इस हॉस्पिटल में नर्स की नौकरी करते मुझे दो महीने हुए हैं।मैं रोज की तरह ठीक नौ बजे की शिफ्ट में हॉस्पिटल पहुँच चुकी थी। रिसेप्शन की तरफ बढ़ ही रही थी कि एक बुजुर्ग दंपति को देख थोड़ा रुक गई।शायद वो झगड़ा कर रहे थे। पर किस बात पर ये जानने के लिए मैं जरा नजदीक गई।
बुजुर्ग पुरूष बेहद उदास लगभग रोते हुए अपने हाथों में कुछ छुपा रहे थे। बुजुर्ग महिला उनके हाथों से वो पेपर छीन रही थी। महिला की आँखों के नीचे काले घेरे मगर आँखों में शरारत थी। अचानक रोते हुए बुजुर्ग पुरूष चीख पड़े
"इस रिपोर्ट में कुछ नहीं है सुशीला! ये डॉक्टर लोग तो कुछ भी बोलते
हैं"
"आजतक कुछ भी छुपा पाये हो मास्टर साहब! जरा मेरी आँखों में देखो" महिला बड़े प्यार से उनकी आँखों में देख रही थी। बुजुर्ग पुरूष बिलख पड़े।
"तुम्हें कैंसर है सुशीला.. तुम जल्दी ही मुझे अकेला छोड़ चली जाओगी। इस प्राइवेट स्कूल के रिटायर्ड मास्टर की औकात इस बीमारी से बड़ी नहीं है"
"तुम्हारी औकात बहुत बड़ी है मास्टर साहब!तुमने मुझे इन चालीस सालों में बहुत कुछ दिया है। और मेरी कसम तुम रोना नहीं अब। अभी तो ज़िंदा हूँ ना मैं!अभी से क्यूँ....तुम घर चलो"
बुजुर्ग महिला अपने पति को गले लगा कर चुप करा रही थी और उन्हें देख मैं खुद को रोने से रोक नहीं पाई। अचानक नज़र
डॉक्टर उज्जवल पर गई , शायद वो भी यही देख रहे थे। मैं ठिठक कर जाने को ही हुई कि
"सर एक मिनट"
वो दंपति आवाज सुनकर रुक गए। डॉक्टर उज्ज्वल ने उनका रिपोर्ट देखा।
"सर आप घबराइए नहीं, जीवन मृत्यु तो हम डॉक्टरों के बस में भी नहीं मगर मैं पूरी कोशिश करूंगा।
"डॉक्टर साहब इतने महँगे ..!" बुजुर्ग की बेबसी उनकी आँखों में दिख रही थी
"मेरी माँ बचपन में ही गुजर गई थी सर, जब मैं पढ़ाई कर रहा था। अपनी माँ को इस बीमारी से बचा नहीं पाया था,..अपनी इन्हीं कोशिशों से मैं उन्हें अपने दिल मे जिंदा रखता हूँ।"
नहीं पता कि डॉक्टर उज्ज्वल कि कोशिश
कितनी कामयाब होगी, पर वो बुजुर्ग दंपति की आँखों में आँसू की जगह उम्मीद लाने में कामयाब हो गये थे..!
🙏इस दिवाली भले दो दिये कम जलाना, पर अगर किसी की जिंदगी में आस का दीप जला पाओ, तो जिन्दगी भर उजाला आपका साथ नहीं छोड़ेगा।
जय शिव शंभू
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एक दिन रुक्मणीजी ने भोजन के बाद, श्री कृष्ण को पीने के लिए दूध दिया, दूध ज्यदा गरम होने के कारण श्री कृष्ण के श्रीमुख से निकला " हे राधे ! "...
यह सुनते ही रुक्मणी बोले, है प्रभु, ऐसा क्या है राधा जी में, जो आपकी हर साँस पर उनका ही नाम होता है, मैं भी तो आपसे अपार प्रेम
करती हूँ, फिर भी, आप हमें नहीं पुकारते...
श्री कृष्ण ने कहा देवी, आप कभी राधा से मिली हैं, और मंद मंद मुस्काने लगे...
अगले दिन रुक्मणी राधाजी से मिलने उनके महल में पहुंची, राधाजी के कक्ष के बाहर अत्यंत खूबसूरत स्त्री को देखा और उनके
मुख पर तेज होने कारण उसने सोचा कि यही राधाजी है और उनके चरण छुने लगे...
तभी वो दासी बोली, आप कौन हैं, रुक्मणीजी ने अपना परिचय दिया और आने का कारण बताया, तब वो बोली, मैं तो राधा जी की दासी हूँ, राधाजी तो सात द्वार के बाद आपको मिलेंगी.
