हरिवंशपुराण में द्वारिका को वारि दुर्ग (पानी का किला) कहा गया है l कालयवन और जरासंध से मथुरावासियों को बचाने के लिए बसाई थी l
पुराणों के अनुसार द्वारिका धरती का हिस्सा नहीं थी बल्कि कृष्ण द्वारा समुद्र से कुछ समय
के लिए उधार मांगी गई भूमि थी जिसे कृष्ण के जाते ही समुद्र ने वापिस अपने में समा लिया।
दुनिया के सबसे प्राचीन शहरों में एक है द्वारिका: दुनिया भर के इतिहासकार मानते रहे हैं कि ईसापूर्व भारत में कभी कोई बड़ा शहर नहीं था। परन्तु द्वारिका की खोज ने दुनिया के इतिहासकारों को फिर से
सोचने के लिए विवश किया। कार्बन डेटिंग 14 के अनुसार खुदाई में मिली द्वारिका की कहानी 9,000 वर्ष पुरानी है। इस शहर को 9-10,000 वर्षो पहले बसाया गया था। जो लगभग 2000 ईसापूर्व पानी में डूब गई थी।
🔸1. समुद्र में धरती से 36 मीटर की गहराई पर स्थित है शहर: ऎतिहासिक द्वारिका समुद्र में
36 मीटर की गहराई पर स्थित है। यहां पर पानी की तेज धारा बहती है जिसके चलते रिसचर्स को अध्ययन में काफी समस्याओं का सामना क रना पड़ा। यहां पर बड़े, विशालकाय और भव्य भवनों की संरचनाएं मिली है जिससे इस प्राचीन शहर की भव्यता का सहज ही अंदाजा होता है।
🔸2. लंबे समय तक छिपी रही
द्वारिका: 1980 के दशक तक भारतीयों को भी पता नहीं था जिस द्वारिका में जाकर वह भगवान श्रीनाथजी के दर्शन करते हैं वह वास्तविक द्वारिका नहीं है बल्कि अलग है। 1980 के दशक में भारत सरकार ने जीएसआई के नेतृत्व में समुद्र में एक रिसर्च सर्वे करने का निर्णय लिया इस रिसर्च के दौरान ही
खंभात की खाड़ी में ली गई रडार स्कैन इमेजेज से पानी में डूबी हुई द्वारिका की पहली झलक दुनिया को दिखाई दी।
🔸3. 5 मील लंबे और 2 मील चौड़े क्षेत्रफल में बसी हुई थी द्वारिका: एक मानचित्र की तरह प्रतीत होने वाली इन इमेजेज में एक 5 मील लंबे तथा 2 मील चौड़े क्षेत्रफल में व्यस्थित
तरीके से मानव निर्मित संरचनाएं दिखाई दी जिस पर भारत सरकार ने प्रोफेशनलस की टीम बना कर अध्ययन करने का निर्णय लिया।
इस टीम ने पानी की गहराई में जाकर डूबे हुए शहर की फोटोग्राफ्स ली और विस्तृत अध्ययन किया। इसके बाद ही द्वारिका को उसका गौरव मिल सका और भारतीयों समेत दुनिया भर के
इतिहासकारों ने मानव इतिहास की एक अनूठी और भव्य खोज माना।
🔸4. द्वारिका की भूमि पर कृष्ण ने किया था युद्ध: महाभारत के अनुसार द्वारिका की भूमि कृष्ण और राजा शाल्व के बीच हुए युद्ध का भी गवाह बनी थी। इस युद्ध में राजा शाल्व ने कृष्ण पर उड़ते हुए विमान में बैठकर हमला किया था। उसके
चलाए अस्त्र से घातक ऊर्जा निकली जिसने आसपास का सभी कुछ नष्ट कर दिया।
इसके जवाब में कृष्ण ने अपने शस्त्र चलाए जो दिखने में साधारण तीर थे परन्तु उनसे सूर्य जैसी प्रचंड ऊर्जा निकल रही थी। इन शस्त्रों के प्रयोग से राजा शाल्व हार गया और उसे मैदान से भागना पड़ा।
🔸5. कालयवन और
