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Nov 5 6 tweets 5 min read
#किस_दिन_क्या_न_खाएं 🚩🚩
👉 #प्रतिपदा_को ..
कूष्मांड (पेठा) न खाएं क्योंकि उस दिन यह धन का नाश करने वाला होता है।
👉 #द्वितीया_को..
बृहती (छोटा बैंगन या कटेहरी) निषिद्ध है।
👉 #तृतीया_को.
परवल खाने से शत्रुओं की वृद्धि होती है।
👉 #चतुर्थी_को.
मूली खाने से धन का नाश होता है।
👉 #पंचमी_को..

बेल खाने से कलंक लगता है।

👉 #षष्ठी_को..

नीम की पत्ती, फल या दातुन मुंह में डालने से नीच योनि की प्राप्ति होती है।

👉 #सप्तमी_को..

ताड़ का फल खाने से रोग बढ़ता है।

👉 #अष्टमी_को..

नारियल फल खाने से बुद्धि का नाश होता है।

👉 #नवमी_को.

लौकी न खाएं।
👉 #दशमी_को.

कलंबी शाक त्याज्य है।

👉 #एकादशी_को..

सेम खाने से पुत्र का नाश होता है, चावल खाना भी वर्जित।

👉 #द्वादशी_को...

पोई (पूतिका) खाने से पुत्र को परेशानी होती है।

👉 #त्रयोदशी_को...

बैंगन खाने से पुत्र का नाश होता है।

🔘अमावस्या, पूर्णिमा, संक्रांति, चतुर्दशी
और अष्टमी तिथि, रविवार, श्राद्ध और व्रत के दिन तिल का तेल निषिद्ध है।

💥 #आंवला_कब_ना_खाएं...

रविवार और शुक्रवार आंवला का सेवन त्याज्य हैl

💥 #स्कंद_पुराण_के_अनुसार...

🔘 सप्तमी, नवमी, रविवार, अमावस्या, संक्रांति, चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण के दिनों को छोड़कर, बाकी के दिनों
में यदि कोई आंवला का रस शरीर पर लगाकर स्नान करें और अपना पुरुषार्थ करें तो उसके घर लक्ष्मी जरूर आती हैं l"

💥 #तुलसी_कब_ना_तोड़े..

🔘तुलसी रविवार, द्वादशी तिथि, कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी (चौदस), अमावस्या और पूर्णिमा इन तिथियों में नहीं तोड़ना चाहिए।

सूर्यास्त के समय में भी
तुलसीदल तोड़ना वर्जित बताया गया है।

शास्त्रों में बताया गया है कि तुलसी का पत्ता बिना स्नान किए या फिर अशुद्ध हाथ से नहीं तोड़ना चाहिए, पूजन में ऐसे पत्ते भगवान द्वारा स्वीकार नहीं किए जाते।

#सनातन_संस्कृति 🚩

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Nov 3
#विष्णु_जी_ने_शिव_जी_को_क्यों_अर्पित_कर_दिया_था_अपना #_नेत्र 🚩

सभी देवो मे शिव जी सबसे शीघ्र प्रसन्न होने वाले दयालु और वरदानी है !

भगवान की कृपा का दुसरा नाम ही वरदान है, जिसपर उनकी कृपा होती है, उसके जीवन मे आने वाले शूल भी फूल बन जाते है, पुराणों मे भगवान के वरदान से Image
संबंधित अनेक कथाएं है, जो एक भक्त का अपने भगवान पर भरोसा और मजबुत करती है !

