विराट कोहली को मैं सिर्फ़ इस कारण पसंद नहीं करता, कि वो एक बेहतरीन क्रिकेटर है। मैं उसे पसंद करता हूँ कि वो अकेला सितारा क्रिकेटर है, जिसकी रीढ़ अब भी बाकी है। जिस तरह वो बिना डरे शामी के साथ खड़ा हुआ, जिसके ख़िलाफ़ सत्ता और मीडिया की ताकतें ज़हर उगल रही थी। #ViratKohli𓃵
वो किसान आंदोलन के समय, किसानों के साथ खड़े हो कर, एक बेहतर हल निकलने की उम्मीद जतायी। हाथरस की घटना में भी उसने क्रूरता को क्रूरता कहा और न्याय की माँग करी।
अपने देश के लोगों के लिये अपनी शोहरत को दाँव पर लगाना, हर किसी के बस की बात नहीं है। #ViratKohli𓃵
वो सिर्फ़ क्रिकेट के मैदान पर ही नहीं, इंसानियत के मैदान पर भी चैंपियन है। जो देश के लिये, सिर्फ़ प्रतिद्वंद्वियों के विरुद्ध ही नहीं, अपने देशवासी पर हुई नाइंसाफ़ी के विरुद्ध, सत्ता से भी लड़ जाता है। यही वो सच्चा देशप्रेम है, जो उसकी हिम्मत का रसायन है। #ViratKohli𓃵
इस के अलावा जब उसने अपनी बच्ची के जन्म पर एक पिता होने की ज़िम्मेदारी को समझते हुए, बिना किसी झिझक के Paternity leave ली।
जब उसने अपने मानसिक स्वास्थ्य के बुरे दौर के बारे में साफ़गोई से बात करी। ये बातें भी उसे बाकी लोगों से अलग बनाती हैं।
बारहवीं शताब्दी में एक संस्कृत कवि हुए, जयदेव। हिन्दू धर्म की वैष्णव भक्ति परंपरा के इतने बड़े कवि कि उड़ीसा के अखण्डलेश्वर मंदिर में उनकी मूर्ति भी है।
क्या आप जानते हैं कि फ़िलहाल के एक बायकॉट से इनका क्या संबंध है? मैं आपको बताता हूँ।
फ़िलहाल में राधा-कृष्ण के एक चित्र पर बवाल मचा हुआ है। जिसमें वे रातिक्रिया में लीन हैं।
कुपढ़ों की जानकारी के लिए बता दूँ कि जयदेव की रचना 'गीत-गोविंद' में राधा और कृष्ण की कामक्रीड़ा की इस से भी अधिक व्याख्या है और इस रचना को जगन्नाथ पुरी मंदिर में सदियों से गाया जाता है।
ये बारहवीं शताब्दी की वो भक्ति कविता है, जिसे उस युग के कृष्ण भक्तों ने इतना सराहा कि ये संगीतबद्ध हुई, इस पर नाटक बने और चित्र भी बने।
क्यूँकि वो कृष्णभक्त कला का अर्थ और उसकी आवश्यकता समझते थे। वो स्त्री और पुरूष के प्रेम में कामुकता के सौंदर्यबोध को स्वीकार कर सकते थे।
एक बार सम्राट अशोक बचपन में गिल्ली-डंडा खेल रहे थे। उनकी गिल्ली उड़कर अकबर के दरबार में जा गिरी। जब अशोक गिल्ली लेने गए तो अकबर ने मना कर दिया। अशोक ने चाणक्य से कहा। तो उन्होंने ने राजा शशांक को आदेश दिया कि वो दिल्ली से गिल्ली लाएँ।
शशांक को आता देख अकबर के पसीने छूट गए।
अकबर ने तुगलक को गिल्ली देते हुए कहा कि इसकी रक्षा करो। तुगलक ने वो गिल्ली कहीं छुपा दी। इस बात पर शशांक ने पूरे मुगल साम्राज्य का सफ़ाया कर दिया लेकिन उन्हें कहीं भी गिल्ली नहीं मिली।
जब अशोक बड़े हुए तो उन्हें तेनालीराम ने बताया कि तुगलक ने वो गिल्ली मोहम्मद गोरी को दे दी थी।
अशोक ने सेनापति मान सिंह से सलाह माँगी, तो उसने कहा कि उनके गुप्तचर इब्ने सफ़ी ने बताया है कि मोहम्मद गोरी ने वो गिल्ली चंगेज़ खान को सौंप दी थी। जिसने उसे कलिंग नाम की जगह पर छुपा दिया है।
फिर अशोक ने कलिंग पर चढ़ाई कर के वहाँ हिन्दू ध्वज फहराया और इस तरह मुगल साम्राज्य हारा।
देश में इतनी बेरोज़गारी आ चुकी है कि हर इंसान अपनी नौकरी जाने के डर से अमानवीय परिस्थितियों में भी काम करने को तैयार है।
किसी को अगर कोई ग़लत काम करने को भी कहा जाएगा, तो भी वो विरोध करने से पहले दस बार सोचेगा कि क्या मुझे कहीं और काम मिलेगा?