रुक्मणीजी ने सातो द्वार पार
मम्मी कभी कभी काम वाली को भी कुछ अच्छा दे दिया करो।हमेशा पुरानी चीज़ें ही देते हो।
बात तो सही थी ,हम हमेशा उपयोग की गई चीज़ें ही तो देते हैं उन्हें,क्यों ना इस बार कुछ अच्छा वो भी दिल से करें।
मेरी आदत है मंदिर के गुल्लक में वार त्यौहार पर थोड़े पैसे डालने
की,और फिर साल में एकाध बार गुल्लक में से पैसे निकाल कर किसी जरूरत मन्द को दे देती हूं।
उस दिन भी मैंने देखा गुल्लक में काफी पैसे थे।एक हज़ार से ज्यादा।मैंने हज़ार रुपए लिए और बेटे के साथ बाज़ार गई।
हमने एक सूट ,थोड़ी मिठाई, थोड़ा नमकीन और मोमबतियां और कुछ दीये लिए।
कामवाली के दो
छोटे बच्चे हैं, उनके लिए कलर्स और ज्योमेट्री बॉक्स और 2 2 कापियां भी ली।
कुल मिलाकर 1270 का सामान आया।ऊपर के 270 बेटे ने अपनी पॉकेट मनी में से दिए।
सच पूछें तो बड़ा अच्छा लगा,अगले दिन कामवाली को जब ये गिफ्ट पैक दिया तो जो खुशी उसके चेहरे पर थी,वो हज़ारों दीयों की रोशनी से भी
*एक दिन एक महिला ने अपनी किचन से सभी पुराने बर्तन निकाले। पुराने डिब्बे, प्लास्टिक के डिब्बे, पुराने डोंगे, कटोरियां, प्याले और थालियां आदि। सब कुछ काफी पुराना हो चुका था।*
फिर पुराने बर्तन उसने कोने में रख दिए और नए लाए हुए बर्तन करीने से रखकर सजा दिए।
बड़ा ही पॉश लग रहा था अब उसका किचन। फिर वो सोचने लगी कि अब ये पुराना सामान भंगारवाले को दे दिया जाए तो समझो हो गया काम ,साथ ही सिरदर्द भी ख़तम औऱ सफाई का सफाई भी हो जाएगी।*
इतने में उस महिला की कामवाली आ गई। दुपट्टा खोंसकर वो फर्श साफ करने ही वाली थी कि
उसकी नजर कोने में पड़े हुए पुराने बर्तनों पर गई और बोली- बाप रे! मैडम आज इतने सारे बर्तन घिसने होंगे क्या? और फिर उसका चेहरा जरा तनावग्रस्त हो गया।
महिला बोली-अरी नहीं! ये सब तो भंगारवाले को देने हैं...सब बेकार हैं मेरे लिए ।
पिछले दिनों मैं हनुमान जी के मंदिर में गया था जहाँ पर मैंने एक ब्राह्मण को देखा, जो एक जनेऊ हनुमान जी के लिए ले आये थे | संयोग से मैं उनके ठीक पीछे लाइन में खड़ा था, मेंने सुना वो पुजारी से कह रहे थे कि वह स्वयं का काता (बनाया) हुआ जनेऊ हनुमान जी को
पहनाना चाहते हैं, पुजारी ने जनेऊ तो ले लिया पर पहनाया नहीं |
जब ब्राह्मण ने पुन: आग्रह किया तो पुजारी बोले यह तो हनुमान जी का श्रृंगार है इसके लिए बड़े पुजारी (महन्थ) जी से अनुमति लेनी होगी, आप थोड़ी देर प्रतीक्षा करें, वो आते ही होगें | मैं उन लोगों की बातें गौर से सुन रहा था,
जिज्ञासा वश मैं भी महन्थ जी के आगमन की प्रतीक्षा करने लगा।थोड़ी देर बाद जब महन्थ जी आए तो पुजारी ने उस ब्राह्मण के आग्रह के बारे में बताया तो महन्थ जी ने ब्राह्मण की ओर देख कर कहा कि देखिए हनुमान जी ने जनेऊ तो पहले से ही पहना हुआ है और यह फूलमाला तो है नहीं कि एक साथ कई पहना दी
*Market Trend बदल गया है या फिर Business पैटर्न...*
कुछ समझ नहीं आ रहा है कि हो क्या रहा है
*Restaurants* एकदम फुल हैं,
*Food Courts* खचाखच भरे हुए हैं,
*Bar* में पैर रखने की जगह नही है,
*Ola और Uber* की गाड़ियां खूब दिख रही हैं,
*Sweet Shops* पर मानो लूट मची हो,
*Road* पर चलने की जगह नही है,
*Automobile* में रोज़ नई गाड़ियां लांच हो रही है,
(*हुंडई Creta पिछले 1 साल में 450000 बिकी हैं*)
*AC और LED टीवी* रिकॉर्डतोड़ बिक रहे हैं, *Gold और Silver, पेट्रोल* के दाम बढ़ते चले जा रहे हैं,
*Train* में लंबी वेटिंग जा रही है,
*Zomato और Swiggy* वाले हर जगह हैं,
*newsPaper* विज्ञापनों से भरे पड़े हैं,
*TV में न्यूज़ से ज्यादा विज्ञापन* चल रहे हैं,
*Online शॉपिंग* धड़ाधड़ चल रही है,
एक से बढ़कर एक *Mobile* मार्केट में आ रहे हैं,
*Doctors* के पास खूब मरीज़ हैं,
दोनों बहुओं ने घर के अपने अपने काम और जिम्मेदारियां बाँट लीं थी । पटती भी ख़ूब थी कोई झगड़ा हुआ ही नही कभी ।
बड़की काम पर जाती थी बगल वाली फैक्ट्री में तीन सौ रुपये दिहाड़ी पर ! लौट कर बिना नागा छुटकी के हाथ मे रोज़ दो सौ रुपये रख देती घर खर्च के लिए ।
छुटकी की ज़िम्मेदारी पूरा घर संभालने की थी । झाड़ू पोछा कपड़े ख़ाना बर्तन सब ! जो चाहे बनाए जब चाहे सोये ! बड़ी ने कभी उसके काम के कोई मीन मेख टोका टाकी नही की ।
छोटी को इस बात का बड़ा गर्व था कि घर पर पूरा राज इसी का था, जो चाहती कर सकती थी । एक दिन ये बात उसने बड़की को
बता भी दी।
बड़की ने बड़े प्यार से उसके गाल थपथपाये और कहा ," मेरी आज़ादी की कीमत ये दो सौ रुपए बहुत कम है छुटकी , तू तो पिंजरे में बैठ के आसमान देखती है , मैं कैद में नहीं हूँ मैं उस आसमान में उड़ती हूँ अपने पंखों पर !"