जरासंध से मथुरावासियों को बचाने के लिए बसाई थी द्वारिका: मथुरा पर लंबे समय तक यादवों के प्रबल शत्रु जरासंध तथा कालयवन के हमले होते रहे। 17 बार इन हमलों का जवाब देने के बाद कृष्ण ने समुद्र से कुछ जमीन मांगी।
समुद्र ने वासुदेव को प्रभास पाटन (वर्तमान के सोमनाथ शहर) से 20 मील
दूर समुद्र में थी। हरिवंशपुराण में द्वारिका को वारि दुर्ग (पानी का किला) कहा गया है। इससे स्पष्ट होता है कि द्वारिका वास्तव में समुद्र में स्थित एक द्वीप थी जहां से निकटस्थ जगहों पर पहुंचने के लिए नावों का सहारा लिया जाता था।
🔸6. देवताओं के वास्तुकार विश्वकर्मा ने बनाया था
नक्शा: कृष्ण के आदेश देने पर देवताओं के वास्तुकार विश्वकर्मा ने द्वारिका की बसावट का नक्शा बनाया। उन्होंने सोने, चांदी, पत्थर तथा अन्य धातुओं से भवनों का निर्माण किया। निर्माण कार्य पूर्ण होने के बाद कृष्ण ने योगमाया का आश्रय लेकर सभी मथुरावासियों को रात में सोते हुए द्वारिका
पहुंचा दिया और सभी को उनकी योग्यता के हिसाब से रहने के स्थान प्रदान किए।
🔸7. द्वारिकाधीश नहीं थे द्वारिका के राजा: भगवान कृष्ण को द्वारिकाधीश कहा जाता है हालांकि वह इसके वास्तविक राजा नहीं थे। बल्कि उनके बड़े भाई बलराम ही वास्तविक प्रशासक थे। परन्तु जनता में कृष्ण इतने
लोकप्रिय थे कि उन्हीं को द्वारिकाधीश कहा जाने लगा।
🔸8. कृष्ण के देवलोक प्रयाण करते ही समुद्र में समा गई थी द्वारिका: महाभारत के युद्ध के पश्चात गांधारी ने कृष्ण को श्राप दिया कि जैसे कौरव वंश का नाश हुआ वैसे ही यदुवंश भी नष्ट हो जाएगा। कृष्ण ने इस श्राप को गांधारी का आदेश मान
कर सहज ही स्वीकार कर लिया।
अपने अंतिम समय में लीला पूरी करने के बाद कृष्ण एक पेड़ के नीचे बैठे हुए थे तभी उनके पैर में एक तीर लगा और उन्होंने सशरीर देवलोक को प्रयाण किया। जिसके तुरंत बाद द्वारिका वापिस समुद्र में समा गई। पुराणों के अनुसार द्वारिका धरती का हिस्सा नहीं थी बल्कि
कृष्ण द्वारा समुद्र से कुछ समय के लिए उधार मांगी गई भूमि थी जिसे कृष्ण के जाते ही समुद्र ने वापिस अपने में समा लिया।
🔸9. सुनामी से तबाह हो गई थी द्वारिका: द्वारिका की रिसर्च से जुड़े वैज्ञानिकों का मानना है कि द्वारिका संभवतया सुनामी की ऊंची लहरों के प्रभाव में आकर ही
समुद्र में समा गई। ऎसा समुद्र का जलस्तर बढ़ने के कारण भी हो सकता है परन्तु वास्तविकता में क्या हुआ था, इस बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता।
साभार:
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सभी देवो मे शिव जी सबसे शीघ्र प्रसन्न होने वाले दयालु और वरदानी है !
भगवान की कृपा का दुसरा नाम ही वरदान है, जिसपर उनकी कृपा होती है, उसके जीवन मे आने वाले शूल भी फूल बन जाते है, पुराणों मे भगवान के वरदान से
संबंधित अनेक कथाएं है, जो एक भक्त का अपने भगवान पर भरोसा और मजबुत करती है !
