वामपंथ के विषबेलों ने इस देश के इतिहास को विकृत किया और अंग्रेजों के गुलामों ने लिखा #भारत_एक_खोज
चित्र में आप जिसे देख रहें हैं, वो बड़ौदा शाही परिवार की राधिका राजे गायकवाड़ हैं, इन्होंने 100 साल पुरानी शाही संग्रह (कलेक्शन) की साड़ी पहनी है।
यह शुद्घ कपास (हथकरघा) से बनी
है, साड़ी का पल्लू या जिसे आँचल कहते हैं वह #सोने (Gold) से बना है!
क्या तकनीक रही होगी सोने को बारीक धागे में बदलने की, क्या कौशल था जो साड़ी आज भी चमक रही है।
इसे ध्वस्त किया गया ताकि इंग्लैंड की मिलों के लिए बाजार बनाया जा सके। जिस औद्योगिक क्रांति का पाठ हमने किताबों में पढ़ा
उसकी टाइमिंग और भारत में लूट की टाइमिंग का अध्ययन करेंगे तो सबकुछ स्पष्ट हो जायेगा
दुनिया को लूटकर चमकने वाले ब्रिटेन में हाहाकार मचा हुआ है दूसरी तरफ भारत अपने दैदीप्यमान स्वरूप में आज दीपावली मना रहा है।
कृष्ण का कर्म सिद्धान्त फलीभूत हो रहा है,
एक ऐसा बहुत बड़ा सच जो हम सब भारतवासियों से छिपाया गया...
👉क्या आप जानते हैं कि हमारे देश से 10 अरब रुपये की पेंशन प्रतिवर्ष महारानी एलिजाबेथ को जाती है...
आखिर वो कौनसा गोपनीय समझौता है जिसका खुलासा आज तक नहीं किया गया है...
👉आखिर वो कौनसा ऐसा गोपनीय समझौता है
जिसके तहत प्रति वर्ष 30 हजार टन गौ-मांस ब्रिटेन को दिया जाता है...
👉भारतीय संविधान के अनुच्छेदों 366, 371, 372 व 395 में परिवर्तन की क्षमता, भारत की संसद, प्रधानमंत्री यहाँ तक कि भारत के राष्ट्रपति के पास भी नहीं है...
👉हमारे मन में कभी यह सवाल क्यों नहीं आया कि भारत, जापान, चीन, रशिया इन देशों में तो भारत अपना एंबेसडर 【राजदूत】 नियुक्त करता है, लेकिन श्रीलंका, पाकिस्तान, कनाडा, आस्ट्रेलिया इन देशों में हाई कमिश्नर (उच्चायुक्त) नियुक्त करता है... आखिर क्यों...
नक्षत्रों का स्वामी चन्द्रमा है,नदियों की स्वामिनी गङ्गा,,वेदों में सर्वश्रेष्ठ सामवेद है,तथा तीर्थो में पुष्कर सभी तीर्थों में श्रेष्ठ है,उसी प्रकार आदि शङ्कराचार्य परंपरा में सभी सन्तों में
धर्मसम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज सर्वश्रेष्ठ हैं।
महाराजश्री के भाषण,लेखन तथा शास्त्रार्थ पद्धति अभूतपूर्व थी, इसीलिए आपश्री को "अभिनव शङ्कर" भी कहते थे।
किन्तु कुछ विद्वान् कहते हैं कि- श्रीमद्भागवत् महापुराण के ५वें स्कन्ध तथा ११वें स्कन्ध में जो
भगवान् ऋषभदेव के सौ पुत्रों का वर्णन आया हैं, उनमें सबसे बड़े भरत जी हैं, जिन्हें 'जड़ भरत' के नाम से जानते हैं, उन्हीं के नाम से इस देश का नाम "भारतवर्ष" पड़ा, पहले इस देश का नाम "अजनाभवर्ष" हुआ करता था।