सभी देवो मे शिव सबसे शीघ्र प्रसन्न होने वाले दयालु और वरदानी है ! एक बार भगवान शिव की प्रसन्नता के लिए विष्णु जी ने भी तपस्या की और उन्हे अपना नेत्र तक भगवान शिवजी को भेंट करना पडा !
#कथा_क्या_थी_आप_भी_पढिए 🚩

बहुत प्राचीन काल की बात है ! सृष्टि मे दैत्यो का आतंक बहुत बढ गया था ! तब सभी देवताओं ने उनकी दुष्ट प्रवृतियो का अंत करने के लिए विष्णु जी से प्रार्थना की ! विष़्णु जी देवताओं के करुण पुकार सुनकर कैलाश पर्वत पर गए, वहां वे शिव जी को यह समस्या बताना
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Nov 2
#कृष्ण_की_नगरी_द्वारिका :#मानव_इतिहास_की_अनूठी #और_भव्य_खोज 🚩

हरिवंशपुराण में द्वारिका को वारि दुर्ग (पानी का किला) कहा गया है l कालयवन और जरासंध से मथुरावासियों को बचाने के लिए बसाई थी l

पुराणों के अनुसार द्वारिका धरती का हिस्सा नहीं थी बल्कि कृष्ण द्वारा समुद्र से कुछ समय ImageImageImageImage
के लिए उधार मांगी गई भूमि थी जिसे कृष्ण के जाते ही समुद्र ने वापिस अपने में समा लिया।

दुनिया के सबसे प्राचीन शहरों में एक है द्वारिका: दुनिया भर के इतिहासकार मानते रहे हैं कि ईसापूर्व भारत में कभी कोई बड़ा शहर नहीं था। परन्तु द्वारिका की खोज ने दुनिया के इतिहासकारों को फिर से
सोचने के लिए विवश किया। कार्बन डेटिंग 14 के अनुसार खुदाई में मिली द्वारिका की कहानी 9,000 वर्ष पुरानी है। इस शहर को 9-10,000 वर्षो पहले बसाया गया था। जो लगभग 2000 ईसापूर्व पानी में डूब गई थी।
🔸1. समुद्र में धरती से 36 मीटर की गहराई पर स्थित है शहर: ऎतिहासिक द्वारिका समुद्र में
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Nov 2
💥 #२८_व्यास_मुनियों_के_नाम :🚩🚩

एक मन्वन्तर में ७१ चतुर्युग ( कृतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग ) होते है जिसमें इस वैवस्वत मन्वन्तर के २७ चतुर्युग सम्पूर्ण हो चुके है अर्थात् यह २८ वां चतुर्युग का कलियुग चल रहा है।

हर चतुर्युग के द्वापरयुग में भगवान्
विष्णु व्यासरूप ग्रहण करके एक वेद के अनेक विभाग करते है। वेदमेकं पृथक्प्रभुः । ( श्रीविष्णुपुराण ३.३.७ )

इस वैवस्वत मन्वन्तर में वेदों का पुनः-पुनः २८ बार विभाग हो चुका ।

अष्टविंशतिकृत्वो वै वेदो व्यस्तो सहर्षिभिः ।
वैवस्वतेन्तरे तस्मिन्द्वापरेषु पुनः पुनः ॥
( श्रीविष्णुपुराण ३.३.९ )

💐 #उन_२८_व्यास_मुनियों_के_नाम_इस_प्रकार_हैं :🚩
👇👇
🔘१. ब्रह्माजी,

🔘२. प्रजापति,

🔘३. शुक्राचार्य जी,

🔘४. बृहस्पति जी,

🔘५. सूर्य,

🔘६. मृत्यु,

🔘७. इन्द्र,

🔘८. वसिष्ठ,

🔘९. सारस्वत,

🔘१०. त्रिधामा,
🔘११. त्रिशिक,
🔘१२. भरद्वाज
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Nov 2
💥 #यमराज_को_माण्डव्य_ऋषि_ने_क्या_श्राप_दिया_था ?🚩

महाभारत काल में एक प्रतापी और सात्विक ऋषि थे नाम था मांडव्य, एक राजा ने उन्हें गलती से पकड़ लिया और चोरी के जुर्म में फांसी पर लटका देने का आदेश दे दिया.

