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Nov 5, 2022 7 tweets 2 min read Read on X
बुद्ध का मल मूत्र खाना

आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि स्वयं बुद्ध अघोरियों की तरह रहे थे अर्थात् बुद्ध श्मशान में रहते थे। मुर्दों की हड्डियों का तकिया लगाते थे। बछडों का गोबर खाते थे और खुद का भी मल - मूत्र खा जाते थे। ये बात किसी ऐसी वैसी पुस्तक में नहीं लिखी है,

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बल्कि बौद्धों के प्रामाणिक ग्रंथ त्रिपिटक के मज्झिम निकाय में लिखी है। हम यहां मज्झिम निकाय (अनु. राहुल सांस्कृत्यायन) का स्क्रीन शाँट प्रमाण स्वरुप प्रस्तुत कर रहे हैं।

ये चित्र मज्झिम निकाय अध्याय 12 महासीहनाद (1/2/2) हिन्दी अनुवाद के पेज क्रमांक 49-50 का है। Image
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यहां बुद्ध सारिपुत्र को बता रहे हैं कि उन्होने बछडों का गोबर खाया था और खुद का मल - मूत्र भी खाया था। वो श्मशान में मूर्दों की हड्डियों का तकिया लगा कर सोते थे। यहां तक की बुद्ध नहाते - धोते तक नही थे। Image
कृपया ज्यादा से ज्यादा बौद्धों के साथ ट्वीट को शेयर करे
संदर्भित ग्रंथ एवं पुस्तकें -
1) मज्झिम निकाय - अनु. राहुल सांस्कृत्यायन
सभी सनातनियो से आग्रह हैं कि मुझे फॉलो करें और मेरे ट्वीट्स को रिट्वीट करे।
यह सब बातें बौद्धों के प्रामाणिक ग्रंथ त्रिपिटक के मज्झिम निकाय में लिखी है। हम यहां मज्झिम निकाय (अनु. राहुल सांस्कृत्यायन) का स्क्रीनशाँट प्रमाण स्वरुप प्रस्तुत कर रहे हैं।

ये चित्र मज्झिम निकाय अध्याय 12 महासीहनाद (1/2/2) हिन्दी अनुवाद के पेज क्रमांक 49-50 का है।

#नमोबुद्धाय Image

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Aug 24
क्या नास्तिक अम्बेडकरवादी सही में बौद्ध है?

१४ अक्टूबर १९५६ को भीमराव अम्बेडकर ने यह घोषणा की कि मैं अब हिन्दू नहीं बौद्ध हूँ ; जबकि वास्तविकता यह है कि भीमराव जीवन भर बौद्ध नहीं बन पाए क्योंकि उनकी विचारधारा महात्मा बुद्ध से बिलकुल विपरीत रही |
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भीमराव बौद्ध थे या नहीं यह समझने के लिए भीमराव अम्बेडकर के विचार और महात्मा बुद्ध के उपदेशों का तुलनात्मक अध्ययन करना आवश्यक है |

भीमराव अम्बेडकर के वेदों पर विचार ( निम्नलिखित उद्धरण अम्बेडकर वांग्मय से लिए हैं ) –
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वेद बेकार की रचनाएँ हैं उन्हें पवित्र या संदेह से परे बताने में कोई तुक नहीं | ( खण्ड १३ प्र. १११ )

ऐसे वेद शास्त्रों के धर्म को निर्मूल करना अनिवार्य है | ( खण्ड १ प्र. १५ )
वेदों और शास्त्रों में डायनामाईट लगाना होगा , आपको श्रुति और स्मृति के धर्म को नष्ट करना ही चाहिए |
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Aug 17
भारत बुद्ध की नहीं युद्ध की आदि भूमि है।
जब यह कहा जाता है कि भारत युद्ध की नहीं बुद्ध की भूमि है तो यह प्राचीन क्षात्र धर्म और शौर्य परंपरा के साथ एक मजाक है। वेदों में जितनी ऋचाएं ईश्वर की स्तुतिपरक है उतनी ही ऋचाएं राजा को रणभूमि गमन संग्राम को प्रेरित करने वाली हैं।
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बुद्ध से परे भी विशाल कालखंड रहा है जहां चक्रवर्ती राजाओं ने वैदिक काल से लेकर उपनिषद काल रामायण काल व महाभारत काल पश्चात् में मध्यकाल तक धर्म मानवता की स्थापना के लिए अनेकों महान संग्राम लड़े हैं।
रामायण व महाभारत अचार् विचार राजनीति नीति की शिक्षा विषयक ग्रंथ है
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लेकिन महर्षि वाल्मीकि व महर्षि वेदव्यास ने युद्धों के वर्णन प्रसंग की उपेक्षा ने नहीं की अपितु युद्धों को लेकर पूरे अध्याय रचे गये है इनमें ।

भारत यदि बुद्ध की भूमि है तो क्या मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने युद्ध अपराध किया था या योगेश्वर श्री कृष्ण पांडवों ने भी युद्ध
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Jun 16, 2023
बौद्ध भिक्षुणियां

