बहुत हीं अजीब और भयानक घटना थीं ये, जब यूगांडा के तानाशाह नेता ने यूगांडा से 90 दिन के भीतर एशियन लोगों (ज्यादातर भारतीय थें) को देश छोड़कर जाने को कहा था। वहां के ज्यादातर आम लोगों ने भी इस फैसले का समर्थन किया था, इस घटना को #Asianexpulsion (1972) के नाम से जाना जाता हैं
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इस घटना के बाद यूगांडा में भयानक आर्थिक संकट आ गया था। आर्थिक ढांचा हीं ढह गया था क्योंकि जो बड़े-बड़े धंधे और कारखाने थें, जो भारतीय छोड़कर गए थें, वो वहां के आम लोगों को चलाने हीं नहीं आएं। वो इस काबिल थें हीं नहीं कि ढंग से बड़े-बड़े धंधों-कारखानों को चलाया जा सकें
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यूगांडा की सत्ता बदलने के बाद वहां के नेताओं ने भारतीय को वापस बुलाने की भी कोशिश की थीं।
इतिहास की इस घटना के ऊपर एक बेहतरीन डाक्यूमेंट्री, देखिए।
ट्विटर पर कुछ लिबरल लोग और कुछ लिबरल पत्रकार बोल रहें हैं कि CBI का ग़लत इस्तेमाल हों रहा हैं, राजनीतिक नेताओं को दबाने के लिए इसका इस्तेमाल किया जा रहा हैं। मैं बिल्कुल सहमत हूं इस बात से, लेकिन संस्थाओं का ग़लत इस्तेमाल 2014 के बाद से हीं शुरू नहीं हुआ हैं
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बल्कि लाल बहादुर शास्त्री जी के बाद जब इन्दिरा गांधी पहली बार प्रधानमंत्री बनी थीं, तभी से इस संस्था का ग़लत इस्तेमाल किया जा रहा हैं। इस संस्था का निमार्ण शास्त्री जी के समय हीं हुआ था, जब वो देश के गृहमंत्री थें।
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शास्त्री जी के जाने के बाद के दौर से हीं इस संस्था को विपक्षी नेताओं, राजनीतिक आलोचकों के शोषण के लिए और विपक्षी नेताओं को चुप कराने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा हैं, ये बात आपको कांग्रेसी नेता और कांग्रेसी ‘इतिहासकार’ नहीं बताएंगे।
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भारत में धर्म को लेकर इतनी दिक्कत और धर्म का बोलबाला इसलिए हैं क्योंकि आज़ादी के बाद से हीं यहां की सरकार ने धर्म का प्रचार किया हैं और धर्म के ग़लत प्रभाव को नहीं समझा और इसलिए भारत में इतना धार्मिक आन्धापन हैं।
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नास्तिकता या तर्कवाद का कोई नामोनिशान तक नहीं दिखता भारतीय समाज में। भारतीय भौतिकवादी दर्शन (चार्वाक दर्शन) सिर्फ किताबों तक सीमित हैं। चीन में लगभग 70% जनता नास्तिक-तर्कवादी हैं, क्योंकि PRC (चीन) की स्थापना से हीं वहां के नेताओं ने नास्तिकता
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वैज्ञानिक दृष्टिकोण और भौतिकवाद को बढ़ावा दिया हैं। गिरजाघर और पूजास्थल वहां भी हैं, लेकिन वहां की सरकार को पता हैं कि धर्म इन्सान के लिए हैं ना कि इन्सान धर्म के लिए हैं।
भारत में नास्तिकों की संख्या 1% भी नहीं है और यहां पर धर्म की आजादी है, लेकिन फ्रांस में 40% तक नास्तिकता हैं, मतलब 40% लोग नास्तिक हैं और वहां भी धर्म की आजादी है लेकिन धर्म और राज्य अलग-अलग है, इसकी वजह से फ्रांस शिक्षा, स्वास्थ्य आदि स्तर पर काफी आगे हैं+
