 10 tweets 3 min read
पुण्य स्मरण

गले का कैंसर था। पानी भी भीतर जाना मुश्किल हो गया, भोजन भी जाना मुश्किल हो गया। तो विवेकानंद ने एक दिन अपने गुरुदेव रामकृष्ण परमहंस से कहा कि "आप माँ काली से अपने लिए प्रार्थना क्यों नही करते? क्षणभर की बात है, आप कह दें, और गला ठीक हो जाएगा! तो (1/8) Image रामकृष्ण हंसते रहते, कुछ बोलते नहीं।

एक दिन बहुत आग्रह किया तो रामकृष्ण परमहंस ने कहा, "तू समझता नहीं है रे नरेन्द्र। जो अपना किया है, उसका निपटारा कर लेना जरूरी है। नहीं तो उसके निपटारे के लिए फिर से आना पड़ेगा। तो जो हो रहा है, उसे हो जाने देना उचित है। उसमें कोई भी (2/8)
Aug 15, 2023 29 tweets 6 min read
क्यों कब और कैसे डूबी द्वारिका?

श्री कृष्ण की नगरी द्वारिका महाभारत युद्ध के 36 वर्ष पश्चात समुद्र में डूब जाती है। द्वारिका के समुद्र में डूबने से पूर्व श्री कृष्ण सहित सारे यदुवंशी भी मारे जाते है। समस्त यदुवंशियों के मारे जाने और द्वारिका के समुद्र में विलीन होने के (1/27) Image पीछे मुख्य रूप से दो घटनाएं जिम्मेदार है। एक माता गांधारी द्वारा श्री कृष्ण को दिया गया श्राप और दूसरा ऋषियों द्वारा श्री कृष्ण पुत्र सांब को दिया गया श्राप।

महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद जब युधिष्ठिर का राजतिलक हो रहा था तब कौरवों की माता गांधारी ने महाभारत युद्ध के (2/27)
Aug 15, 2023 30 tweets 7 min read
जहां पूरा देश आजादी की 77वीं वर्षगांठ मना रहा है! ऐसे में आवश्यक भी है कि देशवासियों के समक्ष यह सत्य आना ही चाहिए!!

कि कैसा था आजादी का तथाकथित महात्मा?

एक नजर... अंतिम सत्य...

मोहनदास करमचंद गांधी की कथित सेक्स लाइफ़ पर एक बार फिर से बहस छिड़ गई है। लंदन के प्रतिष्ठित (1/28)
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अख़बार “द टाइम्स” के एक 2012 के लेख के मुताबिक गांधी को कभी भगवान की तरह पूजने वाली 82 वर्षीया गांधीवादी इतिहासकार कुसुम वदगामा ने कहा है कि गांधी को सेक्स की बुरी लत थी, वह आश्रम की कई महिलाओं के साथ निर्वस्त्र सोते थे, वह इतने ज़्यादा कामुक थे कि ब्रम्हचर्य के प्रयोग और (2/28)
Aug 15, 2023 13 tweets 3 min read
रेणुका चौधरी का अनुभव और कांग्रेस का चरित्र:-

साल था 1952। बिहार की स्वतंत्रता सेनानी तारकेश्वरी सिन्हा पटना से लोकसभा सांसद चुनकर दिल्ली पहुंची। भारत बेहद पिछड़ा लेकिन तारकेश्वरी जी एकदम आधुनिक। बला की खूबसूरत। चेहरे पर एक चार्म। बॉब कट बाल, साड़ी और स्लिवलेस ब्लाउज। वह (1/11)

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जहां खड़ी हो जाती थीं, वहां का माहौल ही बदल जाता था। सांसद क्या और मंत्री क्या? सभी के बीच उन्हें लेकर खास दीवानगी थी। उन्हें ग्लैमरस गर्ल ऑफ पार्लियामेंट कहा जाता था। चटकीले नेहरू की वे खास पसंद थी।

प्रधानमंत्री आवास में तारकेश्वरी जी का नियमित आना जाना था। नेहरू जी के (2/11)
Aug 10, 2023 20 tweets 4 min read
चित्तौड़गढ की रानी द्वारा हुमायूं को राखी भेजने की कथा का तथ्यात्मक विश्लेषण, गर्म रक्त चमड़ी की गन्ध याद रखना हिंदुओं।

राखी का ऐतिहासिक झूठ, सन 1535 दिल्ली का शासक है बाबर का बेटा हुमायूँ

उसके सामने देश में दो सबसे बड़ी चुनौतियां हैं, पहला अफगान शेर खाँ और दूसरा गुजरात (1/18) Image का शासक बहादुरशाह... पर तीन वर्ष पूर्व सन 1532 में चुनार दुर्ग पर घेरा डालने के समय शेर खाँ ने हुमायूँ का अधिपत्य स्वीकार कर लिया है और अपने बेटे को एक सेना के साथ उसकी सेवा में दे चुका है।