विनय पिटक में बौद्ध भिक्षुणीयो के लिए जितने नियम लिखे हैं अगर उसे आप पढ़े तो आपके होश उड़ जायेंगे

1.पशु मैथुन twitter.com/i/web/status/1… Vinay Pitak ,  Page 42
2. कामासक्ति के कार्य twitter.com/i/web/status/1… Vinay Pitak , Page : 42
3 .खुले में शौच

विनय पिटक के 10-6/9 के भिक्खुनी क्खन्धक से twitter.com/i/web/status/1… देखे चित्र विनय पिटक के 10-...
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Apr 27, 2023
भूटान के बौद्धों का लिंग मत और उनका काम देव कुनले

भूटान के थिम्पू में अधिकतर घरो पर मानव लिंग की आकृतिया बनी है अधिकतर लिंग जो दीवार पर लगाये या बनाये जाते हैं, वे इंसानी लिंग से बड़े होते हैं..

साभार : विकिपीडिआ & बाबा-बाबा
en.wikipedia.org/wiki/Phallus_p…
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ये लिंग भी विभिन्न आकर, रंग आदि में मिलते हैं कोई ड्रैगन के आकार का होता है, तो कोई रिबन से बंधा होता है जैसे की कोई तोहफा हो. कुछ में आँखें भी होती हैं, और सभी सख्त एवं खड़े हुए होते हैं

इन बने लिंगो को उनकी आकृति को भूटानी लोग अपनी और बुद्ध मत की परम्परा की शान बताते है |
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भूटानी लोगो के अनुसार शहरी करण और आधुनिक करण से उनकी ये कला विलुप्त हो रही है इन लोगो का अंधविशवास है कि इससे (घरो के बाहर लिंग बनाने से ) इनमे सेक्स क्षमता बढती है |
भूटान के लोग लिंग को अपने घरो में इसलिए टांगते हैं जिससे उनका घर, और परिवार के लोग बुरी ताकतों से बचे रहें
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Sep 19, 2022
अशोक: क्रूर बौद्ध राजा-2

अबतक,
अशोक राजा बनने के पहले से बोद्धो के संपर्क में था और उत्तराधिकार युद्ध में यूनानी सिपाहियों की सहायता ली और 99 भाइयो को मरवा दिया। कलिंग युद्ध के 2 साल पहले बौद्ध धर्म अपना लिया था। इस युद्ध में लाखो मारे गए और बंदियों को मजदूर बना दिया गया
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अब आगे,
अशोकावदान ही एक दूसरी जगह बताती है कि शांतिप्रिय होने के कई साल बाद भी सम्राट द्वारा नरसंहार के अनेक कृत्य किए गए थे जो जैन और आजीवन सम्प्रदाय के खिलाफ थे।

अशोकावदान याद करता है कि कैसे एक बार बंगाल में अशोक ने अठारह हजार आजीवकों को एक साथ मौत के घाट उतरवा दिया था। Image
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अशोकावदान में वर्णित ये एकमात्र घटना नही है। पाटलीपुत्र के एक जैन श्रद्धालु को एक तस्वीर बनाते हुए पाया गया जिसमें बुद्ध एक जैन तीर्थंकर के आगे नमन कर रहे थे। अशोक ने आदेश दिया कि उसे और उसके परिवार को उसके घर में बंद कर दिया जाए और भवन को जला दिया जाए। Image
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Sep 17, 2022
अशोक: क्रूर बौद्ध राजा - 1

लगभग सारे विवरण इस बात पर सहमत हैं कि अशोक का प्रारंभिक शासनकाल हिंसक और अलोकप्रिय था, उसे ‘चंड अशोक’ कहा जाता था।

अशोक का 13वां शिलालेख कलिंग युद्ध का वर्णन करता है। जबकि किसी भी बौद्ध ग्रंथ में इस युद्ध की चर्चा नहीं की गई है।
#ashoka
1/14 अशोक एक क्रूर बौद्ध राजा था...
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262 ईसा पूर्व में अशोक ने कलिंग पर हमला किया था जबकि लघु शिलालेखों से हमें पता है कि अशोक लगभग 2 साल पहले ही बौद्ध धर्म अपना चुका था।

कोई भी बौद्ध ग्रंथ उसके धर्म परिवर्तन को युद्ध से नहीं जोड़ता और चार्ल्स ऐलन जैसे अशोक के प्रशंसक भी सहमत हैं कि अशोक एक क्रूर बौद्ध राजा था...
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उसने कलिंग युद्ध से पहले धर्म परिवर्तन कर लिया था। इसके अलावा धर्म परिवर्तन करने से एक दशक पहले से उसके बौद्धों के साथ संबंध प्रतीत होते हैं। यह साक्ष्य साबित करता है कि उसका बौद्ध धर्म अपनाना उत्तराधिकार की राजनीति ज्यादा रही होगी, युद्ध की त्रासदी से उपजा पश्चाताप कम। अशोक एक क्रूर बौद्ध राजा था...
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