वर्ष 2021-22 में देश में स्कूली शिक्षा की स्थिति के बारे में केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय की रिपोर्ट बेहद चिंताजनक है. इस रिपोर्ट की कुछ मुख्य बातें इस प्रकार हैं- 1/8 #Education#शिक्षा
देश के कम-से-कम 55.5% स्कूलों में कंप्यूटर सुविधा नहीं. पिछले साल कोरोना के दौरान ऑनलाइन पढ़ाई की व्यवस्था में 66% छात्रों के पास इंटरनेट की सुविधा नहीं थी. 2/8
केवल 2.2% स्कूलों के पास डिजिटल लाइब्रेरी है और 14.9% स्कूलों की कक्षाओं में डिजिटल बोर्ड/स्मार्ट टीवी आदि सुविधाएँ हैं. 3/8
हमारे देश के 10.6% स्कूलों में बिजली नहीं है और 23.04% स्कूलों में खेल के मैदान नहीं हैं. बिना लाइब्रेरी और रीडिंग रूम के 12.7% स्कूल चल रहे हैं. 4/8
दिव्यांग और शारीरिक समस्याओं का सामना कर रहे बच्चों के लिए सुविधाजनक शौचालय केवल 26.96% स्कूलों में हैं. व्हील चेयर के लिए रैम्प आधे से भी कम स्कूलों में हैं. 5/8
संतोषजनक है कि स्पेशल नीड वाले बच्चों, अनुसूचित जाति, जनजाति एवं अन्य पिछड़ा वर्ग के छात्रों का नामांकन बढ़ा है. 6/8
ये आँकड़े यही बताते हैं कि स्कूली शिक्षा के स्तर पर अभी बहुत किया जाना है. राज्यों के बीच में भी अंतर है, शहरी व ग्रामीण स्कूलों में अंतर है, इसे पाटने की आवश्यकता है. 7/8
केंद्र और राज्य सरकारों को इस रिपोर्ट को गंभीरता से लेना चाहिए. अगर स्कूली शिक्षा बेहतर नहीं होगी, तो विकसित भारत की बुनियादी मज़बूत नहीं हो सकती है. 8/8
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कोरोनावायरस महामारी का एक बड़ा प्रभाव शिक्षा के क्षेत्र पर हुआ है - प्रथम नामक संस्था द्वारा जारी की गयी असर (ASER) रिपोर्ट इस बात की पृष्टि करती है | सर्वेक्षण में पाया गया कि ग्रामीण भारत में केवल एक-तिहाई बच्चों के पास ऑनलाइन शिक्षा के लिए संसाधन थे;
केवल 11 प्रतिशत बच्चे लाइव ऑनलाइन क्लासेस से जुड़ पा रहे थे। 24.3 प्रतिशत बच्चों ने कहा कि उन्हें स्कूल से कोई सीखने की सामग्री नहीं मिली हैं | यह साफ़ है कि स्कूली शिक्षा प्रणाली के डिजिटल रूपांतरण से देश के गरीब बच्चे विषमता और बहिष्कार के शिकार होते जा रहे हैं |
रिपोर्ट यह भी बताता है कि 2020-21 में 5.5 प्रतिशत बच्चों का स्कूल में दाखिला नहीं हुआ है; 2018 में केवल 4 प्रतिशत बच्चों का दाखिला नहीं हुआ था। बढ़ती गरीबी और बेरोज़गारी के कारण बच्चों का स्कूल में दाखिला नहीं किया जा रहा है और शिक्षा के प्रवाह से वे दूर होते जा रहे हैं |