ये यूँ ही नहीं है। सब सोचा समझा है।
किसी देश में इतनी भुखमरी और बेरोज़गारी पैदा कर दो कि इंसान पैसे के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाए। उस पर भी ऐसा देश जिसकी जनसंख्या ही 135 करोड़ से ऊपर है।
अब हर बेरोज़गार या तो इनके लिए आग या फिर ईंधन है। दोनों समाज में घृणा की आग फैलाएँगे और इनकी सत्ता फ़ैक्ट्री चलती रहेगी।
सरकारी कंपनियों को ख़त्म किया जा राह है, जिस से सरकारी नौकरियाँ ख़त्म हो जाएँगी। फिर रोज़गार और सुविधाएँ सरकारी ज़िम्मेदारी नहीं रह जाएंगी।
यूनियन तो कहीं है ही नहीं। तो जिस के पास पैसा है, वो जब चाहे जिसे नौकरी से निकाल देगा और उसके सामने सौ आदमी लाइन में खड़े होंगे।
किन्हीं भी दो लोगों का धर्म या विचारधारा पूरी तरह से एक नहीं हो सकते।
ऊपर से तो आप पूरे स्कूल को एक ही ड्रेस पहना सकते हैं लेकिन उन सब के विचारों को एक नहीं कर सकते। आप उन्हें एक ही कहानी रता दीजिए लेकिन उनके मन के उसकी अलग ही तस्वीर होगी।
आखिरी सच केवल व्यक्तिगत सच है।
आज समाज में कई लोगों को आसान पहचानों में बाँधना मुश्किल होता जा रहा है। क्यूँकि लोग जान रहे हैं कि उनकी पहचान वह नहीं है, जो उन्हें रटाई गयी है।
राजनीतिक और सामाजिक पहचानें केवल शक्ति प्रदर्शन के काम आ सकती हैं। व्यक्ति की पहचान की यात्रा में वो केवल बाधक हैं।
जितना बड़ा सच ये है, उतना बड़ा सच ये भी है कि अधिकतर लोग इस यात्रा से डरते हैं। क्यूँकि अपनी निजी पहचान बनाना यानी खुद को इन शक्ति केंद्रों से काट लेना। फिर आप उस भीड़ का इस्तेमाल अपने हित में नहीं कर सकते।
उन्हें एक भीड़ में रहकर, दूसरी भीड़ से सुरक्षा महसूस होती है।
हमारे देश- जैसे बुरे हालात किसी दूसरे देश के नहीं हुए। यहाँ अजब-अजब सवाल उठते रहते हैं। एक अहम सवाल अछूत-समस्या है। समस्या यह है कि 30 करोड़ की जनसंख्या वाले देश में जो 6 करोड़ लोग अछूत कहलाते हैं, उनके स्पर्श मात्र से धर्म भ्रष्ट हो जाएगा!(14/1)
उनके मन्दिरों में प्रवेश से देवगण नाराज हो उठेंगे! कुएं से उनके द्वारा पानी निकालने से कुआँ अपवित्र हो जाएगा! ये सवाल बीसवीं सदी में किए जा रहे हैं, जिन्हें कि सुनते ही शर्म आती है। हमारा देश बहुत अध्यात्मवादी है, लेकिन हम मनुष्य को मनुष्य का दर्जा देते हुए भी झिझकते हैं (14/2)
जबकि पूर्णतया भौतिकवादी कहलानेवाला यूरोप कई सदियों से इन्कलाब की आवाज उठा रहा है। उन्होंने अमेरिका और फ्रांस की क्रांतियों के दौरान ही समानता की घोषणा कर दी थी। आज रूस ने भी हर प्रकार का भेदभाव मिटा कर क्रांति के लिए कमर कसी हुई है। (14/3)
अनुराग जितना ईमानदार और अपनी बात का पक्का इंसा,न आपको पूरी फ़िल्म इंडस्ट्री में चराग लेकर ढूँढने से भी नहीं मिलेगा और ये बात आपको कोई भी बिना शर्म के बोल सकता है। ये हो सकता है कि अनुराग से कई लोगों की जमती नहीं हो लेकिन वो केवल उनके नज़रिए और काम करने के तरीके की लड़ाई है।
अनुराग के बारे में आप किसी भी छोटे और बड़े कलाकार से बात कीजिए, वो आपको बताएगा कि अनुराग ने किसी के कद या पद के हिसाब से उन से भेदभाव नहीं किया। कम से कम मैं, जो अपने सबसे शुरुआती दिनों में उनसे मिला और आज आठ साल बाद यहाँ हूँ। दोनों ही मौकों पर मैंने उन्हें एक सा पाया।
ख़ैर! मुझे पता है कि मैं अकेला नहीं हूँ। इस इंडस्ट्री में अनुराग के विरोधी या प्रतिद्वंद्वी भी उसका बहुत सम्मान करते हैं। वो उनकी फ़िल्मों को नकार भी दें लेकिन कभी उन्हें नहीं नकारते। उनकी फ़िल्मों के सबसे बड़े आलोचक भी, उनके काम के प्रशंसक हैं।