सभी देवो मे शिव सबसे शीघ्र प्रसन्न होने वाले दयालु और वरदानी है ! एक बार भगवान शिव की प्रसन्नता के लिए विष्णु जी ने भी तपस्या की और उन्हे अपना नेत्र तक भगवान शिवजी को भेंट करना पडा !
बहुत प्राचीन काल की बात है ! सृष्टि मे दैत्यो का आतंक बहुत बढ गया था ! तब सभी देवताओं ने उनकी दुष्ट प्रवृतियो का अंत करने के लिए विष्णु जी से प्रार्थना की ! विष़्णु जी देवताओं के करुण पुकार सुनकर कैलाश पर्वत पर गए, वहां वे शिव जी को यह समस्या बताना
एक मन्वन्तर में ७१ चतुर्युग ( कृतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग ) होते है जिसमें इस वैवस्वत मन्वन्तर के २७ चतुर्युग सम्पूर्ण हो चुके है अर्थात् यह २८ वां चतुर्युग का कलियुग चल रहा है।
हर चतुर्युग के द्वापरयुग में भगवान्
विष्णु व्यासरूप ग्रहण करके एक वेद के अनेक विभाग करते है। वेदमेकं पृथक्प्रभुः । ( श्रीविष्णुपुराण ३.३.७ )
इस वैवस्वत मन्वन्तर में वेदों का पुनः-पुनः २८ बार विभाग हो चुका ।
अष्टविंशतिकृत्वो वै वेदो व्यस्तो सहर्षिभिः ।
वैवस्वतेन्तरे तस्मिन्द्वापरेषु पुनः पुनः ॥
महाभारत काल में एक प्रतापी और सात्विक ऋषि थे नाम था मांडव्य, एक राजा ने उन्हें गलती से पकड़ लिया और चोरी के जुर्म में फांसी पर लटका देने का आदेश दे दिया.
महाभारत काल में एक प्रतापी और सात्विक ऋषि थे नाम था
मांडव्य, एक राजा ने उन्हें गलती से पकड़ लिया और चोरी के जुर्म में फांसी पर लटका देने का आदेश दे दिया. उन्हें फांसी पर लटकाया गया पर वो मरे नहीं और तड़पते रहे, उन्हें उतरा गया और फिर फांसी पर लटकाया गया दुबारा भी ऐसा हुआ, ऐसा चार बार हुआ तो राजा डर गया और ऋषि को छोड़ दिया.
तब ऋषि ने यमराज का आह्वान किया और यमराज आये, तब ऋषि ने यमराज से इस भोगे गए कष्ट का कारण पूछा तो यमराज ने उन्हें बताया की जब वो 12 साल के थे तो उन्होंने एक तितली को पकड़ा और उसके पीछे चार बार सुई चुभोई थी इस कारण आपको ये यत्न सेहन करनी पड़ी है.
#धर्मपत्नी के भाई को #साला क्यों कहते हैं? कितना श्रेष्ठ और सम्मानित होता है...
💥 #साला" #शब्द_की_रोचक_जानकारी
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हम प्रचलन की बोलचाल में साला शब्द को एक "गाली" के रूप में देखते हैं साथ ही "धर्मपत्नी" के भाई/भाइयों को भी "साला", "सालेसाहब"
के नाम से इंगित करते हैं।
"पौराणिक कथाओं" में से एक "समुद्र मंथन" में हमें एक जिक्र मिलता है, मंथन से जो #14_दिव्य_रत्न प्राप्त हुए थे वो :
कालकूट (हलाहल),
ऐरावत,
कामधेनु,
उच्चैःश्रवा,
कौस्तुभमणि,
कल्पवृक्ष,
रंभा (अप्सरा),
महालक्ष्मी,
शंख (जिसका नाम साला था!),
वारुणी,
चन्द्रमा,
शारंग धनुष,
गंधर्व,
और अंत में अमृत।
"लक्ष्मीजी" मंथन से "स्वर्ण" के रूप में निकली थी, इसके बाद जब "साला शंख" निकला, तो उसे लक्ष्मीजी का भाई कहा गया!
दैत्य और दानवों ने कहा कि अब देखो लक्ष्मी जी का भाई साला (शंख) आया है ..