बाकी के ९९ में ९ पुत्र इस भारतवर्ष के ९ द्वीपों के
महाकाल और युग प्रत्यावर्तन प्रक्रिया:
रावण का असीम आतंक अन्तत: यों समाप्त हुआ
एक नगरी थी लंका। जिसका राजा था अहंकार, प्रपंच, स्वार्थ और वासना का प्रतिनिधि-रावण। रावण की नीति थी-अपने असीम स्वाथों की असीम पूर्ति
और उसके लिये हर किसी का उत्पीड़न। उदारता उसके पास नाम को भी न थी। अपने सारे शरीर-बल, बुद्धि-बल और परिवार-बल का उपयोग वह दूसरों को आतंकित करने और मनमानी बरतने में करता था। इस प्रकार की अनीति का मार्ग अवलम्बन करने वाले
आरम्भ में फूलते-फलते भी देखे गये हैं। रावण भी खूब फूला-फला था। उसका कुटुम्ब परिवार बढ़ा। कहते हैं कि एक लाख पूत और सवा लाख नाती उसके थे। यह तो उसका निजी परिवार था। एक से एक बड़े मायावी साथी उसके थे।
त्रिजटा जो अनेक
जब उन्होंने इतना विशाल मंदिर तोड़ दिया पूरे मंदिर परिसर को नेस्तनाबूद कर दिया...तो उनके लिए नंदी की प्रतिमा तोड़ना कौन सी बड़ी बात थी...उन्होंने फिर भी उसे नहीं तोड़ा...क्यों...❓
चलो एक और सवाल का जवाब दो...❓वो
जब वजू के लिए जाते थें...उन्हें तो लगभग 13 फीट लंबा शिवलिंग दिखता ही होगा...वो उसे शिवलिंग पर कुल्ला करते थे...उस पर थूकते थे...अपने पैरों के नीचे रौंदते थें.😡
वो चाहते तो शिवलिंग को गायब भी कर सकते थे, या उसके टुकड़े-टुकड़े कर सकते थे...या वहां से हटाकर कहीं और रख सकते थे...
पर उन्होंने ऐसा नहीं किया...क्यों...❓
क्योंकि वो सदियों से सदियों तक तुम्हारे आराध्य को अपमानित करना चाहते थे...इस ज्योतिर्लिंग को अपने पैरों के नीचे कुचलना मसलना चाहते थे.😡
वो चाहते थे कि नंदी की दुर्दशा देखकर हर हिंदू रोए, बिलबिलाये, तड़पे, चीखे, चिल्लाए मगर कुछ कर ना सके.
यह ज्ञानवापी बड़ी दिव्य है इसके लिए स्कन्दपुराण के काशीखण्ड में स्वयं भगवान् विश्वनाथ कहते हैं कि, "मनुष्यों! जो सनातन शिवज्ञान है, वेदों का ज्ञान है, वही इस कुण्ड में जल बनकर प्रकट हुआ है।" सन्ध्या में व कलशस्थापना में जो "आपो हि ष्ठा"
आदि तीन मन्त्र प्रयुक्त होते हैं, उनका रहस्य इस ज्ञानवापी से ही सम्बद्ध है। उनमें शिवस्वरूप, ज्ञानस्वरूप जल से प्रार्थना है कि,
हे जल! तुम सुख देते हो, हममें ऊर्जा का आधान करते हो, हमें रमणीय शिव का दर्शन कराते हो, तुम यहाँ स्थापित हो जाओ।
हे जलदेव! तुम्हारा जो शिवस्वरूप रस है (शिवतमो रसः), हमें भी उसका उसी तरह पान कराओ जैसे माता अपने शिशु को दुग्धपान कराती है।
हे जलदेव! तुम्हारे उस शिवस्वरूप रस की प्राप्ति के लिए हम शीघ्र चलना चाहते हैं, जिससे तुम सारे जगत को तृप्त करते हो और हमें उत्पन्न करते हो।