अफीम का नशेड़ी हुमायूँ शेर खाँ की ओर से निश्चिन्त है, हाँ पश्चिम से बहादुर शाह का (2/18)
Aug 7, 2023 17 tweets 4 min read
भाग 1

मुसलमानों को अभी तक तो यही लग रहा था कि वे भारत जीत लेंगे।

उन्हें लगता है कि उन्होंने 600 साल राज किया, बीच में अंग्रेज टपक पड़े वरना सबकुछ उनका ही था। अलीगढिया इतिहासकारों के अनुसार आजादी की लड़ाई मुस्लिम अपना खोया राज वापस प्राप्त करने के लिए (1/15) Image लड़े, खून बहाया लेकिन 1947 में दो छोटे भूमि के टुकड़ों से ही उन्हें संतोष करना पड़ा। जब तक यहूदी और हिन्दू फतेह नहीं कर लिए जाते, कयामत सम्भव नहीं और उसके बिना हिसाब लटका हुआ है और अभी हूरें भी काफी दूर है।

भारत विजय का उनका सपना अब भी अधूरा है। आज जब वे भारत (2/15)
Aug 5, 2023 16 tweets 4 min read
जब चंद्रशेखर आजाद की शव यात्रा निकली... देश की जनता नंगे पैर... नंगे सिर चल रही थी... लेकिन कांग्रेसियों ने शव यात्रा में शामिल होने से इनकार कर दिया था।

एक अंग्रेज सुप्रीटेंडेंट ने चंद्रशेखर आजाद की मौत के बाद उनकी वीरता की प्रशंसा करते हुए कहा था कि चंद्रशेखर आजाद पर (1/14) Image तीन तरफ से गोलियां चल रही थीं... लेकिन इसके बाद भी उन्होंने जिस तरह मोर्चा संभाला और 5 अंग्रेज सिपाहियों को हताहत कर दिया था... वो अत्यंत उच्च कोटि के निशाने बाज थे... अगर मुठभेड़ की शुरुआत में ही चंद्रशेखर आजाद की जांघ में गोली नहीं लगी होती तो शायद एक भी अंग्रेज सिपाही (2/14)
Aug 4, 2023 23 tweets 5 min read
इतिहास में पढ़ाया जाता है कि ताजमहल का निर्माण कार्य 1632 में शुरू और लगभग 1653 में इसका निर्माण कार्य पूर्ण हुआ।

अब सोचिए कि जब मुमताज का इंतकाल 1631 में हुआ तो फिर कैसे उन्हें 1631 में ही ताजमहल में दफना दिया गया, जबकि ताजमहल तो 1632 में बनना शुरू हुआ था। यह सब मनगढ़ंत (1/21) Image बातें हैं जो अंग्रेज और मुस्लिम इतिहासकारों ने 18वीं सदी में लिखी।

दरअसल 1632 में हिन्दू मंदिर को इस्लामिक लुक देने का कार्य शुरू हुआ। 1649 में इसका मुख्य द्वार बना जिस पर कुरान की आयतें तराशी गईं। इस मुख्य द्वार के ऊपर हिन्दू शैली का छोटे गुम्बद के आकार का मंडप है और (2/21)
Aug 2, 2023 20 tweets 4 min read
इटली में जन्मी ब्रिटिश बारडांसर सोनिया का मिशन...

कैथोलिक नकली गंधियाईन की कुटिल चाल...

मुझे मेरा राजीव लौटा दीजिए, मैं लौट जाऊंगी, नहीं लौटा सकते तो मुझे भी इसी मिट्टी में मिल जाने दो: सोनिया गांधी...

ऐसा कहने बाली श्रीमती सोनिया गांधी जी के कार्य कलापों पर नज़र डालें (1/18) Image तो समझ में आ जाता है कि वो वास्तव में किस मिशन पर जुटी रही हैं... राजीव गांधी की हत्या तक सोनिया की पकड़ सिस्टम पर उतनी मज़बूत नहीं थी। उसके बाद पीवी नरसिंहराव आ गए जो सोनिया गांधी को नज़र अंदाज़ करके अपना काम करते रहे। 1999 से 2004 तक अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री रहे (2/18)
Jul 30, 2023 12 tweets 3 min read
अरब के हिजाज और सीरिया के दरमियानी इलाके में इस्लाम के जुहूर से काफी पहले "समूद" नाम की जाति रहा करती थी। कुरआन में इस जाति के बारे में कहा गया है कि ये लोग अरब की वो कौमें थी जो मिट गई, नष्ट हो गई, हलाक कर दी गई। कुरआन में कई स्थानों पर इस जाति का ज़िक्र आया है। (1/10) Image सूरह आराफ कहता है कि समूद की ओर एक नबी भेजे गये थे जिनका नाम था "सालेह"।