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ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि फ्रांस में क्रान्ति (फ़्रान्सीसी क्रान्ति) हुईं है और एक अच्छा खासा सोशल चेंज आया हैं और राजनीतिक बदलाव भी आया हैं वहां के समाज में और वहां के लोगों ने इस बदलाव को अपनाया भी है लेकिन भारत में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ+
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भारत को आजादी जरूर मिली और राजनीतिक परिवर्तन भी आया लेकिन कोई क्रान्ति या सामाजिक बदलाव पुरे भारत में नहीं आया. तमिलनाडु में जरूर कुछ हुआ था पेरियार जैसे समाज सुधारकों की वजह से जिसका असर तमिलनाडु में आज भी दिखता है, लेकिन ये बदलाव पर्याप्त नहीं है+
@AmrullahSaleh2 जो अफगानिस्तान के उपराष्ट्रपति थें, उन्होंने अफगानिस्तान के राष्ट्रपति होने का दावा किया हैं और बोला हैं कि अफगानिस्तान के संविधान के अनुसार राष्ट्रपति के ना होने पर उपराष्ट्रपति हीं देश का राष्ट्रपति माना जाएगा++
इस वक्त @AmrullahSaleh2 अपने जन्मस्थान पजंशीर में हैं जहां तालिबान के विरुद्ध में युद्ध जारी हैं, @AmrullahSaleh2 Northern alliance के समर्थन से तालिबान से मुकाबला करने की योजना बना रहें हैं+++
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northern alliance ने तालिबान के शासनकाल में भी (1996 से 2001 तक) तालिबान के विरुद्ध में युद्ध छेड़ा था और उतरी अफगानिस्तान में पकड़ बनाकर रखीं थीं। उस समय northern alliance का साथ भारत, रूस, तजाकिस्तान, ईरान, अमेरिका आदि देशों ने भी दिया था+
तालिबान आज हकीकत बन चुका हैं, और आतंकवाद दल ना होकर एक राजनीतिक दल की तरह बर्ताव कर रहा हैं और आने वाले समय में चीन और पाकिस्तान जैसे देश तालिबान की सरकार को और तालिबानी अफगानिस्तान को मान्यता देने वाले हैं+
और कुछ समय बाद क्या पता @UN भी मान्यता दे हीं दे तालिबान सरकार को और इस्लामिक अमीरात अफगानिस्तान को, लेकिन अब समय हैं कि @UN_Women@unwomenarabic@unwomenindia जैसे विश्व के तमाम महिलावादी संगठनों को तालिबान पर जोरदार दवाब बनाना चाहिए कि+
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महिलाओं को शिक्षक विभागों से लेकर सरकारी दफ्तरों में और संसद और राज्य विधानसभाओं तक में 50% तक प्रतिनिधित्व (आरक्षण) दिया जाएं ताकि महिलाओं और बच्चियों का जीवन स्तर सुधरे और महिलाएं खुद फैसला कर सकें कि उनको क्या पहनना चाहिए और क्या नहीं पहनना चाहिए+
तुम तालिबान के समर्थक नहीं हों, अच्छी बात हैं। मैं राजनितिक इतिहास का छात्र हूं इसलिए मुझे पता हैं कि अमेरिका ने अफगानिस्तान में क्या किया और इराक़ में भी क्या किया सद्दाम हुसैन के बाद+
लेकिन तुम तो ऐसे बोल रहें हों कि जैसे कि 2001 से पहले जब तालिबान की सरकार थीं अफगानिस्तान में तो वहां के लोगों की हालत बहुत अच्छी थीं?? टीवी, रेडियो आदि सब बन्द था और महिलाओं के लिए आफिस, स्कूल, कॉलेज आदि के ताले बन्द थें, उस समय में भी बहुत बूरी हालत थीं+
आज जो हालत अफगानिस्तान में हैं उसके दो कारण हैं एक अमेरिका और तालिबान।
और तालिबान कोई विकल्प नहीं अमरीका के बदले में, अगर विकल्प होता तो आज अफगानिस्तान की आम जनता भीड़ एयरपोर्ट पर नहीं लगी होती, लोग प्लेन पर चढ़कर अपनी जान नहीं देते और किसी को सौक नहीं हैं अपना देश छोड़ने का+