महाभारत काल में एक प्रतापी और सात्विक ऋषि थे नाम था
मांडव्य, एक राजा ने उन्हें गलती से पकड़ लिया और चोरी के जुर्म में फांसी पर लटका देने का आदेश दे दिया. उन्हें फांसी पर लटकाया गया पर वो मरे नहीं और तड़पते रहे, उन्हें उतरा गया और फिर फांसी पर लटकाया गया दुबारा भी ऐसा हुआ, ऐसा चार बार हुआ तो राजा डर गया और ऋषि को छोड़ दिया.
तब ऋषि ने यमराज का आह्वान किया और यमराज आये, तब ऋषि ने यमराज से इस भोगे गए कष्ट का कारण पूछा तो यमराज ने उन्हें बताया की जब वो 12 साल के थे तो उन्होंने एक तितली को पकड़ा और उसके पीछे चार बार सुई चुभोई थी इस कारण आपको ये यत्न सेहन करनी पड़ी है.

इस पर ऋषि क्रोधित हो गए और बोले
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Nov 1
#धर्मपत्नी के भाई को #साला क्यों कहते हैं? कितना श्रेष्ठ और सम्मानित होता है...

💥 #साला" #शब्द_की_रोचक_जानकारी
👇👇
हम प्रचलन की बोलचाल में साला शब्द को एक "गाली" के रूप में देखते हैं साथ ही "धर्मपत्नी" के भाई/भाइयों को भी "साला", "सालेसाहब"
के नाम से इंगित करते हैं।

"पौराणिक कथाओं" में से एक "समुद्र मंथन" में हमें एक जिक्र मिलता है, मंथन से जो #14_दिव्य_रत्न प्राप्त हुए थे वो :
कालकूट (हलाहल),
ऐरावत,
कामधेनु,
उच्चैःश्रवा,
कौस्तुभमणि,
कल्पवृक्ष,
रंभा (अप्सरा),
महालक्ष्मी,
शंख (जिसका नाम साला था!),
वारुणी,
चन्द्रमा,
शारंग धनुष,
गंधर्व,
और अंत में अमृत।

"लक्ष्मीजी" मंथन से "स्वर्ण" के रूप में निकली थी, इसके बाद जब "साला शंख" निकला, तो उसे लक्ष्मीजी का भाई कहा गया!

दैत्य और दानवों ने कहा कि अब देखो लक्ष्मी जी का भाई साला (शंख) आया है ..

तभी से ये प्रचलन में आया कि नव विवाहिता
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Oct 31
दधिची ऋषि ने धर्म की रक्षा के लिए अस्थि दान किया था !
उनकी हड्डियों से तीन धनुष बने-

●१. गांडीव,
●२. सारंग
●३. पिनाक!
जिसमे से गांडीव अर्जुन को मिला था जिसके बल पर अर्जुन ने महाभारत का युद्ध जीता !

सारंग से भगवान राम ने युद्ध किया था और रावण के अत्याचारी
राज्य को ध्वस्त किया था !

और, पिनाक था भगवान शिव जी के पास जिसे तपस्या के माध्यम से खुश भगवान शिव से रावण ने मांग लिया था !

परन्तु वह उसका भार लम्बे समय तक नहीं उठा पाने के कारण बीच रास्ते में जनकपुरी में छोड़ आया था !

इसी पिनाक की नित्य सेवा सीताजी किया करती थी ! पिनाक का
भंजन करके ही भगवान राम ने सीता जी का वरण किया था !

ब्रह्मर्षि दधिची की हड्डियों से ही एकघ्नी नामक वज्र भी बना था जो भगवान इन्द्र को प्राप्त हुआ था !

इस एकघ्नी वज्र को इन्द्र ने कर्ण की तपस्या से खुश होकर उन्होंने कर्ण को दे दिया था! इसी एकघ्नी से महाभारत के युद्ध में भीम का
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