आप केवल इतना भर जानते हैं कि कौरव महाबलियों ने उसे चक्रव्यूह में घेर कर मार दिया था...!!??
श्रीकृष्ण जिसके गुरु हों और जो स्वंय केशव ही का जो भांजा भी हो...?? उसको शौर्य को फिर आधा ही जानते हैं आप तब...?? कुछ तथ्यों से आप वंचित हैं...!! क्योंकि उस लड़ाई में (1/10)
अभिमन्यु ने जिन वीरपुत्र योद्धाओं को मार कर वीरगति पाई थी...? उनको जान लीजिये...
● दुर्योधन का पुत्र लक्ष्मण
● कर्ण का छोटा पुत्र
● अश्मका का बेटा
● शल्या का छोटा भाई
● शल्या के पुत्र रुक्मरथ
● दृघलोचन
● कुंडवेधी
● सुषेण
● वसत्य
● क्रथा और कई योद्धा...
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और ये तब था जब... उस चक्रव्यूह को जिसे अभिमन्यु को भेदना था... उसके प्रत्येक द्वार, पहले से लेकर सातवें पर योद्धाओं को देखिये...
अभिमन्यु केवल उसमें प्रवेश करना जानते थे। चक्रव्यूह को घूर्णन मृत्यु चक्र भी कहा जाता था...
यह पृथ्वी की तरह घूमता था, साथ ही हर परत के चारों ओर घूमता था। इस कारण से, निकास द्वार हर समय एक अलग दिशा में मुड़ता था, जो दुश्मन को भ्रमित करता था...
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आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि संगीत या शंख ध्वनि के अनुसार, चक्रव्यूह के सैनिक अपनी स्थिति बदल सकते थे। कोई भी कमांडर या सिपाही स्वेच्छा में अपनी स्थिति नहीं बदल सकता था... द्रोण रचित चक्रव्यूह एक घूमते हुए चक्र कुंडली की तरह था, अगर कोई योद्धा इस व्यूह के खुले हुए (6/10)
हिस्से में घुसता था तो मारे गए सैनिक की जगह तुरंत ही दूसरा अधिक शक्तिशाली सैनिक आ जाता था, सैनिकों की पंक्ति लगातार घूमती रहती थी और बाहरी सभी चक्र शक्तिशाली होते रहते थे...
इसलिए चक्रव्यूह में प्रवेश आसान था पर बाहर निकलने के लिए योद्धा को व्यूह की किसी भी समय (7/10)
तात्कालिक स्थिति की जानकारी होना आवश्यक था और इसके लिए व्यूह के हर चक्र के एक योद्धा की स्थिति उसे याद रखनी पड़ती थी...
माना जाता है कि चक्रव्यूह के गठन दुश्मन को मनोवैज्ञानिक और मानसिक रूप से इतना तोड़ देता था कि दुश्मन के हजारों सैनिक एक पल में मर जाते थे...
अभिमन्यु (8/10)
चक्रव्यूह या पद्मावुहा में प्रवेश करते हुए, केदारेश्वर मंदिर, हलेबुल, कर्नाटक, होसल्या स्थापत्य।
यह अकल्पनीय है कि यह रणनीति सदियों पहले "वैज्ञानिक रूप से" गठित की गई थी...
अगले दिन कौरव सेना ने जयद्रथ की रक्षा के लिए जिस व्यूह की रचना की थी... उसका नाम था शकट व्यूह... (9/10)
इसे चक्र शटक व्यूह भी कहा गया है कहीं-कहीं.. इसपर विस्तार से बात होगी...
एक बार नारद मुनि जी ने भगवान विष्णु जी से पुछा, हे भगवन आप का इस समय सब से प्रिय भगत कौन है? अब विष्णु तो भगवान है, सो झट से समझ गये अपने भगत नारद मुनि की बात, और मुस्कुरा कर बोले, मेरा सब से प्रिय भगत उस गांव का एक मामुली किसान है। यह सुन कर नारद मुनि जी थोडा निराश हुये, (1/9)
और फ़िर से एक प्रश्न किया, हे भगवान आप का बडा भगत तो मै हुं, तो फ़िर सब से प्रिय क्यो नही?