जैसा कि कुरान बाकी नबियों के बारे में कहता है वैसा ही उसने सालेह के बारे में भी कहा है कि उन्होंने अपनी कौम को तौहीद की ओर बुलाया और कहा, तुम लोग एक ईश्वर को छोड़ के किसी और की इबादत न करना और इस (2/10)
Jul 30, 2023 23 tweets 5 min read
सिन्धु घाटी की लिपि

इतिहासकार अर्नाल्ड जे टायनबी ने कहा था कि, विश्व के इतिहास में अगर किसी देश के इतिहास के साथ सर्वाधिक छेड़ छाड़ की गयी है, तो वह भारत का इतिहास ही है।

भारतीय इतिहास का प्रारम्भ तथाकथित रूप से सिन्धु घाटी की सभ्यता से होता है, इसे हड़प्पा कालीन सभ्यता (1/21) Image या सारस्वत सभ्यता भी कहा जाता है। बताया जाता है, कि वर्तमान सिन्धु नदी के तटों पर 3500 BC (ईसा पूर्व) में एक विशाल नगरीय सभ्यता विद्यमान थी। मोहनजोदारो, हड़प्पा, कालीबंगा, लोथल आदि इस सभ्यता के नगर थे।

पहले इस सभ्यता का विस्तार सिंध, पंजाब, राजस्थान और गुजरात आदि बताया (2/21)
Jul 30, 2023 11 tweets 3 min read
ये हैं सनातन धर्म के रक्षक 'जगतगुरु स्वामी रामभद्राचार्य महाराज' जी!

एक बालक जिसने 3 साल की उम्र में अपनी पहली कविता लिख दी। एक बालक जिसने 5 साल की उम्र में पूरी श्रीमदभगवत गीता के 700 श्लोक अध्याय सहित और श्लोक संख्या के साथ याद कर लिए।

एक बालक जिसने 7 साल की उम्र (1/9) Image में सिर्फ 60 दिन के अंदर श्रीरामचरितमानस की 10 हजार 900 चौपाइयां और छंद याद कर लिए। वही बालक गिरिधर आज पूरी दुनिया में जगदगुरु श्री रामभद्राचार्य जी के नाम से जाने जाते हैं।

मकर संक्रांति के दिन 14 जनवरी 1950 को चित्रकूट में उनका जन्म हुआ था। 2 महीने की उम्र में ही वो (2/9)
Jul 29, 2023 13 tweets 3 min read
अरब की रेगिस्तानी रवायतों में औरत हमेशा असबाब से ऊपर की हैसियत नहीं पा सकी जिसे जरूरतों के लिए रखा जाता था... ख्वाजा का सत्य।

उसे अपनी मिल्कियत के बंदे का हर हुक़्म बजाना लाज़मी था... और जितना असबाब उतनी हैसियत उतना समाज में जलवा... (1/11) Image तो चलन शुरू हुआ हरम का... जिसके हरम में जितनी औरते उतना वो समृद्ध... या जितना समृद्ध बंदा उतना बड़ा उसका हरम...!

अब बड़े हरम की एक बड़ी दिक्कत होती थी उसकी रखवाली अक़्सर गुलाम जिन्हें ये जिम्मेदारी सौंपी जाती वही मौके का फायदा उठा लेते... तो (2/11)
Jul 27, 2023 11 tweets 3 min read
परमवीर चक्र विजेताओं के लिए लिखी गयी किताब "द ब्रेव" में रचना विष्ट रावत ने बताया है कि वे शुद्ध शाकाहारी थे। कभी शराब नहीं पीते थे। दुर्गापूजा के दिन उनकी यूनिट के लोगों ने बलि देने के लिए फरसा पकड़ा दिया। उस योद्धा ने कुछ क्षण सोचा और एक झटके में बकरे का सर (1/9) Image काट दिया। खून के छींटे उनके माथे तक पड़े। उसके बाद वे बीसों बार अपना मुँह, हाथ धोते रहे... अकारण ही एक निर्दोष जीव पर किया गया प्रहार उन्हें कचोटता रहा, वे उसकी पीड़ा से तड़पते रहे...

पर रुकिये! किसी निर्दोष की हत्या पर तड़प उठने वाले उस चौबीस वर्ष के विशुद्ध (2/9)