भगवान विष्णु जी ने नारद मुनि जी से कहा, इस का जवाब तो तुम खुद ही दोगे, जाओ एक दिन उसके घर रहो ओर फ़िर सारी बात मुझे बताना, नारद मुनि जी सुबह सवेरे मुंह अंधेर उस किसान के घर पहुच (2/9)
गये, देखा अभी अभी किसान जागा है, और उसने अब से पहले अपने जानवरो को चारा बगेरा दिया, फ़िर मुंह हाथ थोऎ, दैनिक कार्यो से निवर्त हुया, जल्दी जल्दी भगवान का नाम लिया, रुखी सूखी रोटी खा कर जल्दी जल्दी अपने खेतो पर चला गया, सारा दिन खेतो मे काम किया।
यह वेदमंत्र कोड है उस सोमना कृतिक यंत्र का, पृथ्वी और बृहस्पति के मध्य कहीं अंतरिक्ष में वह केंद्र है (2/11)
जहां यंत्र को स्थित किया जाता है, वह यंत्र जल, वायु और अग्नि के परमाणुओं को अपने अंदर सोखता है, कोड को उल्टा कर देने पर एक खास प्रकार से अग्नि और विद्युत के परमाणुओं को वापस बाहर की तरफ धकेलता है।
जब महर्षि भारद्वाज ऋषिमुनियों के साथ भृमण करते हुए वशिष्ठ आश्रम पहुंचे (3/11)
कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को बैकुंठ चौदस के नाम से जाना जाता है।
प्राचीन मान्यता है कि इस दिन हरिहर मिलन होता है। यानी इस दिन भगवान शिव और भगवान विष्णु का मिलन होता है। इसलिए यह दिन शिव एवं विष्णु के उपासक बहुत धूमधाम और उत्साह से (1/14)
मनाते हैं। खासतौर पर उज्जैन, वाराणसी में बैकुंठचतुर्दशी को बड़े पैमाने पर मनाया जाता है। उज्जैन में भगवान महाकाल की सवारी धूमधाम से निकाली जाती और दीपावली की तरह आतिशबाजी की जाती है।
पौराणिक मान्यता:
बैकुंठ चतुर्दशी के संबंध में हिंदू धर्म में मान्यता है कि संसार के (2/14)
समस्त मांगलिक कार्य भगवान विष्णु के सानिध्य में होते हैं, लेकिन चार महीने विष्णु के शयनकाल में सृष्टि का कार्यभार भगवान शिव संभालते हैं। जब देव उठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु जागते हैं तो उसके बाद चतुर्दशी के दिन भगवान शिव उन्हें पुन: कार्यभार सौंपते हैं। इसीलिए यह दिन (3/14)
एक बुढ़िया थी। रविवार के व्रत करती थी। उसका गोबर का नेम था। गोबर से चूल्हा लीप के तब रोटी बना के खाती थी। पड़ोसन के गऊ थी। उसके यहाँ से गोबर लाती थी।
एक दिन पड़ोसन ने गऊ अंदर बाँध ली। बुढ़िया का ना गोबर मिला, ना करा, ना खाया। भूखी (1/7)
रह गयी।
सपने में सूर्य नारायण दिखे बोले, 'बुढ़िया भूखी क्यों पड़ी है।' बुढ़िया बोली, 'देव मुझे गोबर का नेम है। चूल्हा गोबर से लीप के, रोटी बनाऊँ हूँ। ना गोबर मिला, ना लीपा, ना खाया।' सूर्य नारायण बोले, 'बाहर निकल के देख, तेरे गोरी-गाय, गोरा बछड़ा बंध रहे हैं।'
गाय ने (2/7)
एक लड़ी सोने की, एक गोबर की दी। पड़ोसन दे देख लिया। सोने की पड़ोसन ले गई, गोबर की बुढ़िया ले आई। लीप-पोत के खा ले। रोज ऐसे ही करे।
भगवान ने सोचा मैंने बुढ़िया को धन दिया। बुढ़िया को लेना ना आया। अब सूरज भगवान ने आँधी-मेघ बरसा दिया। बुढ़िया ने गऊ अंदर बाँध ली। तब बुढ़िया (3/7)
अब्दुल्ला और महबूबा, अब जाकर पाकिस्तान को सलाह दो कि शांति कैसे हो पाकिस्तान में। जो पाकिस्तान जिंदाबाद करते फिरते हैं, वो देख लें उस मुल्क की हालत।
कश्मीर में हर आतंकी हमले के बाद महबूबा और अब्दुल्ला भारत सरकार को सलाह देने कूद पड़ते हैं कि उनसे (आतंकियों और अलगाववादियों (1/9)
से) बात करनी होगी और पहले तो सीधे पत्थरबाजों से भी बात करने की सलाह देते थे। ये लोग भारत को पाकिस्तान से भी बात करने के लिए जोर डालते थे। इनके बोलने पर कोई पाबंदी नहीं है और अब्दुल्ला तो चीन की मदद से 370 वापस लाने की तैयारी करने की बात कर रहा था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट को (2/9)
उसमे कुछ गलत नहीं लगा और इसे सरकार का विरोध बता कर Freedom of Expression बता दिया।
लेकिन आज अब्दुल्ला और महबूबा जैसे पाकिस्तान के वकीलों को पाकिस्तान की हालत देखनी चाहिए। पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को गोली मार दी गई और कंगाली से ग्रसित मुल्क में गृह युद्ध जैसे हालात हो (3/9)
पूरी रात सुगंधी बिखेरता पारिजात,भोर होते ही अपने सभी फूल पृथ्वी पर बिखेर देता है! अलौकिक सुगंध से सराबोर इसका पुष्प केवल मन को ही प्रसन्न नहीं करता,अपितु तन को भी शक्ति देता है ! एक कप गर्म पानी में इसका फूल डालकर पियें,अद्भूत ताजगी मिलेगी...
(1/6)
यह पश्चिम बंगाल का राजकीय पुष्प है...
स्वर्ग में इसको छूने से देव नर्तकी उर्वषी की थकान मिट जाती थी, पारिजात नाम के इस वृक्ष के फूलों को देव मुनि नारद ने श्रीकृष्ण की पत्नी सत्यभामा को दिया था, इन अदभूत फूलों को पाकर सत्यभामा भगवान श्री कृष्ण से जिद कर बैठी कि पारिजात (2/6)
वृक्ष को स्वर्ग से लाकर उनकी वाटिका में रोपित किया जाए!
सत्यभामा की जिद पूरी करने के लिए जब श्री कृष्ण ने पारिजात वृक्ष लाने के लिए नारद मुनि को स्वर्ग लोक भेजा तो इन्द्र ने श्री कृष्ण के प्रस्ताव को ठुकरा दिया और पारिजात देने से मना कर दिया, जिस पर भगवान श्री कृष्ण ने (3/6)